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Tuesday 31 October 2023

करवा चौथ व्रत कथा, व्रत विधि सहित

 राम राम जी*

*करवा चौथ 2023*

*करवा चौथ :-   व्रत कथा, व्रत विधि सहित*

करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार करवा चौथ के दिन व्रत रखने से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। इससे आयु में वृद्धि होती है और इस दिन गणेश तथा शिव-पार्वती और चंद्रमा की पूजा की जाती है।




विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।




करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है। करवा चौथ दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। करवा चौथ के चार दिन बाद पुत्रों की दीर्घ आयु और समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत किया जाता है।




*करवा चौथ कब होता है?*


करवा चौथ  का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन चौथ माता की पूजा अर्चना और व्रत वैसे तो पुरे ही भारत में रखा जाता है लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारतीय लोग वृहद स्तर पर करवा चौथ का व्रत रखते हैं और विधिविधान से पूजा करते हैं।




उत्तर भारत में विशेष कर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और पंजाब में भी बहुत ही हर्ष के साथ व्रत रखकर करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। इस पावन अवसर पर दिन में कहानी सुनी जाती है और रात्रि के समय चाँद को देखने के उपरान्त स्त्रियाँ अपने पति के हाथो से पानी पीकर / खाना ग्रहण करके व्रत खोलती हैं। करवा चौथ का यह व्रत पति की लम्बी आयु, स्वास्थ्य और सुखद वैवाहिक जीवन के उद्देश्य से किया जाता है।



करवा चौथ व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन कर सकती हैं।



*करवा चौथ व्रत कथा:*


बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।




जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।




सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।




वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।




अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।




वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।


इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। और अंत में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।




*करवा चौथ व्रत विधि :-*


नैवेद्य : आप शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य के रूप में उपयोग में ले।




करवा : काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे उपयोग किया जा सकता है। 




करवा चौथ पूजन के लिए मंत्र : ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चन्द्रदेव का पूजन करें।




*करवा चौथ की थाली :* करवा चौथ की रात्रि के समय चाँद देखने के लिए आप पहले से ही थाली को सजाकर रख लेवे। थाली में आप निम्न सामग्री को रखें। 




•दीपक 


•करवा चौथ का कलश (ताम्बे का कलश इसके लिए श्रेष्ठ होता है )


•छलनी


•कलश को ढकने के लिए वस्त्र


•मिठाई या ड्राई फ्रूट


•चन्दन और धुप


•मोली और गुड/चूरमा


•व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 


*मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।*




पूरे दिन निर्जला रहें।


दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।




●आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।


पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।


गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।




*जल से भरा हुआ लोटा रखें।*


*वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का  करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें।à उसके ऊपर दक्षिणा रखें।*


*रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।*




*गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।*




*नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं *संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥*’




*करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।*


कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।


तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या करवा अलग रख लें।


रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।


इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।


पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।



*करवा चौथ में सरगी*


पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं।


इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।



*क्या अविवाहित करवा चौथ व्रत रख सकते हैं?* 


करवा चौथ का व्रत शादीशुदा स्त्रियों के द्वारा ही रखा जाता है। इसके लिए आप अपने घर में बड़ी बुजुर्ग स्त्रियों की सलाह जरूर लेवे क्यों कि कुछ परिवारों में अच्छे वर के लिए कुंवारी लड़किया भी यह व्रत रखती हैं। 




*करवा चौथ व्रत में हम क्या खा सकते हैं?*


कुछ परिवारों में अल्पाहार के लिए फल का उपयोग किया जाता है लेकिन इस व्रत को  निर्जला करना अधिक लाभदायी होता है। 




*क्या आप करवा चौथ पर पानी पी सकते हैं?* 


नहीं, क्यों कि यह निर्जला व्रत होता है इसलिए इस दिन ना तो कुछ खाया जाता है और ना ही पानी ग्रहण किया जाता है। 


*नोट* बीमार, वृद्ध, अपनी अपनी अपनी आवश्यकता  अनुसार ब परिवारों की परंपरा के अनुसार खाने के लिए कुछ न कुछ ग्रहण कर सकते हैं।


*सरगी खाने का सही समय क्या है?* 


वैसे तो इस व्रत को आप निर्जला करे तो उचित रहेगाअन्यथा अपनी परम्पराओं के अनुसार सरगी का उपयोग करे जिसके लिए सूर्योदय से पूर्व ( प्रातः चार से पांच बाते ) तक का समय अनुकूल होता है।




*करवा चौथ पर किस भगवान की पूजा की जाती है?*


•चौथ माता की पूजा के साथ आप माता पार्वती जी की पूजा करें और शिव, गणेश, और कार्तिकेय जी की  और चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करे।


*राम राम जी*

🙏🙏


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करवा चौथ व्रत क्यों रखूं...

 *करवा चौथ*


 *राम राम जी*


*मैं करवाचौथ पर व्रत क्यों रखूंगी ?*     


.....


 क्योंकि यह मेरा तरीका है आभार व्यक्त करने का उस के प्रति जो हमारे लिए सब कुछ करता है। मैं व्रत करूंगी बिना किसी पूर्वाग्रह के , अपनी ख़ुशी से। 




*अन्न जल त्याग क्यों ?*


....


क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता अन्न जल जैसी बहुत महत्वपूर्ण वस्तु से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। यह मुझे याद दिलाता है कि हमारा रिश्ता किसी भी चीज़ से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह मेरे जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के होने की ख़ुशी को मनाने का तरीका है। 




*सजना सवरना क्यों ?*  


.....


मेरे भूले हुए गहने साल में एक बार बाहर आते हैं। मंगलसूत्र , गर्व और निष्ठा से पहना जाता है। मेरे जीवन में मेहँदी , सिन्दूर ,चूड़ियां उनके आने से है तो यह सब मेरे लिए अमूल्य है। यह सब हमारे भव्य  संस्कारों और संस्कृति का हिस्सा हैं। शास्त्र दुल्हन के लिए सोलह सिंगार की बात करते हैं। इस दिन सोलह सिंगार कर के फिर से दुल्हन बन जाईये।  विवाहित जीवन फिर से खिल उठेगा। 


...


*कथा क्यों और वही एक कथा क्यों ?*


...


एक आम जीव और एक दिव्य चरित्र देखिये कैसे इस कथा में एक हो जाते हैं। पुराना भोलापन कैसे फिर से बोला और पढ़ा जाता है , इसमें तर्क  से अधिक आप परंपरा के समक्ष सर झुकाती हैं। हम सब जानते हैं लॉजिक हमेशा काम नहीं करता। कहीं न कहीं  किसी चमत्कार की गुंजाईश हमेशा रहती है। वैसे भी तर्क के साथ  दिव्य चमत्कार की आशा किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाती।  


.......?




*मेरे पति को भी व्रत करना चाहिए ?*    




.....


यह उनकी इच्छा है वैसे वो तो मुझे भी मना करते हैं। या खुद भी रखना चाहते हैं   ..मगर यह मेरा दिन है और सिर्फ मुझे ही वो लाड़ चाहिए। इनके साथ लाड़ बाँटूंगी नहीं इनसे लूंगी। 


........


*भूख , प्यास कैसे नियंत्रित करोगी ?*  


.......


कभी कर के देखो क्या सुख मिलता है। कैसे आप पूरे खाली होकर फिर भरते हो इसका मज़ा वही जानता है , जिसने किया हो। 




*चन्द्रमा की प्रतीक्षा क्यों ?*


.....


असल  मे यही एक रात है जब मैं प्रकृति को अनुभव करती हूँ। हमारी भागती शहरी ज़िन्दगी में कब समय मिलता है कि चन्द्रमा को देखूं। इस दिन समझ आता है कि चाँद सी सुन्दर क्यों कहा गया था मुझे। 






*सभी को करवाचौथ की अग्रिम शुभकामनायें। आपका विवाहित जीवन आपकी आत्मा को पोषित करे और आपके जीवनसाथी का विचार आपके मुख पर सदैव मीठी मुस्कान लाये। अपने पति के लिए स्वास्थय एवं लम्बी आयु की कामना अवश्य करें। याद रखें  यह देश सावित्री जैसी देवियों का है जो मृत्यु से भी अपने पति को खींच लायी थी ,,,,,,,,,,,,, कुतर्कों पर मत जाईये अंदर की श्रद्धा को जगाईये !*


🙏🙏


*राम राम जी*




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Friday 27 October 2023

शरद् पूर्णिमा की खीर और चंद्र ग्रहण

 *शरद् पूर्णिमा की खीर  और चंद्र ग्रहण*


*ग्रहण का सूतक काल , खीर बनाने का समय ...व  शरद् पूर्णिमा की खीर का महत्व ......*


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*कब है शरद् पूर्णिमा 2023…* 


शरद् पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 28 अक्टूबर, शनिवार, प्रात: 04:17 बजे से…

शरद् पूर्णिमा तिथि का समापन: 29 अक्टूबर, रविवार, 01:53  पर…

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 *कब है चंद्र ग्रहण 2023…!?* 


साल का अंतिम चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय: 28 अक्टूबर, देर रात 01:06 बजे‌… 

चंद्र ग्रहण समापन समय: 28 अक्टूबर, मध्य रात्रि 02:22 बजे

सूतक काल का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 02:52 बजे से लेकर मध्य रात्रि 02:22 बजे तक…


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*चंद्र ग्रहण के समय न रखें शरद पूर्णिमा की खीर, इस गलती से बचें…* 


28 अक्टूबर को शरद् पूर्णिमा है और उस दिन चंद्र ग्रहण का सूतक काल दोपहर से प्रारंभ है. यदि आप इस दिन खीर बनाकर रखते हैं तो वह दूषित हो जाएगा. सूतक काल के पूर्व आप खीर बना लेते हैं तो भी वह ग्रहण से दूषित होगा. उसे आप ग्रहण के बाद चंद्रमा की रोशनी में रखकर नहीं खा सकते हैं. दूषित खीर आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.


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 *शरद् पूर्णिमा 2023 खीर रखने का सही समय…* 


आप शरद पूर्णिमा की खीर चतुर्दशी की रात यानि 27 अक्टूबर शुक्रवार की रात बना लें. फिर 28 अक्टूबर को जब शरद पूर्णिमा की तिथि प्रात: 04:17 बजे से शुरू हो तो उस समय उस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रख दें. उस दिन चंद्रास्त लगभग प्रात: 04:42 पर होगा. .चंद्रास्त के बाद उस खीर को खा सकते हैं. 28 अक्टूबर के प्रात: पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की औषधियुक्त रोशनी प्राप्त हो जाएगी.


दूसरा विकल्प यह है कि आप 28 अक्टूबर के मध्य रात्रि चंद्र ग्रहण के बाद खीर बनाएं और उसे खुले आसमान के नीचे रख दें ताकि उसमें चंद्रमा की रोशनी पड़े. बाद में उस खीर को खा सकते हैं.


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*शरद पूर्णिमा की खीर का महत्व…* 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होकर आलोकित होता है. इस वजह से उसकी किरणों में अमृत के समान औषधीय गुण होते हैं. जब हम शरद पूर्णिमा की रात खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं तो उसमें चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं, जिससे वह खीर औषधीय गुणों वाला हो जाता है. खीर की सामग्री में दूध, चावल  चंद्रमा से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं, इसके सेवन से मौसम में हुई तब्दीली से शरीर में होने वाले शीतकालीन प्रभाव मलेरिया बुखार, इत्यादि से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, साथ ही कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है. 

अधिक जानकारी के लिए ब अपनी जन्मकुंडली बनवाने ब दिखाने के लिए ओर अपने उपाय परहेज़ जानने के लिए मिलें...


*राम राम जी*


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Thursday 26 October 2023

चंद्र ग्रहण काल में क्या करें क्या न करें जानें उपाय परहेज़...

 *⚫ चंद्र - ग्रहण ⚫* 

*28 अक्टूबर 2023 शनिवार*


*चंद्र ग्रहण काल में उपाय परहेज़*


चंद्रग्रहण सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण घटना है। साल का अंतिम चंद्रग्रहण शरद पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है ऐसे में इस दिन ग्रहण लगना बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण मेष राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण का असर सभी राशियों पर दिखाई देने वाला है।


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*▪️चंद्र-ग्रहण सूतक काल का समय-:* 

चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर 2023, शनिवार देर रात 1 बजकर 5 मिनट से लेकर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यानी यह ग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का सूतक काल भारत में मान्य होगा।


*▪️चंद्र ग्रहण का समय-:* 

चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पूर्व से शुरु हो जाता है अतः भारतीय समय अनुसार, चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर आरंभ हो जाएगा। इस ग्रहण में चंद्रबिम्ब दक्षिण की तरफ से ग्रस्त होगा।


*▪️देश और दुनिया में कहां- कहां दिखाई देगा ग्रहण-:* 

चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील , एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।


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*▪️सूतक काल में न करें ये काम-:* 


चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा। इस दौरान आपको किसी प्रकार का मांगलिक कार्य,  हवन और भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय आप सभी अपने अपने गुरु मंत्र, भगवान जी का नाम जप, श्रीहनुमान चालीसा कर सकते हैं।


 चंद्र ग्रहण- सूतक काल के दौरान भोजन बनाना व भोजन करना भी उचित नहीं है। हालांकि, सूतक काल में गर्भवती स्त्री, बच्चे, वृद्ध जन  बीमार जन को आवश्यक हो तो वो भोजन कर सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें दोष नहीं लगेगा। ध्यान रखें की सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने पीने की चीजों में तुलसी के दो - दो पत्ते डाल दें। इसके अलावा आप इसमें कुशा भी डाल सकते हैं।

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*▪️चंद्र ग्रहण पुण्य काल में उपाय परहेज़-:*

 चंद्र, ग्रहण से मुक्त होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि का विशेष महत्व है। अतः 29 अक्टूबर, सुबह स्नान के बाद भगवान की पूजा उपासना, दान पुण्य करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। और अपनी अपनी जन्मकुंडली के ग्रह, राशि, नक्षत्रों के अनुसार जो भी उपाय परहेज़ हों उन्हें अवश्य करें और चन्द्र ग्रह के दोष निवारण के उपाय परहेज़ जन्मकुंडली ब वर्ष कुंडली के अनुसार जो भी हो उन्हें ग्रहण काल के बाद अवश्य करें।


           *Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)& Monita Verma Astro Vastu.....Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379. www.astropawankv.com*



Tuesday 24 October 2023

विजया दशमी.. दशहरा

 

_अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय,पाप पर पुण्य की विजय, अत्याचार पर सदाचार की विजय,क्रोध पर ....दया - क्षमा की विजय,अज्ञान पर ....ज्ञान की विजय, रावण पर श्रीराम की विजय के प्रतीक पावन पर्व_ दशहरा की आपको और आपके परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...._

                           🙏

विजया दशमी 

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दशहरा यानी विजयादशमी का त्योहार आज 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा।दशहरे के दिन ही भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।इसी दिन देवी मां की प्रतिमा विसर्जन भी होता है। इस दिन अस्त्र शस्त्रों की पूजा की जाती है और विजय पर्व मनाया जाता है।


कैसे मनाएं दशहरा? 

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इस दिन सबसे पहले देवी और फिर भगवान राम की पूजा करें। पूजा के बाद देवी और प्रभु राम के मंत्रों का जाप करें। अगर कलश की स्थापना की है तो नारियल हटा लें। उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।कलश का जल पूरे घर में छिड़कें। ताकि घर की नकारात्मकता समाप्त हो जाए। जिस जगह आपने नवरात्रि मे पूजा की है, उस स्थान पर रात भर दीपक जलाएं। अगर आप शस्त्र पूजा करना चाहते हैं तो उस पर तिलक लगाकर रक्षा सूत्र बांधें।


तिथि और मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल दशमी तिथि 23 अक्टूबर शाम 5 बजकर 44 मिनट से 24 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के चलते 24 अक्टूबर को विजयदशमी मनाई जाएगी। इस दिन सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा।  फिर दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 2 बजकर 43 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा। पूजा के लिए ये दोनों ही मुहूर्त शुभ हैं।


   || विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||






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Monday 23 October 2023

नवरात्रि महोत्सव...

 नवरात्री पर्व का छटा दिन


नवरात्री पर्व का सातवां दिन


नवरात्री पर्व का आठवां दिन



नवरात्री पर्व का नौवां दिन



नवरात्रि महोत्सव का पांचवा दिन


चौथा दिन


तीसरा दिन


नवरात्रि पर्व का दूसरा दिन





नवरात्रि का प्रथम दिन






Wednesday 11 October 2023

काम, लोभ, क्रोध

काम' की दो दिशाएँ हैं -

एक है 'लोभ' और दूसरी है 'क्रोध'। ।।

    

     काम के द्वारा उत्पत्ति की, लोभ के द्वारा पालन की और क्रोध के द्वारा संहार की प्रक्रिया चलती है और इन तीनों प्रक्रियाओं से सृष्टि संचालित होती है। तो, जिस प्रकार सृष्टि के मूल में ये तीनों तत्त्व विद्यमान हैं, उसी प्रकार व्यक्ति के मन के मूल में भी। जब ये तीनों सन्तुलित रूप में विद्यमान रहते हैं, तब व्यक्ति और समाज स्वस्थ रहते हैं, पर जब इनमें से एक की भी प्रबलता होती है, तब असन्तुलन पैदा हो जाता हैं और यह विकृति व्यक्ति को, समाज को अस्वस्थ बना देती है।

      'रामचरितमानस' में श्री राम को तो ईश्वर का पुर्णावतार निरूपित किया है, पर परशुरामजी को अंशावतार। फिर उन्हें और कुछ नीचे उतारकर 'आवेशावतार' कहकर अपूर्णावतार बताया गया है। एक ओर तो उन्हें ईश्वर का अवतार कहा गया और दूसरी ओर उनके साथ अपूर्णता जोड़ दी गयी। यह एक विचित्र विरोधाभास-सा प्रतीत होता है। पौराणिक भाषा में इसे यों रखा गया है कि भगवान्‌ राम के चरित्र में जिस परिपूर्णता के दर्शन होते हैं , वह परशुराम के चरित्र में विद्यमान नहीं हैं। यद्यपि उनका चरित्र महान्‌ है और उनके जीवन में उत्कृष्ट गुण विद्यमान हैं, किन्तु ऐसे उच्च पद के अधिकारी होते हुए भी उनके जीवन में अपूर्णता दिखायी देती है। वैसे तो वे काम और लोभ की विकृतियों के विजेता हैं -- न तो उनके जीवन में कभी काम दिखता है, न सत्ता पर अधिकार करने का प्रलोभन, परन्तु वे क्रोध को नहीं जीत सके। उनमें क्रोध की यह जो विकृति है, वही उनके चरित्र को अपूर्ण बना देती है। भगवान्‌ राम और लक्ष्मणजी का उनसे जो वार्तालाप है, उसका उद्देश्य मुख्यतः उनकी क्रोध की विकृति को दूर कर देना है । इसी प्रकार अनेक व्यक्ति होते हैं, जो उत्कृष्ट गुणसम्पन्न होते हुए भी काम या क्रोध या लोभ के अतिरेक के कारण असन्तुलित हो जाते हैं, और व्यक्ति की अस्वस्थता के फलस्वरूप समाज भी अस्वस्थ हो जाता है, वयोंकि मानस-रोगों में बड़ी संक्रामकता होती है।

    शारीरिक और मानसिक रोगों में जैसे कुछ साम्य है, वैसे ही भिन्नता भी। शारीरिक रोगों में कुछ तो छूत के होते हैं और शेष छूत के नहीं। रोगी के पास बैठने से छूत के रोग स्वस्थ व्यक्ति को भी लग जाते हे, पर जो छूत के रोगी नहीं हैं उनके पास बैठने पर यह बात लागू नहीं होती। किन्तु मानस-रोगों के सन्दर्भ में ऐसा विभेद नहीं है, वहाँ तो सारे रोग छूत के हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का संग करेगा, उसमें भी किसी न किसी प्रकार की रुग्णता आ ही जाएगी। उदाहरणार्थ ,परशुराम तो क्रोध के अतिरेक के कारण अस्वस्थ थे ही, उन्होंने अपने क्रोध से अपने समीप आनेवाले लोगों को भयान्वित कर समाज को अस्वस्थ बना दिया । तब ईश्वर के ऐसे अवतार का प्रयोजन हुआ, जिसमें किसी प्रकार की अपूर्णता न हो, जिसके जीवन में सन्तुलन और समग्रता हो, और ऐसा अवतार हमें श्री राम के रूप में प्राप्त होता हैं। 'रामचरितमानस' में इस बात को कई दृष्टान्तों के माध्यम, से स्पष्ट किया गया है। 

     जैसे एक नदी है। नदी का जल जीवनदायी है। उसके अनेक उपयोग हैं। उसमें हम स्नान करत हैं, वस्त्र स्वच्छ करते हैं, खेत की सिंचाई करते हैं। पर यदि उस जल में अतिरेक हो गया यानी बाढ़ आ गयी, तो वही कल्याणकारी होने के बदलें दुःखदायी हो जाता है। इसी प्रकार व्यक्ति की स्वस्थता जो सब सम्बन्धित जनों को सुख देती है, वैसे ही उसकी अस्वस्थता उनके लिए दु:खदायी बन जाती है। जब साधारण व्यक्ति असन्तुलित होता है, तब परिवार में दुःख की सृष्टि करता है, पर विशिष्ट व्यक्ति का असन्तुलन तो सारे समाज को अस्वस्थ बना देता है, क्योंकि उसका सम्बन्ध सारे समाज से होता है। 'रामचरितमानस' में त्रिदोष के माध्यम से यही स्पष्ट करने की चेष्टा की गयी है कि व्यक्ति और समाज के जीवन में इन त्रिदोषों को कैसे सन्तुलित रखा जाय।

     इस सन्दर्भ में मैं आपको आयुर्वेद की और एक मान्यता बता दूँ। वह यह है कि भले ही व्यक्ति के शरीर में कफ, वात और पित्त ये तीन धातुएँ मुख्य है, तथापि उनमें कफ और पित्त स्वयं गतिशील नहीं हैं, अपितु वात ही इन दोनों को गति प्रदान करता हैं। महर्षि चरक के सामने जब यह प्रश्न किया गया कि कफ, वात और पित्त में किसे प्रमुखता दें, तो उन्होंने उत्तर में वात की मुख्यता ही प्रतिपादित की। तभी तो आयुर्वेदशास्त्र कफ और पित्त की चिकित्सा सरल मानता है, लेकिन वात की चिकित्सा को बड़ा कठिन। वात ही शरीर की अन्य धातुओं को सक्रिय बनाता है, इसलिए वही सारी विकृतियों के मूल में है। इस वात को नियंत्रित कर शरीर को स्वस्थ रखना कठिन कार्य है। इसी प्रकार मानस-रोगों के सन्दर्भ में लोभ और क्रोध की चिकित्सा तो अपेक्षाकृत सरल है, पर काम की चिकित्सा बड़ी कठिन है। 'रामचरितमानस' में विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि लोभ और क्रोध के मूल में भी कहीं न कहीं पर काम ही विद्यमान है। यहाँ पर हमें 'काम' को व्यापक अर्थों में लेना होगा। सभी प्रकार की कामना को हम 'काम' कह सकते हैं। इस 'काम' की दो दिशाएँ हैं -- एक है 'लोभ' और दूसरी है 'क्रोध'। जब मनुष्य के मन में काम का जन्म होता है और जब उस कामना की पूर्ति होती है, तब उसके भीतर लोभ जन्म लेता है। काम की पूर्ति से मनुष्य को सन्तोष नहीं होता, अपितु उसकी इच्छा बढ़ती जाती है। कहा भी तो है -- 'जौ दस बीस पचास मिले सत होय हजारन लाखन की।' दूसरी ओर, यदि कामना को पूर्ति में बाधा आएगी, तो व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न होगा। इस प्रकार जो कामना मूल में है, उसी का परिणाम होता है लोभ या फिर क्रोध। तभी तो भगवान्‌ श्रीकृष्ण 'गीता' में काम का परिणाम लोभ न बताकर सीधे क्रोध ही बताते हैं, कहते हैं -- 'संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधोध्भिजायत' (२/६२) 'संग से कामना उत्पन्न होती है और कामना से क्रोध जन्म लेता है।' लगता है कि बीच की कड़ी टूटी हुई है। यह भी तो वे कह सकते थ -- 'कामात्‌ लोभोधभिजायते' । पर वह न कह वे कामना से क्रोध उत्पन्न होने की बात कहते हैं। कारण यह है कि व्यक्ति के मन में जब लोभ की वृत्ति उत्पन्न होगी, तो वह कभी सन्तुष्ट तो होगी नहीं, और असन्तोष क्रोध को ही जन्म देगा। इसीलिए उन्होंने काम के पश्चात्‌ सीधे क्रोध के ही उत्पन्न होने को बात कही। 

*राम राम जी*

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Thursday 5 October 2023

पितरों को भोजन कैसे मिलता है...?

 || पितरों को भोजन कैसे मिलता है ?||

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प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित

     की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? 


कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न- भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से या ब्राह्मण को भोजन करने से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है?


इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत

         सुन्दर समाधान मिलता है

 

एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?'

 

भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।


वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। 5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति-इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।

 

पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व- जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।

 

किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार?

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नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। 


यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां

    दिया गया अन्न उन्हें 'अमृत' होकर प्राप्त होता है। 


यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न 

    उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। 


यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न 

        तृण के रूप में प्राप्त होता है। 


नाग योनि में वायु रूप से, 


यक्ष योनि में पान रूप से, 


राक्षस योनि में आमिष रूप में, 


दानव योनि में मांस रूप में, 


प्रेत योनि में रुधिर रूप में 


और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य

     तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।

 

जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं।जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।

 

श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं-

 

मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे मैं आपको बताती हूं। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती? इसलिए मैं ओट में हो गई।'

 

तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

 

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न- श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।

 

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।

   पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।*

             (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

 

यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध करने 

       से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ-

 

 श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।


पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर

        वंश का विस्तार करते हैं।


परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।


श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष

   की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।


पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य

    आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।


श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश

  नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।


     || सर्व पितरों को नमन और प्रणाम ||




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