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Tuesday 22 May 2018

कुंडली मिलान

  #कुंडली मिलान में देखने में आया है कि ज्यादातर #गुण मिलान में केवल  गुणों को बहुत ज्यादा महत्व दे दिया जाता है।कुल #36 गुण विवाह मिलान में होते है इसमें 36 से नीचे और 18से ऊपर मिलान होने पर #विवाह की स्वीकृति  दे दी जाती है लेकिन कुंडली के ग्रह और #सातवें भाव का विचार करना भी जरूरी होता है गुण मिलान विवाह के लिए केवल 30%मिलान होना बताता है जबकि पूर्ण मिलान ग्रह और कुंडली के सातवें भाव सहित अन्य विवाह के सहयोगी भावो का भी शुभ होना सुखी और अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी होता है।18 से ऊपर जितने ज्यादा से गुण मिलते है उतना ही शुभ होता है साथ ही अब गुण मिलने के बाद #लड़की-लड़के दोनों की कुंडली का सातवाँ भाव इस भाव का स्वामी लड़के की कुंडली में पत्नी का कारक शुक्र, लड़की की कुंडली में पति कारक बृहस्पति का शुभ, अनुकूल और पाप ग्रहो से मुक्त होना भी जरूरी है साथ ही सातवे भाव में कोई अस्त ग्रह, अशुभ ग्रह योग, पाप ग्रह न हो, सातवे भाव का स्वामी विवाह कारक #बृहस्पति शुक्र भी अस्त या पीड़ित नही होने चाहिए। इतना मिलान ठीक होने के बाद कुंडली के बारहवे भाव और इस भाव के स्वामी की स्थिति भी ठीक होना जरूरी है कारक यह भाव शैय्या सुख से सम्बंधित भाव है और शैय्या सुख #वैवाहिक सुख का एक अंग है इस कारण यह भाव भावेश दोनो पाप ग्रहो, अशुभ योग से मुक्त होने जरूरी होते है।इसके बाद दूसरा भाव भावेश भी बली, पाप ग्रहो से मुक्त होना जीवन साथी के लिए जरूरी है क्योंकि यह भाव भावेश #जीवनसाथी की आयु का भाव होता यदि जीवन साथी की आयु दीर्घ है तो विवाह सुख(पति-पत्नी) सुख और साथ लम्बे समय के लिए बना रहता है यह भाव परिवार का भी है इस कारण भी विवाह संबंधी मामले में यह भाव/भावेश शुभ और बली होना जरूरी है जिससे परिवार की वृद्धि हो।इसके बाद विवाह मिलान लड़की-लड़के की कुंडली में बृहस्पति सहित 5वे भाव भावेश की स्थिति भी शुभ, बली और अनुकूल होना सुखी और पूर्ण वैवाहिक जीवन का एक अंग होता क्योंकि यह भाव भावेश और बृहस्पति संतान के स्वामी और कारक है और #संतान पति-पत्नी के सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध को मजबूत करने की एक डोर है, परिवार वृद्धि का रास्ता है इस कारण यह भाव भावेश+बृहस्पति शुभ, अनुकूल होना भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी हो जाता है।साथ ही चोथे भाव भावेश भी शुभ और अशुभ प्रभाव से मुक्त हो क्योंकि यह भाव गृहस्थी और घर( निवास)का है गृहस्थी के लिए इस भाव/ भावेश की अनुकूलता अनिवार्य है।सबसे ज्यादा सातवें भाव भावेश, द्वितीय भाव भावेश, बारहवे भाव भावेश व् पाचवे भाव भावेश का अनुकूल होना एक पूर्ण सुखी और अच्छी कुंडली मिलान के लिए जरूरी होता है इसमें भी सातवा भाव भावेश साथ हो विवाह कारक गुरु शुक्र महत्वपूर्ण है क्योंकि यही सातवाँ भाव, भावेश गुरु शुक्र विवाह, वैवाहिक जीवन की नींव और उत्पत्ति है और नींव का ठीक होना सबसे महत्वपूर्ण होता है।इस तरह से गुण मिलान के साथ ग्रह, भाव का ठीक से परीक्षण और मिलान करने पर ही कुंडली का सही मिलान हो पाता है और यह सही से पता चल पाता है कि वैवाहिक जीवन किस स्तर तक ठीक आदि रहेगा।   #यदि #लग्न_कुंडली आपस में नही मिल पाती हो और यदि दोनों की #नवमांश_कुंडली आपस में पूरी तरह सही से मिल जाती है तब भी विवाह मिलान हो जाता है।अतःविवाह मिलान में नवमांश कुंडली का विश्लेषण भी करना जरूरी होता है यदि लग्न कुंडली ही प्रथम मिल जाती है तो यहई लग्न कुंडली विवाह होने की स्वीकृति दे देती है 
..अपनी जन्मकुंडली बनबाने या फिर दिखाने के लिए मिलें। और अपने जन्मकुंडलियों के अनुसार उपाय परहेज जानने के लिये अवश्य मिलें।
#Astrologer in ludhiana, punjab
#रिसर्च एस्ट्रोलॉजर
#Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)
Mrs.Monita Verma
(Astro. Vastu Consultant )
7728/4 St.no.5 new guru angad colony
Behind A.T.I.College Ludhiana.3
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Saturday 12 May 2018

कुल देवी देवताओं की पूजा अर्चना

#Astrologer in ludhiana, punjab, india

*कुलदेवी/देवता की पूजा क्यू करना चाहीये?*


*हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है ,,प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाती कहा जाने लगा ,,पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |*

*समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ,इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया |*

*कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक* *ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है* *कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है ,अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है ,*

*कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है* *तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ,,बाहरी बाधाये ,अभिचार* *आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ,,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है ,,ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ,,*
*कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ,सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं ,,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे।*

..अपनी जन्मकुंडली बनबाने या फिर दिखाने के लिए मिलें। और अपने जन्मकुंडलियों के अनुसार उपाय परहेज जानने के लिये अवश्य मिलें।
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