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Saturday 20 April 2024

ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है..

 * *ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है*

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अश्वथामा और अर्जुन ने छोड़ दिए थे ब्रह्मास्त्र, इसके बाद 

  अधूरे ज्ञान की वजह से अश्वथामा को मिला शाप-


किसी भी काम में सफलता चाहते हैं तो उस काम से जुड़ा पूरा ज्ञान हमें होना चाहिए, तभी काम में सफलता मिल सकती है। अगर अधूरे ज्ञान के साथ कोई काम करेंगे तो ये हमारे लिए नुकसान दायक हो सकता है। महाभारत के एक प्रसंग से समझ सकते हैं कि हमारे लिए अधूरा ज्ञान कितना खतरनाक हो सकता है... अश्वथामा को था ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान महाभारत युद्ध के बाद का प्रसंग है। दुर्योधन ने मृत्यु से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का आखिरी सेनापति नियुक्त किया।


 उसने पांडवों के पांच पुत्रों, धृष्टधुम्र, शिखंडी सहित कई योद्धाओं को अकेले ही मार दिया। इसके बाद भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। अर्जुन भी उसके वध का प्रण कर घूम रहा था। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों के गुरु द्रौणाचार्य थे। सभी शस्त्रों के संधान में दोनों ही कुशल थे। युद्ध भयानक होता जा रहा था। अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा। दोनों अस्त्रों से पूरी धरती और मानव जाति का विनाश हो जाता। ये देखकर वेद व्यास बीच में आए और उन्होंने दोनों ब्रह्मास्त्रों को रोक दिया।


अर्जुन और अश्वत्थामा दोनों को ही उन्होंने बहुत समझाया। दोनों को अपने-अपने अस्त्र वापस लेने को कहा, अर्जुन ने व्यासजी का कहा मानकर तुरंत अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लिया। वेद व्यास ने जब उससे पूछा कि तुमने अपना अस्त्र वापस क्यों नहीं लिया, तो उसने जवाब दिया कि मुझे ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाने की विद्या का ज्ञान नहीं है। वेद व्यास बहुत क्रोधित हुए और कहा कि तुम्हें जिस विद्या का पूरा ज्ञान नहीं है उसका उपयोग ही क्यों किया। ये पूरी सृष्टि के लिए खतरा है।  ऐसा कहकर उसे शाप भी दिया। यह प्रसंग बताता है कि विद्या कोई भी हो, हमें उसका संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। अगर हम विद्या हासिल करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो हमें इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


     || जय श्री कृष्ण जी ||


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Wednesday 17 April 2024

नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना 


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Tuesday 16 April 2024

नवरात्रि पर्व का आठवां दिन और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का आठवां दिन और मां की पूजा अर्चना...



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Monday 15 April 2024

नवरात्रि पर्व का सप्तम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का सप्तम दिवस और मां की पूजा अर्चना....


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Sunday 14 April 2024

नवरात्रि पर्व का छठा दिन

 नवरात्रि पर्व का छठा दिवस और मां की पूजा अर्चना...


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Saturday 13 April 2024

नवरात्रि पर्व का पंचम दिवस

नवरात्रि पर्व का पंचम दिवस..... मां की पूजा अर्चना...


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Friday 12 April 2024

नवरात्रि पर्व का चतुर्थ दिवस

 नवरात्रि पर्व का चतुर्थ दिवस पर मां की पूजा अर्चना 


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Tuesday 9 April 2024

विक्रम संवत 2081का शुभारंभ

 विक्रम संवत नववर्ष 2081 का शुभारंभ

               चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ 

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श्रीमद् दैवीयभागवत के अनुसार-

     नौ पूर्ण अंक माना जाता है।


नव दुर्गा,नवदा भक्ति, नवग्रह,नव शक्ति,नव संवत्सर,नव जीवन, नव यौवन, नव संकल्प, नव सृष्टि, ये सभी 9 के आकडे से संबंधित है।


 चैत्र नवरात्र का महत्व क्यों है-

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जहाँ तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है, क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदि शक्ति प्रकट हुई थी।और देवी के कहने से ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्णय का काम सुरू किया।इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू हुआ। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने पहला मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार जो भगवान राम का है वह चैत्र नवरात्रा में हुआ है।


धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है ऋतु के बदलने के समय रोग जिसे आसुरी शक्ति कहते है।उसका अंत करने हेतु हवन पुजन आदि होते है। और मौसम परिवर्तन के कारण उपवास भी किये जाते है।


आप सभी जन को नव विक्रम संवत् 2081की हार्दिक शुभकामनाएं। ये नववर्ष आपके एवं आपके परिजनों के लिए अत्यंत शुभ एवं मंगलदायक हो।


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           || जय माँ जगदम्बे ||

                  ✍

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Monday 8 April 2024

सोमवती अमावस्या

 *सोमवती अमावस्या 08 अप्रैल सोमवार को*


*इस दिन अपनी राश‍ि के अनुसार करें दान*

अमावस्या माह में एक बार ही आती है,अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव है,चैत्र सोमवती अमावस्या 08 अप्रैल सोमवार को है,जब अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इस दिन पितरों का पिंडदान और अन्य दान-पुण्य संबंधी कार्य किये जाते हैं,मनुष्य इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करेगा उसे हर तरह से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। उसे सभी प्रकार के रोग और दुखों से मुक्ति प्राप्त होगी। चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि 08 अप्रैल सोमवार सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 08 अप्रैल सोमवार रात्रि 11 बजकर 51 मिनट तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि 08 अप्रैल सोमवार को होगी। इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, एवं पवित्र नदियों में स्नान,दान करना शुभ रहेगा। अगर किसी कारण वश नदियों में स्नान ना कर सके तो घर में ही पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें और किसी गरीब को यथा शक्ति दान अवश्य करें,अमावस्या के दिन नदी या तालाब में जाकर मछली को आटे की गोलियां खिलाना भी बड़ा ही फलदायी बताया जाता है। 


*अमावस्या पर करे ये उपाय*


 अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। 


अमावस्या को शास्त्र में बहुत शुभ दिन माना जाता है। इस दिन ये कुछ उपाय करने से आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है। आपको शुभ फल प्राप्त होता है। जानें कुछ उपाय..


अमावस्या तिथि के दिन सूर्योदय काल में पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है।


 तिल, दूध और तिल से बनी मिठाइयों का दान दरिद्रता मिटाने वाला है। 


प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करें। ध्यान के साथ पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें। इस क्रिया को करते समय 'ॐ पितृभ्य: नम:' मंत्र का जाप करें। उसके बाद पितृसूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है।


अमावस्या के दिन सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 3 बार अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय 'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र का जाप करें। 


अमावस्या पर नीलकंठ स्तोत्र का पाठ, सर्पसूक्त पाठ, श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिवंगत की पसंदीदा मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए। 


नि:संतानों की कुंडली में संतान प्राप्ति के योग बन जाते हैं। राहू नीच रूप में यदि किसी के भाग्‍य वाले स्‍थान पर बैठा हो तो इस दिन किया गया व्रत इसके दुष्‍प्रभाव को नष्‍ट कर देता है।


शाम के समय घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में लाल रंग के धागे का उपयोग करें। 


गरीबी दूर करने, संतान की प्राप्ति के लिए, व्यवसाय में उन्नति के लिए चांदी का छोटा सा पीपल बनाकर दान करें।


अमावस्या के दिन कालसर्प दोष वालों को सुबह स्नान कर के चांदी के नाग-नागिन की पूजा करनी चाहिए। उजले फूल के साथ इसे फिर किसी बहते पानी में प्रवाहित करें।


भगवान विष्णु के मन्दिर में झंडा लगाएं,मां लक्ष्मी को खीर मेवा डाल कर  प्रसाद भोग लगाएं माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।


ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा को मन का देवता माना जाता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता। इसका प्रभाव सबसे अधिक उन्ही लोगों पर पड़ता है जो बहुत भावुक होते है। लड़कियों का मन सबसे अधिक भावुक होता है।


इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता जिसके कारण हमारे शरीर में हलचल होने लगती है।और जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाले होते है उन्हें नकरात्मक शक्ति प्रभाव में ले लेती है।


*अमावस्या के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें*।


अमावस्या के दिन  किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए,ब्रम्चार्य का पालन करना चाहिए,इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए, व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए,काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए,किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।


*सोमवती अमावस्या के दिन अपनी राश‍ि के अनुसार  करें दान* 


अमावस्या के दिन आपके द्वारा किया जाने वाला दान आपकी राशि से जुड़ा हो। राशि के अनुसार आपके लिए कौन सा दान फलदायी साबित होगा,यहां जानें -

 

मेष राशि के लोगों को गुड़, मूंगफली, तिल,तांबा की वस्तु, दही का दान देना चाहिए। 


वृषभ राशि के लोगों के लिए सफेद कपड़े,

चांदी और तिल का दान करना उपयुक्त रहेगा।


मिथुन राशि के लोग मूंग दाल, चावल,

पीला वस्त्र, गुड़ और कंबल का दान करें। 


कर्क राशि के लोगों के लिए चांदी, चावल,सफेद ऊन, तिल और सफेद वस्त्र का दान देना उचित है।


सिंह राशि के लोगों को तांबा,गुड़, गेंहू,गौमाता का घी, सोने और मोती दान करने चाहिए। 


कन्या राशि के लोगों को चावल, हरे मूंग या हरे कपड़े का दान देना चाहिए।


तुला राशि के जातकों को हीरे, चीनी या कंबल,गुड़, सात तरह के अनाज का देना चाहिए। 


वृश्चिक राशि के लोगों को मूंगा, लाल कपड़ा,लाल वस्त्र, दही और तिल दान करना चाहिए।


धनु राशि के जातकों को वस्‍त्र, चावल, तिल,पीला वस्त्र और गुड़ का दान करना चाहिए।


मकर राशि के लोगों को गुड़,चावल,कंबल, गुड़ और तिल दान करने चाहिए। 


कुंभ राशि के जातकों के लिए काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी,कंबल, घी और तिल का दान चाहिए। 


मीन राशि के लोगों को रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल,चना दाल और तिल दान देने चाहिए।

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Monday 1 April 2024

जय शीतला माता (सप्तमी अष्टमी पर्व )

 जय शीतला माता जी की

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सप्तमी और अष्टमी का पवित्र महत्व


शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। माता को बासी खाने के प्रसाद का भोग लगाया जाता है। शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी भोजन को एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है। दूसरे दिन शीतला माता को भोग लगाया जाता है।


सप्तमी और अष्टमी का पवित्र महत्व शीतला सप्तमी, शीतलाष्टमी और मां शीतला की महत्ता का उल्लेख स्कन्द पुराण में बताया गया है। यह दिन देवी शीतला को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शीतला माता चेचक, खसरा आदि की देवी के रूप में पूजी जाती है।इन्हें शक्ति के दो स्वरुप, देवी दुर्गा और देवी पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है। इस दिन लोग मां शीतला का पूजन  करते हैं, ताकि उनके बच्चे और परिवार वाले इस तरह की बीमारियों से बचे रह सके। 


कुछ लोग इसे सप्तमी के दिन मनाते हैं और कुछ प्रांतों में यह पर्व अष्टमी के दिन मनाया जाता है। दोनों ही दिन माता शीतला को समर्पित हैं। महत्वपूर्ण यह है कि माता शीतला का पूजन किया जाए। प्रचलित मान्यता अनुसार दोनों ही दिन पूजन से मां का आशीष मिलता है। शीतला माता के नाम से ही स्पष्ट होता है, मां किसी भी समस्या से शीतल राहत देती हैं। यदि किसी बच्चे को त्वचा संबंधी या अन्य गंभीर बीमारी हो जाए तो उन्हें मां शीतला का पूजन करना चाहिए इससे बीमारी में जल्द राहत मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करने से घर में कोई व्याधि नहीं रहती और परिवार निरोग रहता है। 


मां शीतला हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।  शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घंटकर्ण, त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु नाशक, रोगाणु नाशक, शीतल स्वास्थ्यवर्धक जल होता है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। 


           || शीतला माता की जय हो ||

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Monday 25 March 2024

होली पर्व

 होली पर्व पर आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं



होली पर्व....

 होली पर्व की आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं....



Sunday 24 March 2024

होलिका दहन....

 *आपको और आपके परिवार को होली के पावन अवसर पर मेरे और मेरे परिवार की तरफ से, हार्दिक बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएं !*

*आज होलिका दहन के साथ आपकी समस्याओं का अंत हो, रंगोत्सव होली के रंगो की तरह आपकी जिंदगी भी, खुशियों के रंगो से भरी रहे, मैं ईश्वर से यही कामना करता हूँ।....*

        *राधे राधे*🙏🏼🌺

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Tuesday 19 March 2024

आपके कर्म से बदल जाते हैं आपके भाग्य..

 *आपके कर्म से बदल जाते हैं आपके भाग्य*


प्रकृत्य ऋषि का रोज का  नियम था कि वह नगर से दूर जंगलों में स्थित शिव मन्दिर में भगवान् शिव की पूजा में लीन रहते थे। कई वर्षो से यह उनका अखण्ड नियम था।


उसी जंगल में एक नास्तिक डाकू अस्थिमाल का भी डेरा था। अस्थिमाल का भय आसपास के क्षेत्र में व्याप्त था। अस्थिमाल बड़ा नास्तिक था। वह मन्दिरों में भी चोरी-डाका से नहीं चूकता था।


एक दिन अस्थिमाल की नजर प्रकृत्य ऋषि पर पड़ी। उसने सोचा यह ऋषि जंगल में छुपे मन्दिर में पूजा करता है, हो न हो इसने मन्दिर में काफी माल छुपाकर रखा होगा। आज इसे ही लूटते हैं।


अस्थिमाल ने प्रकृत्य ऋषि से कहा कि जितना भी धन छुपाकर रखा हो चुपचाप मेरे हवाले कर दो। ऋषि उसे देखकर तनिक भी विचलित हुए बिना बोले- कैसा धन ? मैं तो यहाँ बिना किसी लोभ के पूजा को चला आता हूँ।


डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा। ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया। रक्त की धारा फूट पड़ी।


इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्थिमाल के सामने गिरीं। अस्थिमाल अट्टहास करते हुए बोला तू ऋषि होकर झूठ बोलता है। 


झूठे ब्राह्मण तू तो कहता था कि यहाँ कोई धन नहीं फिर ये सोने के सिक्के कहाँ से गिरे। अब अगर तूने मुझे सारे धन का पता नहीं बताया तो मैं यहीं पटक-पटकर तेरे प्राण ले लूँगा।


प्रकृत्य ऋषि करुणा में भरकर दुखी मन से बोले - हे शिवजी मैंने पूरा जीवन आपकी सेवा पूजा में समर्पित कर दिया फिर ये कैसी विपत्ति आन पड़ी ? प्रभो मेरी रक्षा करें। जब भक्त सच्चे मन से पुकारे तो भोलेनाथ क्यों न आते।


महेश्वर तत्क्षण प्रकट हुए और ऋषि को कहा कि इस होनी के पीछे का कारण मैं तुम्हें बताता हूँ। यह डाकू पूर्वजन्म में एक ब्राह्मण ही था। इसने कई कल्पों तक मेरी भक्ति की। परन्तु इससे प्रदोष के दिन एक भूल हो गई। 


यह पूरा दिन निराहार रहकर मेरी भक्ति करता रहा। दोपहर में जब इसे प्यास लगी तो यह जल पीने के लिए पास के ही एक सरोवर तक पहुँचा। संयोग से एक गाय का बछड़ा भी दिन भर का प्यासा वहीं पानी पीने आया। तब इसने उस बछड़े को कोहनी मारकर भगा दिया और स्वयं जल पीया। 


इसी कारण इस जन्म में यह डाकू हुआ। तुम पूर्वजन्म में मछुआरे थे। उसी सरोवर से मछलियाँ पकड़कर उन्हें बेचकर अपना जीवन यापन करते थे। जब तुमने उस छोटे बछड़े को निर्जल परेशान देखा तो अपने पात्र में उसके लिए थोड़ा जल लेकर आए। उस पुण्य के कारण तुम्हें यह कुल प्राप्त हुआ।


पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण इसका आज राजतिलक होने वाला था पर इसने इस जन्म में डाकू होते हुए न जाने कितने निरपराध लोगों को मारा व देवालयों में चोरियां की इस कारण इसके पुण्य सीमित हो गए और इसे सिर्फ ये कुछ मुद्रायें ही मिल पायीं।


तुमने पिछले जन्म में अनगिनत मत्स्यों का आखेट किया जिसके कारण आज का दिन तुम्हारी मृत्यु के लिए तय था पर इस जन्म में तुम्हारे संचित पुण्यों के कारण तुम्हें मृत्यु स्पर्श नहीं कर पायी और सिर्फ यह घाव देकर लौट गई।


*ईश्वर वह नहीं करते जो हमें अच्छा लगता है, ईश्वर वह करते हैं जो हमारे लिए सचमुच अच्छा है। यदि आपके अच्छे कार्यों के परिणाम स्वरूप भी आपको कोई कष्ट प्राप्त हो रहा है तो समझिए कि इस तरह ईश्वर ने आपके बड़े कष्ट हर लिए।*


*हमारी दृष्टि सीमित है परन्तु ईश्वर तो लोक-परलोक सब देखते हैं, सबका हिसाब रखते हैं। हमारा वर्तमान, भूत और भविष्य सभी को जोड़कर हमें वही प्रदान करते हैं जो हमारे लिए उचित है। इसलिए आप अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करें कि आप क्या सोचते हैं और क्या कर रहे हैं। आपकी तनिक सी गलत सोच आपके अच्छे कर्म को भी पीछे धकेल देती है और आपसे गलत फ़ैसला करवा सकती है।......*


*राम राम जी*




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Saturday 16 March 2024

चंद्र शनि..(विष योग)

 *विष योग (" शनी + चन्द्र ")*


फलदीपिका’ ग्रंथ के अनुसार ‘‘आयु, मृत्यु, भय,

दुख,

अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित

कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा,

कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह सेहोता है। अपने

अशुभ कारकत्व के कारण शनि ग्रह

को पापी तथा अशुभ

ग्रह कहा जाता है। परंतु यह पूर्णतया सत्य

नहीं है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वाले

जातक के

लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन लग्न में

शुभकारी तथा अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशुभ

फल

देता है। शनि पूर्वजन्म में

किये गये कर्मों का फल इस जन्म में अपनी भाव

स्थिति द्वारा देता है। वह 3, 6, 10 तथा 11 भाव में शुभ फल

देता है। 1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव में अशुभ फलदायक और 4, 8

तथा 12 भाव में अरिष्ट कारक होता है। बलवान शनि शुभ फल

तथा निर्बल शनि अशुभ फल देता है।

यह 36वें वर्ष से विशेष फलदाई होता है।

शनि की विंशोत्तरी दशा 19 वर्ष

की होती है।

अतः कुंडली में

शनि अशुभ स्थित होने पर इसकी दशा में जातक

को लंबे

समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सब से

धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है।

वह एक राशि के गोचर में लगभग ढाई वर्ष का समय लेता है।

चंद्रमा से द्वादश, चंद्रमा पर, और चंद्रमा से अगले भाव में

शनि का गोचर साढ़े-साती कहलाता है। वृष, तुला,

मकर

और कुंभ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्रायः यह

समय

कष्टकारी होता है। शनि एक

शक्तिशाली ग्रह होने से

अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा दूसरे ग्रहों के फलादेश

में

न्यूनता लाता है। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त

उसकी तीसरे व दसवें भाव पर पूर्ण

दृष्टि होती है।

शनि के विपरीत चंद्रमा एक शुभ परंतु निर्बल ग्रह

है।

चंद्रमा एक राशि का संक्रमण केवल 2 से ( 2 1/4) दिन में

पूरा कर

लेता है। चंद्रमा के कारकत्व में मन की स्थिति,

माता का सुख,सम्मान, सुख-साधन, मीठे फल, सुगंधित

फूल, कृषि, यश, मोती, कांसा,

चांदी,चीनी, दूध, कोमल

वस्त्र,

तरल पदार्थ, स्त्री का सुख, आदि आते हैं। जन्म

समय

चंद्रमा बलवान, शुभ भावगत, शुभ राशिगत,

ऐसी मान्यता है कि शनि और

चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले जन्म में

किसी स्त्री को दिये गये कष्ट

को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए

इस

जन्म में उसकी मां बनती है।

माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य

तथा धन

नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित

रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल

हो तो जन्म

के

बाद माता की मृत्यु हो जाती है

अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु

हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष

तक

रहती है। दर्शाती है, जिसका अशुभ

प्रभाव मध्य अवस्था तक रहता है। शनि के चंद्रमा से अधिक

अंश

या अगली राशि में होने पर जातक अपयश

का भागी होता है।

सभी ज्योतिष ग्रंथों में शनि-चंद्र

की युति का फल अशुभ कहा है। ‘‘जातक भरणम्’

ने

इसका फल ‘‘परजात, निन्दित, दुराचारी,

पुरूषार्थहीन’’ कहा है। ‘बृहद्जातक’

तथा ‘फलदीपिका’ ने इसका फल ‘‘परपुरूष से

उत्पन्न,

आदि’’ बताया है। अशुभ फलादेश के कारण इस युति को ‘‘विष

योग’’

की संज्ञा दी गई है।

‘विष योग’ का अशुभ फल जातक को चंद्रमा और

शनि की दशा में उनके बलानुसार अधिक मिलता है।

कंटक

शनि, अष्टम शनि तथा साढ़ेसाती कष्ट

बढ़ाती है। ऐसी मान्यता है कि शनि और

चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले

जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट

को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए

इस

जन्म में उसकी मां बनती है।

माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य

तथा धन

नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित

रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल

हो तो जन्म

के

बाद माता की मृत्यु हो जाती है

अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु

हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष

तक

रहती है। कुंडली में जिस भाव में ‘विष

योग’

स्थित होता है उस भाव संबंधी कष्ट मिलते हैं।

नजदीकी परिवारजन स्वयं

दुखी रहकर विश्वासघात करते हैं। जातक

को दीर्घकालीन रोग होते हैं और वह

आर्थिक तंगी के कारण कर्ज से दबा रहता है।

जीवन में सुख नहीं मिलता। जातक के

मन में

संसार से विरक्ति का भाव जागृत होता है और वह अध्यात्म

की ओर अग्रसर होता है।

***विभिन्न भावों में ‘विष योग’ का फल***

प्रथम भाव (लग्न) इस योग के कारण माता के बीमार

रहने

या उसकी मृत्यु से किसी अन्य

स्त्री (बुआ अथवा मौसी)

द्वारा उसका बचपन

में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द

रहता है।

शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज

रहता है।

जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु

प्रवृत्ति का होता है। आर्थिक

संपन्नता नहीं होती।

नौकरी में

पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर

से

होता है। दांपत्य जीवन

सुखी नहीं रहता। इस प्रकार

जीवन में कठिनाइयां भरपूर

होती हैं।

द्वितीय भाव मे विष योग के कारणघर के

मुखिया की बीमारी या मृत्यु के

कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता है।

पैतृक संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक

की वाणी में

कटुता रहती है।

वह कंजूस होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम

करना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक

स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं

कान में

बीमारी की संभावना रहती है !

तृतीय भाव इस योग के कारण जातक

की शिक्षा अपूर्ण रहती है। वह

नौकरी से धन कमाता है। भाई-बहनों के साथ संबंध

में

कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं।

यात्रा में

विघ्न आते हैं। श्वांस के रोग होने

की संभावना रहती है।

चतुर्थ भाव मे इस योग के कारण माता के सुख में

कमी,

अथवा माता से विवाद रहता है। जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है।

मध्यम

आयु में आय कुछ ठीक रहती है, परंतु

अंतिम समय में फिर से धन

की कमी हो जाती है।

स्वयं

दुखी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है।

उसके मृत्योपरांत ही उसकी संतान

का भाग्योदय होता है। पुरूषों को हृदय रोग तथा महिलाओं

को स्तन रोग

की संभावना रहती है।

पंचम भाव मे विष योग होने से शिक्षा प्राप्ति में

बाधा आती है। वैवाहिक सुख अल्प रहता है।

संतान

देरी से होती है, या संतान

मंदबुद्धि होती है। स्त्री राशि में

कन्यायें

अधिक होती हैं। संतान से कोई सुख

नहीं मिलता।

षष्ठ भाव इस योग के कारण जातक

को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल

पक्ष

से सहायता नहीं मिलती।व्यवसाय में

प्रतिद्धंदी हानि करते हैं। घर में

चोरी की संभावना रहती है !

सप्तम भाव

स्त्री की कुंडली में

विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है, और

वहदूसरा विवाह करती है। पुरूष

की कुंडली में यह युति विवाह में अधिक

विलंब करती है। पत्नी अधिक उम्र

की या विधवा होती है। संतान

प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन

में

कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सुख

नहीं मिलता।

साझेदारी के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल

की ओर से कोई

सहायता नहीं मिलती।

अष्टम भाव मे इस योग के कारण

दीर्घकालीन

शारीरिक कष्ट और गुप्त रोग होते हैं। टांग में चोट

अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई विशेष

सफलता नहीं मिलती। उम्र

लंबी रहती है। अंत समय

कष्टकारी होता है।

नवम भाव मे इस योग के कारण भाग्योदय में रूकावट

आती है। कार्यों में विलंब से

सफलता मिलती है। यात्रा में

हानि होती है।

ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में

कष्ट

रहता है। जीवन अस्थिर रहता है। भाई-बहन

से

संबंध अच्छे नहीं रहते।

दशम भाव मे इस योग के कारण पिता से संबंध अच्छे

नहीं रहते। नौकरी में

परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतृक

संपत्ति मिलने में कठिनाई आती है। आर्थिक

स्थिति अच्छी नहीं रहती वैवाहिक

जीवन

भी सुखी नहीं रहता।

एकादश भाव मे इस योग के कारण बुरे दोस्तों का साथ रहता है।

किसी भी कार्य मे लाभ

नहीं मिलता। संतान से सुख

नहीं मिलता।

जातक का अंतिम समय बुरा गुजरता है। बलवान शनि सुखकारक

होता है।

द्वादश स्थान मे इस योग से जातक निराश रहता है।

उसकी बीमारियों के इलाज में अधिक समय

लगता है। जातक व्यसनी बनकर धन का नाश

करता है।

अपने कष्टों के कारण वह कई बार आत्महत्या तक करने

की सोचता है।

महर्षि पराशर ने दो ग्रहों की एक राशि में

युति को सबसे कम बलवान माना है। सबसे बलवान योग ग्रहों के

राशि परिवर्तन से बनता है तथा दूसरे नंबर पर

ग्रहों का दृष्टि योग होता है। अतः शनि-चंद्र

की युति से

बना ‘विष योग’ सबसे कम बलवान होता है। इनके राशि परिवर्तन

अथवा परस्पर दृष्टि संबंध होने पर ‘विष योग’

संबंधी प्रबल प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं।

इसके

अतिरिक्त शनि की तीसरी,

सातवीं या दसवीं दृष्टि जिस स्थान पर

हो और

वहां जन्मकुंडली में चंद्रमा स्थित होने पर ‘विष

योग’ के

समान ही फल जातक को प्राप्त होते हैं। उपाय

शिवजी शनिदेव के गुरु हैं और चंद्रमा को अपने सिर

पर

धारण करते हैं। अतः ‘विषयोग’ के दुष्प्रभाव को कम करने के

लिए

देवों के देव महादेव शिव की आराधना व

उपासना करनी चाहिए।

सुबह स्नान करके प्रतिदिन थोड़ा सरसों का तेल व काले तिल के

कुछ

दाने मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुये ‘ऊँ नमः शिवाय’

का उच्चारण करना चाहिए। उसके बाद कम से कम एक

माला ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जप करना चाहिए। शनिवार

को शनि देव

का संध्या समय तेलाभिषेक करने के बाद गरीब, अनाथ

एवं

वृद्धों को उरद की दाल और चावल से

बनी खिचड़ी का दान करना चाहिए। ऐसे

व्यक्ति को रात के समय दूध व चावल का उपयोग

नहीं करना चाहिए ....


*Scientific Astrology and Vastu Research Center Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)& Monita Verma Astro Vastu... Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379 www.astropawankv.blogspot.com*





Friday 8 March 2024

महाशिवरात्रि पर्व...

 || महाशिवरात्रि पर्व आज 8 मार्च शुक्रवार को ||

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महाशिवरात्रि का पर्व इस वर्ष 8 मार्च 2024 में रहेगा, सूर्योदय के समय श्रवण नक्षत्र रहेगा,शुभ मुहूर्त सायं 9 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होकर 9 मार्च शनिवार 6 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल में मुहुर्त पूजा शाम को 6 बजकर 41मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक।


आज के दिन भगवान शिव की पूजा

   चार प्रहर करने का विशेष फल होता है।


1-प्रथम प्रहर ---सायं 6 बजकर 18 मिनट 

       से रात्रि 9 बजकर 28 मिनट तक।


2-द्वितीय प्रहर-- 9 बजकर 29 मिनट से

        मध्य रात्रि 12बजकर 34 मिनट तक। 


3-तृतीय प्रहर--12 बजकर 40 मिनट से प्रात:

           से 3 बजकर 50 मिनट तक।


4-चतुर्थप्रहर -3 बजकर 51 मिनट से प्रात:

        7 बजकर 10 मिनट तक (9मार्च)।


निषिद्ध काल --मध्यम रात्रि 12.15 से 1.6 तक।


महाशिवरात्रि व्रत का पारण 9 मार्च 2024 

  शनिवार को प्रात: काल कर लिया जाएगा।


           || जय महाकाल ||





              

महाशिवरात्रि......

 महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, 

 इस व्रत का महत्व और अन्य खास बातें-

           *****************

           

महाशिवरात्रि आज यानी 8 मार्च काे मनाई जा रही है। महाशिवरात्रि पर शिवजी के लिए व्रत रखकर खास पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं,महिलाओं के लिए महाशिवरात्रि का व्रत बेहद ही फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं की शादी जल्दी होती है, वहीं, विवाहित महिलाएं अपने सुखी जीवन के लिए महाशिवरात्रि का व्रत रखती हैं।


महाशिवरात्रि के संबंध में एक मान्यता ये है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार इस दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल- पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं। धार्मिक,आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महा शिवरात्रि पर्व का बहुत महत्व है।


 महाशिवरात्रि व्रत का महत्व -

      ************

'फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।

   शिवलिङ्गतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभ।।


ईशान संहिता के इस वाक्य के अनुसार ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है। इस व्रत को सभी कर सकते हैं। इसे न करने से दोष लगता है। ये व्रतराज' के नाम से विख्यात है। शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटाने वाली है और शिवलोक को देने वाली है। शास्त्रोक्त विधि से जो इसका जागरण सहित उपवास करते हैं। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटाने वाला दूसरा व्रत नही है। इसके करने मात्र से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।महाशिवरात्रि का व्रत किसी के लिए भी निषिद्ध नहीं है। कोई भी व्यक्ति महाशिवरात्रि का व्रत कर सकता है। इस रूप में यह व्रत सभी मनुष्यों के मध्य समता का बोध कराता है। भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करने के उद्देश्य से सभी व्यक्तियों द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया है –


आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्।


शिव रहस्य ग्रंथ में महाशिवरात्रि व्रत की 

    महत्ता का वर्णन करते हुए कहा गया है -


शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।


अर्थात शिवरात्रि का व्रत करने से 

   मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।


शिव पुराण में वर्णित है कि दान,तप,यज्ञ,तीर्थ,यात्राएं और अन्य व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं होते हैं।


                 || हर हर महादेव ||




                      

महाशिवरात्रि पर्व....

 महाशिवरात्रि पर्व पर आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं....




https://youtube.com/shorts/ccOOKhV3jmg?si=KecAoIojB-sNMxyS





Thursday 7 March 2024

महाशिवरात्रि विशेष में....

 || महाशिवरात्रि विशेष में पढ़ें ||

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आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् 

सौर,गाणपत्य,शैव, वैष्णव, और शाक्त - इन पाँच सम्प्रदायों मे विभक्त विराट हिन्दू साम्राज्य अपने अपने इष्टदेव की उपासना के अतिरिक्त धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष प्राप्त करने हेतु सम्प्रदाय भेद त्याग कर महाशिवरात्रि व्रत का व्यवहारिक जीवन के प्रधान अंग निमित्त पालन करता है । एक बार कैलाश-शिखर पर स्थित पार्वती जी ने महादेव से पूछा -


 कर्मणा केन भगवन् व्रतेन तपसापि वा ।  

  धर्मार्थकाममोक्षणां हेतुस्तवं परितुष्यति ।।


हे भगवन् ! धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष इन चतुर्वर्गों के हेतु तो आप ही हो एवं साधना से संतुष्ट हो मनुष्यों को आप ही इसे प्रदान भी करते हो । अतएव यह जानने की इच्छा है कि आप किस कर्म , किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होते हो । अज्ञातज्ञापकं हि शास्त्रम् ' ( शास्त्रीय अनुष्ठानों के मूल मे सर्वत्र उद्देश्य रहता है ) शास्त्रों का कार्य ही यह है कि जो ज्ञात नही है उसे ज्ञात करा दे । पार्वती जी के पूछने पर महादेव कहते हैं -


फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी ।

  तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका ।।


तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति माँ ध्रुवम् । 

 न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्यया ।।


तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत: ।।


फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है उसी को शिवरात्रि कहते हैं । उस दिन जो उपवास करने से मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ वैसा स्नान,वस्त्र ,धूप और पुष्प अर्पण से भी नही होता। 


माघकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।  

  शिवलिगंतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ: ।। 


तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रि तिथि: ।।


अर्थात् माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा मे आदि देव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसम्पन्न हो शिवलिंग के रूप मे आविर्भूत हुए थे,अतएव शिवरात्रि व्रत मे उसी महानिशा-व्यापिनी चतुर्दशी का ग्रहण करना चाहिये । माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी (गुजरात #महाराष्ट्र के अनुसार माघ)बहुधा फाल्गुन मास मे ही पड़ती है । ईशान संहितानुसार " शिव की प्रथम लिंगमूर्ति उक्त तिथि की महानिशा  ( महानिशा द्वे घटिके रात्रेर्मध्यमयामयो: - चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों मे पहले की अंतिम और दूसरे की आदि घडी ही महानिशा है ) मे पृथ्वी से पहले पहल आविर्भूत हुयी थी ।


रात्रि के चार प्रहरों मे चार बार 

     पृथक पृथक पूजन का विधान है 


दुग्धेन प्रथमो स्नानं दध्ना चैव द्वितीयके । 

तृतीये तु तथाऽऽज्येन चतुर्थे मधुना तथा ।। 


प्रथम प्रहर मे ईशान मूर्ति की दूध द्वारा , द्वितीय प्रहर मे अघोर मूर्ति की दही द्वारा, तृतीय प्रहर मे वामदेव मूर्ति की घी द्वारा, चतुर्थ प्रहर मे सद्योजात मूर्ति की शहद द्वारा स्नान कर पूजन तत्पश्चात प्रभात मे विसर्जन, व्रतकथा सुन यह कह पारण करने का विधान है ।


संसारक्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शँकर ।

   प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव । 


हे शँकर महादेव ! मै नित्य संसार की यातना से दग्ध हो रहा हूँ , इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न होईये, हे प्रभो संतुष्ट हो कर आप मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान कीजिये । महा शिवरात्रि व्रतानुष्ठान मे शास्त्र का गूढ़ उद्देश्य निहित है वह अज्ञात तत्त्व को बतलाता है इस तत्त्व के जाने बिना अनुष्ठान की कोई सार्थकता नही रहती ।


महादेव , शिव साधन पथ मे ब्रह्मवादियों के लिये ब्रह्म , सांख्य मतावलम्बीयों के लिये पुरुष, योगपद मे आरूढ़ वेत्ताओ के लिये सहस्त्रार मे स्थित प्रणव अर्धमात्रा के रूप मे कीर्तित हुये हैं । पुराणों मे महादेव के आधिदैविक स्वरूप का अधिक विस्तार तथा विविध लीलाओं का वर्णन होने पर भी उनमे वही गूढ़ अध्यात्मिक तत्त्व निहित है , शिवरात्रि व्रत मे भी महादेव का अध्यात्मिक तत्त्व अन्तर्निहित है जो महादेव का दार्शनिक परिचय अन्त: सलिला फल्गु की धारा के समान प्रच्छन्नरूपेण प्रवाहित हो रहा है । उसी स्वादु सुशीतल धारा मे अवगाहन करने के लिये हमे और भी गहरे मे गोता लगाना पड़ेगा ।


महाशिवरात्रि व्रत मे रात्रि एवं उपवास की प्रधानता है ' आहारनिवृत्तिरुपवास:,साधारणत: निराहार रहने को उपवास कहते है । आह्नियते मनसा बुद्धयाइन्द्रिर्वा इति आहार: ' मन , बुद्धि अथवा इन्द्रियों द्वारा जो कुछ आहरण ( बाहर से भीतर ) संचय किया जाता है वही आहार है । स्थूल - सूक्ष्म , भेद से यह दो प्रकार का है , मन आदि से आह्नत संस्कार सूक्ष्म आहार एवं पंच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा गृहीत शब्द-स्पर्श-रूपादि स्थूल आहार है , इसके अतिरिक्त दाल,चावल अन्य व्यंजन स्थूलतर आहार हैं ।


उपवास अर्थात उप - समीप , वास करना । ' शान्तं शिवमद्वैतं यच्चतुर्थं मन्यते ' शिव के समीप रहने मात्र से स्वभावत: मन-प्राण की समस्त रंगीन बत्तियाँ अपने आप बुझने लगती हैं । आहार निवृत्ति अर्थात् सूक्ष्म , स्थूल , स्थूलतर आहार का अत्यन्त आभाव । यथोचितरूपेण अनुष्ठित हो व्रत के बहिरंग अनुष्ठान मे कमी होने पर भी कोई हानि नही होती है । इसी कारण शिवरात्रि व्रत मे उपवास ही प्रधान अंग है ।


|| ॐ नम: पार्वतीपतये हर हर हर महादेव ||

                    

Saturday 2 March 2024

अशुभ प्रभाव का शनि जन्मकुंडली में...

 अशुभ शनि  प्रभाव उपाय परहेज़

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शनि जब अशुभ फल देने लगता है, तो जातक को घर की परेशानी आती है। कारोबार में टा नौकरी में बार बार रुकावटें  शनि अशुभ होने से घर  बिजनेस गिरने की स्थिति भी आ सकती है। जातक के शरीर के बाल भी झड़ने लगते हैं। विशेषकर भौंह के बाल झड़ने लगें, तो समझना चाहिए कि शनि अशुभ फल दे रहा है।


शनि से होने वाले रोग

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लकवा, वात रोग, घुटनों में दर्द, गठिया, पैरों में पीड़ा, आकस्मिक दुर्घटना आदि।


बचने के लिए करें ये सरल उपाय

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1. शनिवार का व्रत करें।


2. रोटी में तेल लगाकर कुत्ते या कौए को खिलाएं।


3. नीलम अथवा जामुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें।


4. सांप को दूध पिलाएं।


5. लोहे का छल्ला जिसका मुंह खुला हो मध्यमा अंगुली में पहनें।


6. नित्य प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ पर काले तिल व कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए। यदि पीपल वृक्ष के नीचे शिवलिंग हो तो अति उत्तम होता है।


7. सुंदरकांड का पाठ सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।


अशुभ शनि के प्रभाव

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कुंडली में शनि की स्थिति अशुभ हो तो व्यक्ति बीमार रहने लगता है। आंखे कमजोर और बाल झड़ने लगते हैं। कुछ पेट की समस्याओं से भी घिरे रहते हैं। शनि के अशुभ प्रभाव से नौकरी में भी संघर्ष करना पड़ता है। शनि से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगता है और ऐसा व्यक्ति झूठ बोलने लग जाता है। शनि के दुष्प्रभाव के कारण धर्म-कर्म पर व्यक्ति का विश्वास नहीं रहता है और अकारण क्रोध आ जाता है। शनि ग्रह खराब हो तो कभी-कभी व्यक्ति बिना कुछ करे ही झूठे इल्जाम में फंस जाता है।


शनिवार के दिन करें ये काम

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शनि को बलवान बनाने और शनि दोष के लिए हनुमान, शिव, पीपल के पेड़ और ब्रह्मा जी की पूजा करें। हर दिन हनुमान चालीसा, शनि चालीसा और दशरथ शनि स्तोत्र का पाठ करें। इससे शनि के बुरे प्रभाव कम होने लगते हैं। शनि उपाय के रूप में शनिवार के दिन चमड़े का सामान जैसे चप्पल, सैंडल, जूते, जूते या काला तिल गरीबों को दान करें। शाकाहार का पालन करना और शराब से बचना भी शनि के लिए एक प्रबल उपाय है। झूठ बोलने और धोखा देने से भी दूर रहना चाहिए। शनि के लिए सबसे आसान उपायों में से एक चांदी की एक छोटी सी सॉलिड बाल खरीदना और इसे हर समय अपने  पर्स में रखना है।


नोट- अगर आप अपनी जन्मकुंडली के बारे में जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर जानकारी लें , इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।


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Wednesday 14 February 2024

बसंत पंचमी


*बसंतोत्सव (बसंत पंचमी)* 

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जय हो माँ शारदा -


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किसी को लय, किसी को गीत 


        किसी को साज देती हो, 




हे सरस्वती माँ ज़िस पर मेहरबान


         होती हो उसे आवाज देती हो ।


                  


सरस्वती और लक्ष्मी में से सरस्वती को इसलिये बड़ी माना गया है, कि सरस्वती से तो लक्ष्मी को प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन लक्ष्मी से सरस्वती प्राप्त नहीं की जा सकती अर्थात बुद्वि से धन कमाया जा सकता है धन से बुद्वि प्राप्त नहीं की जा सकती..!




सरस्वतीजी के बीज मंत्र 


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देवी सरस्वती का आह्वान करने वाला बीज मंत्र 


   और दो शब्दों ह्रीं श्रीं पर आधारित है 


 


ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै नमः।


   ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।।




अर्थ: देवी सरस्वती को प्रणाम।लाभ:- सरस्वती के इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि और वाणी की शक्ति बढ़ती है।




2- सरस्वती ध्यान मंत्र-


       *************


ॐ सरस्वती मया दृष्ट्वा, वीणा पुस्तक धारणीम्।


 हंस वाहिनी समायुक्ता मां विद्या दान करोतु में ॐ।।




3- सरस्वती विद्या मंत्र


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सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।


 विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।




लाभ:- इससे स्मृति, अध्ययन में शक्ति 


               और एकाग्रता में सुधार होता है।




4- श्री सरस्वती पुराणोक्त मंत्र-


          **************


या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। 


 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।




हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस साल वसंत पंचमी का त्योहार 14 फरबरी 2024 दिन बुधवार को मनाया जाएगा।  इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। वसंतोत्सव की शुरुआत होती है। ये वसंतोत्सव होली तक चलता है। इस उत्सव को मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन ज्ञान, कला और संगीत की प्रतीक मां सरस्वती की पूजा की जाती है।

आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं....



Saturday 10 February 2024

जय शनि देव

 जय शनिदेव

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पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया," हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है।


शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर हतप्रभ रह गए और बोले, "हे शनिदेव! आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।"


शनिदेव बोले, "हे नाथ! कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।"


शनि की दृष्टि से बचने हेतु अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा तथा शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए।

 

भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले, आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।"


यह सुनकर शनि देव मुस्कराए और बोले, मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।" 


यह सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए।शनिदेव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए। शनि देव की न्यायप्रियता देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और शनिदेव को हृदय से लगा लिया।


                !! जय जय शनिदेव !!




           

         

Friday 9 February 2024

मौनी अमावस्या

 || मौनी अमावस्या 2024 ||

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माघ मास में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस साल मौनी अमावस्या 9 फरवरी को है।इस दिन दान धर्म कार्यों से यज्ञ और कठोर तपस्या जितने फल की प्राप्ति होती है। अमावस्या के दिन स्नान और दान का भी काफी महत्व होता है।


मौनी अमावस्या यानी कि मौन रहकर ईश्वर की साधना करने का अवसर। इस तिथि को मौन एवं संयम की साधना, स्वर्ग एवं मोक्ष देने वाली मानी गई है।शास्त्रों में मौनी अमावस्या पर मौन रखने का विधान बताया गया है। यदि किसी व्यक्ति के लिए मौन रखना संभव नहीं हो तो वह अपने विचारों को शुद्ध रखें मन में किसी तरह की कुटिलता नहीं आने दें। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी वाणी का शुद्ध और सरल होना अति आवश्यक है।


 मौनी अमावस्या का महत्व  

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हिन्दू धर्म के अनुसार माघ मास के कृष्‍ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अथवा माघी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखकर मौन व्रत धारण करने का बहुत महत्व है। बता दें कि यह दिन बहुत पवित्र माना गया है।


प्राचीन धर्मग्रंथों में भगवान श्रीहरि विष्णु को पाने का सरल मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है, खास कर मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन पूरे विधिपूर्वक गंगा स्नान तथा पितृ तर्पण और दान करने से जीवन की परेशानियों का अंत होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। 

 

पुराणों के अनुसार माघ महीने में आने वाली हर तिथि एक पर्व मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था। मौनी अमावस्या के दिन जो लोग गंगा, कुंभ, नदी या सरोवर तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकते, वो घर में गंगा जल डालकर स्नान करें तब भी उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है। 

 

     || समस्त पितृगणो को नमन और प्रणाम ||

        

    मौनी अमावस्या विशेष.....

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तीर्थ इसका अर्थ हुआ- जहाँ पर तरा जाए। 

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तरति पापादिक् यस्मात् अथवा तीर्यते अनेन

 अर्थात् पापों से तरने के स्थान को तीर्थ कहा जाता है।


तीर्थ मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-

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1-स्थावर तीर्थ- स्थान विशेष तीर्थ जैसे चार धाम, 

           काशी,अयोध्या आदि स्थावर तीर्थों में आते है।


2- जंगम तीर्थ- वह तीर्थ जो चलायमान हैं, जंगम शब्द

जो कि पूर्ण संतों को संबोधित करता है। याने सच्चे संत- सद्गुरु चलते-फिरते तीर्थ हुआ करते हैं,जो जन-मानस को आत्मतीर्थ प्रदान करते हैं- 


मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथ राजू।

          (बालकांड, रामचरित मानस)


3- आत्मतीर्थ- तीसरे प्रकार का तीर्थ'आत्मतीर्थ का साक्षात्कार पूर्ण सद्गुरुओं द्वारा आत्मज्ञान पाकर ही हो पाता है। जबालदर्शनोपनिषद् (4/53) में दत्तात्रेय जी ऋषियों को समझाते हैं- बहिस्तीर्थात्परं तीर्थमन्तस्तीर्थं… निरर्थकम्।' अर्थात् हे वत्स! बाह्य जगत के तीर्थों की तुलना में अन्तःतीर्थ अति श्रेष्ठ है। यह महातीर्थ है, इसके समक्ष बाकी सभी तीर्थ व्यर्थ हैं।सर्वश्रेष्ठ तीर्थ हमारे अंतर्जगत को ही कहा गया है, इस विशेष तीर्थ में ही स्नान करने याने आत्मज्ञान प्राप्त कर ध्यान-साधना करने पर ही मनुष्य अपने पाप कर्मों से छुटकारा पाकर मुक्ति का अधिकारी बन सकता है।


    || तीर्थ राज प्रयागराज की जय हो ||



                           

Friday 26 January 2024

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 || आज गणतंत्र दिवस है ||

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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक,संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।


26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है।


हमारा संविधान देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने का अधिकार देता है।आज हर नागरिक को भारत की गौरव-गाथा पर गर्व का अनुभव होता है। आजादी के बाद हम भारतवासियों ने बेशुमार उपलब्धियां हासिल की हैं, आज इन्हीं उपलब्धियों का जश्न और उत्सव मनाने का दिन है। आज हमें देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान बनाने वाले महापुरुषों को भी नमन करना चाहिए। हम और हमारा देश, बाबासाहब भीमराव आम्बेडकर का सदैव ऋणी रहेगा जिन्होंने संविधान निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


    ||  आप सभी जन को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ||




              

Thursday 25 January 2024

पुष्य नक्षत्र और पीपल का वृक्ष

 पुष्य नक्षत्र.... पीपल का वृक्ष


नक्षत्र के वृक्ष होते है जिस नक्षत्र में आप का जन्म हो उस के वृक्ष की पूजा फल ,फ़ुल , जड़ के उपयोग से हम उपचार कर सकते है या जो नक्षत्र अशुभ ग्रस्त हो उसका भी उपचार हो सकता है। 

आज पुष्य नक्षत्र है उसका वृक्ष पीपल है । हमारी हिंदू संस्कृति में पीपल की गणना पवित्र वृक्ष में होती है ।भगवान कृष्ण जी ने गीता में कहा है वृक्षों में मैं पीपल हूं । पुष्य नक्षत्र में पीपल के ११ पत्ते लाकर व्यापार रोज़गार की जगह पे रखनें से धंधा -रोज़गार में फ़ायदा होता है । उसके औषधि गुण भी ज़्यादा है। पीपल के पत्ते खाने से दांत में दर्द हो तो उसमें लाभ होता है ।मान्यता है. कि पीपल के वृक्ष में कई औषधीय गुण छुपे हुए हैं. इस वृक्ष की पत्तियों से लेकर, फल और जड़ तक सभी हिस्से गुणकारी हैं.


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 पीपल का वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष है. इसमें प्रोटीन, फैट, कैल्शियम, आयरन इत्यादि कई  जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. आयुर्वेद के मुताबिक पीपल के वृक्ष से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. इस वृक्ष में मौजूद गुण सांस, दांत, सर्दी-जुकाम, खुजली और नकसीर , गुप्त रोग, प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य  परेशानियों इत्यादि को दूर करने में कारगर हैं. मान्यता है. पीपल के वृक्ष में कई औषधीय गुण छुपे हुए हैं. इस पेड़ की पत्तियों से लेकर, फल और जड़ तक सभी हिस्से गुणकारी हैं. पीपल का वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष होने के साथ साथ अपने आप में बहुत ही ज्यादा रहस्य समेटे हुए है जन्म से लेकर मृत्यु तक यह मानव जाति पशु पक्षियों के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ है


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 इसमें प्रोटीन, फैट, कैल्शियम, आयरन इत्यादि जैसे कई जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. आयुर्वेद के मुताबिक पीपल के वृक्ष से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है.


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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह गुरु ग्रह से संबंधित है और इसमें सूर्य के गुण भी विद्यमान हैं अगर आपकी जन्म कुंडली में गुरु, सूर्य, शनि ग्रह शुभ या अशुभ स्थिति में  है और आपको उनके फल अनुकूल नहीं मिल रहे हैं तो आपके लिए पीपल का वृक्ष उपाय परहेज़ के रूप बहुत ही ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकता है आप इसके दुबारा उपाय करके अपने लिए अनुकूल फल प्राप्त कर सकते हैं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार  ग्रहों के उपायों में, हवन पाठ में, ग्रहों की शुभ, अशुभ स्थिति ज्ञात होने पर उपाय/परहेज़ के रूप में  प्राचीन काल से ही पीपल के वृक्ष को प्रयोग में लाया जाता  रहा है वैज्ञानिकों ने भी इस पर अपने शोधों में पाया कि इसमें बहुत  ज्यादा औषधियां गुण तत्व है.. प्रकृति के लिए बहुत ज़रूरी है....

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राम राम जी

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Monday 22 January 2024

हार्दिक शुभकामनाएं

 सज गया  अयोध्या धाम आ रहे हैं हम सभी के प्रभु श्री राम


महाप्रभु श्री राम जी के प्राण प्रतिष्ठा की समस्त देशवासियों को  बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई। आज का दिन हम सबके लिए शुभ दिन है जीवन का उत्तम दिन है आओ हम सब मिलकर राममय हो जाएं





Friday 19 January 2024

राम नाम का महत्व, रहस्य

 

*_"राम'' के नाम का रहस्य..._*


भगवान राम के जन्म के पूर्व इस नाम का उपयोग ईश्वर के लिए होता था अर्थात *ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर आदि की जगह पहले ‘राम’ शब्द का उपयोग होता था,* इसीलिए इस शब्द की महिमा और बढ़ जाती है तभी तो कहते हैं कि राम से भी बढ़कर श्रीराम का नाम है। राम’ शब्द की ध्वनि हमारे जीवन के सभी दुखों को मिटाने की ताकत रखती है। यह हम नहीं ध्वनि विज्ञान पर शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि *राम नाम के उच्चारण से मन शांत हो जाता।*


*राम या मार :* राम का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात मार। मार बौद्ध धर्म का शब्द है। मार का अर्थ है- इंद्रियों के सुख में ही रत रहने वाला और दूसरा आंधी या तूफान। *राम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य विषयों में मन को रमाता है, मार उसे वैसे ही गिरा देती है, जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां।*


*अध्यात्म रामायण-* मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा *भगवान शंकर ने देवी पार्वती को सुनाई थी।* उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। *उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ।* काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। *भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात है।*” अध्यात्म रामायण’ को ही विश्व का प्रथम रामायण माना जाता है।


*हनुमन्नाटक-* हालांकि रामायण के बारे में एक मत और प्रचलित है और वो यह है कि *सबसे पहले रामायण हनुमानजी ने लिखी थी,* फिर महर्षि वाल्मीकि संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। ‘हनुमन्नाटक’ को हनुमानजी ने इसे एक शिला पर लिखा था। यह रामकथा वाल्मीकि की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और *‘हनुमन्नाटक’ के नाम से प्रसिद्ध है।* मान्यता है कि जब वाल्मीकिजी ने अपनी रामायण तैयार कर ली तो उन्हें लगा कि हनुमानजी के हनुमन्नाटक के सामने यह टिक नहीं पाएगी और इसे कोई नहीं पढ़ेगा।


हनुमानजी को जब महर्षि की इस व्यथा का पता चला तो उन्होंने उन्हें बहुत सांत्वना दी और *अपनी रामकथा वाली शिला उठाकर समुद्र में फेंक दी, जिससे लोग केवल वाल्मीकिजी की रामायण ही पढ़ें और उसी की प्रशंसा करें।* समुद्र में फेंकी गई हनुमानजी की रामकथा वाली शिला राजा भोज के समय में निकाली गयी।


*गोस्वामी तुलसीदास,* जिनका जन्म सन् 1554 ई. हुआ था, ने रामचरित मानस की रचना की। सत्य है कि *रामायण से अधिक रामचरित मानस को लोकप्रियता मिली है* लेकिन यह ग्रंथ भी रामायण के तथ्यों पर ही आधारित है।श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। *इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं-*


*गोस्वामी जी  कहते हैं :-*


महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥ (मानस, बाल, दोहा-19/3) 


*यह ‘राम’ नाम महामंत्र है जिसे महेश्वर, भगवान शंकर जपते हैं* और उनके द्वारा यह राम नाम उपदेश का काशी में मुक्ति का कारण है। ‘र’, ‘आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरों के मिलने से *यह राम नाम तो हुआ ‘महामंत्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मंत्र।*


 ''सप्तकोट्य महामंत्राश्चित्तविभ्रमकारका:। एक एव परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यक्षरद्वयम्''॥


सात करोड़ मंत्र हैं। वे चित्त को भ्रमित करने वाले हैं। यह दो अक्षरों वाला राम नाम परम मंत्र है। *यह सब मंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र है।* सब मंत्र इसके अंतर्गत आ जाते हैं। कोई भी मंत्र बाहर नहीं रहता।  सब शक्तियां इसके अंतर्गत हैं।


*यह ‘राम’ नाम काशी में मरने वालों की मुक्ति का हेतु है।* भगवान शंकर मरने वालों के कान में यह राम नाम सुनाते हैं और इसको सुनने से काशी में उन जीवों की मुक्ति हो जाती है। एक सज्जन कह रहे थे कि काशी में मरने वालों का दायां कान ऊंचा हो जाता है-ऐसा मैंने देखा है। मानव मरते समय दाएं कान में भगवान शंकर राम नाम मंत्र देते हैं। इस विषय में  कहा गया है कि *‘‘जब प्राणों का प्रयाण होता है तो उस समय भगवान शंकर उस प्राणी के कान में राम नाम सुनाते हैं।परन्तु क्यों सुनाते हैं?*


वे यह विचार करते हैं कि भगवान से विमुख जीवों की खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दंड देते हैं परंतु मैं संसार भर का मालिक हूं। *लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं* और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरी में आकर यमराज दंड दे तो यह ठीक नहीं है। अरे भाई, किसी को दंड या पुरस्कार देना तो मालिक का काम है। *राजा की राजधानी में बाहर से दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजा की पोल निकलती है न।* सारे संसार में नहीं तो कम से कम वाराणसी में जहां मैं बैठा हूं, यहां आकर यमराज दखल दे, यह कैसे हो सकता है।


काशी में ‘वरुणा’ और ‘असी’ दोनों नदियां गंगा जी में आकर मिलती हैं। *उनके बीच का क्षेत्र ‘वाराणसी’ है।* इस क्षेत्र में मछली हो या मेंढक हो या अन्य कोई जीव जंतु हों, आकाश में रहने वाले हों या जल में रहने वाले हों या थल में रहने वाले जीव हों *उनको भगवान शंकर मुक्ति देते हैं।* यह है काशी वास की महिमा। काशी की महिमा बहुत विशेष मानी गई है। यहां रहने वाले यमराज की फांसी से दूर हो जाएं इसके लिए शंकर भगवान हरदम सजग रहते हैं। *मेरी प्रजा को काल का दंड न मिले ऐसा विचार हृदय में रखते हैं।*


अध्यात्म रामायण में भगवान श्री राम की स्तुति करते हुए भगवान शंकर कहते हैं- *जीवों की मुक्ति के लिए आपका ‘राम’ नाम रूपी जो स्तवन है अंत समय में मैं इसे उन्हें सुना देता हूं जिससे उन जीवों की मुक्ति हो जाती है-*


‘अहं हि काश्यां...दिशामि मंत्रं तव राम नाम।’


जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं अंत राम कहि आवत नाहीं॥


अंत समय में राम कहने से वह फिर जन्मता-मरता नहीं। ऐसा राम नाम है। भगवान ने ऐसा मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया। *कोई भी अन्न का क्षेत्र खोले तो पास में पूंजी चाहिए।* बिना पूंजी के अन्न कैसे देगा? शंकर जी कहते हैं-हमारे पास ‘राम’ नाम की पूंजी है। इससे जो चाहे मुक्ति ले लो।


*मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर।*


*जहं बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न॥*


यह काशी भगवान शंकर का मुक्ति क्षेत्र है। *यह राम नाम की पूंजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं।* अनंत जीवों की मुक्ति कर देने पर भी इसमें कमी नहीं आती। आए भी तो कहां से। वह अपार है, असीम है।


*नाम की महिमा कहते-कहते गोस्वामी जी  कहते हैं :*


कहौं कहां लगि नाम बड़ाई, रामु न सकङ्क्षह नाम गुन गाई॥ (बाल.दो.26/8)


*भगवान श्री राम भी नाम का गुणगान नहीं गा सकते। इतने गुण राम नाम में हैं।*


‘महामंत्र जोइ जपत महेसू’ इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामंत्र इतना विलक्षण है कि महामंत्र राम नाम जपने से ‘ईश’ भी महेश हो गए। महामंत्र का जप करने से आप भी महेश के समान हो सकते हैं।


*भगवान के चरित्र अनंत हैं .* उन चरित्र को लेकर नाम जप भी अनंत ही होगा .वाल्मीकि ने सौ करोड़ श्लोकों की रामायण बनाई , तो सौ करोड़ श्लोकों की रामायण को भगवान शंकर के आगे रख दिया *जो सदैव राम नाम जपते रहते हैं .* उन्होनें उसका उपदेश पार्वती को दिया .भगवान शंकर ने रामायण को तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया . तीन लोकों को तैंतीस - तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया . उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच और उस एक हज़ार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया . उसके भी तीन भाग किए *एक श्लोक बच गया .* इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया . एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं उसमें दस - दस करके तीनों को दे दिए तो *अंत में दो ही अक्षर बचे भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए . राम अक्षर में ही पूरी रामायण है , पूरा शास्त्र है .*


राम नाम वेदों के प्राण के सामान है . *शास्त्रों का और वर्णमाल का भी प्राण है .* प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है . प्रणव तीन मात्र वाल ॐ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय . ऋक , साम और यजुः - ये तीन प्रमुख वेद बने . *इस प्रकार ॐ कार [ प्रणव ] वेदों का प्राण है .* राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है , क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है . जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा . *ऐसे ही ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा .* प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है . इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है .


*नाम और रूप दोनों ईश्वर कि उपाधि हैं . भगवान् के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि है . सुन्दर, शुद्ध भक्ति युक्त बुद्धि से ही इसका दिव्य अविनाशी स्वरुप जानने में आता है . राम नाम लोक और परलोक में निर्वाह करने वाला होता है . लोक में यह देने वाला चिंतामणि और परलोक में भगवत्दर्शन कराने वाला है. वृक्ष में जो शक्ति है वह बीज से ही आती है इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती ही .*


राम नाम अविनाशी और व्यापक रूप से सर्वत्र परिपूर्ण है . सत् है , चेतन है और आनंद राशि है . उस आनंद रूप परमात्मा से कोई जगह खाली नही , कोई समय खाली नहीं , कोई व्यक्ति खाली नही कोई प्रकृति खाली नही ऐसे परिपूर्ण , ऐसे अविनाशी वह निर्गुण है . वस्तुएं नष्ट जाती है, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं , समय का परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है , लेकिन यह सत् - तत्व ज्यों -त्यों ही रहता है इसका विनाश नही होता है इसलिए यह सत् है .


*जीभ वागेन्द्रिय है उससे राम राम जपने से उसमें इतनी अलौकिकता आ जाती है की ज्ञानेन्द्रिय और उसके आगे अंतःकरण और अन्तः कारण से आगे प्रकृति और प्रकृति से अतीत परमात्मा तत्व है , उस परमात्मा तत्व को यह नाम  जगा दे ऐसी उसमें शक्ति है .*


राम नाम मणिदीप है . एक दीपक होता है एक मणिदीप होता है . तेल का दिया दीपक कहलाता है मणिदीप स्वतः प्रकाशित होती है . जो मणिदीप है वह कभी बुझती नहीं है . जैसे दीपक को चौखट पर रख देने से घर के अंदर और भर दोनों हिस्से प्रकाशित हो जाते हैं वैसे ही राम नाम को जीभ पर रखने से अंतःकरण और बाहरी आचरण दोनों प्रकाशित हो जाते हैं .


*यानी भक्ति को यदि ह्रदय में बुलाना हो तो, राम नाम का जप करो इससे भक्ति दौड़ी चली आएगी .*


अनेक जन्मों से युग युगांतर से जिन्होंने पाप किये हों उनके ऊपर राम नाम की दीप्तिमान अग्नि रख देने से सारे पाप कटित हो जाते हैं .राम के दोनों अक्षर मधुर


*और सुन्दर हैं . मधुर का अर्थ रचना में रस मिलता हुआ और मनोहर कहने का अर्थ है की मन को अपनी ओर खींचता हुआ . राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आँखें हैं .राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है.*


जगत में सूर्य पोषण करता है और चन्द्रना अमृत वर्षा करता है है . राम नाम विमल है जैसे सूर्य और चंद्रमा को राहु - केतु ग्रहण लगा देते हैं , लेकिन राम नाम पर कभी ग्रहण नहीं लगता है . चन्द्रमा घटा बढता रहता है लेकिन राम तो सदैव बढता रहता है .यह सदा शुद्ध है अतः यह निर्मल चन्द्रमा और तेजश्वी सूर्य के समान है .


*अमृत के स्वाद और तृप्ति के सामान राम नाम है . राम कहते समय मुंह खुलता है और म कहने पर बंद होता है . जैसे भोजन करने पर मुख खुला होता है और तृप्ति होने पर मुंह बंद होता है . इसी प्रकार रा और म अमृत के स्वाद और तोष के सामान हैं .*


छह कमलों में एक नाभि कमल [ चक्र ] है उसकी पंखुड़ियों में भगवान के नाम है , वे भी दिखने लग जाते हैं . आँखों में जैसे सभी बाहरी ज्ञान होता है ऐसे नाम जाप से बड़े बड़े शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है , जिसने पढ़ाई नहीं की , शास्त्र शास्त्र नहीं पढ़े उनकी वाणी में भी वेदों की ऋचाएं आती है. वेदों का ज्ञान उनको स्वतः हो जाता है ..


*राम रहस्य:-*


*प्रसिद्ध संत शिवानंद निरंतर राम का नाम जपते रहते थे। एक दिन वे जहाज पर यात्रा के दौरान रात में गहरी नींद में सो रहे थे। आधी रात को कुछ लोग उठने लगे और आपस में बात करने लगे कि ये राम नाम कौन जप रहा है। लोगों ने उस विराट, लेकिन शांतिमय आवाज की खोज की और खोजते-खोजते वे शिवानंद के पास पहुँच गए।सभी को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ की शिवानंद तो गहरी नींद में सो रहे है, लेकिन उनके भीतर से यह आवाज कैसे निकल रही है। उन्होंने शिवानंद को झकझोर कर उठाया तभी अचानक आवाज बंद हो गई। लोगों ने शिवानंद को कहा आपके भीतर से राम नाम की आवाज निकल रही थी इसका राज क्या है। उन्होंने कहा ''मैं भी उस आवाज को सुनता रहता हूँ। पहले तो जपना पड़ता था राम का नाम अब नहीं। बोलो श्रीराम।''कहते हैं जो जपता है राम का नाम ...राम जपते हैं उसका नाम।*


          *जय जय श्री राम*

Thursday 18 January 2024

लग्नेश सप्तम में ...

 *लग्नेश सप्तम भाव में*


*प्रथमपतौ सप्तमगे तेजस्वी*

*शील वान् भवेत् पुरुषः।*

*तद् भार्यापि  सुशीला*

*तेजः कलिता सुरुपा च।।*

*लग्नेश सप्तम भाव में हो तो जातक तेजस्वी , अच्छे स्वभाव वाला , शीलवान , और उसकी पत्नी सुशीला , अच्छे स्वभाव वाली , तेजस्विनी  व रूपवती हो सकती है।*

             *मानसागरी*


*2. लग्नेश यदि पाप ग्रह हो तो जातक की स्त्री का नाश ,*

*शुभ ग्रह हो भ्रमण करने वाला , दरिद्री में रहने वाला , विरागी राजा हो सकता है।*


     *जातक पारिजात*


*कुंडली में सप्तम भाव को बहुत ही कोमल भाव माना जाता है।*

*इस भाव में बैठा ग्रह जातक को ज्यादा प्रभावित करता है।*


*यो यो भावः युतोवास्वामिदृष्टो*


*लग्नेश सप्तम में है तो लग्न को देखेगा तो लग्न से विचारणीय सब फल अच्छे होंगे।*

*और लग्नेश जहां बैठेगा उस भाव के फलों की वृद्धि करेगा तो सप्तम के फल अच्छे होंगे।*

*बाकी ग्रह अपनी मूल प्रकृति के अनुसार तो फल देंगे ही देंगे।*


*सप्तम भाव से विपरीत का विचार किया जाता है।*

*यदि पुरुष है तो स्त्री का और यदि स्त्री है तो पुरुष का ।*

*चार तत्वों को आधार बनाकर इसे देखें तो दो तत्व*

*में तो सामंजस्य बनता है ओर दो तत्वों में भड़काव अथवा विद्रोह की सम्भावना दिखती है।*


*उदाहरण स्वरुप*

*1.यदि लग्न अग्नि तत्वीय है तो सप्तम वायु तत्वीय होगा*

*और*

*यदि लग्न वायु तत्वीय है तो सप्तम अग्नि तत्वीय।*

*ऐसे में पति पत्नी को आपस अधिक सामंजस्य बना कर रखना चाहिए।* *अन्यथा आए दिन घर में क्लेश पुर्ण वातावरण बना रह सकता है।*

*क्यों कि लग्नेश वहां है तो अपने स्वभाव अनुसार सप्तम का फल बड़ा देगा।*

*और यहां विडम्बना यह बन जाएगी उसका पार्टनर उस ग्रह के स्वभाव को ग्रहण कर लग्न को देखेगा और साथ में सप्तम भाव का तत्व भी उसमें आ जाएगा*

*जो कि स्थिति को आए दिन विकट बनाता रहेगा परिवार में।*

*ऐसों को भगवत कृपा का आश्रय आवश्य लेना चाहिए।*

*अन्यथा कुछ अन्य ग्रहों ने भी प्रभाव डाल दिया तो स्थिति विच्छेदात्मक बन सकती है।*


*2. इसके विपरित अगर* *लग्न पृथ्वी तत्वीय है तो* *सप्तम जल तत्वीय होगा*

*और लग्न जल तत्वीय है तो* *सप्तम पृथ्वी तत्वीय होगा।*

*ऐसे में सामंजस्य बने रहने की सम्भावना अधिक हो जाती है।*

*ग्रहानुसार कुछ मतभेद तो  होंगें, लेकिन उनमें धैर्यशीलता, विवेकशीलता बनी रहेगी।*

*वो सम्बन्धों को तोड़ने का ख्याल नहीं करेंगे उल्टा एक दुसरे का ख्याल  रखेंगे।*

*चाहे बाहर से कैसा भी व्यवहार करें।*

*लेकिन अन्दर से उनमें भावनात्मक जुड़ाव  होगा।*


*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379 www.astropawankv.blogspot.com*



Sunday 14 January 2024

मकर संक्रांति

 Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं...


Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379  www.astropawankv.blogspot.com

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Tuesday 9 January 2024

भगवान और आप....

 *मीरा जी जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे।*


*सूरदास जी जब पद गाते थे तब भी भगवान सुनते थे।* 

*और कहाँ तक कहूँ कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया:- चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है।*

*एक चींटी कितनी छोटी होती है अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है।*

*यदि आपको लगता है कि आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।*

*कभी प्रेम से दिल से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही।* *बुद्धिमान बन कर नहीं... बुद्धिहीन बन कर पुकारो उनकी याद में प्रेम से आंसू गिरायो तो सही....*


*मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि केवल भगवान ही है जो आपकी बात को सुनता है।*

*एक छोटी सी कथा संत बताते है:-*

*एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।*


*अंत में भगवान ने उनकी परिक्षा लेते हुऐ कहा:- अरे भक्त! तू सोचता है कि मैं तेरे गीता के पाठ से खुश हूँ, तो ये तेरा वहम है।*

*मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।*


*जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा।*


*भगवान ने बोला:- अरे! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नही हूँ और तू नाच रहा है।*

*वो भक्त बोला:- भगवान जी आप खुश हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता।*

*लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूँ कि आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूँ।*


*ये होता है भाव....*

*थोड़ा सोचिये जब द्रौपती जी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?*

*भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई।*

*जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?*

*बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर आये।*

*कबीरदास जी, तुलसी दास जी, सूरदास जी,*

*मीरा बाई जी,  रवि दास जी श्री जी.......जाने कितने संत हुए जो भगवान से बात करते थे और भगवान भी उनकी सुनते थे।*


*इसलिए जब भी भगवान को याद करो उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना की भगवान आपकी पुकार सुनते होंगे या नहीं?*


*कोई संदेह मत करना, बस ह्रदय से उनको पुकारना, तुम्हे खुद लगेगा कि हाँ, भगवान आपकी पुकार को सुन रहे है !* बुद्धिमान बन कर नहीं बुद्धिहीन बन कर.......

        *राधे राधे*


           *Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number...9417311379  www.astropawankv.com*