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Monday, 6 October 2025

शरद पूर्णिमा...... अमृत कलश

 *शरद पूर्णिमा: अमृत कलश की वर्षा .... धन , समृद्धि एवं स्वास्थ्य की सौग़ात*


*शरद पूर्णिमा को वास्तव में "अमृत वर्षा की रात" कहा जाता है, और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:*

 


1 *16 कलाओं से पूर्ण चंद्रमा*

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सभी सोलह (16) कलाओं से पूर्ण होता है, जो उसे सबसे अधिक शीतल, उज्ज्वल और शक्तिशाली बनाती हैं। इस रात को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट भी होता है।


2 *औषधीय और वैज्ञानिक महत्व*

• ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा की इस रात, चंद्रमा की किरणें विशेष रूप से शुद्ध और शीतलता लिए होती हैं, जिनमें अमृत के समान औषधीय गुण समाहित होते हैं।


• इसीलिए पारंपरिक रूप से लोग रात भर चाँदनी में खीर बनाकर रखते हैं। यह माना जाता है कि खीर में चंद्रमा की अमृत किरणें समाहित हो जाती हैं।


• अगली सुबह इस खीर को प्रसाद के रूप में खाने से यह शरीर को आरोग्य प्रदान करती है, मन को शांति देती है और कई रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक मानी जाती है।


3 *देवी लक्ष्मी की कृपा*

इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'कौन जाग रहा है?'। मान्यता है कि इस रात धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो भक्त रात भर जागकर (जागरण करके) उनकी पूजा और आराधना करते हैं, उन पर वह विशेष कृपा बरसाती हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि होती है।


4 *महारास की रात*

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने इसी रात अपनी दिव्य महारास लीला की थी। इस कारण, यह रात प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिक परमानंद का भी प्रतीक मानी जाती है।

यह रात आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक तीनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ मानी जाती है।


*शरद पूर्णिमा के ग्रह अनुसार  विशेष ज्योतिषीय उपाय*


*शरद पूर्णिमा का गहरा संबंध समुद्र मंथन से भी है, क्योंकि इसी शुभ तिथि पर दो प्रमुख शक्तियों, चंद्रमा और माता लक्ष्मी, का प्राकट्य हुआ था।* 


1 *चंद्र दोष शांति (मानसिक तनाव, चित्त अशांति)*


• शरद पूर्णिमा की रात चांदनी में सफेद खीर का पात्र रखकर चंद्रमा को अर्पित करें।


• अगले दिन वह खीर घर के सभी सदस्यों को प्रसाद रूप में दें।


इससे चंद्रमा बलवान होता है और मानसिक शांति, सुख और स्थिरता मिलती है।


2 *धन और लक्ष्मी कृपा हेतु (शुक्र व कुंडली के धन भाव)*


• इस रात कोजागरी व्रत करके लक्ष्मी जी के सामने दीपक जलाएँ।


*"ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः"* मंत्र का 108 बार जप करें।


• घर के मंदिर या तिजोरी में चांदी का छोटा सिक्का रखें।


इससे धनागमन, व्यापार में वृद्धि और समृद्धि आती है।


3 *ग्रह शांति के लिए (विशेषकर राहु-केतु दोष)*


• शरद पूर्णिमा की रात तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएँ।


*"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"* मंत्र का जप करें।


इससे नकारात्मक ऊर्जा और राहु-केतु के दोष शांत होते हैं।


4 *स्वास्थ्य और रोग शांति (सूर्य-चंद्र दोष से जुड़ी बीमारियाँ)*


• रात को चांदनी में रखे दूध का सेवन करें।


• यदि कोई बीमार है, तो उस दूध को उसे प्रसाद रूप में दें।


इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और चंद्र ऊर्जा शरीर में संतुलन लाती है।


5 *सिद्धि और आध्यात्मिक उन्नति हेतु (गुरु/बृहस्पति दोष)*


• शरद पूर्णिमा की रात को मौन रहकर ध्यान करें।


*“ॐ नमः शिवाय”* या अपने गुरु मंत्र का जप करें।


• गंगाजल में मिला दूध चंद्रमा को अर्घ्य दें।


यह साधना बृहस्पति और चंद्रमा को मजबूत करती है और विद्या, भक्ति व आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है।


6 *साधना और सिद्धि का समय*


• चंद्रमा और शुक्र की यह विशेष युति साधना के लिए श्रेष्ठ है।


• शरद पूर्णिमा की रात किए गए मंत्र-जप का 4 गुना फल प्राप्त होता है।


विशेषकर – *“ॐ चंद्राय नमः”*, *“ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”* का जप अत्यंत फलदायी होता है।


*ग्रह दोष - लक्षण -  विशेष ज्योतिषीय  उपाय  (ग्रह अनुसार)*


*चंद्रमा* - सोलह कलाओं से पूर्ण, मानसिक शांति, मातृ सुख का कारक मानसिक तनाव, अवसाद, अस्थिरता चांदनी में रखी खीर चंद्रमा को अर्पित करें और परिवार सहित ग्रहण करें।


*शुक्र* - वैभव, सौंदर्य, कला, दाम्पत्य सुख का प्रतीक दाम्पत्य जीवन में कलह, आर्थिक कमी, सुख का अभाव लक्ष्मी पूजन करें, *“ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”* का 108 जप करें।


*सूर्य* - चंद्रमा की रोशनी से संतुलन पाता है, स्वास्थ्य और ऊर्जा का कारक कमजोरी, आत्मविश्वास की कमी, पितृदोष गंगाजल में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।


*बृहस्पति (गुरु)* - ज्ञान, धर्म और आस्था का विस्तार निर्णय क्षमता की कमी, विद्या में बाधा मौन साधना करें, *“ॐ नमः शिवाय”* या गुरु मंत्र का जप करें।


*राहु-केतु* - चंद्रमा को प्रभावित करते हैं, शांति और स्थिरता इस रात मिलती है मानसिक भ्रम, बाधाएँ, असफलताएँ तुलसी के पास दीपक जलाएँ और *“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”* जप करें।


*शनि* - धैर्य और कर्मफल का नियंता, इस रात शांति मिलती है जीवन में विलंब, संघर्ष, मानसिक दबाव गरीबों को खीर/दूध का दान करें, शनि प्रसन्न होंगे।


*मंगल* - ऊर्जा और साहस का ग्रह, चंद्रमा के प्रभाव से शांति पाता है क्रोध, दुर्घटनाएँ, रक्त संबंधी रोग  *“ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः”* का जप कर चंद्रमा को नमन करें।


*बुध* - वाणी और बुद्धि का कारक, चंद्रमा से पोषण पाता है गलत निर्णय, संवाद में समस्या तुलसी दल से दूध में मिश्रित खीर बनाकर चंद्रमा को अर्पित करें।


*विशेष नोट*


• इस रात किए गए मंत्र-जप और साधना का फल सामान्य दिनों से कई गुना अधिक मिलता है।


*निष्कर्ष:*


शरद पूर्णिमा केवल एक त्यौहार नहीं बल्कि ग्रह दोष शांति, स्वास्थ्य, धन-समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का विशेष अवसर है।


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*Scientific Astrology and Vastu...Astro. Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone number 9417311379. www.astropawankv.com*



Thursday, 2 October 2025

दशहरा पर्व... असत्य पर सत्य की विजय

 *दशहरा पर्व....*


*असत्य पर सत्य की विजय*


        *!! यह दशहरा है !!*


*"राजा" राम थे तो रावण भी "राजा" थे !*

*"परमवीर राम थे तो "महाबली" रावण भी थे !*

*"ज्ञानी" राम थे तो "महाज्ञानी" रावण भी थे !*

*"सन्यासी" राम बने तो "संयमी" रावण भी रहे !*

*सीता के लिये "पति धर्म" राम ने पूरा किया तो शुर्पणखा के लिये "भ्राता धर्म" रावण ने पुरा किया !*

*पिता को दिया "वचन" राम ने निभाया तो बहन को दिया "वचन" रावण ने निभाया !*

*"क्षत्रिय" राम थे तो "ब्राह्मण" रावण भी थे !*

*"पित्र" भक्त राम थे तो "शिव" भक्त रावण भी थे !*

*"सत्य" राम थे तो "झूठे" रावण भी नहीं थे !*


*फिर युद्ध क्यों ?*


*राम की "जीत" और रावण  की "हार" क्यों ?*

*यह युद्ध था, "ज्ञान" और महाज्ञान" के "सही-गलत" उपयोग का !*

*यह युद्ध था "सत्य" से ऊपर "अति आत्म-विश्वास" का !*

*यह युद्ध था, परिजन की "सलाह" नकारने का !*

*यह युद्ध था, "मर्यादा पुरुषोत्तम" राम और "मतिभ्रमित" दशानन का !*

*यह युद्ध था राम "नीति" और रावण "प्रवृत्ति" का !*

*यह युद्ध था, "त्यागी" राम और "अहंकारी" रावण का !*


*जलते हुए रावण के पुतले ने सामने खड़ी भीड़ से पूछा:-*

*"तुम में से कोई राम है क्या ?*

*उस युग के रावण आज के युग में विद्यमान सभी लोगों से "श्रेष्ठ" थे !*

*भले ही रावण के "दस चेहरे" थे पर "दसों-दस चेहरे" बाहर रखते थे !*


*इस दशहरे पर अपने अंदर के "राम-रावण" को पहचाने !*

*"ज्ञान" और "बल" के सही-गलत उपयोग को जाने !*


*आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !*


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Sunday, 21 September 2025

शारदीय नवरात्रि महोत्सव

 *शिव -शिवा शक्ति जय माता की*

जगदम्बा का आगमन सवारी हाथी पर और प्रस्थान नर पर जो अत्यंत शुभफलदायक हैं 

हिंदू पंचांग के अनुसार, 22 सितंबर को घटस्थापना का शुभ समय सुबह 06 बजकर 09 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। 

वहीं, अभिजीत मुहूर्त11 बजकर 49 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। 

इस दौरान भी साधक घटस्थापना कर सकते हैं।

22 सितंबर 2025 

नवरात्र पहला दिन - मां शैलपुत्री

23 सितंबर 2025 

नवरात्र दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी

24 सितंबर 2025 नवरात्र तीसरे दिन - मां चंद्रघंटा

25 सितंबर 2025 नवरात्रि तीसरे दिन - मां चंद्रघंटा

26 सितंबर 2025 नवरात्रि चौथा दिन - मां कूष्माण्डा

27 सितंबर 2025 नवरात्रि पांचवां दिन - मां स्कंदमाता

28 सितंबर 2025 नवरात्रि छठा दिन - मां कात्यायनी

29 सितंबर 2025 नवरात्रि सातवां दिन - मां कालरात्रि

30 सितंबर 2025 नवरात्रि आठवा दिन - मां महागौरी/ सिद्धिदात्री

01 अक्टूबर 2025 नवरात्रि नौवां दिन - मां सिद्धिदात्री


#नवदुर्गा के बीजमंत्र!!

1. शैलपुत्री - ह्रीं शिवायै नम:। 

2. ब्रह्मचारिणी- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। 

3. चन्द्रघण्टा- ऐं श्रीं शक्तयै नम:। 

4. कूष्मांडा- ऐं ह्री देव्यै नम:। 

5. स्कंदमाता- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

6. कात्यायनी- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।

7. कालरात्रि-  क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। 

8. महागौरी- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। 

9. सिद्धिदात्री-  ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।


 नवरात्रि शक्ति की पूजा करने, आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करने और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने का एक पवित्र अवसर है. ( पूजन विधिविधान का पालन विद्वान के अनुसरण मे करें) शुभकामनाओ सहित ज्योतिष सलाह हेतु  ....


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Tuesday, 16 September 2025

श्राद्ध पक्ष क्यों....

 श्राद्धपक्ष का रहस्य...

क्या हमारे ऋषि मुनि अंतर्यामी थे ?


जो कौवों के लिए खीर बनाने को कहते थे!

कहते थे कि कौवों को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा! नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे। जानिए सही कारण...


तुमने कभी पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं ? या किसी को लगाते हुए देखा है? क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं? इसका जवाब है नहीं! बरगद या पीपल की कलम रोपने की कोशिश करो, परंतु नहीं लगेगी! कारण प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।


यह दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसींग होती है, तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं!


पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो Round the Clock ऑक्सीजन O2  छोड़ता है और बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है।

अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है, इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा और यह होगा कैसे?


मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राद्ध के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी। जिससे कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये। इसलिए श्राद्ध करना प्रकृति रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।


घ्यान रखना जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तब अपने पूर्वज याद आएंगे, क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।


सनातन धर्म पे उंगली उठाने वालों, पहले सनातन धर्म को जानो फिर उस पर ऊंगली उठाओ। जब आपका विज्ञान भी नही था तब हमारे सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का उपचार क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है कौन सी नहीं ! 


ज्ञान का भंडार है हमारा सनातन धर्म और उनके नियम, मैकाले की शिक्षा पढ़ के अपने पूर्वजों, ऋषि मुनियों के नियमों पर ऊंगली उठाने के बजाय उसकी गहराई को जानिये...


गया  तीर्थ की कथा...


ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे गया नामक असुर की रचना हो गई। गया असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी। वह देवताओं का सम्मान और आराधना करता था।


उसके मन में एक खटका था। वह सोचा करता था कि भले ही वह संत प्रवृति का है लेकिन असुर कुल में पैदा होने के कारण उसे कभी सम्मान नहीं मिलेगा इसलिए क्यों न अच्छे कर्म से इतना पुण्य अर्जित किया जाए ताकि उसे स्वर्ग मिले।


गयासुर ने कठोर तप से भगवान श्री विष्णुजी को प्रसन्न किया। भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने मांगा - आप मेरे शरीर में वास करें। जो मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं। वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में स्थान मिले।


भगवान से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा। जो भी उसे देख लेता उसके पाप नष्ट हो जाते और स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। इससे यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई। कोई घोर पापी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके पाप नष्ट हो जाते। यमराज उसे नर्क भेजने की तैयारी करते तो वह गयासुर के दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग मांगने लगता। यमराज को हिसाब रखने में संकट हो गया था।


यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि अगर गयासुर को न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उसके कर्म के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है। पापी भी गयासुर के प्रभाव से स्वर्ग भोंगेगे।


ब्रह्माजी​ ने उपाय निकाला। उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे ज्यादा पवित्र है इसलिए तुम्हारी पीठ पर बैठकर मैं सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा।


उसकी पीठ पर यज्ञ होगा यह सुनकर गया​ सहर्ष तैयार हो गया। ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ पत्थर से गया को दबाकर बैठ गए। इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ। वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था।


देवताओं को चिंता हुई। उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए स्वयं श्री हरि देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा। श्री हरि भी उसके शरीर पर आ बैठे।


श्री विष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा - आप सब और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं। घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा लेकिन मुझे श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता, श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें।


श्री हरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए। उन्होंने कहा - गया! अगर तुम्हारी कोई इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो।


गया ने कहा - "हे नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए।"


श्री विष्णु ने कहा - गया, तुम धन्य हो! तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो। तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं।


भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। क्षेत्र का नाम गयासुर के अर्धभाग गया नाम से तीर्थ रूप में विख्यात होगा। मैं स्वयं यहां विराजमान रहूंगा।


इस तीर्थ से समस्त मानव जाति का कल्याण होगा। साथ ही वहा भगवान "श्री विष्णुजी​" ने अपने पैर का निशान स्थापित किया जो आज भी वहा के मंदिर में दर्शनीय है। गया विधि के अनुसार श्राद्ध फल्गू नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में व अक्षय वट के नीचे किया जाता है। बिहार के गया में श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होता है।


पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की यह बताना उतना ही कठिन है जितना भारतीय संस्कृति के उद्भव की कोई तिथि निश्चित करना, परंतु स्थानीय पंडों का कहना है कि सर्वप्रथम सतयुग में ब्रह्माजी ने पिंडदान किया था।  महाभारत के 'वन पर्व' में भीष्म पितामह और पांडवों की गया-यात्रा का उल्लेख मिलता है। श्रीराम ने महाराजा दशरथ का पिण्ड दान गया में किया था। गया के पंडों के पास साक्ष्यों से स्पष्ट है कि मौर्य और गुप्त राजाओं से लेकर कुमारिल भट्ट, चाणक्य, रामकृष्ण परमहंस व चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों का भी गया में पिंडदान करने का प्रमाण मिलता है। गया में फल्गू नदी प्रायः सूखी रहती है। इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है -


भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीताजी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गया धाम पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लाने वे चले गये तब तक राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी। 


फल्गू नदी तट पर अकेली बैठी सीताजी अत्यंत असमंजस में पड़ गई। माता सीताजी​ ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया। 


जब भगवान श्री राम आए तो उन्हें पूरी कहानी सुनाई, परंतु भगवान को विश्वास नहीं हुआ। जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया। पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षय वट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली।


इससे क्रोधित होकर सीताजी ने फल्गू नदी को श्राप दे दिया कि तुम सदा सूखी रहोगी जबकि गाय को मैला खाने का श्राप दिया, केतकी के फूल को पितृ पूजन मे निषेध किए। वटवृक्ष पर प्रसन्न होकर सीताजी ने उसे सदा दूसरों को छाया प्रदान करने व लंबी आयु का वरदान दिया। तब से ही फल्गू नदी हमेशा सूखी रहती हैं, जबकि वटवृक्ष अभी भी तीर्थयात्रियों को छाया प्रदान करता है। आज भी फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड में बालू का पिंड दान करने की परंपरा संपन्न होती है।


श्राद्ध पक्ष के समय

*क्यों नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य ?


श्राद्ध पितृत्व के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। सनातन धर्मानुसार प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ करने से पहले मां-बाप तथा पितृ गण को प्रणाम करना हमारा धर्म है। क्योंकि हमारे पुरखों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज जीवित रहे हैं। सनातन धर्म के मतानुसार हमारे ऋषि मुनियों ने हिंदू वर्ष में सम्पादित 24 पक्षों में से एक पक्ष को पितृपक्ष अर्थात श्राद्धपक्ष का नाम दिया। पितृपक्ष में हम अपने पितृ गण का श्राद्धकर्म, अर्ध्य, तर्पण तथा पिण्ड दान के माध्यम से विशेष क्रिया संपन्न करते हैं। धर्मानुसार पितृ गण की आत्मा को मुक्ति तथा शांति प्रदान करने हेतु विशिष्ट कर्मकाण्ड को 'श्राद्ध' कहते हैं। श्राद्धपक्ष में शुभकार्य वर्जित क्यों ? हमारी संस्कृति में श्राद्ध का संबंध हमारे पूर्वजों की मृत्यु की तिथि से है। अतः श्राद्धपक्ष शुभ तथा नए कार्यों के प्रारंभ हेतु अशुभ काल माना गया है। जिस प्रकार हम अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोकाकुल अवधि में रहते हैं तथा शुभ, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को कुछ समय तक रोक देते हैं। उसी प्रकार पितृपक्ष में भी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। श्राद्धपक्ष की 16 दिनों की समय अवधि में हम अपने पितृ गण से तथा हमारे पितृ गण हमसे जुड़े रहते हैं। अत: शुभ-मांगलिक कार्यों को वंचित रखकर हम पितृ गण के प्रति पूरा सम्मान व एकाग्रता बनाए रखते हैं।


शास्त्रों के अनुसार मनुष्य योनी में जन्म लेते ही व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण समाहित हो जाते हैं। इन तीन प्रकार के ऋणों में से एक ऋण है पितृऋण अत: धर्मशास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्धकर्म के अर्ध्य, तर्पण तथा पिण्ड दान के माध्यम से पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बताया गया है।


पितृऋण से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का कल्याण होना असंभव है। शास्त्रानुसार पृथ्वी से ऊपर सत्य, तप, महा, जन, स्वर्ग, भुव:, भूमि ये सात लोक माने गए हैं। इन सात लोकों में से भुव: लोक को पितृलोक माना गया है। 


श्राद्धपक्ष की सोलह दिन की अवधी में पितृ गण पितृलोक से चलकर भूलोक आ जाते हैं। इन सोलह दिन की समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है, अतः पितृपक्ष में पितृ गण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजों से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं। अतः यह विचारणीय विषय है कि जब व्यक्ति पर ऋण अर्थात कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते। शास्त्र कहते हैं की पितृऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई कर्म नहीं है। श्राद्धकर्म का अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में सर्वाधिक महत्व कहा गया है। इस समय सूर्य पृथ्वी के नजदीक रहते हैं, जिससे पृथ्वी पर पितृ गण का प्रभाव अधिक पड़ता है इसलिए इस पक्ष में कर्म को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार एक श्लोक इस प्रकार है। 



एवं विधानतः श्राद्धं कुर्यात् स्वविभावोचितम्।

आब्रह्मस्तम्बपर्यंतं जगत् प्रीणाति मानवः ॥ 


अर्थात् - जो व्यक्ति विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मा से लेकर घास तक सभी प्राणियों को संतृप्त कर देता है तथा अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति पाता है। अतः स्वयं पर पितृत्व के कर्जों के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

Monday, 8 September 2025

पितृ पक्ष ...पितरों का श्राद्ध

 || ॐ पितरेश्वराय नमः ||

        ***********

पितरों का श्राद्ध करो ,वो तुम्ह शक्ति देंगे

          ***************

संकल्प-

में अपना नाम....पिता का नाम....माँ का नाम.... गोत्र....भारत देश मे राज्य में में अपने घर आज श्राद्ध पक्ष के पुण्य पर्व पर अपने समस्त पितृओ को जल, धूप, दीप नैवेद्य दे रहा हुं। जिन्हें आंखों से देखा नहीं जिनके बारे में जानते नही वह भी पितृ आये और मेरे हाथ से धूप, दीप, नैवेध दे रहा हूँ । जिन्हें आंखों से देखा नहीं, जिनके बारे में सुना नहीं,जिनके बारे में जानते नहीं वो भी पितर आएं और मेरे हाथ से धूप,दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।


श्राद्ध पक्ष में किए जाने वाले महत्वपूर्ण प्रयोग –

         *********************

1- पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक 

  प्रतिदिन पंचबली का प्रयोग करें ।


पंचवली में मुख्य रूप से पांच बलि यानी दान से हैं- 

    गाय ,कुत्ता ,कौवा ,चींटी एवं ब्राह्मण ।


इनमें प्रतिदिन दोपहर 12:00 से पहले अपने घर में जो भी भोजन तैयार होता है उसे एक थाली में लेकर पांच जगह पर चार- चार रोटियों के ऊपर सब्जी,गुड़ आदि रखें 


2- मकान की दहलीज धोएं और कुमकुम

   से सीधे हाथ की तरफ स्वस्तिक बनाएं ।


स्वस्तिक पर बड़े दिए में कंडे 

  रखकर घी से प्रज्वलित करें ।


3-एक कटोरी में घी, गुड मिलाए एवं पूजन की संपूर्ण थारी लगाएं जिसमें हल्दी, कुमकुम ,चावल ,फूल (हो सके तो सफेद फूल ) रखें ।


4 -सभी पांच बली खुटों  में से थोड़ी -

     थोड़ी रोटी तोड़ कर घी,गुड़ में मिलाएं ।


5 धूप प्रक्रिया-

      ******

(1) पहली धूप पहली पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आए और मेरे हाथ से धूप,दीप नैवेद्य ग्रहण करें ।


(2) दूसरी धूप दूसरी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें। 


(3) तीसरी धूप तीसरी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप ,दीप ,नैवेद्य ग्रहण करें। 


(4) चौथी धूप चौथी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें। 


(5) पांचवी धूप पांचवी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें। 


(6) छठी धूप छठी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें। 


(7) सातवीं धूप सातवी पीढ़ी में पिता के वंश के माता के वंश में जो भी पितर है वो आएं और मेरे हाथ से धूप दीप नैवेद्य ग्रहण करें। 


(8) आठवीं सधूप, नैवेद्य समस्त ज्ञात - अज्ञात पितरों के लिए जिन आंखों से देखा नहीं , जिनके बारे में सुना नहीं , जिनके बारे में जानते नहीं वह भी पितर आएं और मेरे हाथ से धूप ,दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।


(9) नवी धूप समस्त गुरु परंपरा के लिए जो भी समस्त गुरु परंपरा में गुरु हैं,वे आए और मेरे हाथ से धूप,दीप , नैवेद्य ग्रहण करें ।


(10) दसवीं धूप अपनी गायों एवं कुत्तों के लिए हमारे कुलपरंपरा में जो भी गौ माता एवं भैरव हैं वह आए वह मेरे हाथ से धूप, दीप,नैवेद्य ग्रहण करें ।


(11) हाथ में जल लेकर दिये के ऊपर से 3 बार घुमाएं और अंगूठे की धार से जमीन पर जल छोडे।जल छोड़कर घुटने टेक कर प्रणाम करें ।


आप सभी से निवेदन है कि आप अपने पित्रो को श्राद्ध तर्पण जरूर करें।


      || सर्व पितृदेवो प्रणाम आपको ||

                    

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Wednesday, 3 September 2025

चंद्र ग्रहण (7/8 सितंबर 2025,)

 *चंद्रग्रहण 07/09/2025*


*खग्रास चंद्रग्रहण*


*_तिथि_:* भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा, रविवार

*_दिनांक_:* 07 सितंबर 2025

*_दृश्यता_:* रात्री में समस्त भारत में दिखाई देगा


*_ग्रहण का सूतक_:* दिन में 12:58 बजे से प्रारंभ होगा

*_ग्रहण का समय_:*

- स्पर्श: रात्री 09:58 बजे

- मोक्ष: रात्री 01:26 बजे


*_ग्रहण का राशियों पर प्रभाव_:*

- शुभ फल: धनु, कन्या, वृषभ, मेष राशि

- मध्यम फल: मकर, तुला, सिंह, मिथुन राशि

- अशुभ फल: कुम्भ, वृश्चिक, कर्क, मीन राशि


*_ग्रहण का फल_:*

- प्राकृतिक आपदा-विपदा, रोग-उपद्रव , मानसिक तनाव कष्ट परेशानियां, चल अचल संपत्ति की हानि की संभावना

- राष्ट्र ब सर्व हित के अभ्युदय के लिए प्रार्थना करें और निष्ठा से कार्य करें


*_वस्तुओं पर प्रभाव_:*

- तेजी: लोहा, स्टील, तेल, घी, सोना, पीतल, हल्दी, मूंगफली, सरसो, तिल इत्यादि



*सर्वे भवन्तु सुखिनः!*


 *सुप्रभात*

*प्रातः वंदन* 

*राम राम जी*


*अपनी जन्मकुंडली के ग्रह, नक्षत्र, राशि भाव, दशा महादशा के अनुसार अपने अपने उपाय, परहेज़ दान, पूजा पाठ जप दान समय समय पर करते रहें इन्हे  कभी न भूलें*


          *सुप्रभात* 


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Wednesday, 27 August 2025

श्री गणेश चतुर्थी

 *राम राम जी*


    🪷  || शुभ श्री गणेश चतुर्थी ||  🪷


दूसरों के जीवन से अमंगलों और कष्टों का हरण करने वाला ही समाज में प्रथम पूज्य एवं वंदनीय बन जाता है। सभी देवों में अग्रपूज्य भगवान गणपति गणेश जी का स्वरूप बड़ा ही अनुपम और अनेक सीखों से भरा है। भगवान गणेश पर हाथी का मस्तक विराजमान है। हाथी सदैव अपने सामने वाली वस्तु को उसके वास्तविक स्वरूप से दुगुना बड़ा देखता है। अर्थात् गणेश भगवान सबको अति सम्मानपूर्ण दृष्टि से देखते हैं।


भगवान गणेश के बड़े-बड़े कान हमें संदेश देते हैं, कि सदैव श्रेष्ठ सुनो। व्यर्थ के वाद-विवाद में अपने अमूल्य समय को नष्ट मत करो। भगवान गणेश को लम्बोदर भी कहा जाता है। अर्थात् जीवन के भले-बुरे, खट्टे-मीठे और अनुकूल-प्रतिकूल सभी बातों को अपने पेट में रखना अथवा उन्हें पचाना सीखो। विशाल देह होने के बाद भी गणेश जी मूषक की सवारी करते हैं। अर्थात् आप कितने भी वैभवशाली क्यों न हो जाओ पर आपके भीतर अहमता का भार शून्य होना चाहिए। 

                  

      *जय श्री राधे कृष्णा जी*

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Friday, 15 August 2025

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 🇮🇳 || शुभ स्वतंत्रता दिवस || 🇮🇳


जिस दिन हम समस्त देशवासियों के हृदय में अपने राष्ट्र और राष्ट्रीयता के प्रति सम्मान की भावना जागृत हो जायेगी, सच्चे अर्थों में उस दिन हमारे वीर बलिदानियों की कुर्बानियाँ भी सार्थक हो जायेंगी। आज का पावन दिवस माँ भारती के उन महान सपूतों को वंदन करने का भी है जिन्होंने इस राष्ट्र की एकता, अखंडता, समरसता और सहिष्णुता के लिए हँसकर अपने प्राणों की आहुतियां दे दी। 


समस्त क्रांतिकारियों व माँ भारती के अमर वीर बलिदानियों की उन अमर क्रांतियों के लिए यह स्वतंत्र भारत सदैव ऋणी रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप हम सभी देशवासी इस स्वतंत्र राष्ट्र में सुख और शांति के साथ जीवन जी पा रहे हैं एवं आज स्वतंत्रता का यह महामहोत्सव मना पा रहे हैं। माँ भारती की रक्षा में अहर्निश तत्पर रहने वाले सभी वीर जवानों को हृदय से नमन करते हुए समस्त राष्ट्रवासियों को 79वें स्वतंत्रता दिवस की अनंत शुभकामनाएं एवं बधाई।

      

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      *जय श्री राधे कृष्णा जी*

*राम राम जी*






Friday, 8 August 2025

रक्षा बंधन 09/08/2025

 *राम राम जी*


*रक्षाबन्धन विशेष* 


     श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधकर उनके खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। भाई भी अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। राखी इस बार 9 अगस्त को है। खास बात ये है कि  इस बार रक्षाबंधन पर भद्रायोग यानी किसी भी तरह का भद्रा काल नहीं है । जिससे पूरे दिन राखी बांधने का समय रहेगा।

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कैसे मनाएं रक्षाबंधन? राखी की थाल सजा लें। जिसमें रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र यानी राखी और मिठाई रखें। घी का दीपक भी जलाकर रख लें। रक्षा सूत्र और पूजा की थाल सबसे पहले भगवान को समर्पित करें। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बिठाएं। भाई के माथे पर तिलक लगाएं। रक्षा सूत्र बांधें और आरती करें। इसके बाद भाई को मिठाई खिलाएं। ध्यान रखें कि राखी बांधने के समय भाई और बहन दोनों का सिर ढका होना चाहिए। इसके बाद अपने बड़ों का आशीर्वाद लें।


राखी का मुहूर्त: 09अगस्त को सुबह 6 बजे से  दोपहर 1:30 बजे तक शुभ मुहुर्त  है। इस बार आयुष्मान, सर्वार्थ सिद्धि योग और सौभाग्य योग का दुर्लभ संयोग है.... वैसे राखी बांधने का  मुहूर्त सुबह  से  लेकर रात 8 बजे तक रहेगा। 

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*नोट - राहु काल 09 अगस्त 2025 (शनिवार)  का समय सुबह 09:06 बजे से 10:46 बजे तक रहेगा.* 


 *आपको रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएं*

*राम राम जी*


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*आपके भाई की राशि रक्षासुत्र और ..लाभ*


मेष :  आपके भाई  की राशि मेष है उसे लाल रँग  की राखी बांधें और मिठाई में मालपुए खिलाएं. ऐसा करने से भाई को मानसिक शांति मिलेगी 


वृषभ : इस राशि के भाई को सफेद रेशमी डोरी वाली राखी बांधें और रसमलाई  मिठाई ही खिलाएं, ऐसा करने से नौकरी व्यापार में लाभ मिलेगा और उर्जा से ओतप्रोत होंगे


मिथुन : आपके भाई  की राशि मिथुन है, बहने उन्हें हरे रँग  वाली राखी बांधें और हरी बर्फी या गुलाबजामुन मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से सामाजिक कार्यों में रुचि बनी रहेगी.विचार शक्ति बढ़ेगी 


कर्क : आपके भाई की राशि कर्क है तो इस साल राखी के त्योहार पर अपने भाई की कलाई पर सफ़ेद रेशम वाली राखी बांधें. मिठाई में कलाकंद या बादाम कतली  खिलाएं. ऐसे करने से मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी भावनात्मक रिश्ते मजबूत होंगे


सिंह : सिंह राशि वाले भाइयों को ऑरेंज राखी बांधें और मिठाई में घेवर  मिठाई या बलुशाई खिलाएं. इससे शिक्षा के क्षेत्र में सफतला प्राप्त होगी और कार्रिएर जॉब लाभ 


कन्या : अगर आपके भाई की राशि कन्या है तो अपने भाईयों को गणेशजी के प्रतीक वाली राखी बांधें और मोतीचूर के लड्डू खिलाएं. इससे वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा और अच्छा शुभ परिणाम मिलेगा 


तुला : आपके  भाई की राशि तुला है वो रेशमी हल्के गुलाबी  डोरे वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें कजुकतली या मावा बर्फी मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से व्यवसाय की चिंता दूर होगी और स्थिति सामान्य बनी रहेगी कार्य शक्ति बढ़ेगी  


वृश्चिक ; आपके भाई की राशि वृश्चिक हे आप चमकीला लाल रँग  वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें पंचमेवा बर्फी या अंजीर कतली मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से उनके क्रोध व रोग से आराम मिलेगा


धनु : भाई की राशि धनु  है वो पीले  रक्षासूत्र वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें बेसन चक्की या जलेबी  मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से नौकरी व्यापार की बाधा दूर होगी 


मकर : आपके  भाई की राशि मकर  है वो परपल रक्षासुत्र   वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें काला गुलाबजामुन मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से जीवन की सभी बाधा दूर होगी 


कुम्भ : भाई की राशि कुम्भ  है वो नीले धागे वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें सोहन हलवा या सोहन पापड़ी मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से उनको धन सम्पति लाभ होगा 


मीन : भाई की राशि मीन  है वो पीले रक्षासुत्र वाली राखी बांधें, मिठाई में उन्हें केसर  मिठाई खिलाएं. ऐसे करने से  मन स्वच्छ होगा 


*रक्षाबंधन के मंत्र*


 *येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः*


*पूजा विधि:* राखी बांधने से पहले भाई को उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बिठा लें। फिर भाई के माथे पर तिलक लगाएं और उन्हें रक्षा सूत्र बांधें। भाई की आरती उतारें। मुंह मीठा करें। अगर भाई बड़ा है तो आप उसके चरण स्पर्श करें। राखी बंधवाने के बाद भाई अपनी इच्छानुसार बहनों को भेंट देते हैं।


*आप सभी जन को रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएं*

*राम राम जी*


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Thursday, 24 July 2025

हरियाली अमावस्या

 || हरियाली अमावस्या ||

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सावन मास की हरियाली अमावस्या इस साल 24 जुलाई को है। उदया तिथि के अनुसार इस साल अमावस्या 24 जुलाई को है। हरियाली अमावस्या पर पितरों का तर्पण किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। स्कंद पुराण में अमावस्या पर श्राद्ध करने के विषय में बताया गया है। इस साल सावन मास की अमावस्या तिथि आरंभ: 24 जुलाई , सुबह 2:29 बजे से शुरू होगी और 25 जुलाई को रात 12:41 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार 24 जुलाई को हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन गंगा स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन पितरों का श्राद्ध करना उत्तम रहता है।


हरियाली अमावस्या का महत्व-

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सावन मास का समय अपने आप में बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान चारों तरफ हरियाली छा जाती है। बारिश की वजह से मौसम खुशनुमा और सुहावना हो जाता है, जिससे पेड़-पौधों में ताजगी और जीवन की नयी चमक देखने को मिलती है। इसी कारण से सावन की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है।


इसके अलावा,सावन मास शिव भगवान का प्रिय महीना होता है, इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन शिव पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव की आराधना से मन की शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। प्रकृति की रक्षा और पर्यावरण की सेवा के लिए भी इस दिन पौधे लगाने की बहुत अहमियत होती है। खासकर आम, आंवला, नीम, बरगद, पीपल जैसे पवित्र और लाभकारी पेड़ लगाना शुभ माना जाता है। ये पौधे न केवल पर्यावरण को स्वस्थ बनाते हैं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद पवित्र माने जाते हैं। इसलिए हरियाली अमावस्या न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि प्रकृति के साथ जुड़ने और उसका संरक्षण करने का भी एक अनमोल मौका है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और पौधारोपण से जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य और सौभाग्य आता है।


          || ॐ नमः शिवाय ||

               ✍️

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Thursday, 10 July 2025

गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

 https://youtube.com/shorts/NEGsVucePBA?si=f4MDOg8AvcEprIRj


आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएं जी




गुरू पूर्णिमा

 *गुरु पूर्णिमा*


*गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा:*


  *गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नम:।*


           🙏🙏


*हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर*'




      ******************


*यानी भगवान के रूठने पर गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु अगर रूठ जाए तो कहीं भी शरण नहीं मिलती। गुरु की जरूरत हमें अपने जीवन चक्र में पग पग पर पड़ती हैं वो जरूरत चाहे किसी भी रुप में हो। गुरु हमें किसी भी रुप में, किसी भी रिश्ते में मिल सकता है  इसलिए जीवन में गुरु का विशेष महत्व  है। मान्यता है कि आप जिसे भी अपना सच्चे मन से दिल से गुरु मानते हों, गुरु पूर्णिमा के दिन आपको उसकी पूजा करनी चाहिए आशीर्वाद लेना चाहिए गुरू की पूजा करने से ब आशीर्वाद लेने से जीवन की बहुत सारी बाधाएं दूर हो जाती है।*


*गुरु पूर्णिमा कब होती है।*


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             *आषाढ मास की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा कहा जाता है।*


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             *चातुर्मास के चार मास तक प्रवाचक,  साधु संत एक ही स्थान पर रह कर ज्ञान गंगा बहाते है। चातुर्मास के चार मास मौसम के अनुसार भी सर्वश्रेष्ठ होते है  अध्यन के लिए भी सर्वश्रेष्ठ माने गये है। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है उसी प्रकार गुरु चरणो मे  उपस्थित साधक को ग्यान शक्ति   और भक्ति प्राप्त होती है।*



*गुरु पूर्णिमा किस के नाम पर मनायी जाती है।*


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        * *गुरु पूर्णिमा गुरु की पूजा अर्चना के लिए विशेषतः मनायी जाती है। महाभारत के रचियता कृष्ण द्वैपायन का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुवा था। कृष्ण द्वैपायन संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे और चारो वेदो के रचियता भी कृष्ण द्वैपायन ही थे इस लिए इनको में वेद व्यास भी कहा जाता है। कृष्ण द्वैपायन के सम्मान में इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। भक्ति काल में संत कबीर के शिष्य श्री घासी दास का जन्म भी इसी दिन हुवा था।*



*शास्त्रो के अनुसार गुरु का अर्थ।*


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                *शास्त्रो के अनुसार गु का अर्थ- अंधकार मूल अज्ञान और रु का अर्थ- निरोधक अर्थात अंधकार हटाकर प्रकाश की ओर लेजाने वाले को ही गुरु कहते है।*



 गुरु का महत्व।


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            * *गुरु के विना ज्ञान नही मिल सकता है। गुरु को पाने के लिए भी उतनी ही तपस्या करनी पडती है जितनी ईश्वर को पाने के लिए।  सच्चा गुरु ही हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ला सकता है। संत कबीर दास जी ने गुरु को ईश्वर से भी बडा निम्न दोहे  में बताया है।*



*"गुरु गोबिन्द दोऊ खडे, काके लागू पाय।*


*बलिहारी गुरु आपने, गोबिन्द दिये बताय।।"*




*गुरु पूर्णिमा की... आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं*



 *गुरु ह्रदय में , सदा  गुरु  ही है  भ्रम  का  काल*


*गुरु  अवगुण  को  मेटते,  मिटे  सभी  भ्रमजाल*


*मेरे सुख-दुख में, अच्छे- बुरे वक्त में , व्यवसाय के क्षेत्र में या सामाजिक व धार्मिक कार्य में, कोई मित्र के रूप में , कोई मार्गदर्शक के रूप में तो कोई शुभचिंतक के रूप में  आप लोगों ने मुझे समय समय पर मार्गदर्शन देकर मेरे मनोबल को बढ़ाया है, मुझे सही रास्ता दिखाया है*, 


*आप जैसे सभी आदरणीय स्नेही मित्र शुभचिंतकों  व पूज्यनीय गुरुओं को नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ और गुरुपूर्णिमा की बधाई देता हूँ....*


      *|| *गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई ||*

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Sunday, 6 April 2025

नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 #नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना 


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Sunday, 30 March 2025

विक्रम संवत 2082 के शुभारंभ पर आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं

 विक्रम संवत नववर्ष 2082  का शुभारंभ


               चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ 


                      ******


श्रीमद् दैवीयभागवत के अनुसार-


     नौ पूर्ण अंक माना जाता है।




नव दुर्गा,नवदा भक्ति, नवग्रह,नव शक्ति,नव संवत्सर,नव जीवन, नव यौवन, नव संकल्प, नव सृष्टि, ये सभी 9 के आकडे से संबंधित है।




 चैत्र नवरात्र का महत्व क्यों है-


      *****************


जहाँ तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है, क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदि शक्ति प्रकट हुई थी।और देवी के कहने से ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्णय का काम सुरू किया।इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू सनातन नववर्ष शुरू हुआ। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने पहला मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार जो भगवान राम का है वह चैत्र नवरात्रा में हुआ है।




धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है ऋतु के बदलने के समय रोग जिसे आसुरी शक्ति कहते है।उसका अंत करने हेतु हवन पुजन आदि होते है। और मौसम परिवर्तन के कारण उपवास भी किये जाते है।




आप सभी जन को नव विक्रम संवत् 2082 की हार्दिक शुभकामनाएं। ये नववर्ष आपके एवं आपके परिजनों के लिए अत्यंत शुभ एवं मंगलदायक हो।




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         || जय माँ जगदम्बे ||


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Saturday, 29 March 2025

बिदा ले रहे वर्ष 2081 और आने वाले नववर्ष 2082.....

 *विदा ले रहे  वर्ष 2081 के* 

*अंतिम दिन मेरा* 

*वंदन स्वीकार हो..*


*क्षमा करना अगर*

*आपके सम्मान मे*

*मुझ से कोई भूल हुई हो..*


*आज वि• स •२०८१ (2081) का अंतिम दिन हैं। कल से नववर्ष विक्रम संवत  २०८२ (2082) प्रारंभ होने जा रहा है।  मैंने यह महसूस किया कि मुझे उन सभी लोगों  का धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने मुझे संवत् २०८१ (2081) में मुस्कराने की वजह दी है, ......आप उन्हीं में से एक हैं , .......इसलिए आपका हार्दिक आभार ।* 


*संभव है कि जाने-अनजाने में मेरे कर्म , वचन , स्वभाव से आप को दुख हुआ हो, इसलिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं ।*

*विश्वास है कि आगामी विक्रम सम्वत२०८२ (2082)में भी आप सबका आशीर्वाद, मार्गदर्शन , स्नेह , सहयोग, प्यार , पूर्व की भांति मिलता रहेगा । सनातन  नववर्ष  की आपको एवं आपके परिजनों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाए*


 *🙏🏻जय श्री राम 🙏🏻*


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शनि जयंती

 || आज शनि जयंती है ||

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नमः कालशरीराय कालगुन्नाय ते नमः

 कालहेतो नमस्तुभ्यं कालनंदाय वे नमः।


अखण्डदण्डमानाय त्वनाद्यंताय वै नमः

कालदेवाय कालाय कालकालाय ते नमः।।


काल शरीर के लिए नमस्कार है,कालगुन्न के लिए प्रणाम है, हे कालहेतों आपके लिए नमस्कार है।अखण्डदण्डतान के लिए नमस्कार है। कालदेव को काल को और काल के भी काल(भगवान् शनिदेव)के लिए नमस्कार है।'


शनि अमावस्या का महत्व

    ***************

शनि अमावस्या का दिन शनि देव के प्रकोप को शांत करने और शनि दान के लिए सबसे अच्छा दिन माना गया है। इस दिन शनि देव से संबंधित चीजों का दान करना शुभ माना जाता है। शनि अमावस्या के दिन शनि को प्रसन्न करने के लिए उन पर सरसों के तेल में तिल डालकर चढ़ाना चाहिए। शनि देव से जुड़ी काली चीजों का दान करना चाहिए। इस दिन शनि देव का अभिषेक और उनके मंत्रों का जाप भी करना चाहिए।

      

जयंती विशेष -

    ******

शनिदेव के दस नाम प्रतिदिन लेने से होती है सभी मनोकामना पूरी होती है। इसे श्लोक के रूप में जप सकते हैं। यदि ऐसा नहीं कर सकें, तो हर नाम के साथ ओम और नम: का उच्चारण जरूर करें।


जैसे-ओम कोणस्थ नम:कोणस्थ  पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेनसंस्तुत:।।


अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन 10 नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।


   || जय श्री शनिदेव प्रणाम आपको ||

                   


Friday, 14 March 2025

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

 *राम राम जी*


*🙏🌹इंद्रधनुष के सात रंगो की तरह आप के जीवन में धन, यश, कीर्ति, आरोग्य ,उल्लास, सफलता, और वैभव का समावेश हो तथा श्री भगवान जी , गुरू महाराज जी आप को चिर काल तक प्रसन्नता के रंगो से सराबोर रखे, ऐसी ईश्वर से मेरी मंगल कामना है। आप एवं आपके परिवार को   "होली"के पावन पर्व की स्नेहभरी हार्दिक एवं अनन्त शुभकामनाएं।*


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Thursday, 13 March 2025

होलिका दहन ...होली पर्व

 



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Wednesday, 26 February 2025

महाशिवरात्रि महापार्व की हार्दिक शुभकामनाएं

 





महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं :-

         

धर्मशास्त्र में महाशिवरात्रि व्रत का सर्वाधिक बखान किया गया है। कहा गया है कि महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं है।इस व्रत को करके मनुष्य अपने सर्वपापों से मुक्त हो जाता है और अनंत फल की प्राप्ति करता है जिससे एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ वापजेय यज्ञ का फल प्राप्त करता है। इस व्रत को जो 14 वर्ष तक पालन करता है उसके कई पीढ़ियों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष या शिव के परम धाम शिवलोक की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि व्रत व शिव की पूजा भगवान श्रीराम, राक्षसराज रावण, दक्ष कन्या सति, हिमालय कन्या पार्वती और विष्णु पत्नी महालक्ष्मी ने किया था। जो मनुष्य इस महाशिवरात्रि व्रत के उपवास रहकर जागरण करते हैं उनको शिव सायुज्य के साथ अंत में मोक्ष प्राप्त होता है।


जो मनुष्य इस महाशिवरात्रि व्रत के उपवास रहकर जागरण करते हैं उनको शिव सायुज्य के साथ अंत में मोक्ष प्राप्त होता है। बेलपत्र चढ़ाने से अमोघ फल की प्राप्ति  इस दिन विधि-विधान से शिवलिंग का अभिषेक, भगवान शिव का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करने से सहस्रगुणा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।


इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग :-

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महाशिवरात्रि में तिथि निर्णय में तीन पक्ष हैं। एक तो, चतुर्दशी को प्रदोषव्यापिनी, दूसरा निशितव्यापिनी और तीसरा उभयव्यापिनी, धर्मसिंधु के मुख्य पक्ष निशितव्यापिनी को ग्रहण करने को बताया है।वहीं धर्मसिंधु, पद्मपुराण, स्कंदपुराण में निशितव्यापिनी की महत्ता बतायी गयी है, जबकि लिंग पुराण में प्रदोषव्यापिनी चतुर्दशी की महत्ता बतायी है, जो इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग है।


महाशिवरात्रि व्रत के बारे में लिंग पुराण में कहा गया है

    कि प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्र चतुर्दशी'-


 रात्रिजागरणं यस्यात तस्मातां समूपोषयेत'

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अर्थात महाशिवरात्रि फाल्गुन चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी लेना चाहिए।रात्रि में जागरण किया जाता है। इस कारण प्रदोष व्यापिनी ही उचित होता है।


      || शिव शक्ति जी की जय हो ||

                   

Monday, 13 January 2025

मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल पर्व

 आप सभी जन को Astropawankv की पूरी Team की तरफ़ से मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं......