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Saturday, 29 July 2017

#रोग /बीमारी और ज्योतिष .......

पिछले कुछ समय से मैं आप सभी के साथ  रहस्यमयी  #लाल किताब के रहस्यमयी #ज्योतिष  ज्ञान के बारे में विचार बिमर्श कर रहा हूँ  आज मैं  आपके साथ उसी ज्योतिष के #रहस्यमयी ज्ञान का  एक और रहस्य आपके साथ साँझा करने जा  रहा हूँ वो #रहस्य है रोग यानि #बीमारी के बारे में ... आज हमारा खानपान ऐसा हो चूका है कि आज हर व्यक्ति या ज्यादातर लोग किसी न किसी #रोग से ग्रस्त है फिर चाहे वो शरीरक रोग हो या फिर #मानसिक रोग ..  जिससे हर एक व्यक्ति  किसी न किसी रूप में कोई न कोई दवाई जरूर ले रहा है और दवाइयां खाने के बावजूद भी परेशान है दुखी है उसको #दवाइयां असर नहीं कर रही है या फिर उसके रोगों की पहचान ही  नहीं हो रही है  इसी कारण वो व्यक्ति या उसका परिवार ज्यादातर परेशानी वाला जीवन व्यतीत क्र रहा है ऐसा क्यों ..क्या ज्योतिष ज्ञान  के दुवारा रोगों की #पहचान हो सकती है और क्या रोगों के निदान के लिए #ज्योतिष ज्ञान किसी तरह से  सहाई हो सकता है तो मैं आपको बता दू कि अगर आपकी जन्मकुंडली और आपकी  #हस्तरेखा और #चेहरा ,नाख़ून आदि का सही सही अबलोकन अगर किया जाये तो आपको आपके रोगों के बारे मैं बहुत सी रहस्यमयी बातों का पता लगेगा और उनका निदान करने का भी रहस्य /उपाए पता लगने लगेंगे जिनको करने से आपको दवाई भी असर करना शुरू क्र देगी और आपके रोग भी समाप्त होने लग जायेंगे ..तो सबसे पहले जाने कि जन्मकुंडली में रोगों के बारे मैं कैसे जाने
किन ग्रहों का विचार करना है-  रोग निर्णय के लिए जिन ग्रहों का विचार करना चाहिए वे हैं- (1) #छठे भाव में स्थित ग्रह, (2) #अष्टम भाव में स्थित ग्रह, (3) #बारहवें भाव में स्थित ग्रह, (4) #छठे भाव का स्वामी, (5) षष्ठेश से युति कर रहे ग्रह और #जन्मकुंडली का दूसरा और चौथा भाव ...और फिर लगन भाव ..
अगर हम #वैदिक ज्योतिष की तरफ ध्यान दे तो आप पाएंगे कि #षष्ठेश रोग का स्वामी है इसलिए षष्ठेश की स्थिति का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानसागरी में षष्ठेश के विभिन्न भावों में फल का बहुत अच्छा वर्णन किया गया है। यदि सिर्फ रोग के संदर्भ में देखा जाए तो षष्ठेश लगन में आरोग्य देते हैं, द्वितीय भाव में व्याधि युक्त शरीर देते हैं, #तृतीय भाव में षष्ठेश व्यक्ति को ल़डाई-झगडे़ करने की प्रवृति देते हैं, चतुर्थ भाव में जाने पर पिता को रोगी बनाते है, #पंचम भाव में पुत्र के कारण कष्ट प्राप्त होता है, षष्ठेश छठे भाव में होकर आरोग्य देते हैं, #शत्रु रहित और कष्टरहित जीवन देते हैं, सप्तम भाव में षष्ठेश पत्नी से कष्ट दिलाते हैं। अष्टम के संदर्भ में ग्रहों का वर्णन भी है। यदि षष्ठेश शनि हो तो संग्रहणी रोग होता है। #मंगल हो तो अग्नी ओर जहरीले कीट से से खतरा, बुध हो तो विष दोष, चन्द्रमा हो तो कफ  दोष, सूर्य हो तो जानवर से भय, बृहस्पति हो तो #पागलपन और शुक्र हो तो नेत्र रोग होता है। नवें भाव में जाने पर  लंगडापन देता है। दशम में माता से कष्ट और विरोध देता है, एकादश में शत्रु चोरादि से भय देता है और द्वादशभाव में व्यक्ति को अकर्मठ बना देता है।
ग्रहों का नैसर्गिक कारकत्व - तत्व आदि -
#मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में सटीक परिणाम पर पहुँचने के लिए ग्रहों के नैसर्गिक कारकत्व तत्व आदि पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। फलदीपिका के अनुसार सूर्य और मंगल तेज के अधिष्ठाता हैं और दृष्टि पर इनका अधिकार है। #चन्द्रमा और #शुक्र जल तत्व के होने के कारण रसेन्द्रिय के अधिष्ठाता हैं इसलिए शरीर मे  हार्मोन ग्रंथियों पर इनका अधिकार है। बुध पृथ्वी तत्व के होने के कारण घ्राणेन्द्रिय हैं। बृहस्पति में आकाश तत्व प्रधान होने से वे श्रवणेन्द्रिय के अधिष्ठाता हैं। शनि, राहु और केतु वायु के अधिष्ठाता हैं इसलिए स्पर्श का विचार इनसे करना चाहिए। ग्रहों से होने वाले संभावित रोग की विवेचना में नैसर्गिक कारकत्व के साथ-साथ काल पुरूष की कुण्डली में उस ग्रह की राशि का विचार भी करें। उदाहरण के लिए सूर्य हड्डी के नैसर्गिक प्रतिनिधि हैं इसलिए हड्डी से जुडी #बीमारियां सूर्य से देखी जाती हैं। कालपुरूष की कुण्डली में सूर्य की राशि पंचम भाव में आती है जो नाभि के आसपास का क्षेत्र है। इसलिए सूर्य से नाभि प्रदेश और कोख की बीमारियां दोनों देखी जानी चाहिए। इसी तरह सूर्य पित्त का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इसलिए यदि सूर्य से रोग निर्धारण कर रहे हैं तो इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान रखना की दशा -
राहु भ्रम देते हैं। इसलिए जब #राहु की दशा चल रही होती है तब बहुत प्रयास के बाद भी सही निदान संभव नहीं हो पाता। यदि प्रत्यन्तरदशा हो तो सही निदान के लिए थोडा इंतजार करने की सलाह दी जाती चाहिए। राहु के बाद बृहस्पति की दशा में भ्रम दूर होते हैं और स्थिति साफ होती है। यह निश्चित किया जाना चाहिए कि राहु दशा का कितना समय बाकी है। यदि थो़डा समय बाकी है और इंतजार करना चाहिए। यदि राहु दशा की अवधि अधिक हो तो राहु ग्रह के  उपाय करने के वाद ही  निदान प्रक्रिया से कुछ हद तक सही परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। किसी ब़डी शल्य क्रिया या किसी प्रकार की खास थैरेपी अपनाने से पहले  किसी आच्छे ज्ञानवान  ज्योतिषी जिसकी ज्योतिष ज्ञान पर अच्छी पकड़ हो उसको ज्योतिष रहस्यों का पता हो उसकी सलाह अवश्य ली जानी चाहिए। राहु दशा में बडे़ निर्णय से पूर्व निश्चित रूप से दो बार जांच करानी चाहिए और उसके बाद कदम उठाना चाहिए।
कुछ खास युतियां -
रोग निर्णय में कुछ खास युतियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। शुक्र के साथ जब भी मंगल या राहु युति करते हैं तो शुक्र के नैसर्गिक कारक तत्वो में वृद्धि होती है   #हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह योग पाया गया है गुप्त रोग हो जाते है जिनको जातक किसी को बताने में भी संकोच करता है और वो गुप्त  रोग उस व्यक्ति को अंदर ही अंदर खोखला क्र देता है फिर वो जातक पुरुष हो या स्त्री वो बहुत दुखी रहता है ...   यह भी  महत्वपूर्ण है कि यही युति महान कलाकार भी बनाती है और लक्ष्य प्राप्त की ऊर्जा भी देती है। इसलिए किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले कुछ सावधानियां आवश्यक हैं। शुक्र किस भाव के स्वामी हैं और यह युति किस भाव में हो रही है, इस युति पर किन ग्रहों की दृष्टि है, इस सब बिन्दुओं पर ध्यान देकर सही निर्णय पर पहुँचा जा सकता है। चंद्र , बुध और शनि की युति भी महत्वपूर्ण है। और राहु का भी किसी न किसी रूप मैं साथ हो जाये तो  प्राय: यह युति निराशाजनक प्रवृत्ति देती है। यदि इनका संबंध सप्तम या द्वादश भाव से हो तो व्यक्ति के वैवाहिक संबंधों में अजीब व्यवहार देखने को मिलता है उसको उसकी ज़िन्दगी नर्क के समान  नज़र आती है  भारतीय  समाज  में लोग इस विषय में विशेषज्ञ सलाह लेने से हिचकिचाते हैं और समस्या वैसी ही बनी रहती है। अन्य भावों में युति या संबंध स्त्रायु तंत्र से संबंधित परेशानियों का संकेत है। बुध और राहु की युति त्वचा से जुडे़ बैक्टीरियल इंफेक्शन देती है। बुध इस युति से जितने अधिक पीङित होंगे रोग की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी। जहां राहु बैक्टीरियल इंफेक्शन देते हैं वहीं केतु वायरल इंफेक्शन देते हैं। बुध और केतु की युति उनकी दशान्तर्दशा में हरपीज जैसी वाइरस जनित बीमारी देती है। चन्द्रमा मन हैं। अगर  चन्द्र कमजोर और पीडत है तो चन्द्रमा व्याधियुक्त शरीर का कारण हो सकते हैं। चन्द्रमा यदि विष घटी या मृत्युभाग में हो तो कभी ना ठीक होने वाली बीमारियां हो सकती हैं। चन्द्रमा की पाप ग्रहों से युति मनोरोग देती है। कमजोर #चन्द्रमा की युति शनि से होने पर डिप्रेशन की शिकायत देखी जाती है। व्यक्ति हालात का सामना नहीं कर पाता है और निराशा के गर्त में चला जाता है। चन्द्रमा और राहु प्राय: मानसिक  या वहम जैसी बीमारी देते हैं। यह बहुत खतरनाक स्थिति होती है जब व्यक्ति भ्रमित रहता हैै तो ना तो वो अपनी स्थिति किसी को समझा पाता है ना ही उसकी असली स्थिति कोई समझ पाता है। - यदि #लग्न और लग्नेश बलवान हैं तो व्यक्ति में परिस्थिति से ल़डने और जीतने की क्षमता आ जाती है। #लग्नेश बलवान हों और छठा भाव भी रोग का संकेत दे रहा हो तो व्यक्ति को सही इलाज मिलता है उसके ठीक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। यदि कोई बीमार है और गोचर में #बृहस्पति लग्न या लग्नेश को देखते हैं तो व्यक्ति के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। इस लिए रोग से संबंधित किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले लग्नऔर लग्नेश की स्थिति का अध्ययन अवश्य कर लेना चाहिए।
1 अष्टमेश जब छठे भाव या छठे भाव के स्वामी से संबंध करता है तो रोग का कारण पिछले  जन्म के कर्म होते हैं।
2 इसी तरह अष्टम भाव में बैठे ग्रह का संबंध यदि छठें भाव से हो तो भी रोग का कारण गत जन्म के कर्म होते हैं। 3 पंचम और अष्टम बहुत बली हों तो पिछले जन्म के बहुत से अभुक्त कर्म शेष रहते हैं और रोग का कारण बनते हैं।
4 पंचम में अधिक अष्टक वर्ग बिन्दु का होना यह संकेत है कि गत जन्म के अभुक्त कर्म इस जन्म में पीछा कर रहे हैं। इसलिए पंचम भाव में कम अष्टक वर्ग बिन्दु का होना शुभ माना जाता है। बृहद् पाराशर होरा शास्त्र में वर्णन है कि यदि पंचम या पंचमेश का संबंध मंगल और राहु से होगा तो पिछले जन्म में सर्प के श्राप के कारण इस जन्म में #संतान हानि होगी। गर्भ में संतान अपनी माता से नाल के माध्यम से जु़डा रहता है। इस नाल पर राहु का अधिकार है। सर्पदोष के कुछ मामलों में पाया गया है कि यह नाल बच्चो के गले में लिपट कर मृत्यु का कारण ब नी। सर्पाकृति होने के कारण फैलोपियन ट्यूब पर भी राहु का ही अधिकार है। कुछ मामलों फैलोपियन ट्यूब में इंफेक्शन या #Blockage  के कारण संतान ना होना पाया गया.. राहु ग्रह और बुध औरमंगल  ग्रह
का पर पाना यानि उनका भेद पाना आसान नहीं है हमारे शरीर में जो #DNA है उसमें एक हिस्सा माता से प्राप्त होता है और दूसरा पिता से। इसी DNA में हमारा #Genetic Code होता है जिससे माता-पिता की आदतें बीमारियां आदि हम तक पहुँचती हैं। DNA की सर्पाकृति है और सर्पाकृति पर राहु का अधिकार है। जेनेटिक बीमारियों में राहु की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। कई मामलों में देखा गया है कि बीमारी दो-तीन पीढ़ी तक दबी रहती है परन्तु फिर अचानक प्रकट हो जाती है मैने ऐसी बहुत सी जन्मकुंडलियां  देखी  है जिनमे मैंने  पाया  कि जिस पीढ़ी में बीमारी प्रकट हुई है उन कुण्डलियों में छठें-आठवें भाव पर राहु का प्रभाव अधिक है। छठे, आठवें के स्वामी या तो राहु के नक्षत्र में होंगे या छठें-आठवें में बैठे ग्रह राहु के नक्षत्र या राहु के प्रभाव में होंगे या फिर उनकी जन्मकुंडलियों में राहु ग्रह का भाव नंबर 6 ,8, 12 , 1, 3, 5 ,से किसी न किसी रूप से लिंक कर रहा होता है हमारे पास ऐसे बहुत से  जातक भी अपनी अपनी जन्मकुंडलियां लेकर  आते है जिनको काफी देर से रोग हे यानी सालो से रोग है ओर दवाई खा रहे है ओर आगे चलकर गृह दशा से ऐसे योग वनते है की रोग भयानक रुप ले सकता है  यह भी तो पिछले जन्म के शायद कर्म ही है जिस ओलाद के लिऐ आदमी पैसे ईक्कठे करता है वाद मे रोगग्रस्त होने पर कोई सेवा नही करता तव पैसा भी काम नही आता ..इसलिए मैं तो आपको कहूंगा कि यदि आपको या आपके घर परिवार में किसी को भी कोई रोग हो तो आप उसको किसी अच्छे से अच्छे डॉक्टर को अवश्य दिखाए और दवाई ले उसका इलाज़ करवाये ...लेकिन  साथ साथ जातक की जनमकुंडली का भी अवलोकन अवश्य करवाये और उसके ग्रहों के उपाए #दान भी साथ साथ करवाएं तो आप आपको बहुत ही जल्दी बहुत ही अच्छे  नतीजे /परिणाम सामने आएंगे  आज के लिए इतना ही काफी ...अगली बार मैं फिर से आपके साथ रोगों के बारे में  और रोगों के निदान के बारे में चर्चा करूँगा और रोगों के बारे मैं रहस्यमयी लाल किताब का रहस्यमयी #ज्योतिष ज्ञान क्या कहता है उसके बारे मैं अवश्य लिखूंगा इस बार हमने वैदिक ज्योतिष ज्ञान पर कुछ महत्वपूर्ण बातें  की ........हम लोग आज जो इतनी #पूजा -पाठ करते है या फिर इतने उपाए इत्यादि  करते है और  फिर भी परेशान ही रहते है  या तो  हमे पूजा -पाठ और उपाओ का विधि - विधान नहीं पता और  या  फिर उसके पीछे छुपा ज्ञान नहीं पता  या फिर हो सकता है कि हमें जो विद्वान व्यक्ति उपाए दे रहा है उसको  रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान का पता ही न हो   धर्म के नाम के पीछे छुपे हुए  रहस्यमयी ज्ञान का पता ही  न हो  और .बस हम लोगो में  एक अंधी सी  दौड सी लगी हुई  है और हम सब बिना कुछ समझे जाने बस भाग रहे है यही हमारा दुर्भाग्य है जिस  के कारण हम लोग दुखी कष्ट और परेशानियों   वाला जीवन जी रहे है और अपने आपको और #भगवान् को और अपने कर्मों को कोस रहे है
अपनी #जन्मकुंडली को लाल किताब के रहस्यमयी ज्ञान से दरुस्त करवाने या बनबाने या फिर दिखाने  के लिए और या फिर  अपनी #जन्मकुंडली के  #उपायों और परहेज  को जानने के लिए आप मुझ से  संपर्क कर सकते हो .  .( You may contact me on my mobile no. +919417311379 for a paid consultation.)...

#PAWAN KUMAR VERMA ( B.A.,D.P.I.,LL.B.)
                                             Research Astrologer
                                               Gold  Medalist
                                      Ludhiana,Punjab,India.
                                                 PH. 9417311379.
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