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Friday, 26 January 2024

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 || आज गणतंत्र दिवस है ||

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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक,संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।


26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है।


हमारा संविधान देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने का अधिकार देता है।आज हर नागरिक को भारत की गौरव-गाथा पर गर्व का अनुभव होता है। आजादी के बाद हम भारतवासियों ने बेशुमार उपलब्धियां हासिल की हैं, आज इन्हीं उपलब्धियों का जश्न और उत्सव मनाने का दिन है। आज हमें देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान बनाने वाले महापुरुषों को भी नमन करना चाहिए। हम और हमारा देश, बाबासाहब भीमराव आम्बेडकर का सदैव ऋणी रहेगा जिन्होंने संविधान निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


    ||  आप सभी जन को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ||




              

Thursday, 25 January 2024

पुष्य नक्षत्र और पीपल का वृक्ष

 पुष्य नक्षत्र.... पीपल का वृक्ष


नक्षत्र के वृक्ष होते है जिस नक्षत्र में आप का जन्म हो उस के वृक्ष की पूजा फल ,फ़ुल , जड़ के उपयोग से हम उपचार कर सकते है या जो नक्षत्र अशुभ ग्रस्त हो उसका भी उपचार हो सकता है। 

आज पुष्य नक्षत्र है उसका वृक्ष पीपल है । हमारी हिंदू संस्कृति में पीपल की गणना पवित्र वृक्ष में होती है ।भगवान कृष्ण जी ने गीता में कहा है वृक्षों में मैं पीपल हूं । पुष्य नक्षत्र में पीपल के ११ पत्ते लाकर व्यापार रोज़गार की जगह पे रखनें से धंधा -रोज़गार में फ़ायदा होता है । उसके औषधि गुण भी ज़्यादा है। पीपल के पत्ते खाने से दांत में दर्द हो तो उसमें लाभ होता है ।मान्यता है. कि पीपल के वृक्ष में कई औषधीय गुण छुपे हुए हैं. इस वृक्ष की पत्तियों से लेकर, फल और जड़ तक सभी हिस्से गुणकारी हैं.


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 पीपल का वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष है. इसमें प्रोटीन, फैट, कैल्शियम, आयरन इत्यादि कई  जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. आयुर्वेद के मुताबिक पीपल के वृक्ष से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. इस वृक्ष में मौजूद गुण सांस, दांत, सर्दी-जुकाम, खुजली और नकसीर , गुप्त रोग, प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य  परेशानियों इत्यादि को दूर करने में कारगर हैं. मान्यता है. पीपल के वृक्ष में कई औषधीय गुण छुपे हुए हैं. इस पेड़ की पत्तियों से लेकर, फल और जड़ तक सभी हिस्से गुणकारी हैं. पीपल का वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष होने के साथ साथ अपने आप में बहुत ही ज्यादा रहस्य समेटे हुए है जन्म से लेकर मृत्यु तक यह मानव जाति पशु पक्षियों के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ है


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 इसमें प्रोटीन, फैट, कैल्शियम, आयरन इत्यादि जैसे कई जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. आयुर्वेद के मुताबिक पीपल के वृक्ष से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है.


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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह गुरु ग्रह से संबंधित है और इसमें सूर्य के गुण भी विद्यमान हैं अगर आपकी जन्म कुंडली में गुरु, सूर्य, शनि ग्रह शुभ या अशुभ स्थिति में  है और आपको उनके फल अनुकूल नहीं मिल रहे हैं तो आपके लिए पीपल का वृक्ष उपाय परहेज़ के रूप बहुत ही ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकता है आप इसके दुबारा उपाय करके अपने लिए अनुकूल फल प्राप्त कर सकते हैं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार  ग्रहों के उपायों में, हवन पाठ में, ग्रहों की शुभ, अशुभ स्थिति ज्ञात होने पर उपाय/परहेज़ के रूप में  प्राचीन काल से ही पीपल के वृक्ष को प्रयोग में लाया जाता  रहा है वैज्ञानिकों ने भी इस पर अपने शोधों में पाया कि इसमें बहुत  ज्यादा औषधियां गुण तत्व है.. प्रकृति के लिए बहुत ज़रूरी है....

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अपनी जन्मकुंडली में ग्रहों की शुभ, अशुभ स्थिति की ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करें...

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राम राम जी

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Monday, 22 January 2024

हार्दिक शुभकामनाएं

 सज गया  अयोध्या धाम आ रहे हैं हम सभी के प्रभु श्री राम


महाप्रभु श्री राम जी के प्राण प्रतिष्ठा की समस्त देशवासियों को  बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई। आज का दिन हम सबके लिए शुभ दिन है जीवन का उत्तम दिन है आओ हम सब मिलकर राममय हो जाएं





Friday, 19 January 2024

राम नाम का महत्व, रहस्य

 

*_"राम'' के नाम का रहस्य..._*


भगवान राम के जन्म के पूर्व इस नाम का उपयोग ईश्वर के लिए होता था अर्थात *ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर आदि की जगह पहले ‘राम’ शब्द का उपयोग होता था,* इसीलिए इस शब्द की महिमा और बढ़ जाती है तभी तो कहते हैं कि राम से भी बढ़कर श्रीराम का नाम है। राम’ शब्द की ध्वनि हमारे जीवन के सभी दुखों को मिटाने की ताकत रखती है। यह हम नहीं ध्वनि विज्ञान पर शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि *राम नाम के उच्चारण से मन शांत हो जाता।*


*राम या मार :* राम का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात मार। मार बौद्ध धर्म का शब्द है। मार का अर्थ है- इंद्रियों के सुख में ही रत रहने वाला और दूसरा आंधी या तूफान। *राम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य विषयों में मन को रमाता है, मार उसे वैसे ही गिरा देती है, जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां।*


*अध्यात्म रामायण-* मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा *भगवान शंकर ने देवी पार्वती को सुनाई थी।* उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। *उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ।* काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। *भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात है।*” अध्यात्म रामायण’ को ही विश्व का प्रथम रामायण माना जाता है।


*हनुमन्नाटक-* हालांकि रामायण के बारे में एक मत और प्रचलित है और वो यह है कि *सबसे पहले रामायण हनुमानजी ने लिखी थी,* फिर महर्षि वाल्मीकि संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। ‘हनुमन्नाटक’ को हनुमानजी ने इसे एक शिला पर लिखा था। यह रामकथा वाल्मीकि की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और *‘हनुमन्नाटक’ के नाम से प्रसिद्ध है।* मान्यता है कि जब वाल्मीकिजी ने अपनी रामायण तैयार कर ली तो उन्हें लगा कि हनुमानजी के हनुमन्नाटक के सामने यह टिक नहीं पाएगी और इसे कोई नहीं पढ़ेगा।


हनुमानजी को जब महर्षि की इस व्यथा का पता चला तो उन्होंने उन्हें बहुत सांत्वना दी और *अपनी रामकथा वाली शिला उठाकर समुद्र में फेंक दी, जिससे लोग केवल वाल्मीकिजी की रामायण ही पढ़ें और उसी की प्रशंसा करें।* समुद्र में फेंकी गई हनुमानजी की रामकथा वाली शिला राजा भोज के समय में निकाली गयी।


*गोस्वामी तुलसीदास,* जिनका जन्म सन् 1554 ई. हुआ था, ने रामचरित मानस की रचना की। सत्य है कि *रामायण से अधिक रामचरित मानस को लोकप्रियता मिली है* लेकिन यह ग्रंथ भी रामायण के तथ्यों पर ही आधारित है।श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। *इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं-*


*गोस्वामी जी  कहते हैं :-*


महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥ (मानस, बाल, दोहा-19/3) 


*यह ‘राम’ नाम महामंत्र है जिसे महेश्वर, भगवान शंकर जपते हैं* और उनके द्वारा यह राम नाम उपदेश का काशी में मुक्ति का कारण है। ‘र’, ‘आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरों के मिलने से *यह राम नाम तो हुआ ‘महामंत्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मंत्र।*


 ''सप्तकोट्य महामंत्राश्चित्तविभ्रमकारका:। एक एव परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यक्षरद्वयम्''॥


सात करोड़ मंत्र हैं। वे चित्त को भ्रमित करने वाले हैं। यह दो अक्षरों वाला राम नाम परम मंत्र है। *यह सब मंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र है।* सब मंत्र इसके अंतर्गत आ जाते हैं। कोई भी मंत्र बाहर नहीं रहता।  सब शक्तियां इसके अंतर्गत हैं।


*यह ‘राम’ नाम काशी में मरने वालों की मुक्ति का हेतु है।* भगवान शंकर मरने वालों के कान में यह राम नाम सुनाते हैं और इसको सुनने से काशी में उन जीवों की मुक्ति हो जाती है। एक सज्जन कह रहे थे कि काशी में मरने वालों का दायां कान ऊंचा हो जाता है-ऐसा मैंने देखा है। मानव मरते समय दाएं कान में भगवान शंकर राम नाम मंत्र देते हैं। इस विषय में  कहा गया है कि *‘‘जब प्राणों का प्रयाण होता है तो उस समय भगवान शंकर उस प्राणी के कान में राम नाम सुनाते हैं।परन्तु क्यों सुनाते हैं?*


वे यह विचार करते हैं कि भगवान से विमुख जीवों की खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दंड देते हैं परंतु मैं संसार भर का मालिक हूं। *लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं* और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरी में आकर यमराज दंड दे तो यह ठीक नहीं है। अरे भाई, किसी को दंड या पुरस्कार देना तो मालिक का काम है। *राजा की राजधानी में बाहर से दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजा की पोल निकलती है न।* सारे संसार में नहीं तो कम से कम वाराणसी में जहां मैं बैठा हूं, यहां आकर यमराज दखल दे, यह कैसे हो सकता है।


काशी में ‘वरुणा’ और ‘असी’ दोनों नदियां गंगा जी में आकर मिलती हैं। *उनके बीच का क्षेत्र ‘वाराणसी’ है।* इस क्षेत्र में मछली हो या मेंढक हो या अन्य कोई जीव जंतु हों, आकाश में रहने वाले हों या जल में रहने वाले हों या थल में रहने वाले जीव हों *उनको भगवान शंकर मुक्ति देते हैं।* यह है काशी वास की महिमा। काशी की महिमा बहुत विशेष मानी गई है। यहां रहने वाले यमराज की फांसी से दूर हो जाएं इसके लिए शंकर भगवान हरदम सजग रहते हैं। *मेरी प्रजा को काल का दंड न मिले ऐसा विचार हृदय में रखते हैं।*


अध्यात्म रामायण में भगवान श्री राम की स्तुति करते हुए भगवान शंकर कहते हैं- *जीवों की मुक्ति के लिए आपका ‘राम’ नाम रूपी जो स्तवन है अंत समय में मैं इसे उन्हें सुना देता हूं जिससे उन जीवों की मुक्ति हो जाती है-*


‘अहं हि काश्यां...दिशामि मंत्रं तव राम नाम।’


जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं अंत राम कहि आवत नाहीं॥


अंत समय में राम कहने से वह फिर जन्मता-मरता नहीं। ऐसा राम नाम है। भगवान ने ऐसा मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया। *कोई भी अन्न का क्षेत्र खोले तो पास में पूंजी चाहिए।* बिना पूंजी के अन्न कैसे देगा? शंकर जी कहते हैं-हमारे पास ‘राम’ नाम की पूंजी है। इससे जो चाहे मुक्ति ले लो।


*मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर।*


*जहं बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न॥*


यह काशी भगवान शंकर का मुक्ति क्षेत्र है। *यह राम नाम की पूंजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं।* अनंत जीवों की मुक्ति कर देने पर भी इसमें कमी नहीं आती। आए भी तो कहां से। वह अपार है, असीम है।


*नाम की महिमा कहते-कहते गोस्वामी जी  कहते हैं :*


कहौं कहां लगि नाम बड़ाई, रामु न सकङ्क्षह नाम गुन गाई॥ (बाल.दो.26/8)


*भगवान श्री राम भी नाम का गुणगान नहीं गा सकते। इतने गुण राम नाम में हैं।*


‘महामंत्र जोइ जपत महेसू’ इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामंत्र इतना विलक्षण है कि महामंत्र राम नाम जपने से ‘ईश’ भी महेश हो गए। महामंत्र का जप करने से आप भी महेश के समान हो सकते हैं।


*भगवान के चरित्र अनंत हैं .* उन चरित्र को लेकर नाम जप भी अनंत ही होगा .वाल्मीकि ने सौ करोड़ श्लोकों की रामायण बनाई , तो सौ करोड़ श्लोकों की रामायण को भगवान शंकर के आगे रख दिया *जो सदैव राम नाम जपते रहते हैं .* उन्होनें उसका उपदेश पार्वती को दिया .भगवान शंकर ने रामायण को तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया . तीन लोकों को तैंतीस - तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया . उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच और उस एक हज़ार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया . उसके भी तीन भाग किए *एक श्लोक बच गया .* इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया . एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं उसमें दस - दस करके तीनों को दे दिए तो *अंत में दो ही अक्षर बचे भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए . राम अक्षर में ही पूरी रामायण है , पूरा शास्त्र है .*


राम नाम वेदों के प्राण के सामान है . *शास्त्रों का और वर्णमाल का भी प्राण है .* प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है . प्रणव तीन मात्र वाल ॐ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय . ऋक , साम और यजुः - ये तीन प्रमुख वेद बने . *इस प्रकार ॐ कार [ प्रणव ] वेदों का प्राण है .* राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है , क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है . जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा . *ऐसे ही ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा .* प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है . इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है .


*नाम और रूप दोनों ईश्वर कि उपाधि हैं . भगवान् के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि है . सुन्दर, शुद्ध भक्ति युक्त बुद्धि से ही इसका दिव्य अविनाशी स्वरुप जानने में आता है . राम नाम लोक और परलोक में निर्वाह करने वाला होता है . लोक में यह देने वाला चिंतामणि और परलोक में भगवत्दर्शन कराने वाला है. वृक्ष में जो शक्ति है वह बीज से ही आती है इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती ही .*


राम नाम अविनाशी और व्यापक रूप से सर्वत्र परिपूर्ण है . सत् है , चेतन है और आनंद राशि है . उस आनंद रूप परमात्मा से कोई जगह खाली नही , कोई समय खाली नहीं , कोई व्यक्ति खाली नही कोई प्रकृति खाली नही ऐसे परिपूर्ण , ऐसे अविनाशी वह निर्गुण है . वस्तुएं नष्ट जाती है, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं , समय का परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है , लेकिन यह सत् - तत्व ज्यों -त्यों ही रहता है इसका विनाश नही होता है इसलिए यह सत् है .


*जीभ वागेन्द्रिय है उससे राम राम जपने से उसमें इतनी अलौकिकता आ जाती है की ज्ञानेन्द्रिय और उसके आगे अंतःकरण और अन्तः कारण से आगे प्रकृति और प्रकृति से अतीत परमात्मा तत्व है , उस परमात्मा तत्व को यह नाम  जगा दे ऐसी उसमें शक्ति है .*


राम नाम मणिदीप है . एक दीपक होता है एक मणिदीप होता है . तेल का दिया दीपक कहलाता है मणिदीप स्वतः प्रकाशित होती है . जो मणिदीप है वह कभी बुझती नहीं है . जैसे दीपक को चौखट पर रख देने से घर के अंदर और भर दोनों हिस्से प्रकाशित हो जाते हैं वैसे ही राम नाम को जीभ पर रखने से अंतःकरण और बाहरी आचरण दोनों प्रकाशित हो जाते हैं .


*यानी भक्ति को यदि ह्रदय में बुलाना हो तो, राम नाम का जप करो इससे भक्ति दौड़ी चली आएगी .*


अनेक जन्मों से युग युगांतर से जिन्होंने पाप किये हों उनके ऊपर राम नाम की दीप्तिमान अग्नि रख देने से सारे पाप कटित हो जाते हैं .राम के दोनों अक्षर मधुर


*और सुन्दर हैं . मधुर का अर्थ रचना में रस मिलता हुआ और मनोहर कहने का अर्थ है की मन को अपनी ओर खींचता हुआ . राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आँखें हैं .राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है.*


जगत में सूर्य पोषण करता है और चन्द्रना अमृत वर्षा करता है है . राम नाम विमल है जैसे सूर्य और चंद्रमा को राहु - केतु ग्रहण लगा देते हैं , लेकिन राम नाम पर कभी ग्रहण नहीं लगता है . चन्द्रमा घटा बढता रहता है लेकिन राम तो सदैव बढता रहता है .यह सदा शुद्ध है अतः यह निर्मल चन्द्रमा और तेजश्वी सूर्य के समान है .


*अमृत के स्वाद और तृप्ति के सामान राम नाम है . राम कहते समय मुंह खुलता है और म कहने पर बंद होता है . जैसे भोजन करने पर मुख खुला होता है और तृप्ति होने पर मुंह बंद होता है . इसी प्रकार रा और म अमृत के स्वाद और तोष के सामान हैं .*


छह कमलों में एक नाभि कमल [ चक्र ] है उसकी पंखुड़ियों में भगवान के नाम है , वे भी दिखने लग जाते हैं . आँखों में जैसे सभी बाहरी ज्ञान होता है ऐसे नाम जाप से बड़े बड़े शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है , जिसने पढ़ाई नहीं की , शास्त्र शास्त्र नहीं पढ़े उनकी वाणी में भी वेदों की ऋचाएं आती है. वेदों का ज्ञान उनको स्वतः हो जाता है ..


*राम रहस्य:-*


*प्रसिद्ध संत शिवानंद निरंतर राम का नाम जपते रहते थे। एक दिन वे जहाज पर यात्रा के दौरान रात में गहरी नींद में सो रहे थे। आधी रात को कुछ लोग उठने लगे और आपस में बात करने लगे कि ये राम नाम कौन जप रहा है। लोगों ने उस विराट, लेकिन शांतिमय आवाज की खोज की और खोजते-खोजते वे शिवानंद के पास पहुँच गए।सभी को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ की शिवानंद तो गहरी नींद में सो रहे है, लेकिन उनके भीतर से यह आवाज कैसे निकल रही है। उन्होंने शिवानंद को झकझोर कर उठाया तभी अचानक आवाज बंद हो गई। लोगों ने शिवानंद को कहा आपके भीतर से राम नाम की आवाज निकल रही थी इसका राज क्या है। उन्होंने कहा ''मैं भी उस आवाज को सुनता रहता हूँ। पहले तो जपना पड़ता था राम का नाम अब नहीं। बोलो श्रीराम।''कहते हैं जो जपता है राम का नाम ...राम जपते हैं उसका नाम।*


          *जय जय श्री राम*

Thursday, 18 January 2024

लग्नेश सप्तम में ...

 *लग्नेश सप्तम भाव में*


*प्रथमपतौ सप्तमगे तेजस्वी*

*शील वान् भवेत् पुरुषः।*

*तद् भार्यापि  सुशीला*

*तेजः कलिता सुरुपा च।।*

*लग्नेश सप्तम भाव में हो तो जातक तेजस्वी , अच्छे स्वभाव वाला , शीलवान , और उसकी पत्नी सुशीला , अच्छे स्वभाव वाली , तेजस्विनी  व रूपवती हो सकती है।*

             *मानसागरी*


*2. लग्नेश यदि पाप ग्रह हो तो जातक की स्त्री का नाश ,*

*शुभ ग्रह हो भ्रमण करने वाला , दरिद्री में रहने वाला , विरागी राजा हो सकता है।*


     *जातक पारिजात*


*कुंडली में सप्तम भाव को बहुत ही कोमल भाव माना जाता है।*

*इस भाव में बैठा ग्रह जातक को ज्यादा प्रभावित करता है।*


*यो यो भावः युतोवास्वामिदृष्टो*


*लग्नेश सप्तम में है तो लग्न को देखेगा तो लग्न से विचारणीय सब फल अच्छे होंगे।*

*और लग्नेश जहां बैठेगा उस भाव के फलों की वृद्धि करेगा तो सप्तम के फल अच्छे होंगे।*

*बाकी ग्रह अपनी मूल प्रकृति के अनुसार तो फल देंगे ही देंगे।*


*सप्तम भाव से विपरीत का विचार किया जाता है।*

*यदि पुरुष है तो स्त्री का और यदि स्त्री है तो पुरुष का ।*

*चार तत्वों को आधार बनाकर इसे देखें तो दो तत्व*

*में तो सामंजस्य बनता है ओर दो तत्वों में भड़काव अथवा विद्रोह की सम्भावना दिखती है।*


*उदाहरण स्वरुप*

*1.यदि लग्न अग्नि तत्वीय है तो सप्तम वायु तत्वीय होगा*

*और*

*यदि लग्न वायु तत्वीय है तो सप्तम अग्नि तत्वीय।*

*ऐसे में पति पत्नी को आपस अधिक सामंजस्य बना कर रखना चाहिए।* *अन्यथा आए दिन घर में क्लेश पुर्ण वातावरण बना रह सकता है।*

*क्यों कि लग्नेश वहां है तो अपने स्वभाव अनुसार सप्तम का फल बड़ा देगा।*

*और यहां विडम्बना यह बन जाएगी उसका पार्टनर उस ग्रह के स्वभाव को ग्रहण कर लग्न को देखेगा और साथ में सप्तम भाव का तत्व भी उसमें आ जाएगा*

*जो कि स्थिति को आए दिन विकट बनाता रहेगा परिवार में।*

*ऐसों को भगवत कृपा का आश्रय आवश्य लेना चाहिए।*

*अन्यथा कुछ अन्य ग्रहों ने भी प्रभाव डाल दिया तो स्थिति विच्छेदात्मक बन सकती है।*


*2. इसके विपरित अगर* *लग्न पृथ्वी तत्वीय है तो* *सप्तम जल तत्वीय होगा*

*और लग्न जल तत्वीय है तो* *सप्तम पृथ्वी तत्वीय होगा।*

*ऐसे में सामंजस्य बने रहने की सम्भावना अधिक हो जाती है।*

*ग्रहानुसार कुछ मतभेद तो  होंगें, लेकिन उनमें धैर्यशीलता, विवेकशीलता बनी रहेगी।*

*वो सम्बन्धों को तोड़ने का ख्याल नहीं करेंगे उल्टा एक दुसरे का ख्याल  रखेंगे।*

*चाहे बाहर से कैसा भी व्यवहार करें।*

*लेकिन अन्दर से उनमें भावनात्मक जुड़ाव  होगा।*


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Sunday, 14 January 2024

मकर संक्रांति

 Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं...


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Tuesday, 9 January 2024

भगवान और आप....

 *मीरा जी जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे।*


*सूरदास जी जब पद गाते थे तब भी भगवान सुनते थे।* 

*और कहाँ तक कहूँ कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया:- चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है।*

*एक चींटी कितनी छोटी होती है अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है।*

*यदि आपको लगता है कि आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।*

*कभी प्रेम से दिल से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही।* *बुद्धिमान बन कर नहीं... बुद्धिहीन बन कर पुकारो उनकी याद में प्रेम से आंसू गिरायो तो सही....*


*मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि केवल भगवान ही है जो आपकी बात को सुनता है।*

*एक छोटी सी कथा संत बताते है:-*

*एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।*


*अंत में भगवान ने उनकी परिक्षा लेते हुऐ कहा:- अरे भक्त! तू सोचता है कि मैं तेरे गीता के पाठ से खुश हूँ, तो ये तेरा वहम है।*

*मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।*


*जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा।*


*भगवान ने बोला:- अरे! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नही हूँ और तू नाच रहा है।*

*वो भक्त बोला:- भगवान जी आप खुश हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता।*

*लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूँ कि आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूँ।*


*ये होता है भाव....*

*थोड़ा सोचिये जब द्रौपती जी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?*

*भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई।*

*जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?*

*बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर आये।*

*कबीरदास जी, तुलसी दास जी, सूरदास जी,*

*मीरा बाई जी,  रवि दास जी श्री जी.......जाने कितने संत हुए जो भगवान से बात करते थे और भगवान भी उनकी सुनते थे।*


*इसलिए जब भी भगवान को याद करो उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना की भगवान आपकी पुकार सुनते होंगे या नहीं?*


*कोई संदेह मत करना, बस ह्रदय से उनको पुकारना, तुम्हे खुद लगेगा कि हाँ, भगवान आपकी पुकार को सुन रहे है !* बुद्धिमान बन कर नहीं बुद्धिहीन बन कर.......

        *राधे राधे*


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Monday, 1 January 2024

वर्ष 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं

 *राम राम जी*


*सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने|*

*लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ||*


```जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी तरह यह वर्ष 2024आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।```

जीवन पथ पर नव वर्ष 2024मान-सम्मान, यश, कीर्ति, प्रेम और सुख शांति के साथ उन्नतिशील वर्ष हो।यह वर्ष आपके जीवन मे आपार सुख समृद्धि, संपन्नता लेकर आये ¦  यह पावन पर्व आपके जीवन को प्यार मोहब्बत खुशी उमंग उत्साह सफलता सौहार्द आदि से भर दे ! इसी मंगलकामनाओ के साथ,


   *आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे पुरे परिवार की तरफ से वर्ष 2024 की हार्दिक बधाई व  शुभकामनायें !*_🌹🙏🏼


*राधे कृष्णा*

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