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Monday, 20 September 2021

पितृ पक्ष

 *राम राम जी*

*पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने* 

 *का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?*


   

*श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?*

 

*किसको करना चाहिए श्राद्ध?*

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*पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।*

 

*16 तिथियों का महत्व क्या है?*

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*श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है।*

 

*इसके अलावा प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में👉 अविधवा नवमी माना गया है। यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। 👉इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।*

 

*इसी तरह एकादशी तिथि को👉 संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है।👉 श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विष पान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।*


 *|| सर्वपितरोभ्य नमो नम:  ||*

                ✍☘💕

Sunday, 19 September 2021

गजानन गणेश जी

 *राम राम जी*



*हे! गजागन गणेशजी इस बार*

       *ऐसी कृपा करना कि..*


*सबके सुख आपके पेट की तरह बड़े हो और*

 *सबके दुख आपके मूषक से भी छोटे हो।*


*सबकी ज़िन्दगी आपके सूंड जैसे लंबी हो और सबके बोल आपके मोदक जैसे मीठे हो।*


*बप्पा इस कामना से आप विदाई लो, सभी के जीवन में खुशियाँ, समृधि बनी रहे, सबको खूब सफलता मिले और खूब प्रगति करे ।*


*गणपति बप्पा मोरया ...*

  *अगले बरस तू जल्दी आ ।*


*और आज...*

  🙏🏻🙏🏻

*विसर्जन कीजिये गुस्से का,*

*विसर्जन कीजिये द्वेष का,*

*विसर्जन कीजिये लोभ का,*

*विसर्जन कीजिये मोह का,*

*विसर्जन कीजिये आलस का,*

*विसर्जन कीजिये चिंता का,*

*विसर्जन कीजिये निराशा का,*

*विसर्जन कीजिये नकारात्मक विचारों का,*

*विसर्जन कीजिये बुरी आदतों का,*

*सभी विघ्न दूर होंगे.....*


    *||गणपति बप्पा मोरिया||*

                🙏🙏

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Tuesday, 14 September 2021

राधा अष्टमी

 *राधे राधे जी*


*राधा अष्टमी शुभ मुहूर्त*


राधा अष्टमी तिथि 13 सितंबर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी, जो कि 14 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।

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*राधा अष्टमी महत्व*


जन्माष्टमी की तरह ही राधा अष्टमी का विशेष महत्व है। कहते हैं कि राधा अष्टमी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग राधा जी को प्रसन्न कर देते हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि व्रत करने से घर में मां लक्ष्मी आती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 


*राधा अष्टमी व्रत की पूजा विधि*


-प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।

-इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें।

-कलश पर तांबे का पात्र रखें।

- अब इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधाजी की सोने (संभव हो तो) की मूर्ति स्थापित करें।

-तत्पश्चात राधाजी का षोडशोपचार से पूजन करें।

- ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए।

-पूजन पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें।

- दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें। 


अन्य व्रतों की भांति इस दिन भी प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन श्री राधा-कृष्ण मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरणादि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधाजी की स्तुति करनी चाहिए।


मंदिर में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा-कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें। बंधु-बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गाएं।


दिन में हरिचर्चा में समय बिताएं तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें। 

 

*श्रीराधाष्टमी व्रत का पुण्यफल*


श्री राधा-कृष्ण जिनके इष्टदेव हैं, उन्हें राधाष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह व्रत श्रेष्ठ है। श्री राधाजी सर्वतीर्थमयी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। इनके भक्तों के घर में सदा ही लक्ष्मीजी का वास रहता है। जो भक्त यह व्रत करते हैं उन साधकों की जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन राधाजी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।  

 

जो मनुष्य श्री राधाजी के नाम मंत्र का स्मरण एवं जाप करता है वह धर्मार्थी बनता है। अर्थार्थी को धन की प्राप्ति होती है, मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है। राधाजी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी रहती है।


*राधा रानी के मंत्र*


तप्त-कांचन गौरांगी श्री राधे वृंदावनेश्वरी

वृषभानु सुते देवी प्रणमामि हरिप्रिया


ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।

ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।

श्री राधा विजयते नमः, श्री राधाकृष्णाय नम:


*जय श्री राधे कृष्ण राधे कृष्णा*

🙏🙏

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Friday, 10 September 2021

गणेश चतुर्थी पूजन

 *राम राम जी*


*गणेश चतुर्थी , गणपति पूजन  का शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि-*

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*नभस्ये मासि शुक्लायां चतुर्थ्या॑म् मम जन्मनी*

*अष्टद्रव्यैः विशेषण जुहुयाद्भक्ति संयुक्तः।*

*तस्येप्सितानि सर्वाणि सिध्यन्त्यत्र न सशंयः।।*


देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार इस साल 10 सितंबर दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है लेकिन इसकी धूमधाम अभी से ही हर तरफ़ देखने को मिल रही है। बीते साल कोरोना संकट के कारण गणेश पूजा को लोगों ने बहुत ही सादगी से अपने घरों में मनाया लेकिन अबकी बार लोग कोरोना नियम का पालन करते हुए गणेश चतुर्थी पर भव्य आयोजन भी कर रहे हैं और अपने-अपने घरों में भी गणपति बैठकर उनकी विधिवत पूजा करने की तैयारी में लगे हुए हैं।


पारंपरिक रूप से भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को श्रद्धालु अपने-अपने घरों में गणपति प्रतिमा को स्थापित करके उनकी प्राण-प्रतिष्ठा सहित पूजा करते हैं। गणपति पूजन में बहुत से लोग 10 दिन के लिए घर में गणपति पूजन का आयोजन करते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा को बड़ी धूम-धाम से विदाई देकर विसर्जन करते हैं और कामना करते हैं कि सब कुछ मंगलमय हो और अगले वर्ष फिर से हम आपकी पूजा कर पाएं।


इस वर्ष गणेश चतुर्थी के दिन भद्रा का साया भी लग रहा है। गणेश चतुर्थी के दिन 11 बजकर 09 मिनट से रात 10 बजकर 59 मिनट तक पाताल निवासिनी भद्रा रहेगी। शास्त्रों के अनुसार पाताल निवासिनी भद्रा का होना शुभ फलदायी होता है। इससे समय धरती पर भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। दूसरी बात यह भी है कि गणपतिजी स्वयं सभी विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नहर्ता हैं इसलिए गणेश चतुर्थी पर लगने वाले भद्रा से लाभ ही मिलेगा।



गणपति स्थापना पूजन का शुभ मुहूर्त

इस बार गणपति पूजन का शुभ मुहूर्त दिन में 12 बजकर 17 मिनट पर अभिजीत मुहूर्त में शुरू होगा और रात 10 बजे तक पूजन का शुभ समय रहेगा। पूजा के समय “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जप करते हुए गणपतिजी को जल, फूल, अक्षत, चंदन और धूप-दीप एवं फल नैवेद्य अर्पित करें। प्रसाद के रूप में गणेशजी को उनके अति प्रिय मोदक का भोग जरूर लगाएं।


गणेश पूजा का सकंल्प-:

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गणपति पूजन शुरू करने से पहले सकंल्प लें। संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।


*गणेश पूजन विधि-*

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अपने बाएँ हाथ की हथेली में जल लें एवं दाहिने हाथ की अनामिका उँगली व आसपास की उँगलियों से निम्न मंत्र बोलते हुए स्वयं के ऊपर एवं पूजन सामग्रियों पर जल छिड़कें-


ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था गतोsपि वा l 


या स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्रामायंतर: शुचि: ll


सर्वप्रथम चौकी पर लाल कपडा बिछा कर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करे


श्रद्धा भक्ति के साथ घी का दीपक लगाएं। दीपक रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।


धूपबत्ती जलाये


जल भरा हुआ कलश स्थापित करे और कलश का धूप ,दीप, रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।


अब गणेश जी का ध्यान और हाथ मैं अक्षत पुष्प लेकर निम्लिखित मंत्र बोलते हुए गणेश जी का आवाहन करे


ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः.

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः.

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा.

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥


अक्षत और पुष्प गणेश जी को समर्पित कर दे


अब गणेशजी को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान कराये (मिटटी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान कराये )


गणेशजी को नवीन वस्त्र और आभूषण अर्पित करे


रोली/कुंकु, अक्षत, सिंदूर, इत्र ,दूर्वां , पुष्प और माला अर्पित करे


धुप और दीप दिखाए


गणेश जी को मोदक सर्वाधिक प्रिय हैं। अतः मोदक, मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल जैसे- केला,  चीकू आदि का नैवेद्य अर्पित करे


श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करे


अंत मैं गणेश जी की आरती करे


आरती के बाद 3 परिक्रमा करे और पुष्पांजलि दे


गणेश पूजा के बाद अज्ञानतावश पूजा में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् गणेश के सामने हाथ जोड़कर  मंत्र का जप करते हुए क्षमा याचना करे


अर्चन सामग्री -:

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1. वेसन के लड्डू


2. लाजा (खील)


3. जौ का सत्तू


4. सफेद तिल


5. चिड़ावा (पोहा)


6. गन्ना


7. केला


8. नारियल


एवं अतिरिक्त दूर्वा सभी वस्तु 108 की संख्या में होनी चाहिए,और गणेश सहस्रनाम से पूजन अर्चन करना चाहिए। विशेष जानकारी के लिए सम्पर्क करें ।

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श्री गणेश जी की आरती-:

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जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .


माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥


एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी .


माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥


अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया .


बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥


हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा .


लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥


दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी .


कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥


जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

🙏🙏


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Wednesday, 8 September 2021

हरितालिका तीज

 *राम राम जी*


🌷 *हरितालिका तीज* 🌷

🙏🏻 *भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 09 सितम्बर, गुरुवार को है। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-*

🌷 *विधि*

*इस दिन महिलाएं निर्जल (बिना कुछ खाए-पिए) रहकर व्रत करती हैं। इस व्रत में बालूरेत से भगवान शंकर व माता पार्वती का मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है। घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाएं। एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनाएं।*

🙏🏻 *प्रतिमाएं बनाते समय भगवान का स्मरण करें। देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन करें। व्रत का पूजन रात भर चलता है। महिलाएं जागरण करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है।*

🌷 *भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलें-*

*ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:*

🌷 *भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करें-*

*ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:*

 🙏🏻 *पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न ग्रहण करती हैं।*

🙏🙏

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