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Saturday 23 December 2023

गीता जयंती....

 || आज गीता जयंती है ||

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मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर गीताजयंती मनाई जाती है। इस साल 23 दिसंबर को गीता जयंती है। गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। गीता में भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का वर्णन है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का पाठ तब पढ़ाया था, जब अर्जुन के कदम कुरुक्षेत्र युद्ध की युद्ध भूमि में डगमगाने लगे थे। श्री कृष्ण के उपदेशों को सुनकर अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की ओर अग्रसर हुए। कहा जाता है कि गीता में जीवन की हर एक परेशानी का हल मिल जाता है। गीता में कही गई श्री कृष्ण की बातें आज भी जीवन में आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं। ऐसे में यदि आप भी सफल होना चाहते हैं तो गीता जयंती के अवसर पर गीता के कुछ उपदेश जरूर पढ़ें।


क्रोध पर नियंत्रण 

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भगवान श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहते हैं कि क्रोध से सभी तरह के कार्य बिगड़ने लगते हैं। क्रोध करने से इंसान का पतन आरंभ हो जाता है। साथ ही व्यक्ति अच्छे और बुरे परिणाम में फर्क करना भूल जाता है और वह पतन के राह पर चल देता है। इसलिए क्रोध करने से बचना चाहिए। 


व्यर्थ की चिंता से बचें-

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श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कभी भी व्यक्ति को व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए। हर किसी को एक न एक दिन मरना है, आत्मा न तो पैदा होती है और न ही ये मरती है। आत्मा अमर है, इसलिए व्यर्थ की चिंता को छोड़कर कर्म के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए।


मन पर रखें काबू-

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प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। गीता के उपदेश में श्री कृष्ण ने बताया है कि जो व्यक्ति अपने मन पर काबू करना सीख लेता है, वह हर तरह की बाधा को आसानी से पार कर सकता है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए।


फल की इच्छा छोड़ कर्म पर ध्यान देना 

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श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है, इसलिए अच्छे कर्म करते रहें। 


शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था इसीलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाने लगा। हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है। गीता के श्लोकों में नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करने की अद्भुत शक्ति है। यह श्लोक जितने आज से 5160 पूर्व सार्थक थे, उतने आज भी हैं। यह श्लोक व्यक्ति को सपनों और निराशा की दुनिया से निकालकर जीवन की वास्तविकता से परिचित करवाते हैं।


मानस मे गीता 

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श्री रामचरितमानस मे 6 गीताए पायी जाती है ।

        उनके संक्षिप्त विवरण है -

1-अयोध्याकांड मे जिस प्रसंग मे निशाद राज को लक्षमण जी ने भगवान् श्री राम को ब्रह्म होने के प्रसंग मे समझाया है,वह लक्ष्मण गीता के नाम से जानी जाती है 


2-अरण्यण कांड मे जहाँ श्री शेष अवतारी लखन लालजी को श्री राम ने उपदेश दिया है , वो श्री राम गीता कहलाती है | 


3- लंका कांड मे जहॉ प्रभु श्री राम द्वारा युद्ध स्थल मे विभिषण जी के मोह को दूर किया गया है वो श्रीमद्भागवद्गीता है | 


4- उत्तर कांड मे जहाँ पूरवासियो को बूलाकर

       परमार्थ उपदेश दिया है ,वह पुरजन गीता है | 


5-6 उत्तर कांड मे ही पॉचवी और छठी गीता है जो "ज्ञान- भक्ति-निरुपण,ज्ञान-दीपक और भक्ति की महान्‌ महिमा" प्रसंग मे है और ज्ञान गीता और भक्ति गीता के नाम से जानी जाती है ।


     || गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ||



                 

Thursday 21 December 2023

मूर्ति में भगवान......?

 || मूर्ति में क्यों बसते हैं भगवान...?||

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क्यों भगवान मूर्ति में उपस्थित हो जाते हैं और पत्थर की मूर्ति भगवान बन जाती है ? भगवान के अर्चावतार से सम्बधित एक भक्ति कथा ।


किसी नए काम को शुरू करने से पहले या किसी स्थान पर जाने से पहले यह कहा जाता है कि मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि मंदिर के वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा आपके मस्तिष्क को स्वच्छ और सजीव कर, आपको सही दिशा में सोचने के लिए विवश करे।भक्तों की उपासना के लिए मूर्ति में बसते हैं भगवान:- अन्तर्यामी रूप से भगवान सबके हृदय में हर समय विद्यमान रहते हैं, सिद्ध,योगी आदि समाधि में भगवान के अन्तर्यामी रूप का दर्शन कर सकते हैं परन्तु सभी लोग इस रूप में भगवान के दर्शन का आनन्द नहीं ले पाते हैं। 


भक्त अपने इष्ट का दर्शन कैसे करें? इसलिए भक्तों को दर्शन देने के लिए भगवान ने अर्चावतार धारण किया जो भगवान का सभी के लिए सबसे सुलभ रूप है।अर्चा का अर्थ है पूजा उपासना; इसके लिए होने वाले अवतार का नाम है अर्चावतार, मूर्तियों का ही दूसरा नाम अर्चावतार है।घर में,मन्दिरों में,तीर्थस्थानों पर,गोवर्धन आदि पर्वतों पर प्रतिष्ठित भगवान की मूर्तियां अर्चावतार कहलाती हैं।


श्रीएकनाथजी ने कहा है:-

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मी तेचि माझी प्रतिमा, तेथें नाहीं आन धर्मा'

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अर्थात् "मैं जो हूँ, वही मेरी प्रतिमा है,प्रतिमा 

      में कोई अन्य धर्म नहीं है।"


चार प्रकार के अर्चावतार:-

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(1) भगवान की कुछ मूर्तियां स्वयं प्रकट होती हैं,ये ‘स्वयं व्यक्त,स्वयंभू’ या ‘स्वत:सम्भूत’ कहलाती हैं।स्वत: सम्भूत मूर्तियां यों ही नहीं मिल जाती; ये उपासकों के लिए ही प्रादुर्भूत होती हैं, अत: इनकी उपासना शीघ्र ही सिद्ध हो जाती है, जहां ये प्रकट होती हैं, वे स्थान तीर्थ स्थल हो जाते हैं।


(2) कुछ मूर्तियां देवताओं द्वारा प्रतिष्ठित 

         की गयी होती हैं, वे ‘दैव’ मूर्तियां कहलाती हैं।


(3) कुछ मूर्तियां सिद्धों द्वारा स्थापित की गयी

         होती हैं, वे ‘सैद्ध’ मूर्तियां कहलाती हैं।


(4) अधिकांशत: मूर्तियां भक्तों, मनुष्यों द्वारा

        स्थापित होती हैं, वे ‘मानुष’ कहलाती हैं।


मूर्ति कैसे भगवान हो जाती है या भगवान कैसे प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं?:-ब्रह्म भले ही निर्गुण हो पर उपासना के लिए वह सगुण हो जाता है और वह आकार विशेष ग्रहण करता है।जैसे भगवान विष्णु सर्वव्यापक हैं फिर भी उनकी उपलब्धि (संनिधि) शालग्रामजी में होती है। यदि शालिग्रामजी पर एकटक दृष्टि रखकर प्राण की गति के साथ ॐ का जप और भगवान का ध्यान किया जाए तो उपासक इसी में भगवान की झांकी पा सकते हैं।


हयशीर्षसंहिता में कहा गया है:- 

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उपासक के तप से,अत्यधिक पूजन से और इष्ट से प्रतिमा की एकरूपता से मूर्ति में भगवान उपस्थित हो जाते हैं।भगवान रामानुज ने कहा है कि ‘भक्तिरूप आराधना भगवान को प्रत्यक्ष कर देती है।’व्रज में अनेक स्थल हैं जहां उपासकों ने अपनी उपासना के बल से भगवान को स्वयं प्रकट किया है।परम उपासक श्रीकल्याण देवजी ने अपनी उपासना के बल से श्रीबलदाऊजी को, स्वामी हरिदासजी ने श्रीबांकेबिहारीजी को और श्रीगोपालभट्टजी ने श्रीराधारमणजी को प्रकट किया,और न जाने ऐसे कितने उदाहरण हैं।


जब भक्त अपनी भक्ति की शक्ति से भगवान को प्रकट करना चाहते हैं, भगवान की मूर्ति उसी समय भगवान हो जाती है। उसमें ज्ञान, शक्ति, बल, ऐश्वर्य, वीर्य और तेज आदि भगवत्ता के छहों गुण विद्यमान हो जाते हैं, भक्त उसे मूर्ति नहीं देखता बल्कि उसे अपना भगवान मानता है। मीराबाई के लिए द्वारकाधीश की निरी जड़ मूर्ति नहीं थी, स्वयं चिन्मय भगवान थे, मीरा की इच्छामात्र से उन्होंने उसे अपने में लीन कर लिया।


क्या मस्ती है यह हस्ती मिटाने में।

 मीरा देखती है गिरधर जहर के प्याले में॥


करमाबाई गोपाल में वात्सल्यभाव रखती थीं और गोपाल ने उन्हें यशोदा माता की तरह मातृभाव से देखा।करमाबाई की कुटिया में मैया की खिचड़ी का स्वाद उस सर्वेश्वर जगन्नाथ को ऐसा लगा कि वह अपनी आप्त कामता को भूलकर रो-रोकर उसको खिचड़ी के लिए पुकारता।


सांचो प्रेम प्रभु में हो तो, मुरती बोलै काठ की।

 जीमो म्हारा श्याम धणी, जिमावे बेटी जाट की॥


एक दिन करमाबाई परमात्मा के आनन्दमय धाम में चली गयीं, उस दिन भगवान बहुत रोए, श्रीजगन्नाथजी के श्री विग्रह के नयनों से अविरल अश्रुप्रवाह होने लगा। रात्रि में राजा के स्वप्न में प्रभु बोले:-आज माँ इस लोक से विदा हो गई, अब मुझे कौन खिचड़ी खिलाएगा?’सच्चे भाव से मूर्तिपूजन करने से भगवान प्रकट हो जाते हैं, इसका प्रमाण इस कथा में मिलता है:-


एक महात्माजी को अपने एक ब्राह्मण शिष्य के घर कई दिनों तक रहना पड़ा, महात्माजी के पास कुछ शालग्राम जी की मूर्तियां थीं। ब्राह्मण की छोटी-सी बच्ची नित्य महात्माजी के पास बैठकर उनको पूजा करते हुए देखती थी। एक दिन उस बच्ची ने महात्माजी से पूछा:- आप किसकी पूजा करते हैं?’ महात्माजी ने बच्ची को  छोटा समझकर कह दिया कि:- ‘हम सिलपिले भगवान की पूजा करते हैं।’बच्ची ने पूछा:- ‘सिलपिले भगवान की पूजा करने से क्या होता है?महात्माजी ने कहा:-सिलपिले भगवान की पूजा करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है।बच्ची ने कहा:- ‘मुझे भी एक सिलपिले भगवानदे दीजिए, मैं भी आपकी तरह पूजा किया करुंगी।’भगवान के प्रति बच्ची का अनुराग देखकर महात्माजी ने एक शालिग्राम देकर उसे पूजा करने का तरीका बता दिया।वह कन्या सच्ची लगन से नित्य अपने ‘सिलपिले भगवान’ का पूजन करने लगी।


अपने इष्टदेव के अनुराग में वह ऐसी रंग गयी कि बिना भोग लगाये वह कुछ खाती-पीती नहीं थी। और अपने इष्ट का क्षणभर का वियोग भी उसे असह्य था।बड़ी होने पर विवाह के समय ससुराल जाते वक्त वह अपने सिलपिले भगवान’ को भी साथ लेती गयी।दुर्भाग्यवश उसे पति ऐसा मिला जिसे भगवान में विश्वास नहीं था, एक दिन पत्नी को पूजा करते देखकर उसके पति ने मूर्ति को उठा लिया और बोला:-‘इसे मैं नदी में डाल दूंगा।’ कन्या के बहुत अनुनय-विनय करने पर भी पति ने मूर्ति को नदी में फेंक दिया।उसी समय से कन्या अपने ‘सिलपिले भगवान’ के विरह में दीवानी हो गयी और हर समय यही रट लगाये रहती:-‘मेरे सिलपिले भगवन, मुझ दासी को छोड़कर कहां चले गए, शीघ्र दर्शन दो; आपका वियोग असह्य है।एक दिन वह भगवान के विरह में पागल होकर उसी नदी के किनारे पहुंच गयी और ऊंचे स्वर में अपने प्रभु को पुकार कर कहने लगी:- ‘शीघ्र आकर दर्शन दो, नहीं तो दासी का प्राणान्त होने जा रहा है।’ इस करुण पुकार के साथ ही एक अद्भुत स्वर गूंजा:- ‘मैं आ रहा हूं ’ उसी समय उस कन्या के समक्ष वही शालिग्रामजी की मूर्ति प्रकट हो गयी।जैसे ही वह शालिग्रामजी को हृदय से लगाने लगी, उस मूर्ति के अंदर से चतुर्भुजरूप में भगवान प्रकट हो गए, भगवान के दिव्य तेज से अन्य सभी लोगों की आंखें बंद हो गयीं। 


तभी एक दिव्य गरुणध्वज विमान आया और भगवान अपनी उस सच्ची भक्ता को विमान में बिठलाकर वैकुण्ठ लोक को चले गए और भगवान से विमुख उसका पति आंखें फाड़ कर देखता रह गया।


मूर्तिपूजा की महिमा:-

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अग्निपुराण में कहा गया है:- ‘यमराज का यमदूतों को निर्देश है कि वे मूर्ति की पूजा करने वालों को नरक नहीं लायें।श्रीएकनाथजी का कहना है:- कलियुग में मूर्ति (प्रतिमा) पूजा से बढ़कर भक्ति का और कोई साधन नहीं है..!!

    

            || जय श्री कृष्ण ||

                


Monday 27 November 2023

कार्तिक पूर्णिमा ब प्रकाश पर्व

 राम राम जी*


*कार्तिक पूर्णिमा ब प्रकाश पर्व गुरु पर्व*


*देवों की दीपावली है कार्तिक पूर्णिमा,*


देव दीपावली व प्रकाश पर्व


पौराणिक कथा के अनुसार, देवता अपनी दीपावली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा में स्नान और दान को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीप दान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि इस दिन दीप दान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं...




इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3:54 बजे से शुरू होकर 27 नवंबर को दोपहर 2:46 बजे समाप्त हो रही है।


कार्तिक पूर्णिमा का महत्व:


पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरारी का अवतार लिया था और इस दिन को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाने वाले असुर भाइयों की एक तिकड़ी को मार दिया था। यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। इस प्रकार अत्याचार को समाप्त कर भगवान शिव ने शांति बहाल की थी। इसलिए, देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में, काशी (वाराणसी) के पवित्र शहर में भक्त गंगा के घाटों पर तेल ओर घी के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं।


* श्री गुरू नानक देव जी के जन्मदिन को देशभर में प्रकाश पर्व के तौर पर भी मनाया जाता है। इस दिन दिए जलाकर रोशनी की जाती है। गुरुद्वारा साहिब में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।*




*जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।*


  *नानक गावीऐ गुणी निधानु।*




जिसने प्रभु की सेवा की उसे  सर्वोत्तम 


 प्रतिष्ठा मिली।इसीलिये उसके गुणों का गायन करना चाहिये-ऐसा गुरू नानक जी का मत है।




*गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ*


 *दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ।*




उसके गुणों का गीत गाने सुनने एवं मन


 में भाव रखने से समस्त दुखों का नाश एवं अनन्य सुखों का भण्डार प्राप्त होता है।


*आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से   देव दीपावली व प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई ||*


*राम राम जी*


*Verma's Scientific Astrology & Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379  www.astropawankv.com*

*www astropawankv.blogspot.com*




Friday 24 November 2023

पूजा पाठ जप और आसन का महत्व

 || *आसन का महत्व* ||

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*किस पूजा के लिए कैसा होना चाहिए आसन?*

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कंबल या ऊनी आसन पर बैठकर पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। लाल रंग के कंबल का आसन, लक्ष्मी जी, हनुमानजी और मां दुर्गा की आराधना के लिए उत्तम रहता है। तो वहीं मंत्र सिद्धि आदि के लिए कुशा का बना आसन सही रहता है लेकिन श्राद्ध कर्म आदि करते समय कुशा के आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।


जानिए आसन से जुड़े ये नियम

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1- पूजा करते समय कभी भी दूसरे व्यक्ति का 

            आसन प्रयोग नहीं करना चाहिए।


2- पूजा करने के बाद आसन को ऐसे ही न छोड़ें,और  

    उचित जगह रखे। इससे आसन का निरादर होता है।


3- आसन को साफ हाथों से ही उठाएं और सही जगह

         तय करने के बाद उचित स्थान पर ही रखें।


4-  पूजा के आसन का प्रयोग अलग से किसी कार्य 

        जैसे भोजन करना आदि को करते समय न करें।


5- पूजा करने के पश्चात भी आसन से सीधे न हटें बल्कि आचमन से थोड़ा सा जल भूमि पर अर्पित करें और धरती पर प्रणाम करें।


6- अब अपने आराध्य देव या देवी का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करने के बाद आसन को उठाकर सही प्रकार से रखें।


           || जय महाकाल ||

                ✍☘💕

||  जाप करने के नियम ||

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      मान्यताओं के आधार पर 

              


बांस की चटाई पर बैठकर जाप करने

       से दरिद्र हो जाता है।


पाषाण पर बैठकर जाप करने से 

  व्याधि पीडित हो जाता है।


भूमि पर जाप करने से दु.ख प्राप्त होता है,


 पट्टे पर बैठकर जाप करने से 

     दुर्भाग्य प्राप्त होता है।


घास की चटाई पर बैठकर जाप करने 

      से अपयश प्राप्त होता है।


पत्तों के आसन पर बैठकर जाप 

     करने से भ्रम हो जाता है।


कथरी पर बैठकर जाप करने 

    से मन चंचल होता है।


चमड़े पर बैठकर जाप करने 

   से ज्ञान नष्ट हो जाता है।


कपड़े पर बैठकर जाप करने 

    से मान भंग हो जाता है।


नीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

   करने से बहुत दुःख हो जाता है।


हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप 

  करने से मान भंग हो जाता है।


 श्वेत वस्त्र पहन कर जाप करने 

   से यश की वृद्धि होती है।


पीले रंग के वस्त्र पहन कर

       जाप करने से हर्ष बढता है।


ध्यान में लाल रंग के वस्त्र श्रेष्ठ हैं। 

        सर्व धर्म कार्य में 


सिद्ध करने के लिए दर्भासन 

     (कुश का शासन) उत्तम है।


गृहे जपफलं प्रोक्त वने शत गुणं भवेत् । 

  पुध्यारामे तथारण्ये समुचितं मतम्।


पर्वते दश सहस्रं च नद्यां लक्ष मुदाहृतम् ।

 कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिन सन्निधौ ॥


अर्थात घर मे जो जाप का फल होता है उससे सौ गुना फल वन मे जाप करने से होता है। पुण्य क्षेत्र तथा जगल मे जाप करने से हजार गुणा फल होता है। पर्वत पर जाप करने से दस हजार गुणा, नदी के किनारे जाप करने से एक लाख गुणा, देवालय (मन्दिर) मे जाप करने से करोड़ गुणा और भगवान के समीप जाप करने से अनन्त गुणा फल मिलता है।

@astropawankv


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Monday 13 November 2023

विश्वकर्मा दिवस

 

विश्वकर्मा दिवस 

 आप सभी जन को  Team Astropawankv की तरफ़ से विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं........







Sunday 12 November 2023

दीपाबली...दीपोत्सव पर्व

 




*दीपोत्सव पर्व दीपावली*

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हिंदू धर्म के प्राचीन त्योहारों में से एक है।हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली को लेकर कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी है। माना जाता है कि यह पर्व भगवान श्रीराम के लंकापति रावण पर विजय हासिल करने और 14 साल का वनवास पूरा कर घर लौटने की खुशी में मनाया जाता है। माना जाता है कि जब भगवान राम देवी सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। इसीलिए हर साल इस दिन घरों में दीये जलाए जाते हैं।


दीपावली का महत्व

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दीपावली सबसे बड़ा उत्सव आश्विन या कार्तिक के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन होता है। दीपावली को रोशनी का त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है और शाम को दीपों की रोशनी से पूरा भारत जगमगाता है।दिवाली क्या है और इसे प्रकाश पर्व क्यों कहते हैं? दिवाली (दीपावली) प्रकाश पर्व या प्रकाश का त्योहार है। हमारे देखने के साधन यानि हमारी आँखों की बनावट के कारण ही इंसान के जीवन में प्रकाश का इतना महत्व है। बाकी प्राणियों के लिये प्रकाश का मतलब उनका टिके रहना ही है, पर मनुष्य के लिये प्रकाश सिर्फ देखने या न देखने की बात नहीं है। प्रकाश का आना हमारे जीवन में एक नयी शुरुआत का सूचक होता है ,और, उससे भी ज्यादा ये हमें स्पष्टता देता है। ज्यादातर प्राणी अपनी प्रकृति, अपने स्वभाव के हिसाब से जीते हैं जिसकी वजह से, क्या करना है और क्या नहीं करना, इसके बारे में उन्हें ज्यादा उलझन नहीं होती।


      || दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ||



                  *ज्योति एवं प्रकाश का पर्व*

           

अग्नि के आविष्कार के पश्चात् संपूर्ण मानव जाति ने अंधकार से प्रकाश तक पहुंचने के 👉वाहक के रूप में दीपक को स्वीकार किया है। यही कारण है कि हम हिंदुओं का कोई भी धार्मिक - अनुष्ठान दीपक जलाए बिना पूरा नहीं होता है।


दीपावली आलोक का पर्व है ,जो वैदिक ऋषियों

      की इस कामना की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है -


 (जीवा ज्योति ऋषिर्मय (ऋग्वेद)

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अर्थात् हम प्रतिदिन जीवन जीते हुए ज्योति की उपलब्धि कर उससे उल्लसित होते रहें मानव की अपूर्णता से पूर्णता की ओर उर्ध्वमुखी यात्रा ही तमसो मा ज्योतिर्गमय की मंत्र - प्रार्थना सृजित करती है।


अथर्ववेद में उल्लेख है -

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आरोह तमसो ज्योति अर्थात् अंधकार से

   निकलकर प्रकाश (ज्ञान) की ओर बढ़े।


महर्षि वेदव्यास जी ने पांडवों की वन-यात्रा के समय युधिष्ठिर को आत्मिक दीपक को प्रज्वलित करने का दिव्य - संदेश दिया था।


सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमा शिखा।

  अंधकार  प्रवेष्ट्यो  दीपो  यत्नेन  वार्यताम्।।


अर्थात् - युधिष्ठिर ! जब भी तुम्हारे जीवन में दु:खों , कष्टों का अंधकार आए , तो तुम यत्न से दीपक जलाना 👉ऐसा दीपक , जिसका आधार सत्य हो , जिसमें तेल तप यानी साधना का हो , जिसकी बाती दया की हो और शिखा से विकसित लौ क्षमा की हो।


भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं -

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तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम:।

 नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।


अर्थ - उनके (भक्तों के) ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अंधकार को प्रकाश मय तत्वज्ञान रूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूं।


रामचरितमानस में -

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राम नाम  मनिदीप धरु  जीह  देहरीं  द्वार।

 तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजिआर ।।


11 या 21 दीपों को प्रज्वलित कर दीपावली

   की स्तुति निम्नलिखित मंत्र से की जाती है -


त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:।

   सर्वेषां ज्योतिषां  ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।।


दीपावली पर्व पर अभिलाषा -

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मिटे अंधेरा अंतर्मन का,

   साथी ऐसी ज्योति जलाओ।


जल जाए सब कलुष धरा का,

   दीपराग ऐसा कुछ गाओ।।


प्रेम,दया और मानवता का,

    सारे जग को पाठ पढ़ाओ।


आलोकित हो जाए जनमन,

   ऐसा जगमग दीप जलाओ।।


ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई 

      और शुभकामनाएं 

                 

*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379*




Saturday 11 November 2023

छोटी दिवाली, नर्क चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी

 


*छोटी दीपावली*


*आज नरक चतुर्दशी एवं रूप चतुर्दशी है*

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दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली,रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।


इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।


दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के समय उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।


क्या है इसकी कथा-

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इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।


इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।


यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।


तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।


क्या है इसका महत्व-

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इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी ( अपामार्ग) के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।


कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं ।


  || रुप चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं ||

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Friday 10 November 2023

धन त्रयोदशी की हार्दिक शुभकामनाएं

 आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से धन त्रयोदशी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.... 







Thursday 9 November 2023

धनतेरस धन त्रयोदशी पूजा अर्चना मुहुर्त

 *धनतेरस और शुभ मुहूर्त*

त्रयोदशी तिथि  

10 नवम्बर 2023 दोपहर  12 :36 से  लेकर 11 नवम्बर  2023 दोपहर 13:58 तक है*

*आइए जानें धनतेरस पर क्यों खरीदा जाता है सोना और जानें शुभ मुहूर्त*


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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय कृष्ण त्रयोदशी के दिन अपने हाथों में कलश लेकर भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे  धनतेरस के खास मौके पर भगवान धन्वंतरि के साथ, भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है। आपको मैं बता दूँ कि यह पर्व दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन, सोने-चांदी, पीतल की वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। भगवान धनवंतरी को आरोग्य के देवता माना जाता है.!


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*इन चीजों की खरीदारी को माना जाता है शुभ:-* ऐसा माना जाता है कि धनतेरस पर जो भी वस्तु लोग खरीदते हैं, उसका महत्व 13 गुना तक बढ़ जाता है। माना जाता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी, पीतल खरीदने से घर में लक्ष्मी प्रवेश करती हैं। साथ ही, इस दिन लोग चांदी या अन्य धातुओं के बर्तन, प्लेट, झाड़ू या अन्य सामग्री की खरीदारी भी करते हैं।


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*धनतेरस पर झाडू खरीदना भी शुभ:-* अगर इस दिन आप अपनी व्यस्ताओं के चलते सोना-चांदी , पीतल, तांबा न खरीद पाएं हों तो चिंता न करें। इस दिन कम से कम झाडू अवश्य खरीद लें। मुख्य द्वार और पूरे घर की साफ-सफाई के लिए झाडू बहुत जरूरी है। माना जाता है कि इस दिन नया झाडू खरीदने से श्रीहरि विष्णु, देवी लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी, कुबेर की सदा कृपा होती है।


*धनतेरस पूजन*


*धन त्रयोदशी*

*त्रयोदशी तिथि  10 नवम्बर 2023 दोपहर  12 :36 से  लेकर 11 नवम्बर  2023 दोपहर 13:58 तक है*

 


धनतेरस को झाड़ू क्यों खरीदते हैं ....



*धनतेरस की पूजा कैसे करें ....*


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👉 *जानिए धनतेरस की पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त :-*




👉 दिवाली से पहले धनतेरस पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन धन और आरोग्य के देवता *भगवान धन्वंतरि* की पूजा के साथ मां लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि *भगवान धन्वंतरि* का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। फिर इनके दो दिन बाद मां लक्ष्मी प्रकट हुईं। 




👉 धनतेरस के दिन सोने-चांदी, पीतल के बर्तनों की खरीददारी की जाती है...कई जगह  *झाड़ू की भी खरीदारी* करने की परंपरा है। 



👉 मत्स्य पुराण के अनुसार झाड़ू को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। घर में झाड़ू के पैर लग जाए तो इसे भी अशुभ माानते हैं। 




👉 इसलिए घर में झाड़ू से घर साफ करने के बाद ऐसी जगह रखा जाता है जहां पैर नहीं लगे। क्योंकि झाड़ू का मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।




👉 मान्यताओं के मुताबिक झाड़ू को सुख-शांति बढ़ाने और दुष्ट शक्तियों का सर्वनाश करने वाला भी बताया गया है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि झाड़ू घर से दरिद्रता हटाती है और इससे दरिद्रता का नाश होता है।




👉 धनतेरस पर घर में नई झाड़ू से झाड़ लगाने से कर्ज से भी मुक्ति मिलती है, ऐसा भी माना जाता है। इसलिए इस दिन झाड़ू खरीदने की पुरानी परंपरा  है। 




👉 शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने से लक्ष्मी माता रुठकर घर से बाहर नहीं जाती हैं और वह घर में स्थिर रहती है। 




👉 ऐसी मान्यता है कि धनतेरस पर विधि विधान पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। 




👉 *जानिए धनतेरस की पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त :-*




*धनतेरस पूजन की सामग्री :-* 




👉 21 पूरे कमल बीज, , 5 सुपारी, लक्ष्मी–गणेश के सिक्के ये 12 ग्राम या अधिक भी हो सकते हैं, पत्र, अगरबत्ती, चूड़ी, तुलसी, पान, सिक्के, काजल, चंदन, लौंग, नारियल, दहीशरीफा, धूप, फूल, चावल, रोली, गंगा जल, माला, हल्दी, शहद, कपूर रोली, मौली आदि।




 *धनतेरस पूजा विधि :-* 



👉 धनतेरस के दिन शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं। कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं। 






👉पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें। फिर “धन्वन्तरि स्तोत्र” का पाठ करें। धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिट्टी का दीपक जलाएं। उन्हें फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।




👉 धनतेरस पर *यम के नाम दीप* जलाने की विधि : दीपक जलाने से पहले पूजा करें। किसी लकड़ी के बेंच या जमीन पर तख्त रखकर रोली से स्वास्तिक का निशान बनायें। 




👉 फिर मिट्टी या आटे के चौमुखी दीपक को उस पर रख दें। दीप पर तिलक लगाएं। चावल और फूल चढ़ाएं। चीनी डालें। इसके बाद 1 रुपये का सिक्का डालें और परिवार के सदस्यों को तिलक लगाएं।




👉 दीप को प्रणाम कर उसे घर के मुख्य द्वार पर रख दें। ये ध्यान दें कि *दीपक की लौ दक्षिण दिशा* की तरफ हो। 




👉 क्योंकि ये यमराज की दिशा मानी जाती है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल जाती है।




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👉 *पूजा का शुभ मुहूर्त :-*


धनतेरस पर धनवंतरि और कुबेर की पूजा का भी विधान है !!




👉  धन त्रयोदशी 10 नवंबर  शुक्रवार को पूर्णतया प्रदोष व्यापनी है



👉 *धनतेरस पर पूजन के लिए शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा*




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Tuesday 31 October 2023

करवा चौथ व्रत कथा, व्रत विधि सहित

 राम राम जी*

*करवा चौथ 2023*

*करवा चौथ :-   व्रत कथा, व्रत विधि सहित*

करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार करवा चौथ के दिन व्रत रखने से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। इससे आयु में वृद्धि होती है और इस दिन गणेश तथा शिव-पार्वती और चंद्रमा की पूजा की जाती है।




विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।




करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है। करवा चौथ दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। करवा चौथ के चार दिन बाद पुत्रों की दीर्घ आयु और समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत किया जाता है।




*करवा चौथ कब होता है?*


करवा चौथ  का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन चौथ माता की पूजा अर्चना और व्रत वैसे तो पुरे ही भारत में रखा जाता है लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारतीय लोग वृहद स्तर पर करवा चौथ का व्रत रखते हैं और विधिविधान से पूजा करते हैं।




उत्तर भारत में विशेष कर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और पंजाब में भी बहुत ही हर्ष के साथ व्रत रखकर करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। इस पावन अवसर पर दिन में कहानी सुनी जाती है और रात्रि के समय चाँद को देखने के उपरान्त स्त्रियाँ अपने पति के हाथो से पानी पीकर / खाना ग्रहण करके व्रत खोलती हैं। करवा चौथ का यह व्रत पति की लम्बी आयु, स्वास्थ्य और सुखद वैवाहिक जीवन के उद्देश्य से किया जाता है।



करवा चौथ व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन कर सकती हैं।



*करवा चौथ व्रत कथा:*


बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।




जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।




सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।




वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।




अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।




वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।


इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। और अंत में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।




*करवा चौथ व्रत विधि :-*


नैवेद्य : आप शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य के रूप में उपयोग में ले।




करवा : काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे उपयोग किया जा सकता है। 




करवा चौथ पूजन के लिए मंत्र : ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चन्द्रदेव का पूजन करें।




*करवा चौथ की थाली :* करवा चौथ की रात्रि के समय चाँद देखने के लिए आप पहले से ही थाली को सजाकर रख लेवे। थाली में आप निम्न सामग्री को रखें। 




•दीपक 


•करवा चौथ का कलश (ताम्बे का कलश इसके लिए श्रेष्ठ होता है )


•छलनी


•कलश को ढकने के लिए वस्त्र


•मिठाई या ड्राई फ्रूट


•चन्दन और धुप


•मोली और गुड/चूरमा


•व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 


*मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।*




पूरे दिन निर्जला रहें।


दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।




●आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।


पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।


गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।




*जल से भरा हुआ लोटा रखें।*


*वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का  करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें।à उसके ऊपर दक्षिणा रखें।*


*रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।*




*गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।*




*नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं *संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥*’




*करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।*


कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।


तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या करवा अलग रख लें।


रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।


इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।


पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।



*करवा चौथ में सरगी*


पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं।


इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।



*क्या अविवाहित करवा चौथ व्रत रख सकते हैं?* 


करवा चौथ का व्रत शादीशुदा स्त्रियों के द्वारा ही रखा जाता है। इसके लिए आप अपने घर में बड़ी बुजुर्ग स्त्रियों की सलाह जरूर लेवे क्यों कि कुछ परिवारों में अच्छे वर के लिए कुंवारी लड़किया भी यह व्रत रखती हैं। 




*करवा चौथ व्रत में हम क्या खा सकते हैं?*


कुछ परिवारों में अल्पाहार के लिए फल का उपयोग किया जाता है लेकिन इस व्रत को  निर्जला करना अधिक लाभदायी होता है। 




*क्या आप करवा चौथ पर पानी पी सकते हैं?* 


नहीं, क्यों कि यह निर्जला व्रत होता है इसलिए इस दिन ना तो कुछ खाया जाता है और ना ही पानी ग्रहण किया जाता है। 


*नोट* बीमार, वृद्ध, अपनी अपनी अपनी आवश्यकता  अनुसार ब परिवारों की परंपरा के अनुसार खाने के लिए कुछ न कुछ ग्रहण कर सकते हैं।


*सरगी खाने का सही समय क्या है?* 


वैसे तो इस व्रत को आप निर्जला करे तो उचित रहेगाअन्यथा अपनी परम्पराओं के अनुसार सरगी का उपयोग करे जिसके लिए सूर्योदय से पूर्व ( प्रातः चार से पांच बाते ) तक का समय अनुकूल होता है।




*करवा चौथ पर किस भगवान की पूजा की जाती है?*


•चौथ माता की पूजा के साथ आप माता पार्वती जी की पूजा करें और शिव, गणेश, और कार्तिकेय जी की  और चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करे।


*राम राम जी*

🙏🙏


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करवा चौथ व्रत क्यों रखूं...

 *करवा चौथ*


 *राम राम जी*


*मैं करवाचौथ पर व्रत क्यों रखूंगी ?*     


.....


 क्योंकि यह मेरा तरीका है आभार व्यक्त करने का उस के प्रति जो हमारे लिए सब कुछ करता है। मैं व्रत करूंगी बिना किसी पूर्वाग्रह के , अपनी ख़ुशी से। 




*अन्न जल त्याग क्यों ?*


....


क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता अन्न जल जैसी बहुत महत्वपूर्ण वस्तु से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। यह मुझे याद दिलाता है कि हमारा रिश्ता किसी भी चीज़ से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह मेरे जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के होने की ख़ुशी को मनाने का तरीका है। 




*सजना सवरना क्यों ?*  


.....


मेरे भूले हुए गहने साल में एक बार बाहर आते हैं। मंगलसूत्र , गर्व और निष्ठा से पहना जाता है। मेरे जीवन में मेहँदी , सिन्दूर ,चूड़ियां उनके आने से है तो यह सब मेरे लिए अमूल्य है। यह सब हमारे भव्य  संस्कारों और संस्कृति का हिस्सा हैं। शास्त्र दुल्हन के लिए सोलह सिंगार की बात करते हैं। इस दिन सोलह सिंगार कर के फिर से दुल्हन बन जाईये।  विवाहित जीवन फिर से खिल उठेगा। 


...


*कथा क्यों और वही एक कथा क्यों ?*


...


एक आम जीव और एक दिव्य चरित्र देखिये कैसे इस कथा में एक हो जाते हैं। पुराना भोलापन कैसे फिर से बोला और पढ़ा जाता है , इसमें तर्क  से अधिक आप परंपरा के समक्ष सर झुकाती हैं। हम सब जानते हैं लॉजिक हमेशा काम नहीं करता। कहीं न कहीं  किसी चमत्कार की गुंजाईश हमेशा रहती है। वैसे भी तर्क के साथ  दिव्य चमत्कार की आशा किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाती।  


.......?




*मेरे पति को भी व्रत करना चाहिए ?*    




.....


यह उनकी इच्छा है वैसे वो तो मुझे भी मना करते हैं। या खुद भी रखना चाहते हैं   ..मगर यह मेरा दिन है और सिर्फ मुझे ही वो लाड़ चाहिए। इनके साथ लाड़ बाँटूंगी नहीं इनसे लूंगी। 


........


*भूख , प्यास कैसे नियंत्रित करोगी ?*  


.......


कभी कर के देखो क्या सुख मिलता है। कैसे आप पूरे खाली होकर फिर भरते हो इसका मज़ा वही जानता है , जिसने किया हो। 




*चन्द्रमा की प्रतीक्षा क्यों ?*


.....


असल  मे यही एक रात है जब मैं प्रकृति को अनुभव करती हूँ। हमारी भागती शहरी ज़िन्दगी में कब समय मिलता है कि चन्द्रमा को देखूं। इस दिन समझ आता है कि चाँद सी सुन्दर क्यों कहा गया था मुझे। 






*सभी को करवाचौथ की अग्रिम शुभकामनायें। आपका विवाहित जीवन आपकी आत्मा को पोषित करे और आपके जीवनसाथी का विचार आपके मुख पर सदैव मीठी मुस्कान लाये। अपने पति के लिए स्वास्थय एवं लम्बी आयु की कामना अवश्य करें। याद रखें  यह देश सावित्री जैसी देवियों का है जो मृत्यु से भी अपने पति को खींच लायी थी ,,,,,,,,,,,,, कुतर्कों पर मत जाईये अंदर की श्रद्धा को जगाईये !*


🙏🙏


*राम राम जी*




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Friday 27 October 2023

शरद् पूर्णिमा की खीर और चंद्र ग्रहण

 *शरद् पूर्णिमा की खीर  और चंद्र ग्रहण*


*ग्रहण का सूतक काल , खीर बनाने का समय ...व  शरद् पूर्णिमा की खीर का महत्व ......*


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*कब है शरद् पूर्णिमा 2023…* 


शरद् पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 28 अक्टूबर, शनिवार, प्रात: 04:17 बजे से…

शरद् पूर्णिमा तिथि का समापन: 29 अक्टूबर, रविवार, 01:53  पर…

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 *कब है चंद्र ग्रहण 2023…!?* 


साल का अंतिम चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय: 28 अक्टूबर, देर रात 01:06 बजे‌… 

चंद्र ग्रहण समापन समय: 28 अक्टूबर, मध्य रात्रि 02:22 बजे

सूतक काल का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 02:52 बजे से लेकर मध्य रात्रि 02:22 बजे तक…


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*चंद्र ग्रहण के समय न रखें शरद पूर्णिमा की खीर, इस गलती से बचें…* 


28 अक्टूबर को शरद् पूर्णिमा है और उस दिन चंद्र ग्रहण का सूतक काल दोपहर से प्रारंभ है. यदि आप इस दिन खीर बनाकर रखते हैं तो वह दूषित हो जाएगा. सूतक काल के पूर्व आप खीर बना लेते हैं तो भी वह ग्रहण से दूषित होगा. उसे आप ग्रहण के बाद चंद्रमा की रोशनी में रखकर नहीं खा सकते हैं. दूषित खीर आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.


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 *शरद् पूर्णिमा 2023 खीर रखने का सही समय…* 


आप शरद पूर्णिमा की खीर चतुर्दशी की रात यानि 27 अक्टूबर शुक्रवार की रात बना लें. फिर 28 अक्टूबर को जब शरद पूर्णिमा की तिथि प्रात: 04:17 बजे से शुरू हो तो उस समय उस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रख दें. उस दिन चंद्रास्त लगभग प्रात: 04:42 पर होगा. .चंद्रास्त के बाद उस खीर को खा सकते हैं. 28 अक्टूबर के प्रात: पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की औषधियुक्त रोशनी प्राप्त हो जाएगी.


दूसरा विकल्प यह है कि आप 28 अक्टूबर के मध्य रात्रि चंद्र ग्रहण के बाद खीर बनाएं और उसे खुले आसमान के नीचे रख दें ताकि उसमें चंद्रमा की रोशनी पड़े. बाद में उस खीर को खा सकते हैं.


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*शरद पूर्णिमा की खीर का महत्व…* 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होकर आलोकित होता है. इस वजह से उसकी किरणों में अमृत के समान औषधीय गुण होते हैं. जब हम शरद पूर्णिमा की रात खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं तो उसमें चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं, जिससे वह खीर औषधीय गुणों वाला हो जाता है. खीर की सामग्री में दूध, चावल  चंद्रमा से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं, इसके सेवन से मौसम में हुई तब्दीली से शरीर में होने वाले शीतकालीन प्रभाव मलेरिया बुखार, इत्यादि से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, साथ ही कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है. 

अधिक जानकारी के लिए ब अपनी जन्मकुंडली बनवाने ब दिखाने के लिए ओर अपने उपाय परहेज़ जानने के लिए मिलें...


*राम राम जी*


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Thursday 26 October 2023

चंद्र ग्रहण काल में क्या करें क्या न करें जानें उपाय परहेज़...

 *⚫ चंद्र - ग्रहण ⚫* 

*28 अक्टूबर 2023 शनिवार*


*चंद्र ग्रहण काल में उपाय परहेज़*


चंद्रग्रहण सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण घटना है। साल का अंतिम चंद्रग्रहण शरद पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है ऐसे में इस दिन ग्रहण लगना बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण मेष राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण का असर सभी राशियों पर दिखाई देने वाला है।


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*▪️चंद्र-ग्रहण सूतक काल का समय-:* 

चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर 2023, शनिवार देर रात 1 बजकर 5 मिनट से लेकर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यानी यह ग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का सूतक काल भारत में मान्य होगा।


*▪️चंद्र ग्रहण का समय-:* 

चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पूर्व से शुरु हो जाता है अतः भारतीय समय अनुसार, चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर आरंभ हो जाएगा। इस ग्रहण में चंद्रबिम्ब दक्षिण की तरफ से ग्रस्त होगा।


*▪️देश और दुनिया में कहां- कहां दिखाई देगा ग्रहण-:* 

चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील , एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।


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*▪️सूतक काल में न करें ये काम-:* 


चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा। इस दौरान आपको किसी प्रकार का मांगलिक कार्य,  हवन और भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय आप सभी अपने अपने गुरु मंत्र, भगवान जी का नाम जप, श्रीहनुमान चालीसा कर सकते हैं।


 चंद्र ग्रहण- सूतक काल के दौरान भोजन बनाना व भोजन करना भी उचित नहीं है। हालांकि, सूतक काल में गर्भवती स्त्री, बच्चे, वृद्ध जन  बीमार जन को आवश्यक हो तो वो भोजन कर सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें दोष नहीं लगेगा। ध्यान रखें की सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने पीने की चीजों में तुलसी के दो - दो पत्ते डाल दें। इसके अलावा आप इसमें कुशा भी डाल सकते हैं।

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*▪️चंद्र ग्रहण पुण्य काल में उपाय परहेज़-:*

 चंद्र, ग्रहण से मुक्त होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि का विशेष महत्व है। अतः 29 अक्टूबर, सुबह स्नान के बाद भगवान की पूजा उपासना, दान पुण्य करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। और अपनी अपनी जन्मकुंडली के ग्रह, राशि, नक्षत्रों के अनुसार जो भी उपाय परहेज़ हों उन्हें अवश्य करें और चन्द्र ग्रह के दोष निवारण के उपाय परहेज़ जन्मकुंडली ब वर्ष कुंडली के अनुसार जो भी हो उन्हें ग्रहण काल के बाद अवश्य करें।


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Tuesday 24 October 2023

विजया दशमी.. दशहरा

 

_अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय,पाप पर पुण्य की विजय, अत्याचार पर सदाचार की विजय,क्रोध पर ....दया - क्षमा की विजय,अज्ञान पर ....ज्ञान की विजय, रावण पर श्रीराम की विजय के प्रतीक पावन पर्व_ दशहरा की आपको और आपके परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...._

                           🙏

विजया दशमी 

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दशहरा यानी विजयादशमी का त्योहार आज 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा।दशहरे के दिन ही भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।इसी दिन देवी मां की प्रतिमा विसर्जन भी होता है। इस दिन अस्त्र शस्त्रों की पूजा की जाती है और विजय पर्व मनाया जाता है।


कैसे मनाएं दशहरा? 

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इस दिन सबसे पहले देवी और फिर भगवान राम की पूजा करें। पूजा के बाद देवी और प्रभु राम के मंत्रों का जाप करें। अगर कलश की स्थापना की है तो नारियल हटा लें। उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।कलश का जल पूरे घर में छिड़कें। ताकि घर की नकारात्मकता समाप्त हो जाए। जिस जगह आपने नवरात्रि मे पूजा की है, उस स्थान पर रात भर दीपक जलाएं। अगर आप शस्त्र पूजा करना चाहते हैं तो उस पर तिलक लगाकर रक्षा सूत्र बांधें।


तिथि और मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल दशमी तिथि 23 अक्टूबर शाम 5 बजकर 44 मिनट से 24 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के चलते 24 अक्टूबर को विजयदशमी मनाई जाएगी। इस दिन सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा।  फिर दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 2 बजकर 43 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा। पूजा के लिए ये दोनों ही मुहूर्त शुभ हैं।


   || विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||






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Monday 23 October 2023

नवरात्रि महोत्सव...

 नवरात्री पर्व का छटा दिन


नवरात्री पर्व का सातवां दिन


नवरात्री पर्व का आठवां दिन



नवरात्री पर्व का नौवां दिन



नवरात्रि महोत्सव का पांचवा दिन


चौथा दिन


तीसरा दिन


नवरात्रि पर्व का दूसरा दिन





नवरात्रि का प्रथम दिन






Wednesday 11 October 2023

काम, लोभ, क्रोध

काम' की दो दिशाएँ हैं -

एक है 'लोभ' और दूसरी है 'क्रोध'। ।।

    

     काम के द्वारा उत्पत्ति की, लोभ के द्वारा पालन की और क्रोध के द्वारा संहार की प्रक्रिया चलती है और इन तीनों प्रक्रियाओं से सृष्टि संचालित होती है। तो, जिस प्रकार सृष्टि के मूल में ये तीनों तत्त्व विद्यमान हैं, उसी प्रकार व्यक्ति के मन के मूल में भी। जब ये तीनों सन्तुलित रूप में विद्यमान रहते हैं, तब व्यक्ति और समाज स्वस्थ रहते हैं, पर जब इनमें से एक की भी प्रबलता होती है, तब असन्तुलन पैदा हो जाता हैं और यह विकृति व्यक्ति को, समाज को अस्वस्थ बना देती है।

      'रामचरितमानस' में श्री राम को तो ईश्वर का पुर्णावतार निरूपित किया है, पर परशुरामजी को अंशावतार। फिर उन्हें और कुछ नीचे उतारकर 'आवेशावतार' कहकर अपूर्णावतार बताया गया है। एक ओर तो उन्हें ईश्वर का अवतार कहा गया और दूसरी ओर उनके साथ अपूर्णता जोड़ दी गयी। यह एक विचित्र विरोधाभास-सा प्रतीत होता है। पौराणिक भाषा में इसे यों रखा गया है कि भगवान्‌ राम के चरित्र में जिस परिपूर्णता के दर्शन होते हैं , वह परशुराम के चरित्र में विद्यमान नहीं हैं। यद्यपि उनका चरित्र महान्‌ है और उनके जीवन में उत्कृष्ट गुण विद्यमान हैं, किन्तु ऐसे उच्च पद के अधिकारी होते हुए भी उनके जीवन में अपूर्णता दिखायी देती है। वैसे तो वे काम और लोभ की विकृतियों के विजेता हैं -- न तो उनके जीवन में कभी काम दिखता है, न सत्ता पर अधिकार करने का प्रलोभन, परन्तु वे क्रोध को नहीं जीत सके। उनमें क्रोध की यह जो विकृति है, वही उनके चरित्र को अपूर्ण बना देती है। भगवान्‌ राम और लक्ष्मणजी का उनसे जो वार्तालाप है, उसका उद्देश्य मुख्यतः उनकी क्रोध की विकृति को दूर कर देना है । इसी प्रकार अनेक व्यक्ति होते हैं, जो उत्कृष्ट गुणसम्पन्न होते हुए भी काम या क्रोध या लोभ के अतिरेक के कारण असन्तुलित हो जाते हैं, और व्यक्ति की अस्वस्थता के फलस्वरूप समाज भी अस्वस्थ हो जाता है, वयोंकि मानस-रोगों में बड़ी संक्रामकता होती है।

    शारीरिक और मानसिक रोगों में जैसे कुछ साम्य है, वैसे ही भिन्नता भी। शारीरिक रोगों में कुछ तो छूत के होते हैं और शेष छूत के नहीं। रोगी के पास बैठने से छूत के रोग स्वस्थ व्यक्ति को भी लग जाते हे, पर जो छूत के रोगी नहीं हैं उनके पास बैठने पर यह बात लागू नहीं होती। किन्तु मानस-रोगों के सन्दर्भ में ऐसा विभेद नहीं है, वहाँ तो सारे रोग छूत के हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का संग करेगा, उसमें भी किसी न किसी प्रकार की रुग्णता आ ही जाएगी। उदाहरणार्थ ,परशुराम तो क्रोध के अतिरेक के कारण अस्वस्थ थे ही, उन्होंने अपने क्रोध से अपने समीप आनेवाले लोगों को भयान्वित कर समाज को अस्वस्थ बना दिया । तब ईश्वर के ऐसे अवतार का प्रयोजन हुआ, जिसमें किसी प्रकार की अपूर्णता न हो, जिसके जीवन में सन्तुलन और समग्रता हो, और ऐसा अवतार हमें श्री राम के रूप में प्राप्त होता हैं। 'रामचरितमानस' में इस बात को कई दृष्टान्तों के माध्यम, से स्पष्ट किया गया है। 

     जैसे एक नदी है। नदी का जल जीवनदायी है। उसके अनेक उपयोग हैं। उसमें हम स्नान करत हैं, वस्त्र स्वच्छ करते हैं, खेत की सिंचाई करते हैं। पर यदि उस जल में अतिरेक हो गया यानी बाढ़ आ गयी, तो वही कल्याणकारी होने के बदलें दुःखदायी हो जाता है। इसी प्रकार व्यक्ति की स्वस्थता जो सब सम्बन्धित जनों को सुख देती है, वैसे ही उसकी अस्वस्थता उनके लिए दु:खदायी बन जाती है। जब साधारण व्यक्ति असन्तुलित होता है, तब परिवार में दुःख की सृष्टि करता है, पर विशिष्ट व्यक्ति का असन्तुलन तो सारे समाज को अस्वस्थ बना देता है, क्योंकि उसका सम्बन्ध सारे समाज से होता है। 'रामचरितमानस' में त्रिदोष के माध्यम से यही स्पष्ट करने की चेष्टा की गयी है कि व्यक्ति और समाज के जीवन में इन त्रिदोषों को कैसे सन्तुलित रखा जाय।

     इस सन्दर्भ में मैं आपको आयुर्वेद की और एक मान्यता बता दूँ। वह यह है कि भले ही व्यक्ति के शरीर में कफ, वात और पित्त ये तीन धातुएँ मुख्य है, तथापि उनमें कफ और पित्त स्वयं गतिशील नहीं हैं, अपितु वात ही इन दोनों को गति प्रदान करता हैं। महर्षि चरक के सामने जब यह प्रश्न किया गया कि कफ, वात और पित्त में किसे प्रमुखता दें, तो उन्होंने उत्तर में वात की मुख्यता ही प्रतिपादित की। तभी तो आयुर्वेदशास्त्र कफ और पित्त की चिकित्सा सरल मानता है, लेकिन वात की चिकित्सा को बड़ा कठिन। वात ही शरीर की अन्य धातुओं को सक्रिय बनाता है, इसलिए वही सारी विकृतियों के मूल में है। इस वात को नियंत्रित कर शरीर को स्वस्थ रखना कठिन कार्य है। इसी प्रकार मानस-रोगों के सन्दर्भ में लोभ और क्रोध की चिकित्सा तो अपेक्षाकृत सरल है, पर काम की चिकित्सा बड़ी कठिन है। 'रामचरितमानस' में विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि लोभ और क्रोध के मूल में भी कहीं न कहीं पर काम ही विद्यमान है। यहाँ पर हमें 'काम' को व्यापक अर्थों में लेना होगा। सभी प्रकार की कामना को हम 'काम' कह सकते हैं। इस 'काम' की दो दिशाएँ हैं -- एक है 'लोभ' और दूसरी है 'क्रोध'। जब मनुष्य के मन में काम का जन्म होता है और जब उस कामना की पूर्ति होती है, तब उसके भीतर लोभ जन्म लेता है। काम की पूर्ति से मनुष्य को सन्तोष नहीं होता, अपितु उसकी इच्छा बढ़ती जाती है। कहा भी तो है -- 'जौ दस बीस पचास मिले सत होय हजारन लाखन की।' दूसरी ओर, यदि कामना को पूर्ति में बाधा आएगी, तो व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न होगा। इस प्रकार जो कामना मूल में है, उसी का परिणाम होता है लोभ या फिर क्रोध। तभी तो भगवान्‌ श्रीकृष्ण 'गीता' में काम का परिणाम लोभ न बताकर सीधे क्रोध ही बताते हैं, कहते हैं -- 'संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधोध्भिजायत' (२/६२) 'संग से कामना उत्पन्न होती है और कामना से क्रोध जन्म लेता है।' लगता है कि बीच की कड़ी टूटी हुई है। यह भी तो वे कह सकते थ -- 'कामात्‌ लोभोधभिजायते' । पर वह न कह वे कामना से क्रोध उत्पन्न होने की बात कहते हैं। कारण यह है कि व्यक्ति के मन में जब लोभ की वृत्ति उत्पन्न होगी, तो वह कभी सन्तुष्ट तो होगी नहीं, और असन्तोष क्रोध को ही जन्म देगा। इसीलिए उन्होंने काम के पश्चात्‌ सीधे क्रोध के ही उत्पन्न होने को बात कही। 

*राम राम जी*

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Thursday 5 October 2023

पितरों को भोजन कैसे मिलता है...?

 || पितरों को भोजन कैसे मिलता है ?||

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प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित

     की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? 


कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न- भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से या ब्राह्मण को भोजन करने से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है?


इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत

         सुन्दर समाधान मिलता है

 

एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?'

 

भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।


वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। 5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति-इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।

 

पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व- जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।

 

किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार?

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नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। 


यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां

    दिया गया अन्न उन्हें 'अमृत' होकर प्राप्त होता है। 


यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न 

    उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। 


यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न 

        तृण के रूप में प्राप्त होता है। 


नाग योनि में वायु रूप से, 


यक्ष योनि में पान रूप से, 


राक्षस योनि में आमिष रूप में, 


दानव योनि में मांस रूप में, 


प्रेत योनि में रुधिर रूप में 


और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य

     तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।

 

जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं।जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।

 

श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं-

 

मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे मैं आपको बताती हूं। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती? इसलिए मैं ओट में हो गई।'

 

तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

 

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न- श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।

 

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।

   पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।*

             (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

 

यमराजजी का कहना है कि श्राद्ध करने 

       से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ-

 

 श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।


पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर

        वंश का विस्तार करते हैं।


परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।


श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष

   की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।


पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य

    आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।


श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश

  नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।


     || सर्व पितरों को नमन और प्रणाम ||




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Tuesday 5 September 2023

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Team Astropawankv

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Tuesday 29 August 2023

रक्षा बंधन 2023 मूहूर्त

 *राम राम जी*


*रक्षाबंधन 2023: राखी का पर्व 30 या 31 अगस्त को, जानें एकदम सही जानकारी मुहूर्त के साथ*



*रक्षाबंधन के दिन भद्रा कब से कब तक है: रक्षा बंधन यानी राखी के पर्व को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है। कुछ विद्वानों के अनुसार 30 और कुछ के अनुसार 31 अगस्त को मनाया जाना चाहिए रक्षाबंधन का त्योहार। आओ जानते हैं कि आखिर क्यों है ये दुविधा।*

 

*क्यों है असमंजस की स्थिति?*


परंपरा से श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है राखी का पर्व।


पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10:58 पर प्रारंभ होकर 31 अगस्त को सुबह 07:14 पर समाप्त होगी।


पूर्णिमा का संपूर्ण काल 30 अगस्त को दिन के बाद रात्रि में रहेगा (अंग्रेजी समयानुसार 31 अगस्त की रात्रि में)


30 अगस्त को व्रत की पूर्णिमा रहेगी और 31 अगस्त को स्नान दान की पूर्णिमा रहेगी।


30 अगस्त पूर्णिमा के दिन इस बार भद्रा काल रहेगा।


भद्राकाल सुबह 10:58 से रात्रि 09:01 तक रहेगा।


भद्रा का निवास जब धरती पर रहता है तो कोई शुभ कार्य नहीं किए जा सकते हैं।


इस बार भद्रा का निवास धरती पर ही है।


ऐसे में 30 अगस्त को सुबह 10:58 से रात्रि 09:01 तक राखी नहीं बांध सकते हैं।


कुछ विद्वानों के अनुसार रात्रि 09:01 से अगले दिन सुबह 07:14 के बीच राखी बांध सकते हैं।


कुछ विद्वानों का मानना है कि देर रात्रि में शुभ कार्य किया जाना उचित नहीं है इसलिए कई लोग अगले दिन ही रक्षा बंधन मनाएंगे।


देश में कई जगह उदया तिथि के अनुसार ही यानी 31 अगस्त को भी त्योहार मनाया जाएगा।


*30 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त समय:-* रात्रि 9:01 से 11:13 तक। (शुभ के बाद अमृत का चौघड़िया रहेगा)

 

*31 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त :-*


राखी बांधने का शुभ मुहूर्त इस दिन सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक का है। इसके बाद पूर्णिमा का लोप हो जाएगा।


अमृत मुहूर्त सुबह 05:42 से 07:23 बजे तक।


इस दिन सुबह सुकर्मा योग रहेगा।

 

*इन मुहूर्त में भी बांधी जा सकती है राखी-*


अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:14 से 01:04 तक।


अमृत काल : सुबह 11:27 से 12:51 तक।


विजय मुहूर्त : दोपहर 02:44 से 03:34 तक।


सायाह्न सन्ध्या : शाम 06:54 से रात्रि 08:03 तक।


         

           *Lal Kitab Jyotish & Vastu Research Center, Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379. www.astropawankv.com*



Wednesday 16 August 2023

पितृ ऋण

 || *पुरुषोत्तम मास की अमावस्या विशेष पर* ||


*ऋण*

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 ऋण चार प्रकार होते हैं,

              पितृऋण सबसे 

                 भयानक असर देता है    

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मनुष्य जन्म लेता है तो कर्मानुसार उसकी मृत्यु तक कई तरह के ऋण, पाप और पुण्य उसका पीछा करते रहते हैं। हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि तीन तरह के ऋण को चुकता कर देने से मनुष्य को बहुत से पाप और संकटों से छुटकारा मिल जाता है। हालांकि जो लोग इसमें विश्वास नहीं करते उनको भी जीवन के किसी मोड़ पर इसका भुगतान करना ही होगा। आखिर ये ऋण कौन से हैं और कैसे उतरेंगे यह जानना जरूरी है।


ये तीन ऋण हैं:-

 *1-देव ऋण,*

  *2- ऋषि ऋण* 

     *3-पितृ ऋण*

कहीं कहीं पर ब्रह्मा के ऋण का उल्लेख भी मिलता है। *इस तरह से चार ऋण हो जाते हैं।*

 

इन चार ऋणों को उतारना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिए। यह जीवन और अगला जीवन सुधारना हो, तो इन ऋणों के महत्व को समझना जरूरी है। मनुष्य पशुओं से इसलिए अलग है, क्योंकि उसके पास नैतिकता, धर्म और विज्ञान की समझ है। जो व्यक्ति इनको नहीं मानता वह पशुवत है।

 

क्यों चुकता करना होता है यह ऋण?

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तीन ऋण नहीं चुकता करने पर उत्पन्न होते हैं त्रिविध ताप अर्थात सांसारिक दुख, देवी दुख और कर्म के दुख।  *(दैहिक दुःख, दैविक दुःख, भौतिक दुःख)*  ऋणों को चुकता नहीं करने से उक्त प्रकार के दुख तो उत्पन्न होते ही हैं और इससे व्यक्ति के जीवन में पिता, पत्नी या पुत्र में से कोई एक सुख ही मिलता है या तीनों से वह वंचित रह जाता है। यदि व्यक्ति बहुत ज्यादा इन ऋणों से ग्रस्त है तो उसे पागलखाने,जेलखाने या दवाखाने में ही जीवन गुजारना होता है।

 

त्रिविध ताप क्या है?

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सांसारिक दुख अर्थात आपको कोई भी जीव,

   प्रकृति, मनुष्य या शारीरिक-मानसिक रोग कष्ट देगा।


देवी दुख अर्थात आपको ऊपरी शक्तियों द्वारा कष्ट मिलेगा। कर्म का दुख अर्थात आपके पिछले जन्म के कर्म और इस जन्म के बुरे कर्म मिलकर आपका दुर्भाग्य बढ़ाएंगे।इन सभी से मुक्ति के लिए ही ऋण का चुकता करना जरूरी है। ऋण का चुकता करने की शुरुआत ही संकटों से मुक्त होने की शुरुआत मानी गई है।


आज जाने पितृ ऋण को 

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पितृ ऋण :- यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का,आत्मा का, पिता का,भाई का, बहन का,मां का,पत्नी का,बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक,पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है।बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।


आप अपनी जन्मकुंडली को किसी अच्छे ज्योतिष विद्वान से अवलोकन करवाकर जन्मकुंडली में बनने वाले ऋण और ग्रह नक्षत्र दोष को जानकर उनके उपाय परहेज़ अवश्य करें। ताकि जीवन चक्र में सुख शांति और समृद्धि हमेशा बनी रहे।

             || पितृ देवाय नमः ||

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*Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)& Monita Verma Astro Vastu Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379 www.astropawankv.com*