|| महाशिवरात्रि विशेष में पढ़ें ||
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आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्
सौर,गाणपत्य,शैव, वैष्णव, और शाक्त - इन पाँच सम्प्रदायों मे विभक्त विराट हिन्दू साम्राज्य अपने अपने इष्टदेव की उपासना के अतिरिक्त धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष प्राप्त करने हेतु सम्प्रदाय भेद त्याग कर महाशिवरात्रि व्रत का व्यवहारिक जीवन के प्रधान अंग निमित्त पालन करता है । एक बार कैलाश-शिखर पर स्थित पार्वती जी ने महादेव से पूछा -
कर्मणा केन भगवन् व्रतेन तपसापि वा ।
धर्मार्थकाममोक्षणां हेतुस्तवं परितुष्यति ।।
हे भगवन् ! धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष इन चतुर्वर्गों के हेतु तो आप ही हो एवं साधना से संतुष्ट हो मनुष्यों को आप ही इसे प्रदान भी करते हो । अतएव यह जानने की इच्छा है कि आप किस कर्म , किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होते हो । अज्ञातज्ञापकं हि शास्त्रम् ' ( शास्त्रीय अनुष्ठानों के मूल मे सर्वत्र उद्देश्य रहता है ) शास्त्रों का कार्य ही यह है कि जो ज्ञात नही है उसे ज्ञात करा दे । पार्वती जी के पूछने पर महादेव कहते हैं -
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी ।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका ।।
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति माँ ध्रुवम् ।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्यया ।।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत: ।।
फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है उसी को शिवरात्रि कहते हैं । उस दिन जो उपवास करने से मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ वैसा स्नान,वस्त्र ,धूप और पुष्प अर्पण से भी नही होता।
माघकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिगंतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ: ।।
तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रि तिथि: ।।
अर्थात् माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा मे आदि देव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसम्पन्न हो शिवलिंग के रूप मे आविर्भूत हुए थे,अतएव शिवरात्रि व्रत मे उसी महानिशा-व्यापिनी चतुर्दशी का ग्रहण करना चाहिये । माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी (गुजरात #महाराष्ट्र के अनुसार माघ)बहुधा फाल्गुन मास मे ही पड़ती है । ईशान संहितानुसार " शिव की प्रथम लिंगमूर्ति उक्त तिथि की महानिशा ( महानिशा द्वे घटिके रात्रेर्मध्यमयामयो: - चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों मे पहले की अंतिम और दूसरे की आदि घडी ही महानिशा है ) मे पृथ्वी से पहले पहल आविर्भूत हुयी थी ।
रात्रि के चार प्रहरों मे चार बार
पृथक पृथक पूजन का विधान है
दुग्धेन प्रथमो स्नानं दध्ना चैव द्वितीयके ।
तृतीये तु तथाऽऽज्येन चतुर्थे मधुना तथा ।।
प्रथम प्रहर मे ईशान मूर्ति की दूध द्वारा , द्वितीय प्रहर मे अघोर मूर्ति की दही द्वारा, तृतीय प्रहर मे वामदेव मूर्ति की घी द्वारा, चतुर्थ प्रहर मे सद्योजात मूर्ति की शहद द्वारा स्नान कर पूजन तत्पश्चात प्रभात मे विसर्जन, व्रतकथा सुन यह कह पारण करने का विधान है ।
संसारक्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शँकर ।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ।
हे शँकर महादेव ! मै नित्य संसार की यातना से दग्ध हो रहा हूँ , इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न होईये, हे प्रभो संतुष्ट हो कर आप मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान कीजिये । महा शिवरात्रि व्रतानुष्ठान मे शास्त्र का गूढ़ उद्देश्य निहित है वह अज्ञात तत्त्व को बतलाता है इस तत्त्व के जाने बिना अनुष्ठान की कोई सार्थकता नही रहती ।
महादेव , शिव साधन पथ मे ब्रह्मवादियों के लिये ब्रह्म , सांख्य मतावलम्बीयों के लिये पुरुष, योगपद मे आरूढ़ वेत्ताओ के लिये सहस्त्रार मे स्थित प्रणव अर्धमात्रा के रूप मे कीर्तित हुये हैं । पुराणों मे महादेव के आधिदैविक स्वरूप का अधिक विस्तार तथा विविध लीलाओं का वर्णन होने पर भी उनमे वही गूढ़ अध्यात्मिक तत्त्व निहित है , शिवरात्रि व्रत मे भी महादेव का अध्यात्मिक तत्त्व अन्तर्निहित है जो महादेव का दार्शनिक परिचय अन्त: सलिला फल्गु की धारा के समान प्रच्छन्नरूपेण प्रवाहित हो रहा है । उसी स्वादु सुशीतल धारा मे अवगाहन करने के लिये हमे और भी गहरे मे गोता लगाना पड़ेगा ।
महाशिवरात्रि व्रत मे रात्रि एवं उपवास की प्रधानता है ' आहारनिवृत्तिरुपवास:,साधारणत: निराहार रहने को उपवास कहते है । आह्नियते मनसा बुद्धयाइन्द्रिर्वा इति आहार: ' मन , बुद्धि अथवा इन्द्रियों द्वारा जो कुछ आहरण ( बाहर से भीतर ) संचय किया जाता है वही आहार है । स्थूल - सूक्ष्म , भेद से यह दो प्रकार का है , मन आदि से आह्नत संस्कार सूक्ष्म आहार एवं पंच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा गृहीत शब्द-स्पर्श-रूपादि स्थूल आहार है , इसके अतिरिक्त दाल,चावल अन्य व्यंजन स्थूलतर आहार हैं ।
उपवास अर्थात उप - समीप , वास करना । ' शान्तं शिवमद्वैतं यच्चतुर्थं मन्यते ' शिव के समीप रहने मात्र से स्वभावत: मन-प्राण की समस्त रंगीन बत्तियाँ अपने आप बुझने लगती हैं । आहार निवृत्ति अर्थात् सूक्ष्म , स्थूल , स्थूलतर आहार का अत्यन्त आभाव । यथोचितरूपेण अनुष्ठित हो व्रत के बहिरंग अनुष्ठान मे कमी होने पर भी कोई हानि नही होती है । इसी कारण शिवरात्रि व्रत मे उपवास ही प्रधान अंग है ।
|| ॐ नम: पार्वतीपतये हर हर हर महादेव ||