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Tuesday 7 March 2023

होलिका दहन विशेष...

 होलिका दहन विशेष-

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संस्कृत साहित्य मे होली-

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प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों

का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है।  भगवान कृष्ण की लीलाओं में भी होली का वर्णन मिलता है | अन्य रचनाओं में ‘रंग’ नामक उत्सव का वर्णन है।


 जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली तथा कालिदास

की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् शामिल हैं।

कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही

 ‘वसन्तोत्सव’ को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य

कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है।


चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है।भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है।


आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्ति कालीन

सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि

अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है। चाहे वो सगुन साकार भक्तिमय प्रेम हो या निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम

या फिर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच का प्रेम हो,फाल्गुन माह का फाग भरा रस सबको छूकर गुजरा है।होली के रंगों के साथ साथ प्रेम के रंग में रंग जाने की चाह ईश्वर को भी है तो भक्त को भी है, प्रेमी को भी है तो

प्रेमिका को भी।


भविष्य पुराण होलिका की कथा-

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भविष्य पुराण में वर्णित है कि सत्ययुग में राजा रघु के राज्य में माली नामक दैत्य की पुत्री ढोंढा या धुंधी थी।उसने शिव की उग्र तपस्या की। शिव ने वर माँगने को कहा। उसने वर माँगा- प्रभो! देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे मार न सकें तथा अस्त्र-शस्त्र आदि से भी मेरा वध न

 हो। साथ ही दिन में, रात्रि में, शीतकाल में, उष्णकाल तथा वर्षाकाल में, भीतर-बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय नहीं हो।' शिव ने तथास्तु कहा तथा यह भी चेतावनी दी कि तुम्हें उन्मत्त बालकों से भय होगा। वही ढोंढा नामक राक्षसी बालकों व प्रजा को पीड़ित करने लगी।


अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: 

 अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम: 


इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर

  पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।


अडाडा' मंत्र का उच्चारण करने पर वह शांत हो जाती थी। इसी से उसे 'अडाडा' भी कहते हैं। इस प्रकार भगवान शिव के अभिशाप वश वह ग्रामीण बालकों की शरारत, गालियों व चिल्लाने के आगे विवश थी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि होली के दिन ही सभी बालकों ने अपनी एकता के बल पर आगे बढ़कर धुंधी को गाँव से बाहर धकेला था। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए तथा चालाकी से उसकी ओर बढ़ते ही गये। यही कारण है कि इस दिन नवयुवक कुछ अशिष्ट भाषा में हँसी मजाक कर लेते हैं, परंतु कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता।


 || होली की अग्रिम हार्दिक बधाई ||

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