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Saturday, 8 December 2018

टेवा/जन्मकुंडली देखने के लिए जरूरी नियम..

टेवा/जन्मकुंडली देखने के नियम.....

मेरा रहस्यमयी ज्योतिष शास्त्रों के रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान  की बुनियाद पर जन्म पत्री/ जन्मकुंडली  /टेवा बनाने और  देखने के नियम:-.....
* जन्मकुंडली /टेवा  बनाने या देखने के लिए ..जरूरी...

1. आप  मुझे अपने  दोनों हाथ की फोटो  (हस्त रेखा के लिए)।
2. जन्म का पूरा विवरण   (जन्म पत्री / टेवा  के लिए ।
3. चेहरे की फोटो (फेस रीडिंग के
लिए)
के लिए भेजें या आप खुद आकर मिले ...
सभी विचार विमर्श फोन पर किया जायेगा । अथवा आप फ़ोन पर समय लेकर मेरे ऑफिस में आकर मुझे मिल सकते हैं व्  सशुल्क परामर्श कर सकते है ..... आज ही सशुल्क परामर्श लें।
कभी सोचा है आप ....
  कि आप लोग जो इतनी पूजा -पाठ करते है या फिर इतने उपाओ करते है और  फिर भी परेशान ही रहते है  ऐसा क्यों ..... या तो  हमे पूजा -पाठ और उपाओ का विधि - विधान नहीं पता है या  फिर उसके पीछे छुपा ज्ञान नहीं पता.. हमे धर्म  पूजा-पाठ, उपायों के नाम के पीछे छुपे  रहस्यमयी ज्ञान का पता ही  नहीं ..बस एक अंधी दौड सी लगी हुई  है और हम सब बिना कुछ सोचे- समझे जाने बस भाग रहे है यही हमारा दुर्भाग्य है जिस  के कारण हम लोग दुखी कष्ट और परेशानियों   वाला जीवन जी रहे है ....... टेवा/जन्मकुंडलियों को दिखाए बिना कोई भी उपाए नहीं करना चाहिए..................

अपनी जन्मकुंडली / टेवा  को रहस्यमयी  ज्योतिष शास्त्रों के रहस्यमयी ज्योतिष  ज्ञान से दरुस्त करवाने या बनबाने या फिर दिखाने  के लिए और अपनी जन्मकुंडली / टेवा   या वर्षफल  के  उपायों और परहेज  को जानने के लिए आप मुझ से संपर्क कर सकते हो ।
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यदि आप में से कोई भी अपनी जन्मकुंडली/ टेवा घर बैठे दिखाना चाहते हैं और अपने वर्षफ़ल/जन्मकुंडली के उपाय/परहेज जानना चाहते हैं या अपनी जन्मकुंडली/टेवा /वास्तु कुंडली वर्षफ़ल ( लाल किताब-वैदिक ) बनवाना चाहते हैं।तो आप हमें अपनी पूरी जानकारी व्हाट्सअप ( whatsapp ) नंबर 9417311379 पर भेज सकते हैं।और अपनी फीस paytm नम्बर 9815911379 पर भेजें और फिर मेसेज अवश्य करें।

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#Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.) Research Astrologer

Mrs.Monita Verma
(Astro. Vastu Consultant )

Office 7728/4 St.no.5 new guru angad colony
Behind A.T.I.College Ludhiana.3
 LUDHIANA PUNJAB BHARAT.



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Wednesday, 7 November 2018

दीपावली पूजन

*दीपावली की सरल एवं सम्पूर्णपूजा विधि-जिसके द्वारा आप स्वयं आराम से माता लक्ष्मी का सम्पूर्ण पूजन कर के उनकी सम्पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकते है-*

हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई।

“ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।
       
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दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक  दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन सामग्री भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ के पसंद को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के पसंदीदा रंग लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद फूलों की बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों का भी खास महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है।
माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब और चंदन के इत्र का इस्तेमाल करें।

दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए अहम दूसरी चीजों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं।

*चौकी सजाना-*

(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूक, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र

सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
       
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मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।

इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-

1. ग्यारह दीपक,

2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान,

 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इन थालियों के सामने पूजा करने वाला बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
       
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हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले और पुराने सिक्को के साथ इख्ठा रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी सिक्को को तिजोरी में रख दे।

*पूजा की सम्पूर्ण एवं संक्षिप्त विधि स्वयं करने के लिए-*

*पवित्रीकरण-*

हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण मन्त्र

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः

कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब आचमन करें-

पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ केशवाय नमः

और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ वासुदेवाय नमः

   
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इसके बाद संभव हो तो किसी किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न मंत्र से पुष्प अर्पण करें।

शुभम करोति कल्याणम,
अरोग्यम धन संपदा,
शत्रु-बुद्धि विनाशायः,
दीपःज्योति नमोस्तुते !

*पूजन हेतु संकल्प -*

इसके बाद बारी आती है संकल्प की। जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) रवि वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

*श्री गणेश पूजन-*

किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम श्री गणेश को पूजा जाता है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें।
इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र पढ़े
 – गजाननम्भूतगणादिसेवितं
कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

   
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*गणपति आवाहन:-* ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहने के बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे।

इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से स्नान करवाये पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराए अर्घा में जल लेकर बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

रक्त चंदन लगाएं- इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को अर्पित करें। उन्हें वस्त्र पहनाएं और कहें – इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद श्री गणेश को प्रसाद अर्पित करें और बोले – इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

*इसी प्रकार अन्य देवताओं का भी पूजन करें बस जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश जी के स्थान पर उस देवता का नाम लें।*

*कलश पूजन-*

इसके लिए लोटे या घड़े पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत व् मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटे। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देव का कलश में आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

इसके बाद इस प्रकार श्री गणेश जी की पूजन की है उसी प्रकार वरुण देव की भी पूजा करें। इसके बाद इंद्र और फिर कुबेर जी की पूजा करें। एवं वस्त्र सुगंध अर्पण कर भोग लगाये इसके बाद इसी प्रकार क्रम से कलश का पूजन कर लक्ष्मी पूजन आरम्भ करे
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*माता लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ-*

सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।

ॐ या सा पद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः,
स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

अब माँ लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें👉 हाथ में अक्षत लेकर मंत्र कहें – “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”

प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं और मंत्र बोलें – ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मा लक्ष्मी के क्रम से अंगों की पूजा करें।

*माँ लक्ष्मी की अंग पूजा-*

बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़े थोड़े छोड़ते जाए और मंत्र कहें – ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

*अष्टसिद्धि पूजा-*

अंग पूजन की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंतोच्चारण करते रहे। मंत्र इस प्रकर है – ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
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*अष्टलक्ष्मी पूजन -*

अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:

*नैवैद्य अर्पण-*

पूजन के बाद देवी को “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।

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माँ को यथा सामर्थ वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य अर्पण कर दक्षिणा चढ़ाए दूध, दही, शहद, देसी घी और गंगाजल मिलकर चरणामृत बनाये और गणेश लक्ष्मी जी के सामने रख दे। इसके बाद 5 तरह के फल, मिठाई खील-पताशे, चीनी के खिलोने लक्ष्मी माता और गणेश जी को चढ़ाये और प्राथना करे की वो हमेशा हमारे घरो में विराजमान रहे। इनके बाद एक थाली में विषम संख्या में दीपक 11,21 अथवा यथा सामर्थ दीप रख कर इनको भी कुंकुम अक्षत से पूजन करे इसके बाद माँ को श्री सूक्त अथवा ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनाये पाठ के बाद माँ से क्षमा याचना कर माँ लक्ष्मी जी की आरती कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद थाली के दीपो को घर में सब जगह रखे। लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन करने के बाद, सभी को जो पूजा में शामिल हो, उन्हें खील, पताशे, चावल दे।
सब फिर मिल कर प्राथना करे की माँ लक्ष्मी हमने भोले भाव से आपका पूजन किया है ! उसे स्वीकार करे और गणेशा, माँ सरस्वती और सभी देवताओं सहित हमारे घरो में निवास करे। प्रार्थना करने के बाद जो सामान अपने हाथ में लिया था वो मिटटी के लक्ष्मी गणेश, हटड़ी और जो लक्ष्मी गणेश जी की फोटो लगायी थी उस पर चढ़ा दे।
लक्ष्मी पूजन के बाद आप अपनी तिजोरी की पूजा भी करे रोली को देसी घी में घोल कर स्वस्तिक बनाये और धुप दीप दिखा करे मिठाई का भोग लगाए।
लक्ष्मी माता और सभी भगवानो को आपने अपने घर में आमंत्रित किया है अगर हो सके तो पूजन के बाद शुद्ध बिना लहसुन-प्याज़ का भोजन बना कर गणेश-लक्ष्मी जी सहित सबको भोग लगाए। दीपावली पूजन के बाद आप मंदिर, गुरद्वारे और चौराहे में भी दीपक और मोमबतियां जलाएं।
रात को सोने से पहले पूजा स्थल पर मिटटी का चार मुह वाला दिया सरसो के तेल से भर कर जगा दे और उसमे इतना तेल हो की वो सुबह तक जल सके।

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*माँ लक्ष्मी जी की आरती*


ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत
हर विष्णु विधाता .
ॐ जय लक्ष्मी माता ...

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
ओ मैया तुम ही जग माता .
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता
ओ मैया सुख सम्पति दाता .
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता
ओ मैया तुम ही शुभ दाता .
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता
ओ मैया सब सद्गुण आता .
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
ओ मैया वस्त्र न कोई पाता .
ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
ओ मैया क्षीरोदधि जाता .
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता
ओ मैया जो कोई जन गाता .
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..

*सभी मित्रो को प्रकाश पर्व की ढेरों शुभकामनाये।*
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Wednesday, 10 October 2018

नवरात्रों की सरल पूजा

*दुर्गा जी के पूजन की सरल एवं सम्पूर्ण पूजा विधि- जिसके द्वारा आप स्वयं से भी पूजा आराधना कर के सम्पूर्ण दुर्गा पूजन का फल एवं उनकी कृपा प्राप्त कर सकते है-*


माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा पूजा विधि पूर्वक करे तो दुर्गा माँ सारी मनोकामना पूरी करती हैं।

नवरात्री मैं दुर्गा पूजन का विशेष महत्व हैं वैसे आप किसी भी दिन दुर्गा पूजा कर सकते हैं। सुबह जल्दी स्नान करके और लाल कपडे पहनकर दुर्गा पूजन करना चाहिए।

दुर्गा पूजा के बाद ब्राह्मण और ९ छोटी कन्याओ को भोजन कराना चाहिए।

दुर्गा पूजा का सकंल्प-*

दुर्गा पूजन शुरू करने से पहले सकंल्प लें। संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

*सरल दुर्गा पूजन विधि-*

अपने बाएँ हाथ की हथेली में जल लें एवं दाहिने हाथ की अनामिका उँगली व आसपास की उँगलियों से निम्न मंत्र बोलते हुए स्वयं के ऊपर एवं पूजन सामग्रियों पर जल छिड़कें

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था गतोsपि वा l या स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्रामायंतर: शुचि: ll

श्रद्धा भक्ति के साथ घी का दीपक लगाएं।दीपक रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।

अगरबत्ती/धूपबत्ती जलाये
जल भरा हुआ कलश स्थापित करे और कलश का धूप ,दीप, रोली/कुंकु, अक्षत, पुष्प , से पूजन करें।

सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे
अब दुर्गा माँ का ध्यान और हाथ मैं अक्षत पुष्प लेकर ” श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि” मंत्र बोलते हुए दुर्गा माँ का आवाहन करे
अक्षत और पुष्प दुर्गा माँ की मूर्ति पर समर्पित कर दे

अब दुर्गा माँ की मूर्ति को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान कराये

अब माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं।

कुमकुम, अक्षत, सिंदूर, इत्र ,गुड़हल का पुष्प और माला अर्पित करे

धुप और दीप दिखाए

मिठाइयाँ, एवं ऋतुफल जैसे- सेब, चीकू आदि का नैवेद्य अर्पित करे फिर दक्षिणा चढाये

माता दुर्गा की प्रतिमा के सामने अपनी मनोकामना मन मे बोलते हुए नारियल अर्पित करें।

उसके बाद आप नवरात्रो में जो पूजा करना चाहते है उसका पाठ या जप पूर्ण मन से करे-
जैसे दुर्गा शप्तशती पाठ। देवी पुराण का पाठ-या दुर्गा चालीसा का पाठ या नवार्ण मन्त्र का जप या जिस मनोकामना के लिए आप जो भी पाठ या जप करना चाहते है उसके साथ रोज वाली पूजा को भी सम्मिलित करके करना प्रारम्भ करे।
पाठ पूर्ण होने पर
आचमन के लिए जल अर्पित करे

अंत मैं दुर्गा माँ की आरती करे
पुष्पांजलि समर्पित करे।

दुर्गा पूजा के बाद अज्ञानतावश पूजा में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए दुर्गा माँ के सामने हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए क्षमा याचना करे
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि l यत पूजितं मया देवी, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरि l

*हमारी बताई गयी सरल दुर्गा पूजा विधि से दुर्गा पूजन करे और दुर्गा माँ आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करेगी-*

    जीवन में ज्ञान और कर्म, दोनो का समन्वय करो। अपने व्यक्तित्व को दोनो के आधार पर संचालित करो।
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Sunday, 30 September 2018

शरीर पर तिल...

#शरीर के  #तिल से जुडी कुछ बाते

 ज्यादातर लोग तिल को शरीर के अंग की खूबसूरती बढ़ने का चिह्न मानते है. किन्तु तिल के शरीर पर होने से कुछ मजेदार बाते जुडी है. ये बाते तिल के शरीर के अलग अलग अंगो पर मौजूद होने से सम्बंधित है, तो आइये जानते है इन्ही मज़ेदार बातो को
जानें: आपके शरीर में इन जगहों पर तिल का क्या होता है
#गाल पर तिल – माना जाता है कि जिन लोगो के गाल पर तिल होता है वे लोग अपनी पढाई लिखाई में बहुत होशियार होते है. ऐसे लोग हमेशा बड़ी खुशियों की तरफ भागते है. गाल पर तिल वाले लोग जिस बात को एक बार ठान लेते है उसे करके ही मानते है.
ठुड्डी पर तिल – ठुड्डी पर तिल वाले लोगो को बहुत भाग्यशाली माना जाता है, साथ ही ये भी कहा जाता है कि ऐसे लोगो को नाम, धन और शोहरत कमाने के लिए ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ती.
#कान पर तिल – कान पर तिल वाले लोगो के नसीब में धन – दौलत की कभी कमी नही रहती, साथ ही इनकी किस्मत में घूमना – फिरना भी लिखा होता है. ऐसे लोगो को भी बहुत भाग्यशाली माना जाता है.
आँख के किनारे पर तिल – जिनके आँख के किनारे पर तिल होता है ऐसे लोगो का आचरण बहुत ही साफ़ होता है और आप ऐसे लोगो पर आँखे मूंद कर, बिना शक किये भरोसा कर सकते है क्योकि ऐसे लोग कभी किसी को धोखा नही देते और ना ही कभी किसी के विश्वास को ठेस पहुँचाने की कोशिश करते.
भौंह पर तिल – जिन लोगो की दायी भौंह पर तिल होता है ऐसे लोगो का शादीशुदा जीवन बहुत ही खुशियों से भरा होता है, इन लोगो को अपने सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है, साथ ही ऐसे लोगो के घर और जीवन में सुखो का वास होता है किन्तू अगर आपकी बायीं भौंह पर तिल है तो आपको आपके कार्यो को करने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी और कई बार तो आपके कड़े परिश्रम के बाद भी आपको  सफलता प्राप्त नही होगी इसिलिए ऐसे लोगो के पास खास धन भी नही होता.
नाक पर तिल – #नाक पर तिल वाले लोग बहुत अच्छे मित्र बनने के लायक होते है क्योकि इनका मन साफ़ होता है और इसिलिए आप ऐसे लोगो पर भी आँख मूंद कर विश्वास कर सकते हो. ऐसे लोगो को बहुत मेहनती भी माना जाता है.
माथे पर तिल – वे लोग जिनके माथे के दायी तरफ तिल होता है ऐसे लोगो के पास सोचने समझने की अदभुत छमता होती है, साथ ही साथ इन् लोगो में अपने कार्यो को पूरा करने की भी अद्वितीय शक्ति होती है. ऐसे लोगो के पास कभी धन की कमी नही होती, इन्हें अपने जीवन में सारे सुख मिलते है और अपने हर कार्य में सफलता. लेकिन जिन लोगो के माथे पर बायीं ओर तिल है तो ऐसे लोगो को अपनी जिम्मेदारियों का आभास नही होता, ये धन तो कमाते है लेकिन जितना धन ये कमाते है उतना ही धन ये साथ की साथ उड़ा भी देते है. इस तरह ऐसे लोगो को बहुत कम सफलता मिलती है. लेकिन वे लोग जिनके माथे के बीच में तिल है तो सफलता इन लोगो के कदमो को चूमती है और ऐसे लोग हमेशा सम्मान के हकदार होते है.
#गले पर तिल – गले या गर्दन पर तिल वाले लोग अपने स्वभाव के कारण चर्चा में रहते है क्योकि आप इनके स्वभाव में एक अजीब सी उथल पुथल देखते है. ये एक में आपको खुश नज़र आते है तो दुसरे ही पल ये उदास हो जाते है. इन लोगो को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शुरुआत में थोड़ी तकलीफों का सामना करना पड़ता है लेकिन बाद में इनका जीवन भी खुशियों से भर जाता है और इन्हें अच्छे निर्णय मिलते है.
हाथ पर तिल – ऐसे लोग आत्मविश्वास से भरे होते है और इनको इनके कार्य में सफलता पाने से कोई रोक नही पाता. #हाथ पर तिल वाले लोग अपने जीवन में अनेक ऊँचाईयो को छुते है.
उंगलियों पर तिल – उंगलियों पर तिल वाले लोगो को धोखेबाज परवर्ती का समझा जाता है. इन लोगो पर आप कभी भी विश्वास नही कर सकते क्योकि ये अपने कार्यो से सभी को ठेस पहुचते है और दुःख देते है और ऐसे लोग कभी भी किसी के भी विश्वास पात्र नही होते.
कुछ न कुछ जरूर कहता है आपके शरीर पर तिल
लगभग हर #पुरूष व #स्त्री के किसी न किसी अंग पर तिल अवश्य पाया जाता है। उस तिल का महत्व क्या है? शरीर के किस हिस्से पर तिल का क्या फल मिलता है। ज्‍योतिष के अभिन्‍न अंग सामुद्रिकशास्‍त्र के अनुसार शरीर के किसी भी अंग पर तिल होना एक अलग संकेत देता है। यदि तिल चेहरे पर कहीं भी हो, तो आप व्‍यक्ति के स्‍वभाव को भी समझ सकते हैं।
खास बात यह है कि पुरुष के दाहिने एंव सत्री के बायें अंग पर तिल के फल को #शुभ माना जाता है। वहीं अगर बायें अंगों पर हो तो मिले जुले परिणाम मिलते हैं।
इससे पहले कि हम आपको बतायें कि शरीर के किस अंग पर तिल होने के क्‍या प्रभाव होते हैं, हम आपको बतायेंगे कुछ अंगों के नाम और वो इंसान के व्‍यक्तित्‍व को किस तर उल्‍लेखित करते हैं। यह भी सामुद्रिक शास्‍त्र की एक विधा है, जिसमें इंसान के व्‍यक्ति को उसके अंगों को देख पहचान सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर- जैसे जिन पुरुषों के कंधे झुके हुए होते हैं, वो शालीन स्‍वभाव के और गंभीर होते हैं। वहीं चौड़ी छाती वाले पुरुष धनवान होते हैं तो लाल होंठ वाले पुरुष साहसी होते हैं। 
वहीं #महिलाओं का पेट, वक्ष और होंठ से लेकर लगभग सभी प्रमुख अंग कुछ न कुछ कहते हैं।

तिल के प्रभाव माथे पर दायीं ओर माथे के दायें हिस्से पर तिल हो तो- धन हमेशा बना रहता है।
माथे पर बायीं ओर माथे के बायें हिस्से पर तिल हो तो- जीवन भर कोई न कोई परेशानी बनी रहती है।
ललाट पर तिल ललाट पर तिल होने से- धन सम्पदा व ऐश्वर्य का भोग करता है।
ठुड्डी पर तिल ठुड्डी पर तिल होने से- जीवन साथी से मतभेद रहता है।
दायीं आंख के ऊपर दांयी आंख के ऊपर तिल हो तो- जीवन साथी से हमेशा और बहुत ज्‍यादा प्रेम मिलता है।
बायीं #आंख के ऊपर बायीं आंख पर तिल हो तो- जीवन में संघर्ष व चिन्ता बनी रहेगी।
दाहिने गाल पर दाहिने गाल पर तिल हो तो- धन से परिपूर्ण रहेगें।
बायें गाल पर बायें गाल पर तिल हो तो- धन की कमी के कारण परेशान रहेंगे।
होंठ पर तिल होंठ पर तिल होने से- काम चेतना की अधिकता रहेगी।
होंठ के चीने होंठ के नीचे तिल हो तो- धन की कमी रहेगी।
होंठ के ऊपर तिल होंठ के उपर तिल हो तो- व्यक्ति धनी होता है, किन्तु जिद्दी स्वभाव का होता है।

बायें कान पर बायें कान पर तिल हो तो- दुर्घटना से हमेशा बच कर रहना चाहिये।
दाहिने कान पर दाहिने कान पर तिल होने से- अल्पायु योग किन्तु उपाय से लाभ होगा।
गर्दन पर तिल गर्दन पर पर तिल हो तो- जीवन आराम से व्यतीत होगा, यक्ति दीर्घायु, सुविधा सम्पन्न तथा अधिकारयुक्त होता है।
दाहिनी भुजा पर दायीं भुजा पर पर तिल हो तो- साहस एंव सम्मान प्राप्त होगा।
बायीं भुजा बायीं भुजा पर तिल होने से- पुत्र सन्तान होने की संभावना होती है और पुत्र से सुख की प्राप्ति होती है।
छाती पर दाहिनी ओर छाती पर दाहिनी ओर तिल होने से- जीवन साथी से प्रेम रहेगा।
छाती पर बायीं ओर छाती पर बायीं ओर तिल होने से- जीवन में भय अधिक रहेगा।
नाक पर तिल नाक पर तिल हो तो- आप जीवन भर यात्रा करते रहेंगे।
दा‍यीं #हथेली पर दायीं हथेली पर तिल हो तो- धन लाभ अधिक होगा।
बायीं हथेली पर बायीं हथेली पर पर तिल हो तो- धन की हानि होगी।
पैर पर तिल पांव पर तिल होने से- यात्रायें अधिक करता है।
भौहों के मध्‍य भौहों के मध्य तिल हो तो- विदेश यात्रा से लाभ मिलता है।
जांघ पर तिल जांघ पर तिल होने से- ऐश्वर्यशली होने के साथ अपने धन का व्यय भोग-विलास में करता है। उसके पास नौकरों की कमी नहीं रहती है।
स्‍त्री की भौहों पर स्त्री के भौंहो के मध्य तिल हो तो- उस स्त्री का विवाह उच्चाधिकारी से होता है।
कमर पर कमर पर तिल होने से- भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
पीठ पर तिल पीठ पर तिल हो तो- जीवन दूसरे के सहयोग से चलता है एंव पीठ पीछे बुराई होगी।
नाभि पर तिल नाभि पर तिल होने से- कामुक प्रकृति एंव सन्तान का सुख मिलता है।
बायें कंधे पर बायें कंधे पर तिल हो तो- मन में संकोच व भय रहेगा।
दायें कंधे पर दायें कंधें पर तिल हो तो- साहस व कार्य क्षमता अधिक होती है।

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Tuesday, 25 September 2018

आपका घर और अदृश्य शक्तियां

क्या आपके घर में अदृश्य शक्तियाँ भी हैंl

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क्या आपके घर में  पितृ- असंतुष्ट आत्माएं(भूत -प्रेत) भी रहती हैं

--------------------------------------------------------------------देखा या महसूस किया कभी आपने कि...

आप अपनी जिन्दगी जी रहे और अपने घर में रह रहे होते हैं ,आपको कुछ दीखता तो नहीं पर आपके घर में अदृश्य शक्तियों का भी वास होता है |इनमे भूत ,प्रेत ,ब्रह्म ,पितृ ,आदि होते हैं |जब तक इनकी संख्या या ऊर्जा या शक्ति की मात्रा कम होती है तब तक आपको कुछ भी महसूस नहीं होता क्योंकि यह भौतिक शरीर में तो होते नहीं इसलिए दीखते नहीं |हर व्यक्ति मरने के तुरंत बाद जन्म नहीं लेता |बहुत से लोग मरने के बाद भूत -प्रेत बनते हैं जो सैकड़ों -हजारों वर्षों तक उसी योनी में रहते हैं |जिस स्थान से उनका लगाव होता है वहां वह अधिक विचरण करते हैं |आपने घर बनाया ,या किराए पर आये ,या फ़्लैट लिया और रहने लगे |आपको क्या पता यहाँ या इस जमीन के नीचे क्या क्या है |आपके घर के किसी सदस्य की मृत्यु हुई तो उसका भौतिक शरीर तो ख़त्म हो गया पर उसका सूक्ष्म शरीर और आत्मा तो रहती ही है वह आपके आस -पास ही घूमेगा या जहाँ उसकी मृत्यु हुई हो उस स्थान के आसपास घूमेगा |यह आपको दिखेगा नहीं इसलिए अनुभव भी नहीं होगा |क्योंकि आपका स्वभाव है जो दीखता नहीं उसे मानेंगे कैसे ?इनका अनुभव तब होता है जब इनकी शक्ति अधिक हो ,यह अधिक संख्या में हो जाएँ ,यह आपसे रुष्ट हों और परेशानी उत्पन्न करें ,यह सीधे किसी को प्रभावित कर दें |इनसे उत्पन्न परेशानी पर भी यह आपको दिखेंगे नहीं |लक्षणों से ही इनके प्रभाव की पकड़ आएगी |जरुरी नहीं की सीधे किसी को प्रभावित ही करें ,ऐसा बहुत कम होता है ,पर इनका प्रभाव पूरे परिवार और घर पर पड़ता रहता है अप्रत्यक्ष रूप से |यह अडचन सब जगह उत्पन्न करते रहते हैं |

क्या लक्षण हैं इनके..⁉

🌸

--आप घर में घुसते हैं और अनायास तनावग्रस्त हो जाते हैं, सर भारी हो जाता है जबकि आप बाहर बिलकुल ठीक थे | अनायास थकान भी महसूस होने लगी और शान्ति की भी चाह होने लगी | आपका दिमाग कहीं और जाकर अटक जा रहा | खुद को परिवार में खुशहाली नहीं दिखती | खुद ही परायापन लगता है | दूर से देखने पर घर मनहूस सा लगता है अथवा उसमे रौनक नहीं लगती | बाहरी लोग के घर आने पर उलझन महसूस होता है | जो बाहरी लोग भी आते हैं वह भी अधिक देर घर पर नहीं रहना चाहते हैं | बाहरी लोगों अथवा रिश्तेदार-नातेदार के आने पर आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है और पर्याप्त आवभगत नहीं हो पाती | कभी कभी घर का खर्च निकालने के लिए कर्ज की स्थिति आ जाती है जबकि आपकी या परिवार की आय पर्याप्त है | कर्ज लेने पर कर्ज अदायगी मुश्किल हो जाती है | आप घर में रहते हुए हमेशा उद्विग्नता, घबराहट महसूस करते हैं और दिमाग भटकता ही रहता है | एक न एक उलझन + विचार चलते ही रहते हैं | पूजा-पाठ में मन नहीं लगता, पूजा पाठ से सदैव मन भागता है, पूजा पाठ करते समय सर भारी हो जाता है, लगता है जैसे कोई और भी आसपास है, जम्हाई अधिक आती है, पूजा पाठ करने से दुर्घटनाएं या परेशानियां बढ़ जा रही हैं, पूजा पाठ आदि धार्मिक क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न हो रहा है | कुछ मंगल के काम करना चाहते हैं तो अनावश्यक रुकावट आ रही है | प्रगति रुकी लगती है अथवा अवनति होने लगती है | अपशकुन हो रहा है, अनावश्यक आग आदि लग जाती है अथवा कपडे खराब हो जाते हैं | अपने ही घर में कभी कभी भय लगता है 🌸|

आपके घर में अशांति का वातावरण है, कलह होता है, पति-पत्नी में अनावश्यक अत्यधिक कलह हो जाता है, जबकि कोई बड़ा कारण नहीं समझ आता, अचानक से आपसी समझदारी का संतुलन बिगड़ जाता है , सब कुछ ठीक चलते चलते अचानक झगड़ा हो जाता है, बीमारियाँ अधिक होती हैं, आय-व्यय का संतुलन बिगड़ जाता है जबकि पर्याप्त आय हो रही है किन्तु बेवजह के खर्चे आ जा रहे हैं , आकस्मिक दुर्घटनाएं हो जाती हैं, रोग हो जाता है किन्तु कारण पता नहीं चलता ,   दीर्घकालिक रोग हो जा रहे |सबकुछ ठीक होने पर भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता ,सदस्यों में मतभेद हो जाता है | संतान गलत रास्ते जा रही | संताने विरुद्ध जाने लगी हैं अथवा बहस करने लगी हैं, उनके भविष्य असुरक्षित होने लगे हैं,  संतान हीनता की स्थिति हो रही या संतान होकर भी योग्य नहीं बन पा रही, अधिक त्वचा रोग आदि हो रहा है |योग्यता-क्षमता होने पर भी उन्नति नहीं हो रही, नौकरी नहीं लग रही या बार बार दिक्कते कार्यक्षेत्र में आती हैं | आप अपना कर्तव्य ठीक से पूरा नहीं कर पा रहे | मन हमेशा भटकता रहता है |

कुछ लोगों के यहाँ कभी कभी इनसे भी अधिक गंभीर स्थिति होती है पर तब भी उन्हें अनुभव नहीं हो पाता की उनके घर में भूतों का डेरा है | कभी कभी कुछ लोगों को अहसास होता है कि उनके आस पास कोई और भी है, पर नजरें घुमाने पर कोई दिखाई नहीं देता ।कभी अकेले कमरे या एकांत में महसूस होता है कि कमरे में आपके अलावा भी कोई है। जिन्हें बार बार ऐसा महसूस होता है उसे कोई न कोई कमी या समस्या भी परेशान करती है, चाहे घर परिवार की हो, कमाई धंधे की हो, सन्तान की हो, स्वास्थ्य की हो या किसी और प्रकार की । एकाध बार की अनुभूति तो भ्रम से भी हो सकती है ,किंतु बार बार का महसूस होना भ्रम नहीं होता । कभी कभी किसी किसी को महसूस होता है कि कोई उसे छू गया, कभी किसी को महसूस होता है कि कोई आगे से चला गया, कोई पीछे से चला गया । कभी कभी पूजा करते समय भी ऐसा महसूस हो सकता है । कभी किसी किसी को सोते समय अर्ध निद्रा में महसूस होता है कि कोई सीने पर आकर बैठ गया, कभी किसी को लगता है कि कोई गला दबा रहा है । कभी किसी को लगता है की कोई छाया सी आकर उस पर छा गयी या उसे दबा लिया । यह किसी अशरीरी के जुड़ाव या प्रभाव की ओर संकेत करता है ।

कभी कभी किसी किसी को सोते समय अपने बिस्तर पर किसी की उपस्थिति महसूस होती है । कभी कभी किसी किसी को सीधे स्पर्श भी महसूस होता है । किसी को अंग विशेष तो किसी को हाथ, किसी किसी को पूरा शरीर का स्पर्श महसूस होता है । कुछ मामलों में देखा गया है कि कोई अशरीरी जी दिखाई तो नहीं देता पर जिसका अनुभव होता है, किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी बनाता है ।किसी को इससे अपार कष्ट तो किसी को बेहद सुखद अनुभूति होती है । कभी किसी गिर कर चोट खाने वाले को लगता है कि किसी ने अनायास धक्का दे दिया, जबकि वहां कोई ऐसा नहीं होता ।इस स्तर पर की स्थिति बेहद गम्भीर हो जाती है और इनका निराकरण बड़े बड़े स्वनाम धन्य तांत्रिक, सिद्ध भी नहीं कर पाते ।

उपरोक्त अनुभव विभिन्न क्रम की शक्तियों द्वारा व्यक्ति विशेष को प्रभावित करने के कारण होते हैं ।  कभी कभी आपका मन मरने को करता है या फिर कहीं दूर भाग जाने को करता है या फिर ज़ोर ज़ोर से रोने को करता है । यदि उपरोक्त प्रकार के कुछ या कोई लक्षण आपके साथ हैं तो मान लीजिये की सबकुछ सामान्य नहीं है | यह सब ग्रह दोष भी  है |यह ग्रहीय स्थितियों से भिन्न नकारात्मक उर्जाओं का प्रभाव भी है ,जिनमे विभिन्न प्रकार की उर्जायें हो सकती हैं | स्थान दोष हो सकता है , पित्र दोष हो सकता है,  क्षेत्रपाल या ग्रामदेवता प्रभावित कर रहे ऐसा भी सम्भव है | कोई नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश कर गयी हो ऐसा हो सकता है | किसी ने कुछ कर-करा दिया हो अथवा कोई टोना टोटका किया गया हो ऐसा भी सम्भव है | कोई नकारात्मक ऊर्जा या शक्ति उस स्थान के नीचे दबी हो सकती है | भूत-प्रेत का उपद्रव आपके घर में हो सकता है | इन सब में से कुछ या कई हो सकती हैं जिससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो रही और आपको तथा आपके परिवार को प्रभावित कर रही है -या फिर यह सिर्फ आपका बहम भृम ही हो जिसने आपके दिल दिमाग में घर कर लिया हो इत्यादि। ......-इन सब के निराकरण के लिए आपको अपने परिवार के सभी व्यक्तियों की पूर्ण जन्मकुंडलियों को बनवाकर फिर उन जन्मकुंडलियों को किसी अच्छे ज्योतिष को गहराई से जानकारी रखने वाले एस्ट्रोलॉजर को सभी की जन्मकुंडलियों का गहराई से अवलोकन करवाना चाहिए।ताकि आप को अपनी समस्या का हमेशा के लिए निजात मिल सके। और आप बहम भरमों से दूर हो सके।और आप अपना2जीवन खुशी से और सुखपर्वक से जी सके।आपकी सभी परेशानियों के कारण और निवारण आपकी पूर्ण जन्मकुंडलियों को बनाकर और उनको गहराई से देखकर पता लगाये जा सकते हैं।

रिसर्च एस्ट्रोलॉजर पवन कुमार वर्मा (B.A.,D.P.I.,LL.B.) लुधियाना, पंजाब, भारत

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Sunday, 2 September 2018

टेवा/जन्मकुंडली देखने के नियम.....

मेरा रहस्यमयी ज्योतिष शास्त्रों के रहस्यमयी ज्योतिष ज्ञान  की बुनियाद पर जन्म पत्री/ जन्मकुंडली  /टेवा बनाने और  देखने का नियम:-.....
* जन्मकुंडली /टेवा  बनाने या देखने के लिए ..

1. आप  मुझे अपने  दोनों हाथ की फोटो  (हस्त रेखा)।
2. जन्म का पूरा विवरण   (जन्म पत्री / टेवा  के लिए ।
3. चेहरे की फोटो (फेस रीडिंग के
लिए)
के लिए भेजें या आप खुद आकर मिले ...
सभी विचार विमर्श फोन पर किया जायेगा । अथवा आप फ़ोन पर समय लेकर मेरे ऑफिस में आकर मुझे मिल सकते हैं व्  सशुल्क परामर्श कर सकते है ..... आज ही सशुल्क परामर्श लें।

हम लोग आज जो इतनी पूजा -पाठ करते है या फिर इतने उपाओ करते है और  फिर भी परेशान ही रहते है  ऐसा क्यों ..... या तो  हमे पूजा -पाठ और उपाओ का विधि - विधान नहीं पता है या  फिर उसके पीछे छुपा ज्ञान नहीं पता.. हमे धर्म के नाम के पीछे छुपे  रहस्यमयी ज्ञान का पता ही  नहीं ..बस एक अंधी दौड सी लगी हुई  है और हम सब बिना कुछ समझे जाने बस भाग रहे है यही हमारा दुर्भाग्य है जिस  के कारण हम लोग दुखी कष्ट और परेशानियों   वाला जीवन जी रहे है ....
अपनी जन्मकुंडली / टेवा  को रहस्यमयी  ज्योतिष शास्त्रों के रहस्यमयी ज्योतिष  ज्ञान से दरुस्त करवाने या बनबाने या फिर दिखाने  के लिए और अपनी जन्मकुंडली / टेवा   या वर्षफल  के  उपायों और परहेज  को जानने के लिए आप मुझ से संपर्क कर सकते हो ।
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Friday, 31 August 2018

कृष्णजन्माष्टमी....

कृष्णजन्मास्टमी
हिन्दू  कैलेंडर में श्रावण (सावन) माह के भाद्रपद माह आता है। इस माह का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार जन्माष्टमी होता है जो कि भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो कि इस बार 3 सितंबर को है। द्रिक पंचांग के अनुसार, यह जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की 5245वीं जयंती है।
भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का एक अवतार माना जाता है जिससे यह त्यौहार हिन्दुओं के लिए पूजा और उपासना की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होता है। वैष्णव लोग इस दिन व्रत रखते हैं अष्ठमी की रात 12 बजे भगवान का श्रीकृष्ण का संकेतिक रूप से जन्म होने पर व्रत का परायण करते हैं। बहुत से लोग मथुरा जाकर भगवान श्रकृष्ण की जन्मभूमि का दर्शन करते हैं। वहीं कुछ लोग अपने मुहल्ले में श्रीकृष्ण जन्म की झांकियां सजाते हैं तो कुछ लोग पास के मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं और उत्सव देखते हैं।

*जन्माष्टमी का मुहूर्त:-*

अष्टमी तिथि-
*2 सितंबर 2018 को शाम 20:47 बजे के बाद अष्टमी तिथी शुरू होगी*
*3 सितंबर 2018 को शाम 19:19 बजे तक रहेगी।*
*निशित पूजा टाइम - 23:58 से 24:44 बजे तक। यानी 45 मिनट तक पूजा का निशित मुहूर्त है।*
यह मुहूर्त व्रत रखने वालों के लिए होगा कि क्योंकि 3 सितंबर को शाम 8 बजे तक ही रोहणी नक्षत्र रहेगा। जबकि भगवान श्रीकृष्ण का *जन्मोत्स 3 सितंबर की रात को ही मनाया जाएगा।*
*क्योंकि सूर्योदय के अष्टमी तिथि का सूर्योदय 3 सितंबर को होगा। व्रत का परायण 3 सितंबर को रात आठ बजे के बाद किया जा सकेगा।* क्योंकि आठ बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा।

   आप सभी को जानकर अति प्रसनन्ता होगी कि
लाल किताब ज्योतिष वास्तु शोध संस्थान ने अपनी  ऑनलाइन (online)सेवाओं को शुरू कर दिया है जिनमे आप अपने घर बैठे ही अपनी अपनी जन्मकुंडलियों को  बनवा सकते हैं और दिखा सकते हैंअपने उपायों/परहेज इत्यादि को जान सकते हैं। जन्मकुंडलियों का मिलान करवा सकते हैं।
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अपनी जन्मकुंडली बनबाने या फिर दिखाने के लिए मिलें। और अपने जन्मकुंडलियों के अनुसार उपाय परहेज जानने के लिये अवश्य मिलें।

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Tuesday, 28 August 2018

जन्मराशि......

*ज्योतिष में जन्म राशि की प्रधानता है या नाम राशि की?*


*ज्योतिष पर विश्वास रखने वालों की सबसे बड़ी दुविधा है कि वे 'जन्म राशि' देखें या 'नाम राशि'।*

वैसे तो व्यक्ति के जन्म का पूरा वर्णन जन्म कुंडली से ही मिलता है पर दैनिक, साप्ताहिक और वार्षिक राशियों का भी अपना एक अलग महत्व है।
जाहिर तौर पर सवाल यह उठता है कि जन्म राशि या चालू नाम राशि में से किसे प्रधान राशि मानें।

ज्योतिष शास्त्र में इस दुविधा को इस तरह दर्शाया गया है।
*विद्यारम्भे विवाहे च सर्व संस्कार कर्मषु।*
*जन्म राशिः प्रधानत्वं, नाम राशि व चिन्तयेत्*

यानि विद्यारम्भ, विवाह, यज्ञोपवीत आदि मूल संस्कारित कार्यों में जन्म राशि की प्रधानता होती है, जबकि दैनिक
राशिफल के लिए आप नाम राशि का उपयोग कर सकते हैं।

*विवाहे, सर्वमांगल्ये, यात्रादो ग्रह गोचरे* –जन्म राशि विचार करें |

*देशे, ग्रामे, गृह, युद्धे,  सेवायां (नौकरी), व्यवहारके* –नाम राशि विचार करें  |

जिस नाम के लेने से सोया हुआ व्यक्ति नींद से उठ जाए, जिस नाम से उसके दैनिक क्रिया-कलापों का गहरा संबंध हो, वही अक्षर प्रधान राशि उस व्यक्ति को देखना चाहिए।

    ऐसा क्यों..  कैसे..............? 
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Sunday, 26 August 2018

रक्षाबंधन

#रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा 26 अगस्त 2018 रविवार के दिन मनाया जाएगा। सावन पूर्णिमा 25 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट से पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी जो 26 अगस्त की शाम 5 बजकर 25 मिनट तक रहेगी।*

1- इस बार रक्षाबंधन पर धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा
2-राखी बांधने का शुभ मुहूर्त वैसे तो भाई की कलाई पर राखी बांधने का कोई भी समय अशुभ नहीं होता है। लेकिन शास्त्रों में हर शुभ काम के लिए एक शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया गया है। मान्यता है कि भाई की दीर्घायु और खुशियों की कामना एक शुभ मुहूर्त में की जाए तो सारे कष्ट दूर होते हैं।
3- शुभ मुहूर्त 26 अगस्त को सुबह 5.59 से दोपहर 3.37 बजे तक
4-राखी बांधने का ये समय अशुभ रहेगा राहुकाल- सांय 4:30 से 6:00 बजे तक
यम घंटा -दोपहर 3.38 से 5.13 बजे
5-इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए बहन भाई की कलाई पर राखी बांधने से भाई की दीर्घाआयु होती हैं
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल”
या
ॐ यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मस्आबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
6- इस बार रक्षाबंधन पर  भद्रा का साया नहीं रहेगा , भद्राकाल में राखी बांधना शुभ नहीं माना जाता है। इस साल राखी की सबसे खास बात ये है कि भद्राकाल सूर्य उदय होने से पहले ही समाप्त हो जाएगा।
7-37 वर्ष बाद रक्षाबंधन पर भद्रा का साया नहीं रहेगा
 *राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त*

सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,

 इन मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकती है। अमृत मुहूर्त के समय राखी बाँधना बहुत ही फलदायी माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि इसी समय अपने भाई को राखी बाँधें और भाई भी अपनी बहनों से इसी समय राखी बँधवाएँ।

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Friday, 27 July 2018

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा पर  सभी गुरूओं को प्रणाम करता हूँ 🙏🏻

*कुछ लोग मुझसे ज्ञान में श्रेष्ठ है..*
*कुछ लोग मुझसे संस्कार में श्रेष्ठ है..*
*कुछ लोग मुझसे बल में श्रेष्ठ है..*
*कुछ लोग मुझसे धन में श्रेष्ठ है..*
*कुछ लोग मुझसे सेवा कार्यो में श्रेष्ठ है..*
*कुछ लोग मुझसे भोलेपन में श्रेष्ठ है..*
*इसका मतलब प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में मुझसे श्रेष्ठ अवश्य है। अतः मैं सभी श्रेष्ठ व्यक्तिओ को हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूं*.....
रिसर्च  एस्ट्रोलॉजर पवन कुमार वर्मा(B.A.,D.P.I.,LL.B. ) 
Mrs.मोनिता वर्मा (ज्योतिष ,वास्तु विशारद)
स्ट्रीट नंबर 5 न्यु गुरु अंगद कॉलोनी
नजदीक मग्घर की चक्की, बैकसाइड ए. टी. आई. कॉलेज, लुधियाना।141003
लुधियाना, पंजाब, भारत।
फोन:- 9417311379
Paytm:-  9815911379

           🙏  

Thursday, 5 July 2018

वास्तु और दिशाएं

वास्तु में दिशाओं का ज्ञान

वास्तुशास्त्र में दिशाओं का ज्ञान रखना महत्वपूर्ण है। वास्तु के सभी सिद्धांत पंच तत्त्व एवं दिशाओं पर ही आधारित हैं। पहले के समय में दिशाओं को जानने के  कई साधन प्रचलित थे जैसे- सूर्य के उदय होने के की दिशा, ध्रुव तारे की दिशा इत्यादि पर आज के समय में कुतुबनुमा ( कम्पास ) के आधार पे दिशा ज्ञान अत्यंत आधुनिक एवं विश्वशनीय हो गया है। हम सभी जानते हैं कि दिशायें चार हैं। 
(1) पूर्व, (2) पश्चिम, (3) उत्तर और  (4) दक्षिण तथा इन चारों दिशाओं के मिलन स्थान को

जैसे-  आग्नेय(S/E) जो पूर्वी तथा दक्षिण दिशा के संधि स्थान पे हैं,   

नैऋत्य (S/W) जो दक्षिण और पश्चिम दिशा के संधि स्थान पे स्थित है,

 वायव्य(N/W) जो पश्चिमी तथा उत्तरी दिशा के संधि स्थान पे स्थित है,

और ईशान्य(N/E) जो पूर्वी तथा उत्तरी दिशा के संधि स्थान पे स्थित है ।

ईशान्य दिशा को वास्तुशास्त्र के अनुसार बहोत ही शुभ एवं पवित्र माना  गया है। इन सभी आठ दिशाओं में क्या निर्माण किया जाना उचित होता है और क्या निर्माण नहीं किया जाना चाहिए वास्तुशास्त्र में हमें यही जानकारी प्राप्त होती है। यदि दिशाओं में सही निर्माण कर लिया जाता है, तो वास्तु नियमो के अनुसार वहां निवास करने वालों लोगों पर किसी भी प्रकार की समस्याएं अथवा दुःख-कष्ट अपना प्रभाव नहीं देते हैं। प्रायः वास्तुशास्त्री  भवन का वास्तु करते समय यही बताते हैं कि फलां दिशा में जो निर्माण किया है, वह ठीक नहीं है अथवा फलां दिशा में यह निर्माण कार्य अवश्य किया जाना चाहिए। भवन के वास्तु को ठीक प्रकार से समझने से पहले यह आवश्यक है कि हम गहराई से इन चार दिशाओं तथा चार कोनों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। किसी निश्चित दिशा का स्वामी कौन है तथा उसका हमारे जीवन पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ता है उस स्वामी को क्या पसंद है क्या पसंद नहीं है। इन सब के बारे में जानकारी होने के साथ जब हम अपने भवन का निर्माण करवाते हैं अथवा किसी बने- बनाए मकान को खरीदते हैं, तो हम स्वयं खुद कुछ न कुछ निर्णय कर सकते हैं कि वहां का वास्तु कैसा है और उसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। आइये जाने कि हर एक दिशा का कौन स्वामी है, वह दिशा हमें क्या फल प्रदान करती है, उस दिशा का तत्व क्या है, उसकी प्रकृति क्या है ??

(1) पूर्व दिशा

पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य हैं तथा देवता इंद्र हैं। यह दिशा अग्नि तत्व को प्रभावित करती है। सूर्य को जीवन का आधार माना गया है अर्थात सूर्य ही जीवन है। जिसकी वजह से वास्तुशास्त्र में इस दिशा को हमारी पुष्टि एवं मान-सम्मान की दिशा कहा गया है। सूर्य के आभाव में सृष्टि में न जीवन की कल्पना की जा सकती है और ना ही किसी प्रकार की वनस्पति उत्पन्न हो सकती है। इस लिए भवन निर्माण में पूर्व दिशा में निर्मित किए जाने वाले निर्माणों के बारे में निर्माणकर्ता को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।  इस दिशा में ऊँचे और भारी निर्माण को शुभ नहीं कहा जा सकता। संभवत इसीलिए कि उचें निर्माण से प्रातः कालीन सूर्य किरणे भवन पे नहीं पहुंच पाती इसलिए ऐसे भवन में निवास करने से भिन्न-भिन्न प्रकार की व्याधियां उत्पन्न हो जाती है।  ऐसे भवन में निवास करने वाले मनुष्य के मान सम्मान की हानि होती है। उस पर ऋण का बोझ बढ़ता है। पित्रदोष लगता है । घर में मांगलिक कार्यों में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यहां तक कि इस प्रकार का गृह निर्माण करने से घर के मुखिया को मृत्युतुल्य कष्ट एवं व्याधियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।अतः गृहनिर्माण में पूर्व इस दिशा में ज्यादा से ज्यादा खुला स्थान रखने का प्रावधान गृहस्वामी को करना चाहिए। इस दिशा की तरफ पूजन कक्ष, बैठक, बाथरूम आदि बनवाये जा सकते हैं। इस दिशा में खिड़कियां तथा दरवाजे रखना बहोत शुभ हैं और जगह होने की स्थिति में दरवाजे के बहार छोटा सा ही सही लॉन  अवश्य बनाना चाहिए।

(2) पश्चिम
पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि हैं तथा देवता वरुण है। यह दिशा वायु तत्व को प्रभावित करती है। शनि को ज्योतिष में भगवान शंकर द्वारा न्यायाधीश की पदवी प्राप्त हुई है। यह  हमारे कर्मो के आधार पर फला-फल की न्यायोचित व्यवस्था करते हैं। क्यों की आज कलयुग में बुरे कर्मों का बोलबाला है, सो अधिकांश लोग शनि देव को लेकर भय एवं भ्रम की स्थिति में रहते हैं। वास्तु में इस दिशा को कारोबार, गौरव, स्थायित्व, यश और सौभाग्य के लीये जाना जाता है। 
इस दिशा में सूर्यास्त होता है। वहीँ आम जनमानस में डूबते हुए सूर्य को देखना शुभ नहीं माना जाता क्यों की सूर्य की ढलती हुई किरणे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं इसलिए आवश्यक है कि हम भवन में पश्चिम दिशा में भारी और ऊँचा निर्माण करें। इस दिशा में डाइनिग रूम बनवाना शुभ होता है। मेरे अनुभव के अनुसार इस दिशा में बच्चों के लिए उनके पढ़ने का कमरा बनवाना उत्तम होता है क्यों की  शनि ग्रह किसी भी विषय की गहराई में जाने की शक्ति प्रदान करते हैं सो यहाँ बच्चों में गंभीरता आती हैं और वह बुद्धिजीवी होते हैं। यह दिशा जल के देवता वरुण की है इसलिए यहाँ रसोईघर अच्छा नहीं माना गया है। रसोई में अग्नि की प्रधानता होती है और अग्नि एवं जल आपस में शत्रु होते हैं। वैसे इसके अलावां इस दिशा में लगभग सभी निर्माण किये जा सकते हैं।

(3) उत्तर दिशा
उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध हैं तथा देवता कुबेर हैं। यह दिशा जल तत्व से प्रभावित है। यह दिशा मातृ भाव की है।  रात्रि में ध्रुव तारा इसी दिशा में निकलता है यह हमारी सुरक्षा तथा स्थायित्व का प्रतीक है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा में खिड़की-दरवाजे अवश्य होना चाहिए। इस दिशा को समस्त आर्थिक कार्यों के निमित्त उत्तम माना जाता है। भवन का प्रवेश द्वार या लिविंग रूम, बैठक, बच्चों के लिए पढाई का कमरा इसी भाग में बनाने का सुझाव दिया जाता है। इस दिशा में भूलकर भी भारी और ऊँचा निर्माण नहीं करना चाहिए इस भाग को संभव हो तो ज्यादा खुला रखना चाहिए । चूंकि  वास्तुशास्त्र के अनुसार भारत उत्तरी अक्षांश पर स्थित है, इसीलिए उत्तरी भाग अधिक प्रकाशमान रहता है। यही वजह है कि वास्तु में हमें घर के उत्तरी भाग को अधिक  खुला रखने का सुझाव दिया जाता है, जिससे इस स्थान से घर में प्रवेश करने वाला प्रकाश बाधित न हो। इस दिशा में सूर्य का भ्रमण नहीं है अर्थात इसे शान्ति की दिशा भी कहते हैं। अगर भवन में इस दिशा में कोई दोष हुआ तो धन-धान्य की कमी के साथ-साथ गृह की शांति भी भंग होगी ।

(4)  दक्षिण दिशा
दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल हैं तथा देवता यम हैं। यह दिशा पृथ्वी तत्व को प्रभावित करती है इस लिए यह दिशा धैर्य एवं स्थिरता की प्रतीक है। पितृ लोक तथा मृत्यु लोक की कल्पना भी इसी दिशा में की गई है तथा प्रायः पाताल को भी इसी दिशा से जोड़कर देखा जाता है। यह दिशा समस्त बुराइयों का नाश करती है, इस दिशा से शत्रुभय भी होता है तथा यह दिशा रोग भी प्रदान करती है इसी कारण से सभी वास्तुशास्त्री इस दिशा को भारी तथा बंद रखने की सलाह देते हैं। अगर इस दिशा की ज्यादातर खिड़कियां और दरवाजे बंद रक्खें जाय तो इस दिशा के दूषित प्रभाव को रोका जा सकता है। क्षत्रिय वर्ण अथवा इस तरह के वीरता के कार्य करने वाले  इस दिशा में अपना मुख्यद्वार रख सकते हैं।
जिस भूमि पर आप भवन निर्माण कर रहे हैं, उसकी दक्षिण दिशा की तरफ खाली जगह नहीं छोड़नी चाहिए। माना जाता है कि इस तरह की खाली जगह पर आसुरी शक्तियों का प्रभाव हो सकता है अर्थात इस तरह खाली स्थान छोड़ने पर अनिष्टकारक प्रभाव उत्पन्न होने की संभावना हो सकती है।  दक्षिण दिशा की तरफ शयन कक्ष का निर्माण शुभ माना जाता है । इस तरफ बाथरूम टॉयलेट दोनों बनाए जा सकते हैं । दक्षिण दिशा के अशुभता को ध्यान में रखते हुए इस तरफ प्रवेश द्वार अथवा खिड़कियों का निर्माण करने से बचना चाहिए। दक्षिण दिशा की तरफ रसोई घर का निर्माण किया जाना उचित नहीं है। इस तरफ स्टोर रूम बनाया जा सकता है। यह ऐसा स्थान है जहां पर आप भारी समान रख सकते हैं। जब भी आप प्लॉट लेकर भवन का निर्माण करवाते हैं तो दक्षिण दिशा की तरफ के निर्माण को ध्यानपूर्वक करवाएं। यदि आप बना बनाया मकान भी खरीदते हैं तब भी इस दिशा की जांच अपने वास्तुशास्त्री से  ठीक प्रकार से करवा लेनी चाहिए।

(5) आग्नेय (दक्षिण-पूर्व)
आग्नेय दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र है तथा देवता अग्नि हैं। इन विदिशावों का वास्तुशास्त्र में बड़ा प्रभाव कहा गया हैं क्यों की इन विदिशावों के स्वामी के प्रभाव के साथ-साथ अन्य ग्रहों व उनके तत्व का भी प्रभाव यहाँ होता है । अग्निकोण में जहाँ शुक्र ग्रह का प्रभाव हैं वही पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य एवं दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल का भी प्रभाव है। इस दिशा में अग्नि तत्व प्रमुख माना गया है। यह दिशा ऊष्मा, जीवन शक्ति, और ऊर्जा की दिशा है। रसोईं के लिए यह दिशा सर्वोत्तम है। सुबह के सूरज की पैराबैगनी किरणों का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने के कारण रसोईघर मक्खी-मक्षर आदि जीवाणुओं से मुक्त रहता है। इस दिशा का सम्बन्ध सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य से है। अगर भवन में यह दिशा दूषित होती है तो भवन में रहने वाले  प्रायः सभी सदस्यों का स्वास्थ्य किसी न किसी रूप में खराब रहता है अधिकतम स्त्रियों का और जल्दी रोग जाने का नाम नहीं लेता। साथ ही भवन में अग्नि भय और चोरों का भी भय रहता है।
यह दिशा अग्नितत्व की है इसलिए यहाँ पानी का भंडारण नहीं करना चाहिए क्यों की आप-हम सभी जानते हैं कि अग्नि और जल आपस में एक दूसरे के विरोधी तत्व हैं। यहाँ शयनकक्ष को बहोत उचित नहीं कहा गया है यहाँ शयन करने पे मानसिक समस्याएं अधिक हो सकती हैं। इनमे चिंता तथा तनाव मुख्य है । भयानक स्वप्न भी दीखते हैं। इससे बेचैनी हो सकती है। क्यों की इस दिशा में शुक्र के ऊपर मंगल का प्रभाव है जिसकी वजह  से कामेक्षा की अत्यधिक वृद्धि हो जाती है, जो कभी-कभी अनियंत्रित होकर अवांछित परिणामो को जन्म दे सकती है।

(6) नैऋत्य दिशा  (दक्षिण-पश्चिम)
इस दिशा के स्वामी ग्रह राहु हैं तथा यह नैऋति की दिशा है। यह दिशा पृथ्वी तत्व प्रमुख है। क्यों की नैऋति समस्त कष्ट एवं दुखों के स्वामी हैं। इसलिए इस दिशा में निर्माण करवाते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए। वशतुशास्त्र के अनुसाय यह दिशा भवन में रहने वाले व्यक्तियों को जीवन में स्थायित्व प्रदान करती है। विज्ञान कहता है कि ईशान्य से प्रवाहित होनेवाली समस्त प्राणमयी ऊर्जा नैऋत्य में आकर ही रूकती है। विज्ञान के अनुसार इस कोने में सर्वाधिक चुम्बकीय ऊर्जा होती है। इस दिशा के दूषित होने पे अर्थात भवन में इस दिशा में कुआँ, बोरिंग, अंदारग्राउंट पानी का भंडारण, इस दिशा का भारहिन व खुला हुआ होना, मुख्य द्वार आदि होने से भवन में आकस्मिक दुर्घटनाएं, अधिक शत्रुओं का प्रभाव, भूत-प्रेत की समस्याएं, अल्पमृत्यु, तथा स्थायित्व में कमीआदि समस्याओं से भवन घिरा रहता हैं।
इस दिशा में भवन के मुखिया का कमरा होना चाहिए, अपार्टमेंट कल्चर में यहाँ मास्टर बेडरूम सर्वोत्तम होता है। पृथ्वी तत्व की अधिकता होने की वजह से यहाँ शयन करने वाले व्यक्ति को स्थायित्व तो प्राप्त होगा ही साथ ही साथ उसकी पकड़ घर पे मजबूत बनी रहेगी, वह दृढ़ता से फैसले ले पाने में खुद को सहज महशुस करेगा। भवन के इस दिशा वाले कमरे में अत्यधिक भार जैसे- आलमारी ( जिसका द्वार उत्तर की तरफ खुलता हो) कपाट आदि रखना शुभ होता है।

(7) वायव्य कोण ( उत्तर/पश्चिम)
इस दिशा के स्वामी ग्रह चन्द्र हैं तथा देवता वायुदेव हैं। यह दिशा वायु तत्व प्रमुख है। यह दिशा परिवर्तन की है। वायु चलायमान होती है इसी लिए प्रायः इस दिशा में जिनका कमरा होता है वे यात्राएं खूब करते हैं और घर से ज्यादातर बाहर ही रहते हैं। इस दिशा के स्वामी ग्रह चंद्र पे पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह शनि व उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध का भी प्रभाव होता है जिससे इस दिशा से भवन में रहने वाले व्यक्तियों को दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त होती है। साथ ही यह दिशा व्यवहारों में परिवर्तन की भी सूचक  हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस कोण में भण्डारगृह बनाना सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता है और अन्न पुष्टिवर्धक और सुरक्षित रहता हैं। यह दिशा चंद्रमा की होती है और चंद्रमा को ज्योतिष में मां ( स्त्री ) का कारक कहा गया है। अगर भवन में इस दिशा में कोई दोष पूर्ण निर्माण हुआ तो भवन की स्त्रियों को स्वास्थ्य की परेसानी झेलनी पड़ सकती है। अक्सर इस दिशा के दोष की वजह से मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। शक्ति का ह्वास हॉता है। आयु क्षीण होती है। अच्छे व्यवहार परिवर्तित हो जाते हैं। भवन में रहने वाले प्रायः घमंडी भी हो जाते हैं। अदालती मामले उत्पन्न हो जाते हैं।
इस दिशा में टॉयलेट, मेहमानों का कमरा, नौकरों का कमरा, बेडरूम, गैरेज बनाना शुभ होता है।

(8) ईशान दिशा ( उत्तर/पूर्व)
इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति है। यह  भगवान शिव (ईश) की दिशा है। इस दिशा में  जल तत्व का प्रभाव है।यहाँ देव गुरु बृहस्पति के साथ पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य और उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध का भी प्रभाव होने से यह दिशा हमें बुद्धि, ज्ञान, विवेक, धैर्य एवं साहस तथा धर्माचरण प्रदान करती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन की इस दिशा को सदा पवित्र एवं हल्का-फुल्का रखना शुभ होता है ऐसे घर पर देवताओं की कृपा होती है। यह दिशा वास्तु नियमों के अनुसार व्यवस्थित की जाये तो भवन में रहने वाले सभी व्यक्ति विद्यावान, गुणवान, तेजवान, तथा सौभाग्यवान होते हैं और धर्म का आचरण करने वाले होते हैं।
इस दिशा में पूजा घर, अध्यन कक्ष, बैठक का निर्माण शुभ माना गया है। इस जगह शौचालय, सीढ़ी, रसोईं, का निर्माण बहोत ही अशुभ माना गया है। अगर असावधानी वस इस दिशा में ऐसा कुछ निर्माण भवन में हो जाता है तो फिर भवन में रहने वाले व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं, बुद्धि भ्रष्ट होती है। कलहपूर्ण वातावरण बना रहता है। भवन में  कन्या संतान अधिक जन्म लेती हैं। अगर पुत्र हो भी जाये तो  उसकी अल्प मृत्यु की संभावना हमेसा बनी रहती है। ऐसे भवन में निवास करने वाले प्रायः मानसिक रोगों के शिकार मिलते हैं। वास्तुपुरुष का मस्तक आने से दिमांक संबंधी परेशानिया देखी जाती हैं। प्रायः घर के बालकों के बुद्धि के विकाश में अवरोध उत्पन्न होता है।

ब्रह्म स्थल ( आकाश )

इस दिशा के स्वामी ग्रह गुरु-केतु हैं यह ब्रह्मदेव की दिशा है । भवन में ब्रह्मस्थल का बहोत महत्त्व है, इस जगह को सर्वाधिक शुभ और श्रेष्ठ कहा गया है। इस जगह पे कोई भी निर्माण करने से वास्तुशास्त्र में रोका गया है। इसी लिए पुराने समय के भवनों के ठीक विचो-विच आंगन छोड़ने की परंपरा थी।  और इस आंगन में तुलसी का पौधा भी लगाते थे और संध्या समय उस पौधे के पास घी का  दीपक जलाते थे जिससे भवन में  नकारात्मक शक्तियाँ फटकने भी नहीं पाती थी। यही वास्तुपुरुष का नाभि स्थल होता है। भवन की प्रताड़ित वायु इसी आंगन के रास्ते निकल जाती थी और भवन में रहने वाले लोग निरोग एवं स्वस्थ्य रहते थे। पर आज के समय में आंगन वाली परंपरा समाप्त हो चुकी है। सहरों में फ़्लैट सिस्टम एवं मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में अब आंगन की कल्पना करना भी हास्यपद है। पर फिर भी ध्यान रखना चाहिए कि इस स्थान पे भारी सामान न रखा जाये, यहाँ साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यहाँ अगर पिलर  अथवा खम्भा हो तो उसका उचित उपचार करवाना आवश्यक है। फ़्लैटों में यहाँ पूजा स्थल रखना शुभ होता है।
ऐसा क्यों..  कैसे...? 

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Friday, 29 June 2018

पूजा-पाठ, वास्तु के कुछ जरूरी नियम

कुछ सरल वास्तु टिप्स एवं पूजा से सम्बंधित सावधानियां जिनको जानना हर गृहस्त के लिए आवश्यक है।


 अगर आपके घर मे भी है भगवान विष्णु और कृष्ण की प्रतिमा तो इनकी पूजा करते समय जरूर रखना चाहिए कुछ बातों का ध्यान। शास्त्राें में ऐसा कहा गया है कि जिन ज‌िन घरो में बाल गोपाल और श्री व‌िष्‍णु की मूर्त‌ियां है उन्हें पूजा में बहुत ही सावधानी रखनी चाह‌िए और पूजा में कुछ चीजों को लेकर गलत‌ियां नहीं करनी चाह‌िए।

 भगवान व‌िष्‍णु और बाल गोपल को ब‌िना स्नान और भोग लगाएं खुद भोजन नहीं करना चाह‌िए। अगर बिना स्नान किए हुए भोजन किया गया तो घर में बरकत नही हाेती है इतना ही नहीं परि‌वार में तरह-तरह की परेशान‌ियां आती हैं।

प्रतिदिन एक तुलसी का पत्ता भगवान के स‌िर पर और प्रसाद पर डालकर जरूर चढ़ाना चाहिए। ब‌िना तुलसी दल के पूजा अधूरी रह जाती है और भगवान यह पूजा स्वीकार भी नहीं करते हैं।

स‌िले हुए और जूठ वस्‍त्र धारण करके भगवान की पूजा नहीं करनी चाह‌िए।

पुराने फूल भगवान की मूर्त‌ि पर नहीं चढ़ाना चाह‌िए।  दूसरी बात यह याद रखें क‌ि बासी फूल भगवान के पास नहीं रहने दें। फूल माला भी हर द‌िन बदल देना चाह‌िए।

भगवान व‌िष्‍णु और श्री कृष्‍ण की पूजा में घी के दीप का बड़ा महत्व है। इसल‌िए पूजा के समय एक दीपक जरुर जलाना चाह‌िए।

घर में कभी भी टूटी-फूटी तस्वीर अथवा मूर्ति नहीं रखना चाहिए। अगर कोई मूर्ति या तस्वीर टूट जाए तो उसे तुरंत घर से हटा दें। मूर्तियों का खंडित होना अपशकुन माना जाता है। पूजा करते समय भक्त का पूरा ध्यान भगवान और उनके स्वरूप की ओर ही होता है। ऐसे में मूर्ति खंडित होगी तो भक्त का ध्यान भंग हो सकता है। ध्यान भंग होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। इसी वजह से खंडित मूर्तियां घर में नहीं रखना चाहिए।

 घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की बालरूपी बैठी हुई मूर्ति रखना सबसे अच्छा माना जाता है।

इसके अलावा अगर श्रीकृष्ण और देवी राधा की जुगल-जोड़ी हो तो ऐसी मूर्ति खड़ी मूद्रा की भी रखी जा सकती है।

-घर में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कुबेर की मूर्ति कभी खड़ी नहीं होनी चाहिए। इनका बैठा होना शुभ और लाभदायक होता है। भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी की मूर्ति को मंदिर की उत्तर दिशा में स्थापित करना शुभ होता है।

-अगर घर में भगवान शिव की स्थापना करना चाहते हैं तो शिवलिंग की जगह शिव मूर्ति या तस्वीर रखें। घर में शिव मूर्ति रखना अच्छा माना जाता है।

-अगर घर में भगवान श्रीराम की मूर्ति रखना चाहते है तो ध्यान रखें श्रीराम के साथ माता जानकी और भगवान हनुमान की भी स्थापना करें। इससे घर में प्रेम बना रहता है।

-घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति या तस्वीर की जगह अगर तांबे की सूर्य आकृति रखी जाए तो यह ज्यादा फलदायक माना जाता है।

-यदि घर में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखी हो तो ध्यान रखें कि उनके साथ देवी लक्ष्मी की स्थापना भी जरूर की जाए। भगवान विष्णु वहीं निवास करते हैं , यहां देवी लक्ष्मी उनके साथ हो।

-घर में भगवान गणेश की केसरिया या पीले रंग के वस्त्र बनती मूर्ति रखना बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा नृत्य करती गणेश प्रतिमा भी घर में शुभ अवसर लाती है।

घर में यदि भगवान हनुमान की मूर्ति हो तो ध्यान रखें कि उस मूर्ति में भगवान हनुमान पर्वत उठाते या अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते दिखाई दें।

-मंदिर में विशेष रूप से ध्यान रखें किसी भी भगवान की मूर्ति या तस्वीर को सीधे जमीन पर न रखें। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। मूर्तियों को कपड़े या थाली आदि में स्थापित करें।

-काली की विकराल छवि वाली मूर्ति जिनमें देवी काली का बायां पैर भगवान शिव के ऊपर रहता है ऐसी मूर्ति भी घर में होना अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसी मूर्ति को श्मशान काली माना जाता है जो विध्वंश का प्रतीक हैं।


*ऐसा कभी ना करें....*

 शास्त्रों एक अनुसार कभी भी पूजा घर में मृत हो चुके व्यक्ति की कोई भी वस्तु या तस्वीर तो बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए। यह शास्त्रों की दृष्टि में अशुभ है, इससे आपकी पूजा बेकार होती है और घर-परिवार पर संकट भी आते हैं।

 मृत परिजनों की तस्वीरों को लगाने के लिए घर की दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम एवं पश्चिम दिशा ही चुनी जानी चाहिए। यदि इसके अलावा किसी अन्य दिशा में मृत परिजनों की तस्वीर लगाई जाए तो यह घर में नकारात्मक ऊर्जा को लेकर आता है। जो सबसे पहले परिवार के लोगों की मानसिक अवस्था पर अटैक करता है।

 घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है। उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें धीरे-धीरे वो पौधा सूखने लगता है।

 तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर परिवार को किसी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।

पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर मुसीबत आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है। क्योंकि दरिद्रता, अशांति या क्लेश जहां होता है वहां लक्ष्मी जी का निवास नहीं होता। 

 घी का एक दीपक नियमित जलाएं। दीपक पूजा की थाली में भगवान के सामने रखना चाहिए, ऊंची जगह या प्लेटफार्म पर नहीं। दीपक में दो जली हुई बत्तियां होनी चाहिए, एक पूर्व और एक पश्चिम मुखी। पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए, दक्षिण दिशा की ओर नहीं। खंडित दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए, न घर में रखना चाहिए।

* घर के पूजा घर में मूर्ति स्थापना न करें। यह गृहस्थ जीवन के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। आप कागज की तस्वीरें या छोटी मूर्तियां रख सकते हैं। पूजा घर में कोई खंडित प्रतिमा नहीं होनी चाहिए। साथ ही में पूजा वाले कमरे में जूते-चप्पल और झाड़ू बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। मूर्तियों का आकार छोटा होना चाहिए, बड़ी मूर्तियां घर के पूजाघर में वर्जित हैं। इनकी दिशा पूर्व, पश्चिम, उत्तर मुखी हो सकती है, लेकिन दक्षिण मुखी कभी नहीं। गणेश जी की प्रतिमा पूर्व या पश्चिम दिशा में नहीं रखनी चाहिए, गणेश जी की स्थापना के लिए सही दिशा दक्षिण है। हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित करनी चाहिये ताकि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर रहे। इन्हें दीवार से एक इंच दूर रखना चाहिए, एक-दूसरे के सम्मुख नहीं।

अपने पूर्वजों की तस्वीर और खंडित मूर्तियां पूजा घर में नहीं रखनी चाहिये।खंडीत शंख भी नही होना चाहिये।

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Friday, 15 June 2018

प्रेम विवाह और सुख

राजा जनक की बेटी और राजा दशरथ की पुत्रवधू सीता।अलौकिक विवाह हुआ परन्तु मिला वनवास फिर वनवास में भी अपहरण,फिर अग्निपरीक्षा। अंत में भी गर्भवती सीता को देखना पड़ा परिवार वियोग। पृथ्वी पर राज करने वाले पिता और ससुर चाहकर भी साधन देकर भी सीता को सुख नहीं दे पाए। फिर एक साधारण मनुष्य कैसे अपनी संतान को उनके अपने भाग्य के बिना सुख दे सकता है। तन-धन से प्रयास करते रहे परन्तु मन से यह भूल मत जाए कि किसी को सुख उसके अपने कर्म व भाग्य से मिलती है दूसरे के करने से नहीं।


*आखिर क्यों होते हैं प्रेम विवाह*

साधारण सा एक सिद्धांत है कि जब भी पँचम भाव और सप्तम भाव आपस मे सम्बंध बनाये तो जातक को प्रेम होता है। अब ये प्रेम विवाह में परिणीति हो या न हो वो निर्भर करता है कि उपरोक्त युति किन भाव मे है लगनेश का इससे क्या संबंध है आदि, बहुत सी बातें हैं जो यह दर्शाती है कि  जातक प्रेम विवाह ही करेगा।

किन्तु आज का विषय थोड़ा हटकर रखा है कि आखिर प्रेम विवाह हो तो जाता है किंतु  ऐसा क्या होता है कि प्रेम विवाह कुछ दिनों बाद ही लड़ाई झगड़ो में तब्दील हो जाते हैं कभी कभी तो तलाक की नौबत भी आ जाती है। आखिर तब ये पंचमेश और सप्तमेष की युति को क्या होता है कि ये सम्बन्धो को बिगाड़ने में लग जाते हैं।

ऐसा क्यों...?

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Saturday, 9 June 2018

प्रेम विवाह और वाद विवाद

क्यों होते हैं प्रेम विवाह
साधारण सा एक सिद्धांत है कि जब भी पँचम भाव और सप्तम भाव आपस मे सम्बंध बनाये तो जातक को प्रेम होता है। अब ये प्रेम विवाह में परिणीति हो या न हो वो निर्भर करता है कि उपरोक्त युति किन भाव मे है लगनेश का इससे क्या संबंध है आदि, बहुत सी बातें हैं जो यह दर्शाती है कि  जातक प्रेम विवाह ही करेगा। 
किन्तु आज का विषय थोड़ा हटकर रखा है कि आखिर प्रेम विवाह हो तो जाता है किंतु  ऐसा क्या होता है कि प्रेम विवाह कुछ दिनों बाद ही लड़ाई झगड़ो में तब्दील हो जाते हैं कभी कभी तो तलाक की नौबत भी आ जाती है। आखिर तब ये पंचमेश और सप्तमेष की युति को क्या होता है कि ये सम्बन्धो को बिगाड़ने में लग जाते हैं। ऐसा क्यों...?

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Tuesday, 22 May 2018

कुंडली मिलान

  #कुंडली मिलान में देखने में आया है कि ज्यादातर #गुण मिलान में केवल  गुणों को बहुत ज्यादा महत्व दे दिया जाता है।कुल #36 गुण विवाह मिलान में होते है इसमें 36 से नीचे और 18से ऊपर मिलान होने पर #विवाह की स्वीकृति  दे दी जाती है लेकिन कुंडली के ग्रह और #सातवें भाव का विचार करना भी जरूरी होता है गुण मिलान विवाह के लिए केवल 30%मिलान होना बताता है जबकि पूर्ण मिलान ग्रह और कुंडली के सातवें भाव सहित अन्य विवाह के सहयोगी भावो का भी शुभ होना सुखी और अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी होता है।18 से ऊपर जितने ज्यादा से गुण मिलते है उतना ही शुभ होता है साथ ही अब गुण मिलने के बाद #लड़की-लड़के दोनों की कुंडली का सातवाँ भाव इस भाव का स्वामी लड़के की कुंडली में पत्नी का कारक शुक्र, लड़की की कुंडली में पति कारक बृहस्पति का शुभ, अनुकूल और पाप ग्रहो से मुक्त होना भी जरूरी है साथ ही सातवे भाव में कोई अस्त ग्रह, अशुभ ग्रह योग, पाप ग्रह न हो, सातवे भाव का स्वामी विवाह कारक #बृहस्पति शुक्र भी अस्त या पीड़ित नही होने चाहिए। इतना मिलान ठीक होने के बाद कुंडली के बारहवे भाव और इस भाव के स्वामी की स्थिति भी ठीक होना जरूरी है कारक यह भाव शैय्या सुख से सम्बंधित भाव है और शैय्या सुख #वैवाहिक सुख का एक अंग है इस कारण यह भाव भावेश दोनो पाप ग्रहो, अशुभ योग से मुक्त होने जरूरी होते है।इसके बाद दूसरा भाव भावेश भी बली, पाप ग्रहो से मुक्त होना जीवन साथी के लिए जरूरी है क्योंकि यह भाव भावेश #जीवनसाथी की आयु का भाव होता यदि जीवन साथी की आयु दीर्घ है तो विवाह सुख(पति-पत्नी) सुख और साथ लम्बे समय के लिए बना रहता है यह भाव परिवार का भी है इस कारण भी विवाह संबंधी मामले में यह भाव/भावेश शुभ और बली होना जरूरी है जिससे परिवार की वृद्धि हो।इसके बाद विवाह मिलान लड़की-लड़के की कुंडली में बृहस्पति सहित 5वे भाव भावेश की स्थिति भी शुभ, बली और अनुकूल होना सुखी और पूर्ण वैवाहिक जीवन का एक अंग होता क्योंकि यह भाव भावेश और बृहस्पति संतान के स्वामी और कारक है और #संतान पति-पत्नी के सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध को मजबूत करने की एक डोर है, परिवार वृद्धि का रास्ता है इस कारण यह भाव भावेश+बृहस्पति शुभ, अनुकूल होना भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी हो जाता है।साथ ही चोथे भाव भावेश भी शुभ और अशुभ प्रभाव से मुक्त हो क्योंकि यह भाव गृहस्थी और घर( निवास)का है गृहस्थी के लिए इस भाव/ भावेश की अनुकूलता अनिवार्य है।सबसे ज्यादा सातवें भाव भावेश, द्वितीय भाव भावेश, बारहवे भाव भावेश व् पाचवे भाव भावेश का अनुकूल होना एक पूर्ण सुखी और अच्छी कुंडली मिलान के लिए जरूरी होता है इसमें भी सातवा भाव भावेश साथ हो विवाह कारक गुरु शुक्र महत्वपूर्ण है क्योंकि यही सातवाँ भाव, भावेश गुरु शुक्र विवाह, वैवाहिक जीवन की नींव और उत्पत्ति है और नींव का ठीक होना सबसे महत्वपूर्ण होता है।इस तरह से गुण मिलान के साथ ग्रह, भाव का ठीक से परीक्षण और मिलान करने पर ही कुंडली का सही मिलान हो पाता है और यह सही से पता चल पाता है कि वैवाहिक जीवन किस स्तर तक ठीक आदि रहेगा।   #यदि #लग्न_कुंडली आपस में नही मिल पाती हो और यदि दोनों की #नवमांश_कुंडली आपस में पूरी तरह सही से मिल जाती है तब भी विवाह मिलान हो जाता है।अतःविवाह मिलान में नवमांश कुंडली का विश्लेषण भी करना जरूरी होता है यदि लग्न कुंडली ही प्रथम मिल जाती है तो यहई लग्न कुंडली विवाह होने की स्वीकृति दे देती है 
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Saturday, 12 May 2018

कुल देवी देवताओं की पूजा अर्चना

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*कुलदेवी/देवता की पूजा क्यू करना चाहीये?*


*हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है ,,प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाती कहा जाने लगा ,,पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |*

*समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ,इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया |*

*कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक* *ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है* *कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है ,अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है ,*

*कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है* *तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ,,बाहरी बाधाये ,अभिचार* *आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ,,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है ,,ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ,,*
*कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ,सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं ,,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे।*

..अपनी जन्मकुंडली बनबाने या फिर दिखाने के लिए मिलें। और अपने जन्मकुंडलियों के अनुसार उपाय परहेज जानने के लिये अवश्य मिलें।
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Monday, 30 April 2018

#वास्तु के कूछ आम नियम

🙏🙏मेरी कोई भी पोस्ट अच्छी लगे तो share अवश्य करें जी..🙏🙏
            🙏🙏#वास्तु के कुछ नियम🙏🙏
आप सभी कभी भी अपने जीवन  में भूल कर भी न करें ये गलतियां नही तो रह जाएंगे गरीब रहेंगी परेशानियां

1. कभी भी #महिलाओं का अनादर न करें।

2. महिलाओं का सम्मान करें, घर की स्त्रियों को समय-समय पर उनकी पसंद के #तोहफे देते रहना चाहिए।  

3. #बुधवार और #शुक्रवार को धन से जुड़े काम करना शुभ रहेगा।

4. #शुक्रवार को सारा परिवार मिलकर देवी लक्ष्मी का पूजन करे।

5. #फटा हुआ पर्स कभी भी जेब में न रखें, देवी लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं। 

6.अपने #जीवनसाथी के कदम से कदम मिलाकर चलें, खुशहाल परिवार में #लक्ष्मी वास करती हैं।

7. सुबह उठकर सबसे पहले अपनी हथेलियों का दर्शन करें, अपना #चेहरा कदापि न देखें।उठते ही सबसे पहले शीशे के पास न जाएं । 

8. धन से जुड़ा कोई भी काम करने से पहले प्रथम पूज्य गणेश जी का पूजन करें।

9. #सूर्यास्त के उपरांत धन का लेन-देन न करें। किसी को उधार तो बिल्कुल न दें, #देवी लक्ष्मी नाराज हो जाएंगी।

10. #मंगलवार और #शनिवार एवं #गुरुवार को शराब  कबाब ( non. veg.)न  खाएं पीएं।


11. #रविवार को #पीपल की पूजा न करें, इससे घर में लक्ष्मी का वास नहीं होता है।

12. भवन में #कांटेदार पेड़-पौधे लगाने से घर में आर्थिक, शारीरिक एवं #मानासिक परेशानियां बनी रहती हैं। घर की #दक्षिण दिशा में कबाड़ और कांटेदार पेड़ होने से घर में रोग पनपते हैं।

13. घर में बनने वाली प्रथम रोटी गाय के लिए बनाएं, घर के सदस्यों को भोजन देने से पहले गौ माता को रोटी खिलाएं। अपने जीवन में इस नियम का पालन 14. करने वाला कभी भी अन्न-धन और सेहत के सुख से वंचित नहीं होता।

  आज के लिए इतना ही काफी ..जानते रहिये मेरे साथ रहस्यमयी ज्योतिष शास्त्रों के रहस्यों को.....अपनी जन्मकुंडली बनबाने या फिर दिखाने के लिए मिलें। और अपने जन्मकुंडलियों के अनुसार उपाय परहेज जानने के लिये अवश्य मिलें।
#Astrologer in ludhiana, punjab
#रिसर्च एस्ट्रोलॉजर 
#Pawan Kumar Verma (B.A.,D.P.I.,LL.B.)
Mrs.Monita Verma
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