*पति - पत्नी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्य.....,(2)*
*पति ने पत्नी के प्रति अपने पहले कर्तव्य को स्वीकार करते हुए यह मान लिया कि वह इसका भरण पोषण करेगा । पर भरण पोषण का अभिप्राय केवल इतना ही नहीं है कि वह उसको भोजन वस्त्र की समय पर पूर्ति कराएगा । इससे आगे भी कुछ इसका अर्थ है। इसको स्पष्ट करते हुए ऋग्वेद (10 .71. 4) में बताया गया है कि पति का अपनी पत्नी के प्रति यह भी कर्तव्य है कि वह उसके जीवन स्तर को ऊंचा करने का भी हरसंभव प्रयास करेगा । जीवन स्तर तभी उन्नत और ऊंचा होता है जब पत्नी सुसंस्कारित और सुशिक्षित हो । इसका अभिप्राय हुआ कि पत्नी के अंदर इन दोनों चीजों का समावेश करने के लिए पति उसके लिए ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करेगा , जिसमें वह सुसंस्कृत और सुशिक्षित हो सके । अतः वेद ने पति का यह कर्तव्य घोषित किया है कि वह ऐसी सभी सुख सुविधाएं अपनी पत्नी को प्रदान करे जिनमें से वह प्रसन्न रह सके और पति के प्रति आत्मसमर्पण के लिए उद्यत रहे । वेद की व्यवस्था है कि :-*
*उतो त्वस्मै तन्वं वि सस्रे, जायैव पत्य उषती सुवासा:।*
*आजकल पति पत्नी के बीच सम्बन्धों में तनाव का एक कारण यह है कि पति या पत्नी एक दूसरे से छुपकर कुछ रहस्यमयी कार्य करते रहते हैं । जिनकी जानकारी होने पर एक दूसरे का क्रोध लावा बनकर फूट पड़ता है । ऐसे शक संदेह पैदा करने वाले कोई भी कार्य घर गृहस्थी में किया जाना पूर्णतया अपराध है । पति – पत्नी को भी एक दूसरे के बीच ऐसा कोई रहस्य बनाकर नहीं रखना चाहिए जिससे उनके सम्बन्धों की पवित्रता भंग होती हो ।*
*आजकल न्यायालय में जितने भी वाद-विवाद पत्नी और पति के मध्य प्रस्तुत होते हैं या प्रस्तुत किए जाते हैं उन सब के बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन उन सभी कारणों में से एक महत्व पूर्ण कारण अनावश्यक संदेहों को हवा देने वाली कार्यशैली भी होती है । यदि पति – पत्नी को कार्यशैली को ठीक कर अपने आप को उससे बचाएं तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही नहीं हो सकती।*
*पति संयमी और तेजस्वी हो*
*वेद ने पति के लिए संयमी और तेजस्वी होने का विशेष गुण बताया है । संयमी और तेजस्वी पति ही पत्नी का सम्मान कर सकता है और उसे सुयोग्य संतान भी दे सकता है । अथर्ववेद में पति के लिए यम: (संयमी), राजन (तेजस्वी एवं सम्पन्न), असित: (बंधनों से मुक्त), कश्यप:(दृष्टा विचारक), गय: (प्राणशक्ति सम्पन्न) जैसे विशेषण प्रयोग किये गये हैं। यदि इन विशेषणों पर विचार किया जाए पति के अंदर बहुत गंभीरता , संयमशीलता , तेजस्विता और बंधनों से मुक्त रहने की शक्ति , विचारक के रूप में उसका गहन चिंतन और प्राणशक्ति संपन्नता जैसे गुणों का होना अनिवार्य है। जहां पति के अंदर ऐसे गुण होंगे वहां असंयम , अमर्यादा , अनैतिकता जैसी चीजों के लिए स्थान नहीं होगा और ऐसा न होने से घर में स्वैर्गिक वातावरण स्वयं ही उत्पन्न हो जाएगा । वेद ऐसे ही गुणी व्यक्ति को पति होने का सम्मान प्रदान करता है।*
*संस्कृत में सुभाषित है कि ‘ न गृहं गृहमित्याहुर्गृहणी गृहमुच्यते।’ – अर्थात गृहिणी को ही घर कहा जाता है। गृहिणी को हमारे यहां पर वैदिक संस्कृति में गृहस्वामिनी का सम्मान दिया गया है। परंतु उसे घर कहना तो उसके लिए और भी बड़े सम्मान की बात है। क्योंकि घर परिवार का प्रतीक है और परिवार एक संस्था है। उस संस्था को यदि एक व्यक्ति में केंद्रित किया जाए तो वह गृहिणी है । इस प्रकार गृहिणी का एक संस्था का प्रतीक बन जाना सचमुच उसकी महिमा में चार चांद लगाना है। इसका अभिप्राय यह भी हुआ कि गृहस्वामिनी या पत्नी का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे व्यवहार और आचरण को निष्पादित करने वाली हो जिससे वह स्वयं ही ‘घर’ बन जाए।*
*गृहस्वामिनी होती है ‘घर’*किसी भी संस्था का मुखिया होने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी योग्यता या पात्रता प्राप्त करनी ही पड़ती है। स्पष्ट है कि यदि गृहस्वामिनी ‘घर’ बनना चाहती है तो उसके लिए अपेक्षित साधना शक्ति भी उसके पास हो। पत्नी की साधना शक्ति को बढ़ाने में उसका संयमी और तेजस्वी पति भी सहभागी और सहयोगी बने । पति का सद्भाव सदा अपनी पत्नी के प्रति इस बात को लेकर बना रहे कि वह अपनी साधना कर परिवार को स्वर्ग बनाने के लिए आतुर रहे।*
*‘घर’ बनने की साधना के लिए गृहस्वामिनी को प्रत्येक परिजन का विश्वास जीतना होता है । सब उसके प्रति स्वाभाविक रूप से श्रद्धा रखने वाले हों । सब उसके अनुशासन में चलने वाले हों और सब उसके आदेशों को मानने वाले हों । यह तभी संभव है कि जब वह निष्पक्ष , न्यायशील , धर्मानुसार कार्य करने वाली हो । पक्षपातशून्य ह्रदय रखते हुए परिवार में समरसता की गंगा बहाने में समर्थ हो। एक अच्छी गृहस्वामिनी जहाँ परिवार के ज्येष्ठजनों के प्रति सेवाशील , श्रद्धा रखने वाली और उनके सम्मान मान मर्यादा का ध्यान रखने वाली होती है वहीं वह छोटों के प्रति अत्यधिक सहिष्णु , उदार और प्रेम करने वाली होती है*
*जहाँ पति घरेलू हिंसा से या किसी भी प्रकार के मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न से महिलाओं को कष्ट देते हैं वहां पर महिलाओं की ऐसी साधना सफल नहीं हो पाती । वहाँ घर में कलेश रहता है । इसलिए पति का यह दायित्व है कि वह पत्नी को किसी भी प्रकार के मानसिक या शारीरिक कष्ट में न रखे ।*
*राम राम जी*
*Scientific Astrology and Vastu ... Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.) & Monita Verma Astro Vastu..... Astro Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379 , 7888477223. www.astropawankv.com*