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Friday 22 July 2022

शिव को शंख से जल......


*शिव को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाया जाता?*

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शिवपुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने भगवान विष्णु के लिए कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोको के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्तु बोलकर अंतर्ध्यान हो गए। तब दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचुड ने पुष्कर में ब्रह्माजी के निमित्त घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा तब शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दिया। 


साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतर्ध्यान हो गए।ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब श्री विष्णु ने ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया। 


इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।


      || हर हर महादेव शंभो ||

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*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379.  www.astropawankv.com*

Wednesday 13 July 2022

गुरू पूर्णिमा पर्व

 *गुरू पूर्णिमा पर्व*


इस वर्ष गुरु पूर्णिमा  का पर्व 13 जुलाई को मनाया जायेगा।

  गुरु पूर्णिमा कब होती है।

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             आषाढ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा कहा जाता है।

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             चातुर्मास के चार मास तक प्रवाचक,  साधु संत एक ही स्थान पर रह कर ज्ञान गंगा बहाते है। चातुर्मास के चार मास मौसम के अनुसार भी सर्वश्रेष्ठ होते है  अध्यन के लिए भी सर्वश्रेष्ठ माने गये है। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है उसी प्रकार गुरु चरणो मे  उपस्थित साधक को ग्यान शक्ति   और भक्ति प्राप्त होती है।

गुरु पूर्णिमा किस के नाम पर मनायी जाती है।

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         गुरु पूर्णिमा गुरु की पूजा अर्चना के लिए विशेषतः मनायी जाती है। महाभारत के रचियता कृष्ण द्वैपायन का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुवा था। कृष्ण द्वैपायन संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे और चारो वेदो के रचियता भी कृष्ण द्वैपायन ही थे इस लिए इनको में वेद व्यास भी कहा जाता है। कृष्ण द्वैपायन के सम्मान में इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। भक्ति काल में संत कबीर के शिष्य श्री घासी दास का जन्म भी इसी दिन हुवा था।

शास्त्रो के अनुसार गुरु का अर्थ।

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                शास्त्रो के अनुसार गु का अर्थ- अंधकार मूल अज्ञान और रु का अर्थ- निरोधक अर्थात अंधकार हटाकर प्रकाश की ओर लेजाने वाले को ही गुरु कहते है।

 गुरु का महत्व।

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             गुरु के विना ज्ञान नही मिल सकता है। गुरु को पाने के लिए भी उतनी ही तपस्या करनी पडती है जितनी ईश्वर को पाने के लिए।  सच्चा गुरु ही हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ला सकता है। संत कबीर दास जी ने गुरु को ईश्वर से भी बडा निम्न दोहे  में बताया है।

*"गुरु गोबिन्द दोऊ खडे, काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपने, गोबिन्द दिये बताय।।"*

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*Scientific Astrology & Vastu Research Astrologer's Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.) &  Monita Verma Astro Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone...9417311379*