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Wednesday 16 August 2023

पितृ ऋण

 || *पुरुषोत्तम मास की अमावस्या विशेष पर* ||


*ऋण*

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 ऋण चार प्रकार होते हैं,

              पितृऋण सबसे 

                 भयानक असर देता है    

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मनुष्य जन्म लेता है तो कर्मानुसार उसकी मृत्यु तक कई तरह के ऋण, पाप और पुण्य उसका पीछा करते रहते हैं। हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि तीन तरह के ऋण को चुकता कर देने से मनुष्य को बहुत से पाप और संकटों से छुटकारा मिल जाता है। हालांकि जो लोग इसमें विश्वास नहीं करते उनको भी जीवन के किसी मोड़ पर इसका भुगतान करना ही होगा। आखिर ये ऋण कौन से हैं और कैसे उतरेंगे यह जानना जरूरी है।


ये तीन ऋण हैं:-

 *1-देव ऋण,*

  *2- ऋषि ऋण* 

     *3-पितृ ऋण*

कहीं कहीं पर ब्रह्मा के ऋण का उल्लेख भी मिलता है। *इस तरह से चार ऋण हो जाते हैं।*

 

इन चार ऋणों को उतारना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिए। यह जीवन और अगला जीवन सुधारना हो, तो इन ऋणों के महत्व को समझना जरूरी है। मनुष्य पशुओं से इसलिए अलग है, क्योंकि उसके पास नैतिकता, धर्म और विज्ञान की समझ है। जो व्यक्ति इनको नहीं मानता वह पशुवत है।

 

क्यों चुकता करना होता है यह ऋण?

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तीन ऋण नहीं चुकता करने पर उत्पन्न होते हैं त्रिविध ताप अर्थात सांसारिक दुख, देवी दुख और कर्म के दुख।  *(दैहिक दुःख, दैविक दुःख, भौतिक दुःख)*  ऋणों को चुकता नहीं करने से उक्त प्रकार के दुख तो उत्पन्न होते ही हैं और इससे व्यक्ति के जीवन में पिता, पत्नी या पुत्र में से कोई एक सुख ही मिलता है या तीनों से वह वंचित रह जाता है। यदि व्यक्ति बहुत ज्यादा इन ऋणों से ग्रस्त है तो उसे पागलखाने,जेलखाने या दवाखाने में ही जीवन गुजारना होता है।

 

त्रिविध ताप क्या है?

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सांसारिक दुख अर्थात आपको कोई भी जीव,

   प्रकृति, मनुष्य या शारीरिक-मानसिक रोग कष्ट देगा।


देवी दुख अर्थात आपको ऊपरी शक्तियों द्वारा कष्ट मिलेगा। कर्म का दुख अर्थात आपके पिछले जन्म के कर्म और इस जन्म के बुरे कर्म मिलकर आपका दुर्भाग्य बढ़ाएंगे।इन सभी से मुक्ति के लिए ही ऋण का चुकता करना जरूरी है। ऋण का चुकता करने की शुरुआत ही संकटों से मुक्त होने की शुरुआत मानी गई है।


आज जाने पितृ ऋण को 

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पितृ ऋण :- यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का,आत्मा का, पिता का,भाई का, बहन का,मां का,पत्नी का,बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक,पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है।बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।


आप अपनी जन्मकुंडली को किसी अच्छे ज्योतिष विद्वान से अवलोकन करवाकर जन्मकुंडली में बनने वाले ऋण और ग्रह नक्षत्र दोष को जानकर उनके उपाय परहेज़ अवश्य करें। ताकि जीवन चक्र में सुख शांति और समृद्धि हमेशा बनी रहे।

             || पितृ देवाय नमः ||

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*Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)& Monita Verma Astro Vastu Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379 www.astropawankv.com*