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Monday 17 July 2023

हरियाली अमावस्या और श्रावण माह का दूसरा सोमवार

 || *हरियाली अमावस्या और श्रावण माह का दूसरा सोमवार..* ||

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*श्रावण का अर्थ-*

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श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना अर्थात सुनकर धर्म को समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है अर्थात उस ज्ञान को ईश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को सुनाया था।


अमावस्या पितरों की उपासना तिथि मानी जाती है। सोमवार के साथ अमावस्या का अद्भुत संयोग जीवन की हर मनोकामनाओं को पूरा कर सकता है। इस दिन उपवास रखकर शिवजी की पूजा और मंत्र जाप किए जाएं तो आर्थिक और पारिवारिक समस्याएं दूर हो जाती हैं।अगर कोई अज्ञात बाधा है तो इस दिन पूजा उपासना से विशेष लाभ लिया जा सकता है। अमावस्या के दिन शिवजी की पूजा प्रदोष काल में करना सर्वोत्तम होता है।


हरियाली अमावस्या का महत्व-

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 श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। वातावरण की हरियाली के कारण इसको हरियाली अमावस्या कहा जाता है। इस दिन दान, ध्यान और स्नान का विशेष महत्व है। इसके अलावा इस दिन विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पौधे भी लगाए जाते हैं। इस तिथि को पौधों के माध्यम से सम्पन्नता और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।


 || हरियाली अमावस्या की शुभकामनाएं ||


           *ॐ नमः शिवाय*


*विष को पचाने का सामर्थ्य केवल शिव भगवान महादेव जी में ही है*


                 *जरत सकल सुर वृंद, विषम गरल जेहि पान किय।*

   *तेहि न भजसि मन मंद, को कृपालु शंकर सरिस॥*

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*सर्व प्रथम सागर से निकला गरल (विष) प्राण संहारी,*

*पीकर जिसको नीलकंठ बन गये शंभू त्रिपुरारी।*


*विष को पचाने का सामर्थ्य शिव में ही है-*

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शिव के शरीर में सर्प लिपटे रहते हैं, ऐसा पुराणों में कहा गया है। सर्प साक्षात विष या मृत्यु का लक्षण है। किन्तु अमृतस्वरूप शिव पर उस विष या मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं होता। मानसिक या मनन समाधि के देवता है।


सचमुच विष पीकर शंकरजी ने समस्त संसार पर बड़ी कृपा की, अन्यथा विष की लपटों से प्राणिमात्र भस्म हो जाते। विष को पचाने का सामर्थ्य भगवान  शिव में ही था।इसी पराक्रम के कारण वे देव-देव या महादेव कहलाए। विष साक्षात् मृत्यु का रूप है, जो प्राणों का लोप कर देता है। विषपान के कारण ही शिवजी की संज्ञा मृत्युंजय हुई। वैसे तो सभी देवता अमर माने जाते हैं, किन्तु विष के रूप में साक्षात् स्थूल मृत्यु से लोहा लेकर और उसे अपने शरीर में पचाकर वास्तविक मृत्युंजय की उपाधि शिव को ही प्राप्त हुई।


विषपान करने पर भी शिव के शरीर से स्वर्गिक प्राण शक्ति की सुगंधि ही निकलती रही । मृत्यु की दुर्गन्ध उनका स्पर्श न कर सकी। वे मृत्यु से मुक्त होकर अमृत के गर्भ में प्रतिष्ठित हो गए। #लिंग पुराण में समुद्र मंथन की कथा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि विषपान करने के अनंतर शिवजी हिमालय की कंदरा में एकांत में जाकर बैठ गए। देवता उनकी स्तुति करना चाहते थे कि उन्होंने विषपान जैसा महान पराक्रम किया। उन्होंने देखा कि शिवजी हिमालय की गुफा में ध्यानरत हैं। देवता वहीं पहुंचें और उनकी प्रशंसा करने लगे कि महाराज आपने जैसा पराक्रम किया,वैसा आज तक किसी ने नहीं किया था।


भगवान शिवजी ने उत्तर दिया कि मैंने यह स्थूल विष पीकर कुछ भी विचित्र बात नहीं की। मेरी दृष्टि में वस्तुत: बड़ा वह है, जो इस संसार में भरे हुए विष को पचा सकता है। संसार को निचोड़ने से या अनुभव करने से जो विष सामने आता है, वह स्थूल की अपेक्षा कहीं अधिक भयंकर है। सब के लिए वह प्रकट होता है। उस पर विजय पाना ही सच्चा पुरुषार्थ है। 


      || *महामृत्युंजय की जय हो* ||

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# *Research Astrologers Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)& Monita Verma Astro Vastu... Verma's Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number..9417311379. www.astropawankv.com*