*पति और पत्नी के एक दूसरे के प्रति कर्त्तव्य....(1)*
*मनुष्य का जीवन कुछ इस प्रकार का है कि इसमें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत किसी ना किसी का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। जन्म लेते ही प्राकृतिक रूप से हमारी माँ हमारे लिए सहारा बन जाती है। हमारे जन्म के कुछ समय पश्चात ही माता के साथ – साथ इसी कार्य को पिता भी करते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इन दोनों को हमारा प्राकृतिक संरक्षक माना गया है। इसके पश्चात हमको गुरु का सहारा मिलता है । यौवन की दहलीज पर पैर रखते ही युवक और युवकियों को भी अपने किसी जीवनसाथी की आवश्यकता अनुभव होती है । उस समय शरीर में विकसित हुईं प्राकृतिक शक्तियां भी इस ओर बढ़ने के लिए इन दोनों को प्रेरित करती हैं । इसका कारण यही होता है कि ईश्वर भी सृष्टि क्रम को चलाने के लिए उनके शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन करता है जिससे वे स्वाभाविक रूप से एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं ।*
*इस अवस्था में दोनों ही जिन सपनों में खोए रहते हैं उनमें एक दूसरे का सहारा बनकर रहने और एक घनिष्ठ मित्र की भांति जीवन व्यतीत करने के संकल्प भी बनते रहते हैं । दोनों की इच्छा होती है कि हम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे और एक दूसरे की भावनाओं को समझकर प्रेमपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करेंगे। सपनों में चलने वाली इन बातों और भावों में ही विवाह से पहले विवाह के बाद के प्रेमपूर्ण जीवन की आधारशिला रख दी जाती है। मानसिक रूप से इस प्रकार के भावों में खोए रहने के कारण जैसे ही किसी युवक-युवती का मिलन विवाहोपरांत पति पत्नी के रूप में होता है तो वे आजीवन एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार करने और जीवन को रसमय बनाकर जीने के लिए वचनबद्ध हो जाते हैं। उन्हें ऐसा नहीं लगता कि जैसे दो अजनबी एक दूसरे से मिल रहे हों । सपनों में एक दूसरे का चित्र पहले से ही खींच लेने के कारण उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे हम जन्म जन्मों से एक दूसरे को जानते हैं।*
*ऐसे पवित्र संबंध को हमारे पूर्वजों ने भली प्रकार समझा । उन्होंने इस ‘प्रेम’ नाम के सर्वाधिक सरस प्रवाह को यूं ही पशुवत बहने से रोकने का प्रबन्ध किया । उन्होंने प्रेम का नाम सृजन रखा। प्रेम की पराकाष्ठा को उन्होंने धर्म बना दिया ।*
*प्रेम का मानवतावादीकरण करते हुए पति और पत्नी के बीच इसे कुछ इस प्रकार स्थापित किया कि यह दोनों ही विधाता की साक्षात मूर्ति बन गए । सृष्टि के संचालन के लिए फूटी इस प्रेम नाम की पंखुड़ी ने पति और पत्नी दोनों को ही एक दूसरे के लिए देवता और देवी बना दिया ।*
*इस प्रकार हमारे यहां के गृहस्थी का संचालन प्रेम नाम के देवता से आरंभ हुआ और अंत में जब अपनी पराकाष्ठा को प्राप्त होकर धर्म को प्राप्त हुआ तो गृहस्थी का सारा चक्र इसी प्रेम नाम की पराकाष्ठा में अर्थात धर्म में समाविष्ट हो गया। इस प्रकार हमारे देश में प्रेम और धर्म दोनों एक हैं । दोनों मिलते हैं तो सनातन हो जाते हैं । दोनों अलग-अलग होते हैं तो सृजन और मर्यादा का प्रतीक बन जाते हैं। नदी के दो किनारे बन जाते हैं । जिनके बीच में रहते हुए गृहस्थी के शीतल जल को प्रवाहित होना है।*
*पत्नी का भरण पोषण पति का पहला कर्तव्य*
*ऋग्वेद (10 . 85. 36) में व्यवस्था की गई है कि पत्नी के भरण-पोषण की पूर्ण व्यवस्था करना पति का सर्वप्रथम कर्तव्य है। ऋग्वेद का मंत्र कहता है कि पति सौभाग्य के लिए पत्नी का पाणिग्रहण करता है और वह यह कहता है कि मैं इसके पालन-पोषण का उत्तरदायित्व लेता हूं :*
*गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तम्। प्रेम की पहली शर्त है नि:स्वार्थ भाव से किसी को अपना लेना । बदले में कुछ लेना नहीं है , बल्कि देना है और यह देना ही वह कर्तव्य है जिसके सहारे यह संसार चलता है । यदि वेद पति पत्नी के बीच देने की बात न करके इसके स्थान पर लेने की बात करने लगता तो यहां प्रेम स्वार्थ पूर्ण हो जाता। कलंकित हो जाता। उस का रस मर जाता । वह नीरस को जाता। जो लोग भी वहां को एक संस्कार न मानकर एक संविदा मानते हैं , उनके यहां पर यह जिम्मेदारी नहीं उठाई जाती कि पति ही पत्नी का भरण – पोषण अनिवार्य रूप से करेगा। जिससे पति – पत्नी दोनों आत्मिक रूप से एक दूसरे के साथ नहीं आ पाते । दोनों एक संविदा करते हैं , मैं अपने ढंग से कमाऊँ खाऊंगा और तुम अपने ढंग से कमाओ खाओगे। वासना और शारीरिक भूख की पूर्ति के लिए हम दोनों एक साथ चलते हैं । जब कहीं हमारा एक दूसरे से मन भर जाएगा तो इस संविदा को तोड़ देंगे । इन लोगों का विवाह के प्रति ऐसा दृष्टिकोण विवाह को संस्कार नहीं बनाता और परिवार को एक संस्था नहीं बनाता।*
*Scientific Astrology and Vastu Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.) & Monita Verma Astro Vastu... Astro Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379 , 7888477223 www.astropawankv.com*
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