होली पर्व पर आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं
( Articles Relating to Lal Kitab Astrology, Lal Kitab Vastu, Vedik Astrology, Naddi Astrology, Kaalsarap Yog, Pitar Dosh,Maanglik Dosh, K.P. Astrology, Rashi Ratan ( Lucky Stone ) Astrology,Vastu,.. etc.)
Monday, 25 March 2024
Sunday, 24 March 2024
होलिका दहन....
*आपको और आपके परिवार को होली के पावन अवसर पर मेरे और मेरे परिवार की तरफ से, हार्दिक बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएं !*
*आज होलिका दहन के साथ आपकी समस्याओं का अंत हो, रंगोत्सव होली के रंगो की तरह आपकी जिंदगी भी, खुशियों के रंगो से भरी रहे, मैं ईश्वर से यही कामना करता हूँ।....*
*राधे राधे*🙏🏼🌺
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Tuesday, 19 March 2024
आपके कर्म से बदल जाते हैं आपके भाग्य..
*आपके कर्म से बदल जाते हैं आपके भाग्य*
प्रकृत्य ऋषि का रोज का नियम था कि वह नगर से दूर जंगलों में स्थित शिव मन्दिर में भगवान् शिव की पूजा में लीन रहते थे। कई वर्षो से यह उनका अखण्ड नियम था।
उसी जंगल में एक नास्तिक डाकू अस्थिमाल का भी डेरा था। अस्थिमाल का भय आसपास के क्षेत्र में व्याप्त था। अस्थिमाल बड़ा नास्तिक था। वह मन्दिरों में भी चोरी-डाका से नहीं चूकता था।
एक दिन अस्थिमाल की नजर प्रकृत्य ऋषि पर पड़ी। उसने सोचा यह ऋषि जंगल में छुपे मन्दिर में पूजा करता है, हो न हो इसने मन्दिर में काफी माल छुपाकर रखा होगा। आज इसे ही लूटते हैं।
अस्थिमाल ने प्रकृत्य ऋषि से कहा कि जितना भी धन छुपाकर रखा हो चुपचाप मेरे हवाले कर दो। ऋषि उसे देखकर तनिक भी विचलित हुए बिना बोले- कैसा धन ? मैं तो यहाँ बिना किसी लोभ के पूजा को चला आता हूँ।
डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा। ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया। रक्त की धारा फूट पड़ी।
इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्थिमाल के सामने गिरीं। अस्थिमाल अट्टहास करते हुए बोला तू ऋषि होकर झूठ बोलता है।
झूठे ब्राह्मण तू तो कहता था कि यहाँ कोई धन नहीं फिर ये सोने के सिक्के कहाँ से गिरे। अब अगर तूने मुझे सारे धन का पता नहीं बताया तो मैं यहीं पटक-पटकर तेरे प्राण ले लूँगा।
प्रकृत्य ऋषि करुणा में भरकर दुखी मन से बोले - हे शिवजी मैंने पूरा जीवन आपकी सेवा पूजा में समर्पित कर दिया फिर ये कैसी विपत्ति आन पड़ी ? प्रभो मेरी रक्षा करें। जब भक्त सच्चे मन से पुकारे तो भोलेनाथ क्यों न आते।
महेश्वर तत्क्षण प्रकट हुए और ऋषि को कहा कि इस होनी के पीछे का कारण मैं तुम्हें बताता हूँ। यह डाकू पूर्वजन्म में एक ब्राह्मण ही था। इसने कई कल्पों तक मेरी भक्ति की। परन्तु इससे प्रदोष के दिन एक भूल हो गई।
यह पूरा दिन निराहार रहकर मेरी भक्ति करता रहा। दोपहर में जब इसे प्यास लगी तो यह जल पीने के लिए पास के ही एक सरोवर तक पहुँचा। संयोग से एक गाय का बछड़ा भी दिन भर का प्यासा वहीं पानी पीने आया। तब इसने उस बछड़े को कोहनी मारकर भगा दिया और स्वयं जल पीया।
इसी कारण इस जन्म में यह डाकू हुआ। तुम पूर्वजन्म में मछुआरे थे। उसी सरोवर से मछलियाँ पकड़कर उन्हें बेचकर अपना जीवन यापन करते थे। जब तुमने उस छोटे बछड़े को निर्जल परेशान देखा तो अपने पात्र में उसके लिए थोड़ा जल लेकर आए। उस पुण्य के कारण तुम्हें यह कुल प्राप्त हुआ।
पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण इसका आज राजतिलक होने वाला था पर इसने इस जन्म में डाकू होते हुए न जाने कितने निरपराध लोगों को मारा व देवालयों में चोरियां की इस कारण इसके पुण्य सीमित हो गए और इसे सिर्फ ये कुछ मुद्रायें ही मिल पायीं।
तुमने पिछले जन्म में अनगिनत मत्स्यों का आखेट किया जिसके कारण आज का दिन तुम्हारी मृत्यु के लिए तय था पर इस जन्म में तुम्हारे संचित पुण्यों के कारण तुम्हें मृत्यु स्पर्श नहीं कर पायी और सिर्फ यह घाव देकर लौट गई।
*ईश्वर वह नहीं करते जो हमें अच्छा लगता है, ईश्वर वह करते हैं जो हमारे लिए सचमुच अच्छा है। यदि आपके अच्छे कार्यों के परिणाम स्वरूप भी आपको कोई कष्ट प्राप्त हो रहा है तो समझिए कि इस तरह ईश्वर ने आपके बड़े कष्ट हर लिए।*
*हमारी दृष्टि सीमित है परन्तु ईश्वर तो लोक-परलोक सब देखते हैं, सबका हिसाब रखते हैं। हमारा वर्तमान, भूत और भविष्य सभी को जोड़कर हमें वही प्रदान करते हैं जो हमारे लिए उचित है। इसलिए आप अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करें कि आप क्या सोचते हैं और क्या कर रहे हैं। आपकी तनिक सी गलत सोच आपके अच्छे कर्म को भी पीछे धकेल देती है और आपसे गलत फ़ैसला करवा सकती है।......*
*राम राम जी*
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Saturday, 16 March 2024
चंद्र शनि..(विष योग)
*विष योग (" शनी + चन्द्र ")*
फलदीपिका’ ग्रंथ के अनुसार ‘‘आयु, मृत्यु, भय,
दुख,
अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित
कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा,
कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह सेहोता है। अपने
अशुभ कारकत्व के कारण शनि ग्रह
को पापी तथा अशुभ
ग्रह कहा जाता है। परंतु यह पूर्णतया सत्य
नहीं है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वाले
जातक के
लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन लग्न में
शुभकारी तथा अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशुभ
फल
देता है। शनि पूर्वजन्म में
किये गये कर्मों का फल इस जन्म में अपनी भाव
स्थिति द्वारा देता है। वह 3, 6, 10 तथा 11 भाव में शुभ फल
देता है। 1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव में अशुभ फलदायक और 4, 8
तथा 12 भाव में अरिष्ट कारक होता है। बलवान शनि शुभ फल
तथा निर्बल शनि अशुभ फल देता है।
यह 36वें वर्ष से विशेष फलदाई होता है।
शनि की विंशोत्तरी दशा 19 वर्ष
की होती है।
अतः कुंडली में
शनि अशुभ स्थित होने पर इसकी दशा में जातक
को लंबे
समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। शनि सब से
धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है।
वह एक राशि के गोचर में लगभग ढाई वर्ष का समय लेता है।
चंद्रमा से द्वादश, चंद्रमा पर, और चंद्रमा से अगले भाव में
शनि का गोचर साढ़े-साती कहलाता है। वृष, तुला,
मकर
और कुंभ लग्न वालों के अतिरिक्त अन्य लग्नों में प्रायः यह
समय
कष्टकारी होता है। शनि एक
शक्तिशाली ग्रह होने से
अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा दूसरे ग्रहों के फलादेश
में
न्यूनता लाता है। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त
उसकी तीसरे व दसवें भाव पर पूर्ण
दृष्टि होती है।
शनि के विपरीत चंद्रमा एक शुभ परंतु निर्बल ग्रह
है।
चंद्रमा एक राशि का संक्रमण केवल 2 से ( 2 1/4) दिन में
पूरा कर
लेता है। चंद्रमा के कारकत्व में मन की स्थिति,
माता का सुख,सम्मान, सुख-साधन, मीठे फल, सुगंधित
फूल, कृषि, यश, मोती, कांसा,
चांदी,चीनी, दूध, कोमल
वस्त्र,
तरल पदार्थ, स्त्री का सुख, आदि आते हैं। जन्म
समय
चंद्रमा बलवान, शुभ भावगत, शुभ राशिगत,
ऐसी मान्यता है कि शनि और
चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले जन्म में
किसी स्त्री को दिये गये कष्ट
को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए
इस
जन्म में उसकी मां बनती है।
माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य
तथा धन
नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित
रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल
हो तो जन्म
के
बाद माता की मृत्यु हो जाती है
अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु
हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष
तक
रहती है। दर्शाती है, जिसका अशुभ
प्रभाव मध्य अवस्था तक रहता है। शनि के चंद्रमा से अधिक
अंश
या अगली राशि में होने पर जातक अपयश
का भागी होता है।
सभी ज्योतिष ग्रंथों में शनि-चंद्र
की युति का फल अशुभ कहा है। ‘‘जातक भरणम्’
ने
इसका फल ‘‘परजात, निन्दित, दुराचारी,
पुरूषार्थहीन’’ कहा है। ‘बृहद्जातक’
तथा ‘फलदीपिका’ ने इसका फल ‘‘परपुरूष से
उत्पन्न,
आदि’’ बताया है। अशुभ फलादेश के कारण इस युति को ‘‘विष
योग’’
की संज्ञा दी गई है।
‘विष योग’ का अशुभ फल जातक को चंद्रमा और
शनि की दशा में उनके बलानुसार अधिक मिलता है।
कंटक
शनि, अष्टम शनि तथा साढ़ेसाती कष्ट
बढ़ाती है। ऐसी मान्यता है कि शनि और
चंद्रमा की युति जातक द्वारा पिछले
जन्म में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट
को दर्शाती है। वह जातक से बदला लेने के लिए
इस
जन्म में उसकी मां बनती है।
माता का शुभत्व प्रबल होने पर वह पुत्र को दुख, दारिद्र्य
तथा धन
नाश देते हुए दीर्घकाल तक जीवित
रहती है। यदि पुत्र का शुभत्व प्रबल
हो तो जन्म
के
बाद माता की मृत्यु हो जाती है
अथवा नवजात की शीघ्र मृत्यु
हो जाती है। इसकी संभावना 14वें वर्ष
तक
रहती है। कुंडली में जिस भाव में ‘विष
योग’
स्थित होता है उस भाव संबंधी कष्ट मिलते हैं।
नजदीकी परिवारजन स्वयं
दुखी रहकर विश्वासघात करते हैं। जातक
को दीर्घकालीन रोग होते हैं और वह
आर्थिक तंगी के कारण कर्ज से दबा रहता है।
जीवन में सुख नहीं मिलता। जातक के
मन में
संसार से विरक्ति का भाव जागृत होता है और वह अध्यात्म
की ओर अग्रसर होता है।
***विभिन्न भावों में ‘विष योग’ का फल***
प्रथम भाव (लग्न) इस योग के कारण माता के बीमार
रहने
या उसकी मृत्यु से किसी अन्य
स्त्री (बुआ अथवा मौसी)
द्वारा उसका बचपन
में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द
रहता है।
शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज
रहता है।
जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु
प्रवृत्ति का होता है। आर्थिक
संपन्नता नहीं होती।
नौकरी में
पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर
से
होता है। दांपत्य जीवन
सुखी नहीं रहता। इस प्रकार
जीवन में कठिनाइयां भरपूर
होती हैं।
द्वितीय भाव मे विष योग के कारणघर के
मुखिया की बीमारी या मृत्यु के
कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता है।
पैतृक संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक
की वाणी में
कटुता रहती है।
वह कंजूस होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम
करना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक
स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं
कान में
बीमारी की संभावना रहती है !
तृतीय भाव इस योग के कारण जातक
की शिक्षा अपूर्ण रहती है। वह
नौकरी से धन कमाता है। भाई-बहनों के साथ संबंध
में
कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं।
यात्रा में
विघ्न आते हैं। श्वांस के रोग होने
की संभावना रहती है।
चतुर्थ भाव मे इस योग के कारण माता के सुख में
कमी,
अथवा माता से विवाद रहता है। जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है।
मध्यम
आयु में आय कुछ ठीक रहती है, परंतु
अंतिम समय में फिर से धन
की कमी हो जाती है।
स्वयं
दुखी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है।
उसके मृत्योपरांत ही उसकी संतान
का भाग्योदय होता है। पुरूषों को हृदय रोग तथा महिलाओं
को स्तन रोग
की संभावना रहती है।
पंचम भाव मे विष योग होने से शिक्षा प्राप्ति में
बाधा आती है। वैवाहिक सुख अल्प रहता है।
संतान
देरी से होती है, या संतान
मंदबुद्धि होती है। स्त्री राशि में
कन्यायें
अधिक होती हैं। संतान से कोई सुख
नहीं मिलता।
षष्ठ भाव इस योग के कारण जातक
को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल
पक्ष
से सहायता नहीं मिलती।व्यवसाय में
प्रतिद्धंदी हानि करते हैं। घर में
चोरी की संभावना रहती है !
सप्तम भाव
स्त्री की कुंडली में
विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है, और
वहदूसरा विवाह करती है। पुरूष
की कुंडली में यह युति विवाह में अधिक
विलंब करती है। पत्नी अधिक उम्र
की या विधवा होती है। संतान
प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन
में
कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सुख
नहीं मिलता।
साझेदारी के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल
की ओर से कोई
सहायता नहीं मिलती।
अष्टम भाव मे इस योग के कारण
दीर्घकालीन
शारीरिक कष्ट और गुप्त रोग होते हैं। टांग में चोट
अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई विशेष
सफलता नहीं मिलती। उम्र
लंबी रहती है। अंत समय
कष्टकारी होता है।
नवम भाव मे इस योग के कारण भाग्योदय में रूकावट
आती है। कार्यों में विलंब से
सफलता मिलती है। यात्रा में
हानि होती है।
ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में
कष्ट
रहता है। जीवन अस्थिर रहता है। भाई-बहन
से
संबंध अच्छे नहीं रहते।
दशम भाव मे इस योग के कारण पिता से संबंध अच्छे
नहीं रहते। नौकरी में
परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतृक
संपत्ति मिलने में कठिनाई आती है। आर्थिक
स्थिति अच्छी नहीं रहती वैवाहिक
जीवन
भी सुखी नहीं रहता।
एकादश भाव मे इस योग के कारण बुरे दोस्तों का साथ रहता है।
किसी भी कार्य मे लाभ
नहीं मिलता। संतान से सुख
नहीं मिलता।
जातक का अंतिम समय बुरा गुजरता है। बलवान शनि सुखकारक
होता है।
द्वादश स्थान मे इस योग से जातक निराश रहता है।
उसकी बीमारियों के इलाज में अधिक समय
लगता है। जातक व्यसनी बनकर धन का नाश
करता है।
अपने कष्टों के कारण वह कई बार आत्महत्या तक करने
की सोचता है।
महर्षि पराशर ने दो ग्रहों की एक राशि में
युति को सबसे कम बलवान माना है। सबसे बलवान योग ग्रहों के
राशि परिवर्तन से बनता है तथा दूसरे नंबर पर
ग्रहों का दृष्टि योग होता है। अतः शनि-चंद्र
की युति से
बना ‘विष योग’ सबसे कम बलवान होता है। इनके राशि परिवर्तन
अथवा परस्पर दृष्टि संबंध होने पर ‘विष योग’
संबंधी प्रबल प्रभाव जातक को प्राप्त होते हैं।
इसके
अतिरिक्त शनि की तीसरी,
सातवीं या दसवीं दृष्टि जिस स्थान पर
हो और
वहां जन्मकुंडली में चंद्रमा स्थित होने पर ‘विष
योग’ के
समान ही फल जातक को प्राप्त होते हैं। उपाय
शिवजी शनिदेव के गुरु हैं और चंद्रमा को अपने सिर
पर
धारण करते हैं। अतः ‘विषयोग’ के दुष्प्रभाव को कम करने के
लिए
देवों के देव महादेव शिव की आराधना व
उपासना करनी चाहिए।
सुबह स्नान करके प्रतिदिन थोड़ा सरसों का तेल व काले तिल के
कुछ
दाने मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुये ‘ऊँ नमः शिवाय’
का उच्चारण करना चाहिए। उसके बाद कम से कम एक
माला ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जप करना चाहिए। शनिवार
को शनि देव
का संध्या समय तेलाभिषेक करने के बाद गरीब, अनाथ
एवं
वृद्धों को उरद की दाल और चावल से
बनी खिचड़ी का दान करना चाहिए। ऐसे
व्यक्ति को रात के समय दूध व चावल का उपयोग
नहीं करना चाहिए ....
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Friday, 8 March 2024
महाशिवरात्रि पर्व...
|| महाशिवरात्रि पर्व आज 8 मार्च शुक्रवार को ||
****************
महाशिवरात्रि का पर्व इस वर्ष 8 मार्च 2024 में रहेगा, सूर्योदय के समय श्रवण नक्षत्र रहेगा,शुभ मुहूर्त सायं 9 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होकर 9 मार्च शनिवार 6 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल में मुहुर्त पूजा शाम को 6 बजकर 41मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक।
आज के दिन भगवान शिव की पूजा
चार प्रहर करने का विशेष फल होता है।
1-प्रथम प्रहर ---सायं 6 बजकर 18 मिनट
से रात्रि 9 बजकर 28 मिनट तक।
2-द्वितीय प्रहर-- 9 बजकर 29 मिनट से
मध्य रात्रि 12बजकर 34 मिनट तक।
3-तृतीय प्रहर--12 बजकर 40 मिनट से प्रात:
से 3 बजकर 50 मिनट तक।
4-चतुर्थप्रहर -3 बजकर 51 मिनट से प्रात:
7 बजकर 10 मिनट तक (9मार्च)।
निषिद्ध काल --मध्यम रात्रि 12.15 से 1.6 तक।
महाशिवरात्रि व्रत का पारण 9 मार्च 2024
शनिवार को प्रात: काल कर लिया जाएगा।
|| जय महाकाल ||
महाशिवरात्रि......
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है,
इस व्रत का महत्व और अन्य खास बातें-
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महाशिवरात्रि आज यानी 8 मार्च काे मनाई जा रही है। महाशिवरात्रि पर शिवजी के लिए व्रत रखकर खास पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं,महिलाओं के लिए महाशिवरात्रि का व्रत बेहद ही फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं की शादी जल्दी होती है, वहीं, विवाहित महिलाएं अपने सुखी जीवन के लिए महाशिवरात्रि का व्रत रखती हैं।
महाशिवरात्रि के संबंध में एक मान्यता ये है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार इस दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल- पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं। धार्मिक,आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महा शिवरात्रि पर्व का बहुत महत्व है।
महाशिवरात्रि व्रत का महत्व -
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'फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिङ्गतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभ।।
ईशान संहिता के इस वाक्य के अनुसार ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव होने से यह पर्व महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है। इस व्रत को सभी कर सकते हैं। इसे न करने से दोष लगता है। ये व्रतराज' के नाम से विख्यात है। शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटाने वाली है और शिवलोक को देने वाली है। शास्त्रोक्त विधि से जो इसका जागरण सहित उपवास करते हैं। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटाने वाला दूसरा व्रत नही है। इसके करने मात्र से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।महाशिवरात्रि का व्रत किसी के लिए भी निषिद्ध नहीं है। कोई भी व्यक्ति महाशिवरात्रि का व्रत कर सकता है। इस रूप में यह व्रत सभी मनुष्यों के मध्य समता का बोध कराता है। भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करने के उद्देश्य से सभी व्यक्तियों द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया है –
आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्।
शिव रहस्य ग्रंथ में महाशिवरात्रि व्रत की
महत्ता का वर्णन करते हुए कहा गया है -
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।
अर्थात शिवरात्रि का व्रत करने से
मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
शिव पुराण में वर्णित है कि दान,तप,यज्ञ,तीर्थ,यात्राएं और अन्य व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं होते हैं।
|| हर हर महादेव ||
महाशिवरात्रि पर्व....
महाशिवरात्रि पर्व पर आप सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएं....
Thursday, 7 March 2024
महाशिवरात्रि विशेष में....
|| महाशिवरात्रि विशेष में पढ़ें ||
*********
आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्
सौर,गाणपत्य,शैव, वैष्णव, और शाक्त - इन पाँच सम्प्रदायों मे विभक्त विराट हिन्दू साम्राज्य अपने अपने इष्टदेव की उपासना के अतिरिक्त धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष प्राप्त करने हेतु सम्प्रदाय भेद त्याग कर महाशिवरात्रि व्रत का व्यवहारिक जीवन के प्रधान अंग निमित्त पालन करता है । एक बार कैलाश-शिखर पर स्थित पार्वती जी ने महादेव से पूछा -
कर्मणा केन भगवन् व्रतेन तपसापि वा ।
धर्मार्थकाममोक्षणां हेतुस्तवं परितुष्यति ।।
हे भगवन् ! धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष इन चतुर्वर्गों के हेतु तो आप ही हो एवं साधना से संतुष्ट हो मनुष्यों को आप ही इसे प्रदान भी करते हो । अतएव यह जानने की इच्छा है कि आप किस कर्म , किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होते हो । अज्ञातज्ञापकं हि शास्त्रम् ' ( शास्त्रीय अनुष्ठानों के मूल मे सर्वत्र उद्देश्य रहता है ) शास्त्रों का कार्य ही यह है कि जो ज्ञात नही है उसे ज्ञात करा दे । पार्वती जी के पूछने पर महादेव कहते हैं -
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी ।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका ।।
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति माँ ध्रुवम् ।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्यया ।।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत: ।।
फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है उसी को शिवरात्रि कहते हैं । उस दिन जो उपवास करने से मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ वैसा स्नान,वस्त्र ,धूप और पुष्प अर्पण से भी नही होता।
माघकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिगंतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ: ।।
तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रि तिथि: ।।
अर्थात् माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा मे आदि देव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसम्पन्न हो शिवलिंग के रूप मे आविर्भूत हुए थे,अतएव शिवरात्रि व्रत मे उसी महानिशा-व्यापिनी चतुर्दशी का ग्रहण करना चाहिये । माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी (गुजरात #महाराष्ट्र के अनुसार माघ)बहुधा फाल्गुन मास मे ही पड़ती है । ईशान संहितानुसार " शिव की प्रथम लिंगमूर्ति उक्त तिथि की महानिशा ( महानिशा द्वे घटिके रात्रेर्मध्यमयामयो: - चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों मे पहले की अंतिम और दूसरे की आदि घडी ही महानिशा है ) मे पृथ्वी से पहले पहल आविर्भूत हुयी थी ।
रात्रि के चार प्रहरों मे चार बार
पृथक पृथक पूजन का विधान है
दुग्धेन प्रथमो स्नानं दध्ना चैव द्वितीयके ।
तृतीये तु तथाऽऽज्येन चतुर्थे मधुना तथा ।।
प्रथम प्रहर मे ईशान मूर्ति की दूध द्वारा , द्वितीय प्रहर मे अघोर मूर्ति की दही द्वारा, तृतीय प्रहर मे वामदेव मूर्ति की घी द्वारा, चतुर्थ प्रहर मे सद्योजात मूर्ति की शहद द्वारा स्नान कर पूजन तत्पश्चात प्रभात मे विसर्जन, व्रतकथा सुन यह कह पारण करने का विधान है ।
संसारक्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शँकर ।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ।
हे शँकर महादेव ! मै नित्य संसार की यातना से दग्ध हो रहा हूँ , इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न होईये, हे प्रभो संतुष्ट हो कर आप मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान कीजिये । महा शिवरात्रि व्रतानुष्ठान मे शास्त्र का गूढ़ उद्देश्य निहित है वह अज्ञात तत्त्व को बतलाता है इस तत्त्व के जाने बिना अनुष्ठान की कोई सार्थकता नही रहती ।
महादेव , शिव साधन पथ मे ब्रह्मवादियों के लिये ब्रह्म , सांख्य मतावलम्बीयों के लिये पुरुष, योगपद मे आरूढ़ वेत्ताओ के लिये सहस्त्रार मे स्थित प्रणव अर्धमात्रा के रूप मे कीर्तित हुये हैं । पुराणों मे महादेव के आधिदैविक स्वरूप का अधिक विस्तार तथा विविध लीलाओं का वर्णन होने पर भी उनमे वही गूढ़ अध्यात्मिक तत्त्व निहित है , शिवरात्रि व्रत मे भी महादेव का अध्यात्मिक तत्त्व अन्तर्निहित है जो महादेव का दार्शनिक परिचय अन्त: सलिला फल्गु की धारा के समान प्रच्छन्नरूपेण प्रवाहित हो रहा है । उसी स्वादु सुशीतल धारा मे अवगाहन करने के लिये हमे और भी गहरे मे गोता लगाना पड़ेगा ।
महाशिवरात्रि व्रत मे रात्रि एवं उपवास की प्रधानता है ' आहारनिवृत्तिरुपवास:,साधारणत: निराहार रहने को उपवास कहते है । आह्नियते मनसा बुद्धयाइन्द्रिर्वा इति आहार: ' मन , बुद्धि अथवा इन्द्रियों द्वारा जो कुछ आहरण ( बाहर से भीतर ) संचय किया जाता है वही आहार है । स्थूल - सूक्ष्म , भेद से यह दो प्रकार का है , मन आदि से आह्नत संस्कार सूक्ष्म आहार एवं पंच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा गृहीत शब्द-स्पर्श-रूपादि स्थूल आहार है , इसके अतिरिक्त दाल,चावल अन्य व्यंजन स्थूलतर आहार हैं ।
उपवास अर्थात उप - समीप , वास करना । ' शान्तं शिवमद्वैतं यच्चतुर्थं मन्यते ' शिव के समीप रहने मात्र से स्वभावत: मन-प्राण की समस्त रंगीन बत्तियाँ अपने आप बुझने लगती हैं । आहार निवृत्ति अर्थात् सूक्ष्म , स्थूल , स्थूलतर आहार का अत्यन्त आभाव । यथोचितरूपेण अनुष्ठित हो व्रत के बहिरंग अनुष्ठान मे कमी होने पर भी कोई हानि नही होती है । इसी कारण शिवरात्रि व्रत मे उपवास ही प्रधान अंग है ।
|| ॐ नम: पार्वतीपतये हर हर हर महादेव ||
Saturday, 2 March 2024
अशुभ प्रभाव का शनि जन्मकुंडली में...
अशुभ शनि प्रभाव उपाय परहेज़
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शनि जब अशुभ फल देने लगता है, तो जातक को घर की परेशानी आती है। कारोबार में टा नौकरी में बार बार रुकावटें शनि अशुभ होने से घर बिजनेस गिरने की स्थिति भी आ सकती है। जातक के शरीर के बाल भी झड़ने लगते हैं। विशेषकर भौंह के बाल झड़ने लगें, तो समझना चाहिए कि शनि अशुभ फल दे रहा है।
शनि से होने वाले रोग
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लकवा, वात रोग, घुटनों में दर्द, गठिया, पैरों में पीड़ा, आकस्मिक दुर्घटना आदि।
बचने के लिए करें ये सरल उपाय
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1. शनिवार का व्रत करें।
2. रोटी में तेल लगाकर कुत्ते या कौए को खिलाएं।
3. नीलम अथवा जामुनिया मध्यमा अंगुली में पहनें।
4. सांप को दूध पिलाएं।
5. लोहे का छल्ला जिसका मुंह खुला हो मध्यमा अंगुली में पहनें।
6. नित्य प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ पर काले तिल व कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए। यदि पीपल वृक्ष के नीचे शिवलिंग हो तो अति उत्तम होता है।
7. सुंदरकांड का पाठ सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।
अशुभ शनि के प्रभाव
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कुंडली में शनि की स्थिति अशुभ हो तो व्यक्ति बीमार रहने लगता है। आंखे कमजोर और बाल झड़ने लगते हैं। कुछ पेट की समस्याओं से भी घिरे रहते हैं। शनि के अशुभ प्रभाव से नौकरी में भी संघर्ष करना पड़ता है। शनि से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगता है और ऐसा व्यक्ति झूठ बोलने लग जाता है। शनि के दुष्प्रभाव के कारण धर्म-कर्म पर व्यक्ति का विश्वास नहीं रहता है और अकारण क्रोध आ जाता है। शनि ग्रह खराब हो तो कभी-कभी व्यक्ति बिना कुछ करे ही झूठे इल्जाम में फंस जाता है।
शनिवार के दिन करें ये काम
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शनि को बलवान बनाने और शनि दोष के लिए हनुमान, शिव, पीपल के पेड़ और ब्रह्मा जी की पूजा करें। हर दिन हनुमान चालीसा, शनि चालीसा और दशरथ शनि स्तोत्र का पाठ करें। इससे शनि के बुरे प्रभाव कम होने लगते हैं। शनि उपाय के रूप में शनिवार के दिन चमड़े का सामान जैसे चप्पल, सैंडल, जूते, जूते या काला तिल गरीबों को दान करें। शाकाहार का पालन करना और शराब से बचना भी शनि के लिए एक प्रबल उपाय है। झूठ बोलने और धोखा देने से भी दूर रहना चाहिए। शनि के लिए सबसे आसान उपायों में से एक चांदी की एक छोटी सी सॉलिड बाल खरीदना और इसे हर समय अपने पर्स में रखना है।
नोट- अगर आप अपनी जन्मकुंडली के बारे में जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर जानकारी लें , इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।
*Scientific Astrology and Vastu Research Center Ludhiana Punjab Bharat Phone..9417311379 www.astropawankv.blogspot.com*