Translate

Thursday, 30 March 2023

नवरात्रि पर्व की नवमी तिथि

 



#astro

#jyotishvastu

#astropawankv

#astropawankv.com

#astrology #astrologer #researchastrologer #vedicastrology #lalkitabastrology #naddiastrology #kpsystem #vastu #kundlivastu #horoscope #teva #varashphal #janamkundali #rashiratan #astropawankv #jyotishtips #vastuexpert #meditation #havan #paathjapp #9417311379 #jyotish

#9417311379 #astropawankv.blogspot.com


#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*


Wednesday, 29 March 2023

नवरात्रि पर्व का आठवां दिन

 नवरात्रि पर्व की अष्टमी...






#astro

#jyotishvastu

#astropawankv

#astropawankv.com

#astrology #astrologer #researchastrologer #vedicastrology #lalkitabastrology #naddiastrology #kpsystem #vastu #kundlivastu #horoscope #teva #varashphal #janamkundali #rashiratan #astropawankv #jyotishtips #vastuexpert #meditation #havan #paathjapp #9417311379 #jyotish

#9417311379 #astropawankv.blogspot.com

#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*

Tuesday, 28 March 2023

नवरात्रि पर्व का सातवां दिन...

 





#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*

Monday, 27 March 2023

नवरात्रि पर्व का छठा दिन..

 




#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*

Sunday, 26 March 2023

नवरात्रि पर्व का पंचम दिवस...



 

#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*

Saturday, 25 March 2023

नवरात्रि पर्व का चतुर्थ दिवस

 



#astropawankv

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu....).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*

Thursday, 23 March 2023

नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन



 

#Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B. ) & Monita Verma (Astro Vastu)  Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com

Wednesday, 22 March 2023

बिक्रम संवत 2080 चैत्र नवरात्रि पर्व

 विक्रम संवत नववर्ष 2080 का शुभारंभ

               चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ 

                      ******

श्रीमद् दैवीयभागवत के अनुसार-

     नौ पूर्ण अंक माना जाता है।


नव दुर्गा,नवदा भक्ति, नवग्रह,नव शक्ति,नव संवत्सर,नव जीवन, नव यौवन, नव संकल्प, नव सृष्टि, ये सभी 9 के आकडे से संबंधित है।


 चैत्र नवरात्र का महत्व क्यों है-

      *****************

जहाँ तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है, क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदि शक्ति प्रकट हुई थी।और देवी के कहने से ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्णय का काम सुरू किया।इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरू हुआ। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने पहला मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार जो भगवान राम का है वह चैत्र नवरात्रा में हुआ है।


धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है ऋतु के बदलने के समय रोग जिसे आसुरी शक्ति कहते है।उसका अंत करने हेतु हवन पुजन आदि होते है। और मौसम परिवर्तन के कारण उपवास भी किये जाते है।


           || जय माँ जगदम्बे ||

                  ✍

*Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B.) & Monita Verma (Astro Vastu).. Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www astropawankv.com*



Saturday, 18 March 2023

पापमोचनी एकादशी

 || आज पापमोचनी एकादशी है ||

       **************

     महत्व - 

चैत्र कृष्ण एकादशी पापमोचिनी है। यह पापों से मुक्त करती है। च्यवन ऋषि के उत्कृष्ट तपस्वी पुत्र मेधावी ने मंजुघोषा के संसर्ग से अपना संपूर्ण तप-तेज खो दिया था किंतु पिता ने उससे चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत कर वाया। तब उसके प्रभाव से मेधावी के सब पाप नष्ट हो गए और वह पहले की तरह अपने धर्म-कर्म, सदनुष्ठान और तपस्या में संलग्न हो गया। ऐसी पवित्रता पूर्ण पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाकर मनुष्‍य मोक्ष प्राप्ति की ओर बढ़ता है।


एकादशी को चावल क्यों नहीं खाते?

        **************

कथानुसार जिस दिन महर्षि मेधा ने शरीर त्यागा था, उस दिन एकादशी थी।इसके चलते ही एकादशी को चावल खाना निषेध मना गया है. ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के रक्त एवं मांस खाने के बराबर है, जिससे अपराध लगता है और अगले जन्म में व्यक्ति को सर्प के रूप में जन्म मिलता है।


   || विष्णु भगवान  जी की जय हो ||

               ✍

*#Astropawankv*

*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Research Astrologers Pawan Kumar Verma ( B.A.,D.P.I.,LL.B.) and Monita Verma (Astro Vastu ..) Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*





Tuesday, 7 March 2023

भक्त प्रह्लाद और होलिका

 *राम राम जी*


*भक्त प्रह्लाद और होलिका दहन*


*आज होलिका दहन पर विशेष*


*विष्णु पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा का उल्लेख है। प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। सनकादि ऋषियों के श्राप के कारण भगवान विष्णु के पार्षद जय एवं विजय को दैत्ययोनि में जन्म लेना पड़ा था।*


महर्षि कश्यप की पत्नी दक्षपुत्री दिति के गर्भ से दो महान पराक्रमी बालकों का जन्म हुआ। इनमें से बड़े का नाम हिरण्यकशिपु और छोटे का नाम हिरण्याक्ष था। दोनों भाइयों में बड़ी प्रीति थी। दोनों ही महाबलशाली, अमित पराक्रमी और आत्मबल संपन्न थे। दोनों भाइयों ने युद्ध में देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।


एक समय जब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को रसातल में ले जाकर छिपा दिया तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष का वध किया। अपने प्रिय भाई हिरण्याक्ष के वध से दुःखी होकर हिरण्यकशिपु ने दैत्यों को प्रजा पर अत्याचार करने की आज्ञा देकर स्वयं महेन्द्राचल पर्वत पर चला गया।


वह भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करने लगा। इधर दैत्यों के राज्य को राजाविहीन देखकर देवताओं ने उन पर आक्रमण कर दिया। दैत्यगण इस युद्ध में पराजित हुए और पाताल लोक को भाग गए। देवराज इन्द्र ने हिरण्यकशिपु के महल में प्रवेश करके उसकी पत्नी कयाधु को बंदी बना लिया। उस समय कयाधु गर्भवती थी, इसलिए इन्द्र उसे साथ लेकर अमरावती की ओर जाने लगे। रास्ते में उनकी देवर्षि नारद से भेंट हो गयी। नारद जी ने पुछा– ” देवराज! इसे कहाँ ले जा रहे हो ?“


इन्द्र ने कहा– ” देवर्षे ! इसके गर्भ में हिरण्यकशिपु का अंश हैं, उसे मार कर इसे छोड़ दूंगा।“ यह सुनकर नारदजी ने कहा– ” देवराज! इसके गर्भ में बहुत बड़ा भगवद्भक्त है, जिसे मारना तुम्हारी शक्ति के बाहर हैं, अतः इसे छोड़ दो।“ नारदजी के कथन का मान रखते हुए इन्द्र ने कयाधु को छोड़ दिया और अमरावती चले गए। नारदजी कयाधु को अपने आश्रम पर ले आये और उससे बोले– ” बेटी! तुम यहाँ आराम से रहो, जब तक तुम्हारा पति अपनी तपस्या पूरी करके नहीं लौटता।“


कयाधु उस पवित्र आश्रम में नारदजी के सुन्दर प्रवचनों का लाभ लेती हुई सुखपूर्वक रहने लगी, जिसका गर्भ में पल रहे शिशु पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। समय होने पर कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। इधर हिरण्यकशिपु की तपस्या पूरी हुई और वह ब्रह्माजी से मनचाहा वरदान लेकर वापस अपनी राजधानी चला आया। कुछ समय के बाद कयाधु भी प्रह्लाद को लेकर नारदजी के आश्रम से राजमहल में आ गयी।


www.astropawankv.com


जब प्रह्लाद कुछ बड़े हुए तब हिरण्यकशिपु ने उनके शिक्षा की व्यवस्था की। प्रह्लाद गुरु के सान्निध्य में शिक्षा ग्रहण करने लगे। एक दिन हिरण्यकशिपु अपने मंत्रियों के साथ सभा में बैठा हुआ था। उसी समय प्रह्लाद अपने गुरु के साथ वहाँ गए।


प्रह्लाद को प्रणाम करते देखकर हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी गोद में बिठाकर दुलार किया और कहा– ”वत्स! तुमने अब तक अध्ययन में निरंतर तत्पर रहकर जो कुछ सीखा हैं, उसमें से कुछ अच्छी बात सुनाओ।“ तब प्रह्लाद बोले– ”पिताजी! मैंने अब तक जो कुछ सीखा हैं उसका सारांश आपको सुनाता हूँ। जो आदि, मध्य और अंत से रहित, अजन्मा, वृद्धि-क्षय से शुन्य और अच्युत हैं, समस्त कारणों के कारण तथा जगत के स्थिति और अन्तकर्ता उन श्रीहरि को मैं प्रणाम करता हूँ।“


यह सुनकर दैत्यराज हिरण्यकशिपु के नेत्र क्रोध से लाल हो उठे, उसने कांपते हुए होठों से प्रह्लाद के गुरु से कहा– ”अरे दुर्बुद्धि ब्राह्मण! यह क्या ? तूने मेरी अवज्ञा करके इस बालक को मेरे परम शत्रु की स्तुति से युक्त शिक्षा कैसे दी ?“ गुरूजी ने कहा– ” दैत्यराज ! आपको क्रोध के वशीभूत नहीं होना चाहिए। आपका पुत्र मेरी सिखाई हुई बात नहीं कह रहा हैं।“


हिरण्यकशिपु बोला– ” बेटा प्रह्लाद! बताओ तुमको यह शिक्षा किसने दी हैं ? तुम्हारे गुरूजी कहते हैं कि मैंने तो इसे ऐसा उपदेश दिया ही नहीं हैं।“ प्रह्लाद बोले– ” पिताजी ! ह्रदय में स्थित भगवान विष्णु ही तो सम्पूर्ण जगत के उपदेशक हैं। उनको छोड़कर और कौन किसी को कुछ सीखा सकता हैं।“


हिरण्यकशिपु बोला– ” अरे मुर्ख! जिस विष्णु का तू निश्शंक होकर स्तुति कर रहा हैं, वह मेरे सामने कौन हैं ? मेरे रहते हुए और कौन परमेश्वर कहा जा सकता हैं ? फिर भी तू मौत के मुख में जाने की इच्छा से बार-बार ऐसा बक रहा हैं।“


ऐसा कहकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार से समझाया पर प्रह्लाद के मन से श्रीहरि के प्रति भक्ति और श्रद्धाभाव को कम नहीं कर पाया। तब अत्यंत क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने सेवकों से कहा–


”अरे! यह बड़ा दुरात्मा हैं। इसको मार डालो। अब इसके जीने से कोई लाभ नहीं हैं, क्योंकि यह शत्रुप्रेमी तो अपने कुल का ही नाश करने वाला हो गया हैं।“ हिरण्यकशिपु की आज्ञा पाकर उसके सैनिकों ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार से मारने की चेष्टा की पर उनके सभी प्रयास श्रीहरि की कृपा से असफल हो जाते थे।


उन सैनिकों ने प्रह्लाद पर अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से आघात किये पर प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। उन्होंने प्रह्लाद के हाथ-पैर बाँधकर समुद्र में डाल दिया, पर प्रह्लाद फिर भी बच गए। उन सबने प्रह्लाद को अनेकों विषैले साँपों से डसवाया और पर्वत शिखर से गिराया पर भगवद् कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। रसोइयों के द्वारा विष मिला हुआ भोजन देने पर प्रह्लाद उसे भी पचा गए।


www.astropawankv.com


जब प्रह्लाद को मारने के सब प्रकार के प्रयास विफल हो गए तब हिरण्यकशिपु के पुरोहितों ने अग्निशिखा के समान प्रज्ज्वलित शरीर वाली कृत्या उत्पन्न कर दी।


उस अति भयंकरी कृत्या ने अपने पैरों से पृथ्वी को कम्पित करते हुए वहाँ प्रकट होकर बड़े क्रोध से प्रह्लाद जी की छाती में त्रिशूल से प्रहार किया। पर उस बालक के छाती में लगते ही वह तेजोमय त्रिशूल टूटकर निचे गिर पड़ा। उन पापी पुरोहितों ने उस निष्पाप बालक पर कृत्या का प्रयोग किया था। इसलिए कृत्या ने तुरंत ही उन पुरोहितों पर वार किया और स्वयं भी नष्ट हो गई।


अन्य प्रचलित कथाओं के अनुसार कृत्या के स्थान पर होलिका का नाम आता हैं जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में प्रवेश कर गयी पर ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जल कर भस्म हो गई।


हिरण्यकशिपु के दूतों ने उसे जब यह समाचार सुनाया तो वह अत्यंत क्षुब्ध हुआ और उसने प्रह्लाद को अपनी सभा में बुलवाया। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से कहा– ”रे दुष्ट! जिसके बल पर तू ऐसी बहकी-बहकी बातें करता हैं, तेरा वह ईश्वर कहाँ हैं ? वह यदि सर्वत्र हैं तो मुझे इस खम्बे में क्यों नहीं दिखाई देता ?“ तब प्रह्लाद ने कहा– ” मुझे तो वे प्रभु खम्बे में भी दिखाई दे रहे हैं। “


यह सुनकर हिरण्यकशिपु क्रोध के मारे स्वयं को संभाल नहीं सका और हाथ में तलवार लेकर सिंघासन से कूद पड़ा और बड़े जोर से उस खम्बे में एक घूँसा मारा। उसी समय उस खम्बे से बड़ा भयंकर शब्द हुआ और उस खम्बे को तोड़कर एक विचित्र प्राणी बाहर निकलने लगा जिसका आधा शरीर सिंह का और आधा शरीर मनुष्य का था।


www.astropawankv.com


यह भगवान श्रीहरि का *नृसिंह अवतार* था। उनका रूप बड़ा भयंकर था। उनकी तपाये हुए सोने के समान पीली पीली आँखें थीं, उनकी दाढ़ी बड़ी विकराल थीं और वे भयंकर शब्दों से गर्जन कर रहे थे। उनके निकट जाने का साहस किसी में नहीं हो रहा था। यह देखकर हिरण्यकशिपु सिंघनाद करता हुआ हाथ में गदा लेकर नृसिंह भगवान पर टूट पड़ा।


तब भगवान भी हिरण्यकशिपु के साथ कुछ देर तक युद्ध लीला करते रहे और अंत में उसे झपटकर दबोच लिया और उसे सभा के दरवाजे पर ले जाकर अपनी जांघों पर गिरा लिया और खेल ही खेल में अपनी नखों से उसके कलेजे को फाड़कर उसे पृथ्वी पर पटक दिया।


फिर वहाँ उपस्थित अन्य असुरों और दैत्यों को खदेड़ खदेड़ कर मार डाला। उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। वे हिरण्यकशिपु की ऊँची सिंघासन पर विराजमान हो गए। उनकी क्रोधपूर्ण मुखाकृति को देखकर किसी को भी उनके निकट जाकर उनको प्रसन्न करने का साहस नहीं हो रहा था।


हिरण्यकशिपु की मृत्यु का समाचार सुनकर उस सभा में ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर, सभी देवगण, ऋषि-मुनि, सिद्ध, नाग, गन्धर्व आदि पहुँचे और थोड़ी दूरी पर स्थित होकर सभी ने अंजलि बाँध कर भगवान की अलग-अलग से स्तुति की पर भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ।


तब देवताओं ने माता लक्ष्मी को उनके निकट भेजा पर भगवान के उग्र रूप को देखकर वे भी भयभीत हो गयीं। तब ब्रह्मा जी ने प्रह्लाद से कहा– ”बेटा! तुम्हारे पिता पर ही तो भगवान क्रुद्ध हुए थे, अब तुम्ही जाकर उनको शांत करो।“


www.astropawankv.com


तब प्रह्लाद भगवान के समीप जाकर हाथ जोड़कर साष्टांग भूमि पर लौट गए और उनकी स्तुति करने लगे। बालक प्रह्लाद को अपने चरणों में पड़ा देखकर भगवान दयार्द्र हो गए और उसे उठाकर गोद में बिठा लिया और प्रेमपूर्वक बोले–


” वत्स प्रह्लाद ! तुम्हारे जैसे एकांतप्रेमी भक्त को यद्यपि किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं रहती पर फिर भी तुम केवल एक मन्वन्तर तक मेरी प्रसन्नता के लिए इस लोक में दैत्याधिपति के समस्त भोग स्वीकार कर लो।


भोग के द्वारा पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों के द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ जाओगे। देवलोक में भी लोग तुम्हारी विशुद्ध कीर्ति का गान करेंगे।“ यह कहकर भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।


विष्णु पुराण में पराशर जी कहते हैं– ” भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो मनुष्य सुनता है उसके पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और द्वादशी को इसे पढ़ने से मनुष्य को गोदान का फल मिलता हैं। जिस प्रकार भगवान ने प्रह्लाद जी की सभी आपत्तियों से रक्षा की थी उसी प्रकार वे सर्वदा उसकी भी रक्षा करते हैं जो उनका चरित्र सुनता हैं।“

🙏🙏

           *Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*




होलिका दहन विशेष...

 होलिका दहन विशेष-

        ************

संस्कृत साहित्य मे होली-

   ***********

प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों

का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है।  भगवान कृष्ण की लीलाओं में भी होली का वर्णन मिलता है | अन्य रचनाओं में ‘रंग’ नामक उत्सव का वर्णन है।


 जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली तथा कालिदास

की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् शामिल हैं।

कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही

 ‘वसन्तोत्सव’ को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य

कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है।


चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है।भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है।


आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्ति कालीन

सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि

अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है। चाहे वो सगुन साकार भक्तिमय प्रेम हो या निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम

या फिर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच का प्रेम हो,फाल्गुन माह का फाग भरा रस सबको छूकर गुजरा है।होली के रंगों के साथ साथ प्रेम के रंग में रंग जाने की चाह ईश्वर को भी है तो भक्त को भी है, प्रेमी को भी है तो

प्रेमिका को भी।


भविष्य पुराण होलिका की कथा-

      **************

भविष्य पुराण में वर्णित है कि सत्ययुग में राजा रघु के राज्य में माली नामक दैत्य की पुत्री ढोंढा या धुंधी थी।उसने शिव की उग्र तपस्या की। शिव ने वर माँगने को कहा। उसने वर माँगा- प्रभो! देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे मार न सकें तथा अस्त्र-शस्त्र आदि से भी मेरा वध न

 हो। साथ ही दिन में, रात्रि में, शीतकाल में, उष्णकाल तथा वर्षाकाल में, भीतर-बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय नहीं हो।' शिव ने तथास्तु कहा तथा यह भी चेतावनी दी कि तुम्हें उन्मत्त बालकों से भय होगा। वही ढोंढा नामक राक्षसी बालकों व प्रजा को पीड़ित करने लगी।


अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: 

 अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम: 


इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर

  पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।


अडाडा' मंत्र का उच्चारण करने पर वह शांत हो जाती थी। इसी से उसे 'अडाडा' भी कहते हैं। इस प्रकार भगवान शिव के अभिशाप वश वह ग्रामीण बालकों की शरारत, गालियों व चिल्लाने के आगे विवश थी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि होली के दिन ही सभी बालकों ने अपनी एकता के बल पर आगे बढ़कर धुंधी को गाँव से बाहर धकेला था। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए तथा चालाकी से उसकी ओर बढ़ते ही गये। यही कारण है कि इस दिन नवयुवक कुछ अशिष्ट भाषा में हँसी मजाक कर लेते हैं, परंतु कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता।


 || होली की अग्रिम हार्दिक बधाई ||

*Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379. www.astropawankv.com*