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Tuesday, 7 June 2022

गुरू राहु

 *गुरु-राहु*

की युति या इनका दृष्टि संबंध

इंसान के विवेक को नष्ट कर देता है उसे बेहद गुस्से वाला विवेक हीन अपने आप को सर्व सब मानने वाला मूर्खता पूर्ण / निंदित कार्य करने पर मजबूर करने वाला बना देता है । शायद यही कारण रावण  जैसे एक पूर्ण ज्ञानवान व्यक्ति के सर्वनाश का रहा होगा।—

-यदि राहु बहुत शक्तिशाली नहीं हुए परन्तु गुरू से युति है तो इससे कुछ हीन स्थिति नजर में आती है। इसमें अधीनस्थ अपने

अधिकारी का मान नहीं करते ओर उनसे निंदित होते रहते है उन्हें अपने कार्य का मान सम्मान नहीं मिलता इत्यादि... गुरू-शिष्य में विवाद मिलते हैं। ......शोध सामग्री / ज्ञान की चोरी इत्यादि या उसके प्रयोग के उदाहरण मिलते हैं,धोखा-फरेब ओर झूठ  यहां खूब देखने को मिलेगा ।


परन्तु राहु और गुरू युति में यदि गुरू बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक

समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं। शिष्य भी यदि कोई ऎसा अनुसंधान करते हैं जिनके अन्तर्गत गुरू के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए तो वे गुरू की आज्ञा लेते हैं या गुरू के आशीर्वाद से ऎसा करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति हैऔर मेरा मानना है कि ऎसी स्थिति में उसे गुरू चाण्डाल

योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य योग का नाम दिया जा सकता है परन्तु उस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य है जब गुरूचाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू

का प्रभाव बढ़ने लगता है। राहु अत्यन्त शक्तिशाली हैं और इनका नैसर्गिक बल सर्वाधिक है तथा बहुत कम प्रतिशत में गुरू

का प्रभाव राहु के प्रभाव को कम कर पाता है। इस योग का सर्वाधिक असर उन मामलों में देखा जा सकता है जब दो अन्य भावों में बैठे हुए राहु और गुरू एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं।

अशुभता का नियंत्रण-गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन

पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के

लिए जातक को भगवान शिव की आराधना और गुरु-राहु

से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

🙏🙏

*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379. www.astropawankv.com*