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Saturday, 20 April 2024

ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है..

 * *ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है*

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अश्वथामा और अर्जुन ने छोड़ दिए थे ब्रह्मास्त्र, इसके बाद 

  अधूरे ज्ञान की वजह से अश्वथामा को मिला शाप-


किसी भी काम में सफलता चाहते हैं तो उस काम से जुड़ा पूरा ज्ञान हमें होना चाहिए, तभी काम में सफलता मिल सकती है। अगर अधूरे ज्ञान के साथ कोई काम करेंगे तो ये हमारे लिए नुकसान दायक हो सकता है। महाभारत के एक प्रसंग से समझ सकते हैं कि हमारे लिए अधूरा ज्ञान कितना खतरनाक हो सकता है... अश्वथामा को था ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान महाभारत युद्ध के बाद का प्रसंग है। दुर्योधन ने मृत्यु से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का आखिरी सेनापति नियुक्त किया।


 उसने पांडवों के पांच पुत्रों, धृष्टधुम्र, शिखंडी सहित कई योद्धाओं को अकेले ही मार दिया। इसके बाद भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। अर्जुन भी उसके वध का प्रण कर घूम रहा था। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों के गुरु द्रौणाचार्य थे। सभी शस्त्रों के संधान में दोनों ही कुशल थे। युद्ध भयानक होता जा रहा था। अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा। दोनों अस्त्रों से पूरी धरती और मानव जाति का विनाश हो जाता। ये देखकर वेद व्यास बीच में आए और उन्होंने दोनों ब्रह्मास्त्रों को रोक दिया।


अर्जुन और अश्वत्थामा दोनों को ही उन्होंने बहुत समझाया। दोनों को अपने-अपने अस्त्र वापस लेने को कहा, अर्जुन ने व्यासजी का कहा मानकर तुरंत अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लिया। वेद व्यास ने जब उससे पूछा कि तुमने अपना अस्त्र वापस क्यों नहीं लिया, तो उसने जवाब दिया कि मुझे ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाने की विद्या का ज्ञान नहीं है। वेद व्यास बहुत क्रोधित हुए और कहा कि तुम्हें जिस विद्या का पूरा ज्ञान नहीं है उसका उपयोग ही क्यों किया। ये पूरी सृष्टि के लिए खतरा है।  ऐसा कहकर उसे शाप भी दिया। यह प्रसंग बताता है कि विद्या कोई भी हो, हमें उसका संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। अगर हम विद्या हासिल करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो हमें इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


     || जय श्री कृष्ण जी ||


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Wednesday, 17 April 2024

नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना 


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Tuesday, 16 April 2024

नवरात्रि पर्व का आठवां दिन और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का आठवां दिन और मां की पूजा अर्चना...



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Monday, 15 April 2024

नवरात्रि पर्व का सप्तम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का सप्तम दिवस और मां की पूजा अर्चना....


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Sunday, 14 April 2024

नवरात्रि पर्व का छठा दिन

 नवरात्रि पर्व का छठा दिवस और मां की पूजा अर्चना...


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Saturday, 13 April 2024

नवरात्रि पर्व का पंचम दिवस

नवरात्रि पर्व का पंचम दिवस..... मां की पूजा अर्चना...


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Friday, 12 April 2024

नवरात्रि पर्व का चतुर्थ दिवस

 नवरात्रि पर्व का चतुर्थ दिवस पर मां की पूजा अर्चना 


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Tuesday, 9 April 2024

विक्रम संवत 2081का शुभारंभ

 विक्रम संवत नववर्ष 2081 का शुभारंभ

               चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ 

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श्रीमद् दैवीयभागवत के अनुसार-

     नौ पूर्ण अंक माना जाता है।


नव दुर्गा,नवदा भक्ति, नवग्रह,नव शक्ति,नव संवत्सर,नव जीवन, नव यौवन, नव संकल्प, नव सृष्टि, ये सभी 9 के आकडे से संबंधित है।


 चैत्र नवरात्र का महत्व क्यों है-

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जहाँ तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है, क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदि शक्ति प्रकट हुई थी।और देवी के कहने से ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्णय का काम सुरू किया।इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू हुआ। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने पहला मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार जो भगवान राम का है वह चैत्र नवरात्रा में हुआ है।


धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है ऋतु के बदलने के समय रोग जिसे आसुरी शक्ति कहते है।उसका अंत करने हेतु हवन पुजन आदि होते है। और मौसम परिवर्तन के कारण उपवास भी किये जाते है।


आप सभी जन को नव विक्रम संवत् 2081की हार्दिक शुभकामनाएं। ये नववर्ष आपके एवं आपके परिजनों के लिए अत्यंत शुभ एवं मंगलदायक हो।


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           || जय माँ जगदम्बे ||

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Monday, 8 April 2024

सोमवती अमावस्या

 *सोमवती अमावस्या 08 अप्रैल सोमवार को*


*इस दिन अपनी राश‍ि के अनुसार करें दान*

अमावस्या माह में एक बार ही आती है,अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव है,चैत्र सोमवती अमावस्या 08 अप्रैल सोमवार को है,जब अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इस दिन पितरों का पिंडदान और अन्य दान-पुण्य संबंधी कार्य किये जाते हैं,मनुष्य इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करेगा उसे हर तरह से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। उसे सभी प्रकार के रोग और दुखों से मुक्ति प्राप्त होगी। चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि 08 अप्रैल सोमवार सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 08 अप्रैल सोमवार रात्रि 11 बजकर 51 मिनट तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि 08 अप्रैल सोमवार को होगी। इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, एवं पवित्र नदियों में स्नान,दान करना शुभ रहेगा। अगर किसी कारण वश नदियों में स्नान ना कर सके तो घर में ही पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें और किसी गरीब को यथा शक्ति दान अवश्य करें,अमावस्या के दिन नदी या तालाब में जाकर मछली को आटे की गोलियां खिलाना भी बड़ा ही फलदायी बताया जाता है। 


*अमावस्या पर करे ये उपाय*


 अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। 


अमावस्या को शास्त्र में बहुत शुभ दिन माना जाता है। इस दिन ये कुछ उपाय करने से आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है। आपको शुभ फल प्राप्त होता है। जानें कुछ उपाय..


अमावस्या तिथि के दिन सूर्योदय काल में पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है।


 तिल, दूध और तिल से बनी मिठाइयों का दान दरिद्रता मिटाने वाला है। 


प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करें। ध्यान के साथ पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें। इस क्रिया को करते समय 'ॐ पितृभ्य: नम:' मंत्र का जाप करें। उसके बाद पितृसूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है।


अमावस्या के दिन सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 3 बार अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय 'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र का जाप करें। 


अमावस्या पर नीलकंठ स्तोत्र का पाठ, सर्पसूक्त पाठ, श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिवंगत की पसंदीदा मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए। 


नि:संतानों की कुंडली में संतान प्राप्ति के योग बन जाते हैं। राहू नीच रूप में यदि किसी के भाग्‍य वाले स्‍थान पर बैठा हो तो इस दिन किया गया व्रत इसके दुष्‍प्रभाव को नष्‍ट कर देता है।


शाम के समय घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में लाल रंग के धागे का उपयोग करें। 


गरीबी दूर करने, संतान की प्राप्ति के लिए, व्यवसाय में उन्नति के लिए चांदी का छोटा सा पीपल बनाकर दान करें।


अमावस्या के दिन कालसर्प दोष वालों को सुबह स्नान कर के चांदी के नाग-नागिन की पूजा करनी चाहिए। उजले फूल के साथ इसे फिर किसी बहते पानी में प्रवाहित करें।


भगवान विष्णु के मन्दिर में झंडा लगाएं,मां लक्ष्मी को खीर मेवा डाल कर  प्रसाद भोग लगाएं माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।


ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा को मन का देवता माना जाता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता। इसका प्रभाव सबसे अधिक उन्ही लोगों पर पड़ता है जो बहुत भावुक होते है। लड़कियों का मन सबसे अधिक भावुक होता है।


इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता जिसके कारण हमारे शरीर में हलचल होने लगती है।और जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाले होते है उन्हें नकरात्मक शक्ति प्रभाव में ले लेती है।


*अमावस्या के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें*।


अमावस्या के दिन  किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए,ब्रम्चार्य का पालन करना चाहिए,इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए, व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए,काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए,किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।


*सोमवती अमावस्या के दिन अपनी राश‍ि के अनुसार  करें दान* 


अमावस्या के दिन आपके द्वारा किया जाने वाला दान आपकी राशि से जुड़ा हो। राशि के अनुसार आपके लिए कौन सा दान फलदायी साबित होगा,यहां जानें -

 

मेष राशि के लोगों को गुड़, मूंगफली, तिल,तांबा की वस्तु, दही का दान देना चाहिए। 


वृषभ राशि के लोगों के लिए सफेद कपड़े,

चांदी और तिल का दान करना उपयुक्त रहेगा।


मिथुन राशि के लोग मूंग दाल, चावल,

पीला वस्त्र, गुड़ और कंबल का दान करें। 


कर्क राशि के लोगों के लिए चांदी, चावल,सफेद ऊन, तिल और सफेद वस्त्र का दान देना उचित है।


सिंह राशि के लोगों को तांबा,गुड़, गेंहू,गौमाता का घी, सोने और मोती दान करने चाहिए। 


कन्या राशि के लोगों को चावल, हरे मूंग या हरे कपड़े का दान देना चाहिए।


तुला राशि के जातकों को हीरे, चीनी या कंबल,गुड़, सात तरह के अनाज का देना चाहिए। 


वृश्चिक राशि के लोगों को मूंगा, लाल कपड़ा,लाल वस्त्र, दही और तिल दान करना चाहिए।


धनु राशि के जातकों को वस्‍त्र, चावल, तिल,पीला वस्त्र और गुड़ का दान करना चाहिए।


मकर राशि के लोगों को गुड़,चावल,कंबल, गुड़ और तिल दान करने चाहिए। 


कुंभ राशि के जातकों के लिए काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी,कंबल, घी और तिल का दान चाहिए। 


मीन राशि के लोगों को रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल,चना दाल और तिल दान देने चाहिए।

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Monday, 1 April 2024

जय शीतला माता (सप्तमी अष्टमी पर्व )

 जय शीतला माता जी की

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सप्तमी और अष्टमी का पवित्र महत्व


शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। माता को बासी खाने के प्रसाद का भोग लगाया जाता है। शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी भोजन को एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है। दूसरे दिन शीतला माता को भोग लगाया जाता है।


सप्तमी और अष्टमी का पवित्र महत्व शीतला सप्तमी, शीतलाष्टमी और मां शीतला की महत्ता का उल्लेख स्कन्द पुराण में बताया गया है। यह दिन देवी शीतला को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शीतला माता चेचक, खसरा आदि की देवी के रूप में पूजी जाती है।इन्हें शक्ति के दो स्वरुप, देवी दुर्गा और देवी पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है। इस दिन लोग मां शीतला का पूजन  करते हैं, ताकि उनके बच्चे और परिवार वाले इस तरह की बीमारियों से बचे रह सके। 


कुछ लोग इसे सप्तमी के दिन मनाते हैं और कुछ प्रांतों में यह पर्व अष्टमी के दिन मनाया जाता है। दोनों ही दिन माता शीतला को समर्पित हैं। महत्वपूर्ण यह है कि माता शीतला का पूजन किया जाए। प्रचलित मान्यता अनुसार दोनों ही दिन पूजन से मां का आशीष मिलता है। शीतला माता के नाम से ही स्पष्ट होता है, मां किसी भी समस्या से शीतल राहत देती हैं। यदि किसी बच्चे को त्वचा संबंधी या अन्य गंभीर बीमारी हो जाए तो उन्हें मां शीतला का पूजन करना चाहिए इससे बीमारी में जल्द राहत मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करने से घर में कोई व्याधि नहीं रहती और परिवार निरोग रहता है। 


मां शीतला हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।  शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घंटकर्ण, त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु नाशक, रोगाणु नाशक, शीतल स्वास्थ्यवर्धक जल होता है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। 


           || शीतला माता की जय हो ||

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