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Friday 24 November 2023

पूजा पाठ जप और आसन का महत्व

 || *आसन का महत्व* ||

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*किस पूजा के लिए कैसा होना चाहिए आसन?*

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कंबल या ऊनी आसन पर बैठकर पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। लाल रंग के कंबल का आसन, लक्ष्मी जी, हनुमानजी और मां दुर्गा की आराधना के लिए उत्तम रहता है। तो वहीं मंत्र सिद्धि आदि के लिए कुशा का बना आसन सही रहता है लेकिन श्राद्ध कर्म आदि करते समय कुशा के आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।


जानिए आसन से जुड़े ये नियम

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1- पूजा करते समय कभी भी दूसरे व्यक्ति का 

            आसन प्रयोग नहीं करना चाहिए।


2- पूजा करने के बाद आसन को ऐसे ही न छोड़ें,और  

    उचित जगह रखे। इससे आसन का निरादर होता है।


3- आसन को साफ हाथों से ही उठाएं और सही जगह

         तय करने के बाद उचित स्थान पर ही रखें।


4-  पूजा के आसन का प्रयोग अलग से किसी कार्य 

        जैसे भोजन करना आदि को करते समय न करें।


5- पूजा करने के पश्चात भी आसन से सीधे न हटें बल्कि आचमन से थोड़ा सा जल भूमि पर अर्पित करें और धरती पर प्रणाम करें।


6- अब अपने आराध्य देव या देवी का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करने के बाद आसन को उठाकर सही प्रकार से रखें।


           || जय महाकाल ||

                ✍☘💕

||  जाप करने के नियम ||

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      मान्यताओं के आधार पर 

              


बांस की चटाई पर बैठकर जाप करने

       से दरिद्र हो जाता है।


पाषाण पर बैठकर जाप करने से 

  व्याधि पीडित हो जाता है।


भूमि पर जाप करने से दु.ख प्राप्त होता है,


 पट्टे पर बैठकर जाप करने से 

     दुर्भाग्य प्राप्त होता है।


घास की चटाई पर बैठकर जाप करने 

      से अपयश प्राप्त होता है।


पत्तों के आसन पर बैठकर जाप 

     करने से भ्रम हो जाता है।


कथरी पर बैठकर जाप करने 

    से मन चंचल होता है।


चमड़े पर बैठकर जाप करने 

   से ज्ञान नष्ट हो जाता है।


कपड़े पर बैठकर जाप करने 

    से मान भंग हो जाता है।


नीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

   करने से बहुत दुःख हो जाता है।


हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

  करने से मान भंग हो जाता है।


 श्वेत वस्त्र पहन कर जाप करने 

   से यश की वृद्धि होती है।


पीले रंग के वस्त्र पहन कर

       जाप करने से हर्ष बढता है।


ध्यान में लाल रंग के वस्त्र श्रेष्ठ हैं। 

        सर्व धर्म कार्य में 


सिद्ध करने के लिए दर्भासन 

     (कुश का शासन) उत्तम है।


गृहे जपफलं प्रोक्त वने शत गुणं भवेत् । 

  पुध्यारामे तथारण्ये समुचितं मतम्।


पर्वते दश सहस्रं च नद्यां लक्ष मुदाहृतम् ।

 कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिन सन्निधौ ॥


अर्थात घर मे जो जाप का फल होता है उससे सौ गुना फल वन मे जाप करने से होता है। पुण्य क्षेत्र तथा जगल मे जाप करने से हजार गुणा फल होता है। पर्वत पर जाप करने से दस हजार गुणा, नदी के किनारे जाप करने से एक लाख गुणा, देवालय (मन्दिर) मे जाप करने से करोड़ गुणा और भगवान के समीप जाप करने से अनन्त गुणा फल मिलता है।

@astropawankv


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