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Thursday, 8 June 2023

क्रोध पाप का मूल.. हमारा शत्रु

 *राम राम जी*


|| *क्रोध हमारा आंतरिक शत्रु है* ||

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    अनेक मतो का संकलन 

         

क्रोध प्राणहरः शत्रुः क्रोधऽमित्रमुखो रिपुः । 

   क्रोधोऽसि महातीक्षणः सर्व क्रोधोऽर्षति ॥ 


 त्पते यतते चैव यच्च दानं प्रयच्छति ।

   क्रोधेन सर्व हरति तस्मात क्रोधं विवजयेत् ॥ 

          (बाल्मीकि रामायण उत्तर-71)


अर्थात् क्रोध प्राण हरण करने वाला शत्रु, क्रोध अमित्र -मुखधारी बैरी है,क्रोध महा तीक्ष्ण तलवार है, क्रोध सब प्रकार से गिराने वाला है, क्रोध तप, संयम,और दान सभी हरण कर लेता है। अत एव, क्रोध को छोड़ देना चाहिए।


वाह्य शत्रुओं से सावधान रहकर बचा जा सकता है, 👉लेकिन इनसे अधिक भयंकर आंतरिक शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह होते हैं। इनसे बचना काफी मुश्किल होता है। आंतरिक शत्रुओं में से कोई एक आक्रमण कर दे तो जीव पराजित हो जाता है।महाराज दशरथ जब सभा से उठे तो उन पर👉 शत्रु काम ने आक्रमण कर दिया और वह कैकेयी के भवन की तरफ चल दिए थे।


 प्राचीन समय में बड़े-बड़े राजा -महाराजा ओं के बीच युद्ध का कारण भी क्रोध ही होता था,आज घरों में विवाद का कारण भी क्रोध ही है। अगर आपने क्रोध को शांत कर लिया, तो सारे विवाद अपने आप ही समाप्त हो जाएंगे।


 क्रोध हमारा आन्तरिक शत्रु है -

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क्रोध एक प्रकार का भूत है, जिसके संचार होते ही मनुष्य आपे में नहीं रहता। उस पर किसी दूसरी सत्ता का प्रभाव हो जाता है। मन की निष्ठ वृत्तियाँ उस पर अपनी राक्षसी माया चढ़ा देती हैं, वह बेचारी इतनी हतप्रत बुद्धि हो जाता है कि उसे यह ज्ञान ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है।


आधुनिक मनुष्य का आन्तरिक जीवन और मानसिक अवस्था अत्यन्त विक्षुब्ध है, दूसरों में वह अनिष्ट देखता है, उनसे हानि होने की कुकल्पना में डूबा रहता है, जीवन पर्यन्त इधर उधर लुढ़कता, ठुकराया जाता रहता है, शोक दुःख, चिंता, अविश्वास, उद्वेग, व्याकुलता आदि विकारों के वशीभूत होता रहता है। ये क्रोध जन्य मनोविकार अपना विष फैलाकर मनुष्य का जीवन विषैला बना रहे हैं। उसकी👉 आध्यात्मिक शक्तियों का शोषण कर रहे हैं। साधना का सबसे बड़ा विघ्न क्रोध नाम का महाराक्षस ही है।


क्रोध शान्ति भंग करने वाला मनोविकार है। एक बार क्रोध आते ही मन को अवस्था विचलित हो उठती है, श्वासोच्छवास तीव्र हो उठता है, हृदय विक्षुब्ध हो उठता है। यह अवस्था आत्मिक विकास के विपरीत है। आत्मिक उन्नति के लिए शान्ति, प्रसन्नता, प्रेम और सद्भाव चाहिए।

जो व्यक्ति क्रोध के वश में है, वह एक ऐसे दैत्य के वश में है, जो न जाने कब मनुष्य को पतन के मार्ग में धकेल दे। क्रोध तथा आवेश के विचार आत्म बल का ह्रास करते हैं।


        || क्रोध पाप का मूल  ||

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*राम राम जी*

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*Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.) & Monita Verma Astro Vastu... Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379. www.astropawankv.com*