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Monday 13 July 2015

# क्या कहते है पीतल के बर्तन रहस्यमयी लाल किताब में..

# क्या कहते है  पीतल के बर्तन रहस्यमयी लाल किताब में...
रहस्यमयी लाल किताब के रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान में हमे कई रहस्यों के बारे में जानकारी मिलती है । आज मैं आपके साथ इसके एक और रहस्य के बारे में विचार विमर्श करूँगा वो रहस्य है पीतल के बर्तन ....
पीतल अर्थात ब्रास एक मिश्रित धातु है। पीतल का निर्माण तांबा व जस्ता धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है। पीतल शब्द "पीत" से बना है तथा संस्कृत में 'पीत' का अर्थ 'पीला' होता है तथा  भागवान विष्णु / सूर्य  ग्रह  को संबोधित करता है।  पीला रंग गुरु ग्रह को बहुत प्रिय है  तथा माता  बगलामुखी देवी के अनुष्ठानो में मात्र पीतल के बर्तन और पीली चीजों का  ही प्रयोग किया जाता  हैं।    सनातन धर्म में पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म  हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है।  आयुर्वेद में पीतल के बर्तनो  को भगवान धनवंतरि का अतिप्रिय बताया गया है।  महाभारत में वर्णित एक वृतांत के अनुसार सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदान स्वरुप दिया था जिसकी विशेषता थी कि जब तक द्रोपदी स्वयं उस पात्र में  से भोजन नहीं कर लेती थी  तब तक द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दे खाना कभी  घटता नहीं था ।
पीतल के बर्तनो  का महत्व ज्योतिष व धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है। रहस्यमयी लाल किताब  के अनुसार सुवर्ण व पीतल की ही भांती पीला रंग  बृहस्पति /  उगते  सूर्य को संबोधित करता है तथा रहस्यमयी लाल किताब  के अनुसार पीतल पर गुरु  और सूर्य  का अधिपत्य होता है। गुरु  ग्रह की शाति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र  के अनुसार ग्रह शांति व ज्योतिष अनुष्ठानो में दान हेतु भी पीतल के बर्तन दिए जाते हैं। पीतल के बर्तनों का कर्म काड में भी अत्यधिक महत्व है। वैवाहिक कार्य में वेदी पढने हेतु व कन्यादान के समय पीतल का कलश प्रयोग किया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढाने हेतु भी पीतल के कलश का उपयोग किया जाता है
भारत के कई क्षेत्रों में आज भी सनातन धर्मी जन्म से लेकर मृत्यु के उपरांत तक पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। स्थानिक मान्यताओं के अनुसार बालक के जन्म पर नाल छेदन करने के उपरांत पीतल की थाली को लोहे की छूरी से पीटा जाता है। मान्यता है कि इससे पितृगण को सूचित किया जाता है कि आपके कूल में जल और पिंड दान करने वाले वंशज का जन्म हो चूका है। मृत्यु के उपरात अंंत्येष्टि क्रिया के दसवें दिन अस्थी विसर्जन के उपरांत नारायणवली व पीपल पर पितृ जलांजलि मात्र पीतल के कलश से दी जाती है। मृत्यु संस्कार के अंत में बारहवें दिन त्रिपिंडी श्राद्ध व पिंडदान के बाद बारवीं के शुद्धि हवन व गंगा प्रसादी से पहले पीतल के कलश में सोने का टुकड़ा व गंगा जल भरकर पूरे घर को पवित्र किया जाता है।
रहस्य्मयी लाल किताब के रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान के अनुसार   जिन लोगो की जन्मकुंडली में गुरु और सूर्य ग्रह का योग हो या सूर्य और गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में हो और उनको गुरु और सूर्य ग्रह का फल पूर्ण रूप से न  मिल रहा हो उन सभी को खाना पीतल के बर्तनो में खाना चाहिए ।  रहस्य्मयी लाल किताब के रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान के अनुसार जिनकी जन्मकुंडली में गुरु और सूर्य ग्रह अशुभ होता है अशुभ घरो में बैठे हो या उनको  उनके शत्रु ग्रह देख रहे हो और वो किसी तरह से 6 - 8 और तीसरे  घर से लिंक  कर रहे हो और और उनके अपने घर भी ख़राब हो रहे हो तो  गुरु और सूर्य ग्रह  अशुभ होता है। उन जातको को सांस ,छाती ,अस्ति-पिंजर/ हड्डियों के रोग ज्यादा होने की संभावना होती है ।और उन जातको के  रोगो का उपचार जल्दी नहीं होता है। उन जातको के परिवार में सांस ,छाती ,दिल , हड्डियों के रोग किसी न किसी को हमेशा रहते हैं  ऐसे जातको को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वो जब भी अपने रोग उपचार हेतु  दवाई का प्रयोग करे तो पीतल के बर्तनो का प्रयोग जरूर करे ऐसा करने से रोग निवारण जल्दी होगा वो जल्दी तंदरुस्त होंगे  ।  
पीतल के बर्तन घर में रखना शुभ मना जाता है। सेहत की दृष्टि से पीतल के बर्तनों में बना भोजन स्वादिष्ट व्  तुष्टि-पुष्टि देता  है तथा इससे आरोग्यता और शरीर को तेज प्राप्त होता है। पीतल का बर्तन जल्दी गर्म होता है जिससे गैस तथा अन्य ऊर्जा की बचत होती है। पीतल का बर्तन दुसरे बर्तन से ज्यादा मजबूत और जल्दी न टूटने वालीं  धातु है। पीतल के कलश में रखा जल अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है। पीतल पीले रंग के होने से हमारी आंखों के लिए टॉनिक का काम करता है। पीतल का उपयोग थाली, कटोरे, गिलास, लोटे, गागर ,  देवताओं को मूर्तियां व सिंहासन, घटे, , ताले, पानी की टूटियां  , मकानों में लगने वाले सामान और गरीबों के लिए गहने बनाने में होता है। यह गरीबों का सोना है आज भी बहुत से घरों में पीतल के गहने ,पीतल की मूर्तियां और पीतल का सामान बहुत ही सभाल कर रखा जाता है और बहुत से परिवार ऐसे भी है  जोकि अपनी बेटियों को विवाह / शादी में आज भी पीतल के बर्तन देते है ।
1. जिन लोगो की जन्मकुंडली में गुरु और सूर्य ग्रह का योग हो या सूर्य और गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में हो और उनको गुरु और सूर्य ग्रह का फल पूर्ण रूप से न  मिल रहा हो उन सभी को खाना पीतल के बर्तनो में खाना चाहिए .
2. लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु "वैभव लक्ष्मी" का पूजन कर पीतल के दिए में शुभ घी का दीपक करें।
3. सौभाग्य प्राप्ति हेतु पीतल के कलश में चना दाल भरकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं।
4. घर में पीतल के बर्तन में खट्टे पदार्थ कभी न रखें
5. घर में पीतल के बर्तन पेटी /संदूक में  न रखे .
भाग्यौोदय हेतु पीतल की कटोरी में चना दाल भिगोकर रात भर सिरहाने रखें व सुबह चना दाल पर गुड़ रखकर गाय को खिलाएं।
6. घर में रखे हुए  बड़े बड़े पीतल के बर्तनो को  खाली व् उल्टा करके न रखे
7.  घर में पीतल के बर्तनों का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करे
8.   गुरु और सूर्य ग्रह जिनकी जन्मकुंडली  में अशुभ होता है। उन जातको को सांस ,छाती , हड्डियों के रोग ज्यादा होने की संभावना होती है ।और रोगो का उपचार जल्दी नहीं होता है। ऐसे जातको को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वो जब भी अपने रोग उपचार हेतु  दवाई का प्रयोग करे तो पीतल के बर्तनो का प्रयोग जरूर करे ऐसा करने से रोग निवारण जल्दी होगा वो जल्दी तंदरुस्त होंगे  ।
 PAWAN KUMAR VERMA ( B.A.,D.P.I.,LL.B.)
                         RESEARCH  ASTROLOGER
                                          GOLD MEDALIST



LUDHIANA ,PUNJAB , INDIA
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