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Monday 27 November 2023

कार्तिक पूर्णिमा ब प्रकाश पर्व

 राम राम जी*


*कार्तिक पूर्णिमा ब प्रकाश पर्व गुरु पर्व*


*देवों की दीपावली है कार्तिक पूर्णिमा,*


देव दीपावली व प्रकाश पर्व


पौराणिक कथा के अनुसार, देवता अपनी दीपावली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा में स्नान और दान को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीप दान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि इस दिन दीप दान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं...




इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3:54 बजे से शुरू होकर 27 नवंबर को दोपहर 2:46 बजे समाप्त हो रही है।


कार्तिक पूर्णिमा का महत्व:


पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाने वाले असुर भाइयों की एक तिकड़ी को मार दिया था। यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। इस प्रकार अत्याचार को समाप्त कर भगवान शिव ने शांति बहाल की थी। इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में, काशी (वाराणसी) के पवित्र शहर में भक्त गंगा के घाटों पर तेल ओर घी के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं।


* श्री गुरू नानक देव जी के जन्मदिन को देशभर में प्रकाश पर्व के तौर पर भी मनाया जाता है। इस दिन दिए जलाकर रोशनी की जाती है। गुरुद्वारा साहिब में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।*




*जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।*


  *नानक गावीऐ गुणी निधानु।*




जिसने प्रभु की सेवा की उसे  सर्वोत्तम 


 प्रतिष्ठा मिली।इसीलिये उसके गुणों का गायन करना चाहिये-ऐसा गुरू नानक जी का मत है।




*गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ*


 *दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ।*




उसके गुणों का गीत गाने सुनने एवं मन


 में भाव रखने से समस्त दुखों का नाश एवं अनन्य सुखों का भण्डार प्राप्त होता है।


*आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से   देव दीपावली व प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई ||*


*राम राम जी*


*Verma's Scientific Astrology & Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379  www.astropawankv.com*

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Friday 24 November 2023

पूजा पाठ जप और आसन का महत्व

 || *आसन का महत्व* ||

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*किस पूजा के लिए कैसा होना चाहिए आसन?*

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कंबल या ऊनी आसन पर बैठकर पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। लाल रंग के कंबल का आसन, लक्ष्मी जी, हनुमानजी और मां दुर्गा की आराधना के लिए उत्तम रहता है। तो वहीं मंत्र सिद्धि आदि के लिए कुशा का बना आसन सही रहता है लेकिन श्राद्ध कर्म आदि करते समय कुशा के आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।


जानिए आसन से जुड़े ये नियम

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1- पूजा करते समय कभी भी दूसरे व्यक्ति का 

            आसन प्रयोग नहीं करना चाहिए।


2- पूजा करने के बाद आसन को ऐसे ही न छोड़ें,और  

    उचित जगह रखे। इससे आसन का निरादर होता है।


3- आसन को साफ हाथों से ही उठाएं और सही जगह

         तय करने के बाद उचित स्थान पर ही रखें।


4-  पूजा के आसन का प्रयोग अलग से किसी कार्य 

        जैसे भोजन करना आदि को करते समय न करें।


5- पूजा करने के पश्चात भी आसन से सीधे न हटें बल्कि आचमन से थोड़ा सा जल भूमि पर अर्पित करें और धरती पर प्रणाम करें।


6- अब अपने आराध्य देव या देवी का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करने के बाद आसन को उठाकर सही प्रकार से रखें।


           || जय महाकाल ||

                ✍☘💕

||  जाप करने के नियम ||

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      मान्यताओं के आधार पर 

              


बांस की चटाई पर बैठकर जाप करने

       से दरिद्र हो जाता है।


पाषाण पर बैठकर जाप करने से 

  व्याधि पीडित हो जाता है।


भूमि पर जाप करने से दु.ख प्राप्त होता है,


 पट्टे पर बैठकर जाप करने से 

     दुर्भाग्य प्राप्त होता है।


घास की चटाई पर बैठकर जाप करने 

      से अपयश प्राप्त होता है।


पत्तों के आसन पर बैठकर जाप 

     करने से भ्रम हो जाता है।


कथरी पर बैठकर जाप करने 

    से मन चंचल होता है।


चमड़े पर बैठकर जाप करने 

   से ज्ञान नष्ट हो जाता है।


कपड़े पर बैठकर जाप करने 

    से मान भंग हो जाता है।


नीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

   करने से बहुत दुःख हो जाता है।


हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

  करने से मान भंग हो जाता है।


 श्वेत वस्त्र पहन कर जाप करने 

   से यश की वृद्धि होती है।


पीले रंग के वस्त्र पहन कर

       जाप करने से हर्ष बढता है।


ध्यान में लाल रंग के वस्त्र श्रेष्ठ हैं। 

        सर्व धर्म कार्य में 


सिद्ध करने के लिए दर्भासन 

     (कुश का शासन) उत्तम है।


गृहे जपफलं प्रोक्त वने शत गुणं भवेत् । 

  पुध्यारामे तथारण्ये समुचितं मतम्।


पर्वते दश सहस्रं च नद्यां लक्ष मुदाहृतम् ।

 कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिन सन्निधौ ॥


अर्थात घर मे जो जाप का फल होता है उससे सौ गुना फल वन मे जाप करने से होता है। पुण्य क्षेत्र तथा जगल मे जाप करने से हजार गुणा फल होता है। पर्वत पर जाप करने से दस हजार गुणा, नदी के किनारे जाप करने से एक लाख गुणा, देवालय (मन्दिर) मे जाप करने से करोड़ गुणा और भगवान के समीप जाप करने से अनन्त गुणा फल मिलता है।

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*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379  www.astropawankv.com*



Monday 13 November 2023

विश्वकर्मा दिवस

 

विश्वकर्मा दिवस 

 आप सभी जन को  Team Astropawankv की तरफ़ से विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं........







Sunday 12 November 2023

दीपाबली...दीपोत्सव पर्व

 




*दीपोत्सव पर्व दीपावली*

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हिंदू धर्म के प्राचीन त्योहारों में से एक है।हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली को लेकर कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी है। माना जाता है कि यह पर्व भगवान श्रीराम के लंकापति रावण पर विजय हासिल करने और 14 साल का वनवास पूरा कर घर लौटने की खुशी में मनाया जाता है। माना जाता है कि जब भगवान राम देवी सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। इसीलिए हर साल इस दिन घरों में दीये जलाए जाते हैं।


दीपावली का महत्व

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दीपावली सबसे बड़ा उत्सव आश्विन या कार्तिक के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन होता है। दीपावली को रोशनी का त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है और शाम को दीपों की रोशनी से पूरा भारत जगमगाता है।दिवाली क्या है और इसे प्रकाश पर्व क्यों कहते हैं? दिवाली (दीपावली) प्रकाश पर्व या प्रकाश का त्योहार है। हमारे देखने के साधन यानि हमारी आँखों की बनावट के कारण ही इंसान के जीवन में प्रकाश का इतना महत्व है। बाकी प्राणियों के लिये प्रकाश का मतलब उनका टिके रहना ही है, पर मनुष्य के लिये प्रकाश सिर्फ देखने या न देखने की बात नहीं है। प्रकाश का आना हमारे जीवन में एक नयी शुरुआत का सूचक होता है ,और, उससे भी ज्यादा ये हमें स्पष्टता देता है। ज्यादातर प्राणी अपनी प्रकृति, अपने स्वभाव के हिसाब से जीते हैं जिसकी वजह से, क्या करना है और क्या नहीं करना, इसके बारे में उन्हें ज्यादा उलझन नहीं होती।


      || दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ||



                  *ज्योति एवं प्रकाश का पर्व*

           

अग्नि के आविष्कार के पश्चात् संपूर्ण मानव जाति ने अंधकार से प्रकाश तक पहुंचने के 👉वाहक के रूप में दीपक को स्वीकार किया है। यही कारण है कि हम हिंदुओं का कोई भी धार्मिक - अनुष्ठान दीपक जलाए बिना पूरा नहीं होता है।


दीपावली आलोक का पर्व है ,जो वैदिक ऋषियों

      की इस कामना की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है -


 (जीवा ज्योति ऋषिर्मय (ऋग्वेद)

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अर्थात् हम प्रतिदिन जीवन जीते हुए ज्योति की उपलब्धि कर उससे उल्लसित होते रहें मानव की अपूर्णता से पूर्णता की ओर उर्ध्वमुखी यात्रा ही तमसो मा ज्योतिर्गमय की मंत्र - प्रार्थना सृजित करती है।


अथर्ववेद में उल्लेख है -

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आरोह तमसो ज्योति अर्थात् अंधकार से

   निकलकर प्रकाश (ज्ञान) की ओर बढ़े।


महर्षि वेदव्यास जी ने पांडवों की वन-यात्रा के समय युधिष्ठिर को आत्मिक दीपक को प्रज्वलित करने का दिव्य - संदेश दिया था।


सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमा शिखा।

  अंधकार  प्रवेष्ट्यो  दीपो  यत्नेन  वार्यताम्।।


अर्थात् - युधिष्ठिर ! जब भी तुम्हारे जीवन में दु:खों , कष्टों का अंधकार आए , तो तुम यत्न से दीपक जलाना 👉ऐसा दीपक , जिसका आधार सत्य हो , जिसमें तेल तप यानी साधना का हो , जिसकी बाती दया की हो और शिखा से विकसित लौ क्षमा की हो।


भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं -

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तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम:।

 नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।


अर्थ - उनके (भक्तों के) ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अंधकार को प्रकाश मय तत्वज्ञान रूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूं।


रामचरितमानस में -

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राम नाम  मनिदीप धरु  जीह  देहरीं  द्वार।

 तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजिआर ।।


11 या 21 दीपों को प्रज्वलित कर दीपावली

   की स्तुति निम्नलिखित मंत्र से की जाती है -


त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:।

   सर्वेषां ज्योतिषां  ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।।


दीपावली पर्व पर अभिलाषा -

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मिटे अंधेरा अंतर्मन का,

   साथी ऐसी ज्योति जलाओ।


जल जाए सब कलुष धरा का,

   दीपराग ऐसा कुछ गाओ।।


प्रेम,दया और मानवता का,

    सारे जग को पाठ पढ़ाओ।


आलोकित हो जाए जनमन,

   ऐसा जगमग दीप जलाओ।।


ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई 

      और शुभकामनाएं 

                 

*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379*




Saturday 11 November 2023

छोटी दिवाली, नर्क चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी

 


*छोटी दीपावली*


*आज नरक चतुर्दशी एवं रूप चतुर्दशी है*

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दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली,रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।


इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।


दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के समय उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।


क्या है इसकी कथा-

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इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।


इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।


यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।


तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।


क्या है इसका महत्व-

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इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी ( अपामार्ग) के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।


कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं ।


  || रुप चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं ||

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Friday 10 November 2023

धन त्रयोदशी की हार्दिक शुभकामनाएं

 आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से धन त्रयोदशी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.... 







Thursday 9 November 2023

धनतेरस धन त्रयोदशी पूजा अर्चना मुहुर्त

 *धनतेरस और शुभ मुहूर्त*

त्रयोदशी तिथि  

10 नवम्बर 2023 दोपहर  12 :36 से  लेकर 11 नवम्बर  2023 दोपहर 13:58 तक है*

*आइए जानें धनतेरस पर क्यों खरीदा जाता है सोना और जानें शुभ मुहूर्त*


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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय कृष्ण त्रयोदशी के दिन अपने हाथों में कलश लेकर भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे  धनतेरस के खास मौके पर भगवान धन्वंतरि के साथ, भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है। आपको मैं बता दूँ कि यह पर्व दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन, सोने-चांदी, पीतल की वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। भगवान धनवंतरी को आरोग्य के देवता माना जाता है.!


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*इन चीजों की खरीदारी को माना जाता है शुभ:-* ऐसा माना जाता है कि धनतेरस पर जो भी वस्तु लोग खरीदते हैं, उसका महत्व 13 गुना तक बढ़ जाता है। माना जाता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी, पीतल खरीदने से घर में लक्ष्मी प्रवेश करती हैं। साथ ही, इस दिन लोग चांदी या अन्य धातुओं के बर्तन, प्लेट, झाड़ू या अन्य सामग्री की खरीदारी भी करते हैं।


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*धनतेरस पर झाडू खरीदना भी शुभ:-* अगर इस दिन आप अपनी व्यस्ताओं के चलते सोना-चांदी , पीतल, तांबा न खरीद पाएं हों तो चिंता न करें। इस दिन कम से कम झाडू अवश्य खरीद लें। मुख्य द्वार और पूरे घर की साफ-सफाई के लिए झाडू बहुत जरूरी है। माना जाता है कि इस दिन नया झाडू खरीदने से श्रीहरि विष्णु, देवी लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी, कुबेर की सदा कृपा होती है।


*धनतेरस पूजन*


*धन त्रयोदशी*

*त्रयोदशी तिथि  10 नवम्बर 2023 दोपहर  12 :36 से  लेकर 11 नवम्बर  2023 दोपहर 13:58 तक है*

 


धनतेरस को झाड़ू क्यों खरीदते हैं ....



*धनतेरस की पूजा कैसे करें ....*


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👉 *जानिए धनतेरस की पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त :-*




👉 दिवाली से पहले धनतेरस पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन धन और आरोग्य के देवता *भगवान धन्वंतरि* की पूजा के साथ मां लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि *भगवान धन्वंतरि* का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। फिर इनके दो दिन बाद मां लक्ष्मी प्रकट हुईं। 




👉 धनतेरस के दिन सोने-चांदी, पीतल के बर्तनों की खरीददारी की जाती है...कई जगह  *झाड़ू की भी खरीदारी* करने की परंपरा है। 



👉 मत्स्य पुराण के अनुसार झाड़ू को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। घर में झाड़ू के पैर लग जाए तो इसे भी अशुभ माानते हैं। 




👉 इसलिए घर में झाड़ू से घर साफ करने के बाद ऐसी जगह रखा जाता है जहां पैर नहीं लगे। क्योंकि झाड़ू का मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।




👉 मान्यताओं के मुताबिक झाड़ू को सुख-शांति बढ़ाने और दुष्ट शक्तियों का सर्वनाश करने वाला भी बताया गया है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि झाड़ू घर से दरिद्रता हटाती है और इससे दरिद्रता का नाश होता है।




👉 धनतेरस पर घर में नई झाड़ू से झाड़ लगाने से कर्ज से भी मुक्ति मिलती है, ऐसा भी माना जाता है। इसलिए इस दिन झाड़ू खरीदने की पुरानी परंपरा  है। 




👉 शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने से लक्ष्मी माता रुठकर घर से बाहर नहीं जाती हैं और वह घर में स्थिर रहती है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि धनतेरस पर विधि विधान पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। 




👉 *जानिए धनतेरस की पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त :-*




*धनतेरस पूजन की सामग्री :-* 




👉 21 पूरे कमल बीज, , 5 सुपारी, लक्ष्मी–गणेश के सिक्के ये 12 ग्राम या अधिक भी हो सकते हैं, पत्र, अगरबत्ती, चूड़ी, तुलसी, पान, सिक्के, काजल, चंदन, लौंग, नारियल, दहीशरीफा, धूप, फूल, चावल, रोली, गंगा जल, माला, हल्दी, शहद, कपूर रोली, मौली आदि।




 *धनतेरस पूजा विधि :-* 



👉 धनतेरस के दिन शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं। कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं। 






👉पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें। फिर “धन्वन्तरि स्तोत्र” का पाठ करें। धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिट्टी का दीपक जलाएं। उन्हें फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।




👉 धनतेरस पर *यम के नाम दीप* जलाने की विधि : दीपक जलाने से पहले पूजा करें। किसी लकड़ी के बेंच या जमीन पर तख्त रखकर रोली से स्वास्तिक का निशान बनायें। 




👉 फिर मिट्टी या आटे के चौमुखी दीपक को उस पर रख दें। दीप पर तिलक लगाएं। चावल और फूल चढ़ाएं। चीनी डालें। इसके बाद 1 रुपये का सिक्का डालें और परिवार के सदस्यों को तिलक लगाएं।




👉 दीप को प्रणाम कर उसे घर के मुख्य द्वार पर रख दें। ये ध्यान दें कि *दीपक की लौ दक्षिण दिशा* की तरफ हो। 




👉 क्योंकि ये यमराज की दिशा मानी जाती है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल जाती है।




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👉 *पूजा का शुभ मुहूर्त :-*


धनतेरस पर धनवंतरि और कुबेर की पूजा का भी विधान है !!




👉  धन त्रयोदशी 10 नवंबर  शुक्रवार को पूर्णतया प्रदोष व्यापनी है



👉 *धनतेरस पर पूजन के लिए शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा*




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