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Thursday 24 July 2014

क्या कहती हे लाल किताब ...

क्या कहती है लाल किताब ......?
आज हम आपको बताएँगे कि क्या है लाल किताब और क्या क्या कहता है लाल किताब का ज्योतिष...
लेकिन  लाल किताब के बारे मैं जानने  से पहले कुछ बातें ज्योतिष के बारे मैं जान लेते है..     
लेकिन उससे पहले हम कुछ बातें ज्योतिष के   बारे मैं जानते है कि  क्या है ज्योतिष  .. 
आज हम आपकोi बताएँगे कि   क्या है ज्योतिष ..?  
 :-  ज्योतिष बह विद्या या शास्त्र है जिससे आकाश में सिथत ग्रहो ,नक्षत्रों की दूरी ,गति आदि का ज्ञान मिलता है.
ज्योतिष विज्ञानं -ज्योतिष शास्त्र वह विद्या है जिससे सूर्यादि ,ग्रहो नक्षत्रों एंव काल का ज्ञान होता है. वेद के ६ अंग माने गए है जोकि  इस  प्रकार से है   . शिक्षा, से संधित . कल्प ,.व्याकरण ,निरुक्त ,शनद व्  ज्योतिष . मन्त्रों के उचित उच्चारण के लिए शिक्षा का  व् कर्मकांड यज्ञ अनुष्ठानो के लिए कल्प का व् शब्दों कर रूप ज्ञान के लिए व्याकरण का व् अर्थ ज्ञानार्थ शब्दों के लिए निरुक्त का व् वैदिक शैडो के ज्ञान के  लिए शनद का और अनुष्ठानो के उचित काल निर्णय के लिए ज्योतिष का उपयोग सर्वमान्य है . ज्योतिष को वेद पुरष का चक्षु (आँखे) कहा जाता है. ज्योतिष को वेद पुरष के चक्षु कहने का कारण  सपषट है .की जिस पर्कार आँखों से विहीन व्यक्ति अपने कार्यो को करने मैं असमर्थ होता है उसी पर्कार ज्योतिष ज्ञान के बिना व्यक्ति वैदिक कार्यो मैं सर्वथा अँधा रहता है.ज्योतिष जनम से लेकर मृत्युपर्यन्त के सभी  कार्य-कलापो का ज्ञान करवाता है.आज से हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे भारतीय मनीषोंयो ने खगोल और और ज्योतिष शाश्त्र का मंथन किया था आज व् ज्योतिष से सम्बन्ध रखने वाले दो  प्राचीन ग्रन्थ उपलव्ध है. इनमें ऋग्वेद  से सबंधित "आर्च ज्योतिष है .इस ग्रन्थ मैं ३७ श्लोक है. युजूर्वेद  से संबधित "यजुष् ज्योतिष  " है.  और इसमें ४३ शलोक है.
बर्तमान  विज्ञानं के गणित आदि सभी विषय बीजसवरूप ज्योतिष शास्त्र की ही दें है.भारतीय मनीषियों के अनुसार इस प्राचीन विज्ञानं शास्त्र की उत्पति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है. ऐसा मन जाता है की ब्रह्मा जी ने sabse pehle ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान नारद जी को प्रदान किया था .नारद जी ने इस शास्त्र का प्रचार प्रसार किया. इस शास्त्र का ज्ञान भगवन सूर्य ने मयासुर को प्रदान किया आचार्य कश्यप अठारह (मतान्तर से उन्नीस )  आचार्यों को ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक मानते है:-सूर्य, पितामह (ब्रह्मा ) ,व्यास ,वैशिष्ट ,अत्रि, पराशर ,कश्यप ,नारद ,गर्ग ,मरीचि ,मनु ,अंगिर्रा , रोमेश ,पोलिश च्यवन ,याबन्न , भृगु एव   शौनक  
  
भारतीय संस्कृति का अध्ध्यन करने वाले बिदेशी विद्वानो ने भारत की इस ज्योतिष विद्या से प्रभावित होकर अपनी-२ भाषाऔ में इसका अनुबाद किया है . भारत का जिन-२ देशो से व्यापारिक ,सांस्कृतिक और धार्मिक संभंद  था. उन  उन देशो के लोग यहाँ आये और यहाँ के ज्ञान का अनुभव लेकर किताबो के रूप मैं लिख कर ले गए. सबसे पुराने यात्री यूनानी थे. बेबीलोन में इस ज्योतिष विद्या का बहुत प्रसार हुआ . वहां के मिश्र्वासिओं और यहूदिओं ने इसे अपनाया . गिरीकवासिओं     ने भी इसे अपनाया. अलबरूनी मेहमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया था.और.  बह ज्योतिष शास्त्र से बहुत प्रभावित हुआ और usne भारतीय ज्योतिष में पोलिश सिंद्धांत एब ब्रह्मगुप्त का बिवेचन करते हुए अरबी भाषा में १०३१-३२ ई.में अरबी भाषा में "इंडिका" नमक ग्रन्थ लिखा. जर्मनी के विद्वान एडवर्ड  सी.  .सत्रों. :इंडिका" मैं लिखे सूक्ष्म ज्योतिष विज्ञानं के सूत्रों से बहुत प्रभवित  हुए  थे. उन्होंने "इंडिका" का जर्मन भाषा में अनुबाद किया . भारत के ज्योतिष विज्ञानं से प्रभावित  होकर कई विदेशी भारत में आये और वे भारत के प्राचीन ग्रंथो  का अध्यन करते रहे. बे साथ ही आमने साथ अनेक दुर्लभ ग्रन्थ भी ले गए. अलबरूनी के अतिरिकत याकूब - बिन- तारिक ,अलफ़ज़ारी ,   सब -अल -हसन नामक अरबी विद्वानो की गणना ज्योतिष-विशेषज्ञों में की जाती है.   
यूनान  के विद्वान यवनाचार्य भी  बहुत समय तक भारत मैं रहे बे  अरबी ,संस्कृत और यूनानी भाषा के ज्ञाता थे .उनके ग्रंथो मैं बृहत्-यवन-जातक और लघु -यवन -जातक प्रसिद्द हे .बरहमिहिर जैसे महान विद्वान ने भी अपने ग्रन्थ  बृहजातक  और   बृहत्सहिता    मैं यवनाचार्य का उलेख बहुत ही सम्मान से किया है      
  अकबर के नवरत्नों में अब्ब्दुल रहीम खानखाना की रचनाएँ "खेटीकोतूकुम  " और ढढ़बिंसहोराबली " आज भी ज्योतिष शास्त्र  मैं रूचि रखने वालो का मार्गदर्शन करती है. ग्रीक के बिद्वान मार्सेली फिक्िनो ने भी ज्योतिष विज्ञानं पर लिबर्टीविता के नाम से किताब लिखी .उसमे उन्होंने ग्रहो मेक्रोकोस्मिक प्रकाशो का विशेष उलेख किया .पेरसेल्सयस अपने समय के विद्वान चिकित्साशास्त्री थे उन्होंने अपनी किताब " दी फ़ण्डामेंट स्पास्टी "ग्रहो के पर्भावो का विशेष उलेख किया .इस संबंध मैं एक और पुस्तक "अस्ट्रोनोमिया "कितने ही गुढ रहस्यों का वर्णन करती है.
अतीत काल मैं ज्योतिष विद्या न केवल भारत मैं बल्कि पुरे बीसबभर मैं लोकप्रिय था .उस समय मैं अनेक स्थानो पर ग्रहनक्षत्रों की गतिविधियों के अध्यन के लिए कई वेधशालायो का निर्माण हुआ था. जिनके निर्माण की विशेताएं आज भी बिज्ञानिको के लिए रहस्मय बनी  हुए है. जिसमे मिश्र के पिरामिडों की रचना  सूर्य चद्र  ग्रह नक्षत्रों की वेधशाला के रूप मैं की गयी  है. इनकी पुष्टी  के अनेक तथ्य मिलते है जिनसे यह पता चलता है की  इनकी रचना गणितीय आधार  पर हुई है. ब्रिटिश टापू मैं स्थित उतरी स्कॉटलैंड पोर्टशन से लेकर बरमूडा तक के २५०० किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले स्थान को किन्ही अन्त्रग्रहीय शक्तियों का केंद्र माना  है. बाकी  की बातें लाल किताब के बारे में अगली बार आपके साथ....कि क्या कहती है लाल किताब ...